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आपके विचार से बच्चों पर माता-पिता का इतना दबाव अच्छा है या बुरा? तर्कसहित उत्तर दीजिए।

हमारे विचार के अनुसार बच्चों पर माता-पिता का इतना दबाव अच्छा और बुरा दोनों तरह से है, लेकिन इसमें अच्छाइयां अधिक है और बुराइयां कम है। इस विषय के संदर्भ में कुछ तर्क इस प्रकार हैं…

अच्छा : कोई भी माता पिता अपनी संतान का बुरा नहीं चाहते। वह हमेशा अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं। इसलिए वह बच्चों पर कुछ दवाब बनाते हैं, ताकि उनके बच्चे अनुशासित रहें और अपने पढ़ाई आदि के प्रति सचेत रहें। यदि वे बच्चों पर दबाव नहीं बनाएंगे तो हो सकता है, बच्चे पढ़ाई के प्रति लापरवाह हो जाएं। इस तरह उनकी पढ़ाई प्रभावित हो सकती है और उनका करियर भी प्रभावित हो सकता है। माता पिता अपने बच्चों पर दबाव इसलिए बनाते हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ लिख कर कोई अच्छा करियर बना ले ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो जाए। इसीलिए बच्चों पर दबाव बनाते हैं ताकि बच्चे अपने करियर के प्रति गंभीर रहें।

बुरा : कभी-कभी माता-पिता बच्चों पर अनावश्यक दबाव बना देते हैं। बच्चों की जिस विषय में रुचि नहीं होती, जिस तरह की पढ़ाई में रुचि नहीं होती, माता-पिता उसे वही पढ़ाई करने के लिए दबाव बनाते हैं। उदाहरण के लिए किसी बच्चे को यदि विज्ञान विषय पढ़ने में रुचि नहीं है और वह कला अथवा कॉमर्स विषय लेना चाहता है, लेकिन माता-पिता दवाब बनाकर उसे विज्ञान विषय लेने के लिए ही विवश करते हैं। इससे बच्चा अरुचि होने के कारण विज्ञान विषय में सफल नही हो पाता है और उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है। इससे उसका भविष्य भी प्रभावित हो जाता है।

यदि बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार उनकी उसकी मनपसंद का विषय लेने की छूट दी जाए तो शायद उस विषय में अधिक निपुण हो सकता है और किसी भी विषय में निपुण होने पर अच्छे करियर की संभावना होती है। अक्सर माता-पिता समाज की प्रवृत्ति के अनुसार चलते हैं। वह अपने बच्चे की रुचि नहीं बल्कि समाज की प्रवृत्ति देखते हैं। यदि समाज में डॉक्टर, इंजीनियर, वकील बनने की प्रवृत्ति अधिक है, तो वह अपने बच्चे को भी वही बनाना चाहते हैं। वो यह नहीं देखते कि उनके बच्चे की क्या बनने में रुचि है, इसी कारण में बच्चे पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं जो कि बिल्कुल उचित नहीं है।

किसी को भी अपनी रूचि के अनुसार अपने जीवन को डालने का अधिकार है। माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के साथ माता-पिता की तरह नहीं बल्कि दोस्त की तरह व्यवहार करें ताकि बच्चा अपनी हर परेशानी को माता-पिता से शेयर कर सके और वह बिना किसी दबाव के अपनी पढ़ाई की जरूरतों को माता-पिता को बता सके। आजकल के माता-पिता ऐसा करते भी हैं, लेकिन पहले के समय में ऐसा करना बहुत कम होता था।इस तरह हम कह सकते हैं माता द्वार माता पिता द्वारा बच्चों का जवाब बनाया जाना अच्छा भी है, और थोड़ा बुरा भी लेकिन इसमें अच्छाइयां अधिक है और बुराइयां कम है।

निष्कर्ष :
दोनों तर्को से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, कि माता-पिता का अपने बच्चों पर उनके भविष्य के ध्यान देना तो उचित है ताकि उनका बच्चा अपने सही करियर को चुन सके लेकिन इसमें माता-पिता को बहुत अधिक दवाब नही देना चाहिए। उन्हें अपनी इच्छा अपनी संताप पर नहीं थोपनी चाहिए और अपनी संतान की इच्छा का भी ख्याल रखना चाहिए कि वास्तव में वो क्या करना चाहते हैं।


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मुहावरों को वाक्य में प्रयोग करें: क) नाक-भौंह सिकोड़ना ख) घड़ों पानी पड़ना

मुहावरों को वाक्य में प्रयोग और उनका अर्थ इस प्रकार होगा :

मुहावरा : नाक-भौंह सिकोड़ना

अर्थ : किसी बात पर अप्रसन्नता प्रकट करना। कोई मनपसंद का कार्य न होने पर खुश न होना, मनपंसद खाना न मिलने पर अप्रसन्न होना।

वाक्य प्रयोग-1 : राजू ने घर आकर जैसे ही यह देखा कि करेले की सब्जी बनी है तो करेले की सब्जी देखकर वह नाक-भौंह सिकोड़ना लगा।
वाक्य प्रयोग-1 : जैसे ही कचरे की गाड़ी गली में घुसी, सभी लोग नाक-भौंह सिकोड़ने लगे।
वाक्य प्रयोग-3 : सड़क किनारे बैठी उस भिखारिन को देखकर आस-पास से गुजरने वाले राहगीर नाक-भौंह सिकोड़ने लगते थे।

मुहावरा : घड़ों पानी पड़ना

अर्थ : कोई गलत कार्य करते हुए पकड़े जाने पर बेइज्जती होना। गलत कार्य करते हुए पकड़े जाना। गलती का पकड़ा जाना और शर्मिदा होना।

वाक्य प्रयोग-1 : जैसे ही मालकिन ने नौकरानी को चोरी-चोरी रसोई में से घी चुरा कर ले जाते हुए देखा तो नौकरानी पर घड़ों पानी पड़ गया।
वाक्य प्रयोग-2 : परीक्षा भवन में जब राजू के पास से नकल की पर्ची मिली तो उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
वाक्य प्रयोग-3 : वर्मा को रिश्वत लेते हुए जब भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते ने पकड़ा तो वर्मा जी की शक्ल देखकर ऐसा लगता था कि जैसे उन पर घड़ों पानी पड़ गया हो।


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दिए गए मुहावरों का अर्थवरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करें- क) हृदय पर साँप लोटना ख) अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना​।

मुहावरों का अर्थ और वाक्यों में प्रयोग कीजिए 1. आँचल में छिपा लेना 2. आँसुओं का समुद्र उमड़ना

बहन के प्रेम की कौन-सी बात भाई के मन पर सदा के लिए छप गई?

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बहन के प्रेम की वह बात भाई के मन पर छप गई, जब भाई बीमार पड़ा तो माँ ने भाई का सारा खाना पीना बंद कर दिया और उसे परहेज वाला खाना देना शुरू कर दिया था। भाई बेमन से खाना खाता था। उसे देखकर बहन को अच्छा नहीं लगता था। एक दिन बहन चुपचाप माँ से छुपकर भाई को गुड़ और चना दे गई। भाई ने बड़े चाव से गुड़ चना खाया। इस तरह बहन छुप-छुपकर अपने भाई का ध्यान रखती और उसे कुछ ना कुछ उसकी पसंद का खाने को देती रहती थी। बहन ने माँ को यह बात नहीं बताई और ना ही भाई ने माँ से कभी कुछ कहा। समय बीतता रहा। भाई अपनी बीमारी से उबर गया और ठीक हो गया। लेकिन बीमारी के समय बहन द्वारा भाई का इतना ख्याल रखे जाने वाली बात भाई के मन पर छप गई थी और बहन के स्नेह की ये बात उसे जीवन भर याद रही।

संदर्भ पाठ 

‘गुलाब सिंह’ — सुभद्रा कुमारी चौहान (कक्षा-8, पाठ-14, सरोज हिंदी पाठमाला)


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श्वेत कोयला किसे कहा जाता है? भूरा कोयला किसे कहा जाता है?

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श्वेत कोयला (White Coal) किसे कहा जाता है?

सामान्य संदर्भ में श्वेत कोयला ‘जल विद्युत’ को कहा जाता है। जलविद्युत को श्वेत कोयला इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसका उत्पादन जल को ऊँचाई से से गिरा कर टर्बाइन की सहायता से विद्युत उत्पन्न की जाती है। इसीलिए इसे ‘श्वेत कोयला’ यानि ‘सफेद कोयला’ कहा जाता है। कोई भी कोयला ऊर्जा ईंधन का रूप होता है। जलविद्युत ईंधन का ही एक रूप है, इसलिए इसे श्वेत कोयला कहा जाता है। श्वेत कोयला नाम का एक पदार्थ भी है, जो सफेद आग पर कटी हुई लकड़ी को सुखाकर ईंधन का एक परिवर्तित रूप होता है। इसका यह परिवर्तित रूप चारकोल से भिन्न होता है। 16-17वीं  शताब्दी में सफेद कोयले का उपयोग किया जाता था। यह लकड़ी की तुलना में अधिक गर्मी पैदा करता था। इस कोयले का प्रयोग अधिकतर यूरोप व अमेरिका के ठंडी जलवायु वाले देशों में किया जाता है।

श्वेत कोयला (White Coal) शब्द पानी से प्राप्त हाइड्रोइलेक्ट्रिक ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जल विद्युत संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली को श्वेत कोयला कहा जाता है क्योंकि यह स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोत है। इसलिए श्वेत कोयला वास्तव में कोयला नहीं है बल्कि जल विद्युत ऊर्जा को इस नाम से संदर्भित किया जाता है।

भूरा कोयला (Brown Coal) किसे कहा जाता है?
  • भूरा कोयला ‘लिग्नाइट’ को कहा जाता है। कोयले के निर्माण की प्रक्रिया में उसके द्वितीय चरण में लिग्नाइट का रंग भूरा होता है, इसलिए इसे ‘भूरा कोयला’ कहा जाता है।
  • भूरा कोयला एक प्रकार का कम गुणवत्ता वाला बायोमास आधारित ठोस ईंधन है। इसे लिग्नाइट भी कहा जाता है।
  • यह काले कोयले से कम उर्जा-गहन होता है और अधिक कार्बन का उत्पादन करता है।
  • भूरा कोयला बायोमास देवदारु और पौधों के अवशेषों से बनता है जो धीरे-धीरे कोयले में परिवर्तित हो गए।
  • इसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन और कुछ उद्योगों में इंधन के रूप में किया जाता है।
निष्कर्ष

इस प्रकार, श्वेत कोयला पानी से मिलने वाली नवीकरणीय ऊर्जा को संदर्भित करता है, जबकि भूरा कोयला एक ठोस ईंधन है जो वास्तविक रूप से कोयले की एक किस्म है।


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फिल्मों का समाज की उन्नति में विशेष योगदान हो सकता है? इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

फिल्मों का समाज की उन्नति में योगदान

फिल्मों का समाज का समाज की उन्नति में विशेष योगदान हो सकता है । यदि फिल्म निर्माता केवल स्वार्थी न होकर जन-कल्याण के लिए शिक्षाप्रद फिल्में बनाए तो चलचित्रों से अच्छा मनोरंजन एवं शिक्षा का दूसरा कोई माध्यम नहीं है। हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम अधिक फिल्में न देखकर कुछ चुनिन्दा तथा अच्छी एवं ज्ञानवर्धक फिल्में ही देखें, जिससे हमारा मनोरंजन भी होगा तथा ज्ञानवर्धक भी होगा। आज हिंदी फिल्में, हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति का लोकदूत बनकर विश्व स्तर पर हिंदी की पताका फहरा रही है । फिल्में शिक्षा एवं मनोरंजन दोनों लक्ष्यों की पूर्ति करने में सहायक है ।

देश की जिन सामाजिक प्रथाओं, कुरीतियों, अच्छाइयों, बुराइयों, प्राचीन संस्कृतियों आदि के बारे में हमने केवल पढ़ा है या किसी बुजुर्ग से सुना है; आज हम फिल्मों के द्वारा उनके बारे में देख सकते हैं और सही गलत की पहचान कर सकते हैं । हमें फिल्मों द्वारा इतिहास, भूगोल, समाज, विज्ञान, संस्कृति आदि का भी भरपूर ज्ञान प्राप्त हो सकता है ।

आज फिल्म निर्माताओं तथा राष्ट्र के नायकों और समाज के पथ प्रदर्शकों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा, कि इस लोकप्रिय माध्यम का उपयोग राष्ट्रीय भावना के निर्माण के लिए किया जाए । देश में बढ़ती हुई अराजकता तथा अनेक अपराधों और अनैतिक कार्यों को फिल्मों द्वारा दिखाकर इसे जनता के सम्मुख रख कर इससे दूर रहने की प्रेरणा दी जा सकती है ।

युवा पीढ़ी इससे सृजनात्मक पक्ष को सीख सकती है, यदि इसके निर्माता इस तथ्य को भी समझें कि राष्ट्र और जन-जीवन के प्रति भी वे उत्तरदायी हैं । अच्छी और राष्ट्रीय स्तर की फिल्मों को प्रोत्साहन देना तथा फार्मूला फिल्मों को प्रतिबंधित करना सरकार का कर्तव्य है।

भारतीय संस्कृति के आदर्श तथा वर्तमान विश्व की स्थिति को सिनेमा प्रभावी ढंग से लोगों तक प्रेषित करें, तो इससे शांति और समृद्धि, सुख और समता के आदर्श को स्थापित किया जा सकता है।


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प्लास्टिक की चीजों से हो रही हानि के बारे में किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखकर अपने सुझाव दीजिए।

औपचारिक पत्र

प्लास्टिक की हानियों के बारे में बात करते हुए संपादक को पत्र

 

दिनांक : 13 जून 2024

 

प्रति,
संपादक महोदय,
हिंदुस्तान टाइम्स,
नई दिल्ली

विषय : प्लास्टिक की चीजों से होने वाली हानि के संबंध में ।

 

संपादक महोदय,

मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार पत्र के माध्यम से प्लास्टिक की चीजों से होने वाली हानि के बारे में सरकार तथा जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। आज के समय में प्लास्टिक इतना अधिक बढ़ गया है कि इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। यदि आज की दुनिया को आप प्लास्टिक की दुनिया कहेंगे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जहाँ देखो वहाँ प्रत्येक वस्तु प्लास्टिक की बनी है। छोटे से छोटे सामान जैसे कि बच्चों के खिलौने, सामान रखने के लिए प्लास्टिक के डिब्बे, कपड़ों के लिए प्लास्टिक बैग या फिर खाने-पीने के सामानों को रखने के लिए बिस्कुट और चॉकलेट के प्लास्टिक आदि में प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा है।

अब ऐसे में अगर हम कहें कि आज हम प्लास्टिक की दुनिया में जी रहे हैं तो कुछ गलत नहीं होगा। सभी जानते हैं प्लास्टिक पॉलीमर से निर्मित एक प्रोडक्ट है, जो ना तो पानी में घुल सकता है और ना ही जलाने पर यह पूरी तरह से नष्ट होता है । प्लास्टिक को अंग्रेजी में ‘पॉलिथीन’ भी कहा जाता है, जो पर्यावरण को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाती है । प्लास्टिक को जलाने से उसमें से रसायन निकलते है जिससे वायु प्रदूषण होता है । उस धुएं में ज़्यादा देर सांस लेने से मनुष्य को भयंकर बीमारियां हो सकती है ।

प्लास्टिक मानव के लिए अत्यंत खतरनाक है । प्लास्टिक का निर्माण जाइलिन, एथेलेन ऑक्साइड और बेंजीन जैसे रसायनो से होती है । जब यह प्लास्टिक जलाशयों और समुद्र के जल में चले जाते है, तो वहां के जीव उसे खाना समझकर खा लेते है और प्लास्टिक उनके गले में अटक जाती है और उससे उनकी मौत हो जाती है ।

संपादक जी, मेरी राय में पर्यावरण की रक्षा के लिए हम मनुष्यों को प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं का खंडन करना चाहिए। प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुओं के उपयोग से बचे। प्लास्टिक के स्थान पर कागज़ और जुट के बैग का इस्तेमाल करें । हमें जब भी दुकान से चीज़ें लेनी हो हमेशा कपड़े की थैली लेकर जानी चाहिए, ताकि प्लास्टिक में वस्तुएं ना लेना पड़े।

प्लास्टिक के इन भयानक और बुरे प्रभाव की जानकारी को लोगों में फैलाना चाहिए, ताकि वह इसे गंभीरता से ले। स्कूल और अन्य शिक्षा संस्थानों में प्लास्टिक के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताना ज़रूरी है, ताकि वह कम उम्र से सचेत हो जाए। इस तरह के प्रयासों से हम प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे और सतर्क रहेंगे।

मुझे आशा है कि आपके समाचार पत्र द्वारा मेरे इस पत्र के माध्यम से कुछ लोग अवश्य जागरुक होंगे। हम सभी को मिलकर ही प्लास्टिक जैसे दानव से अपनी पृथ्वी को बचाना होगा।

धन्यवाद सहित !

एक पाठक,
रजनीश मिश्रा ।


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‘पेलाग्रा’ (Pellagra) नामक रोग निम्नलिखित में से किस विटामिन की कमी के कारण होता है? (अ) विटामिन A (ब) विटामिन B (स) विटामिन C (द) विटामिन D

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सही विकल्प होगा..

विटामिन B

स्पष्टीकरण :

‘पेलाग्रा’ (Pellagra) नामक रोग विटामिन ‘B’ की कमी के कारण होता है। जब शरीर में विटामिन B3 की अत्यधिक कमी हो जाती है, तो ‘पेलाग्रा’ नामक रोग उत्पन्न होता है। इस रोग में डायमेंशिया, दस्त और डर्मेटाइटिस जैसी समस्याएं यानि त्वचा पर चकत्ते पड़ना, दाने आने जैसे उत्पन्न होने लगती हैं। यदि समय पर इसका उचित उपचार ना मिले तो यह रोग जानलेवा भी हो सकता है।

विटामिन B3 को ‘नियोसिन’ भी कहा जाता है। इसी की कमी के कारण ‘पेलाग्रा’ (Pellagra) नामक रोग होता है। इसके प्रमुख लक्षण होते हैं…

प्रकाश के प्रति अत्याधिक संवेदनशीलता, बालों का झड़ना डर्मेटाइटिस (त्वचा पर चकत्ते पड़ना, दाने आना), शरीर में सूजन होना जीभ में सूजन होना, नींद ना आना दिल का आकार बढ़ना आदि ।

पेलाग्रा (Pellagra) निम्नलिखित कारणों से होता है:

  1. निकोटिनामाइड (नियासिन या विटामिन बी3) की कमी : पेलाग्रा का मुख्य कारण शरीर में निकोटिनामाइड की गंभीर कमी होना है। यह विटामिन प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के मेटाबॉलिज्म के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. गैर-संतुलित आहार : निकोटिनामाइड की कमी मुख्य रूप से कम प्रोटीन और अनाज के अधिक सेवन से होती है। गरीबी और भुखमरी भी इसका एक कारण हो सकता है।
  3. तंबाकू और शराब का दुरुपयोग : धूम्रपान और शराब के अत्यधिक सेवन से शरीर में विटामिन बी3 की कमी हो सकती है।
लक्षण
  1. त्वचा संबंधी समस्याएं: त्वचा में लालिमा, छाले, झुर्रियां और सूरज की रोशनी से संवेदनशीलता।
  2. मुंह और जीभ में घाव: मुंह में छाले और घाव बनना।
  3. डायरिया: पेट दर्द और डायरिया का होना।
  4. मानसिक लक्षण: अवसाद, चिड़चिड़ापन और भ्रम का होना।
  5. गंभीर मामलों में मस्तिष्क संबंधी समस्याएँ और मृत्यु भी हो सकती है।

बचाव के उपाय

  1. आहार में सुधार : निकोटिनामाइड युक्त भोजन जैसे मांस, अंडे, दाल, दूध और फलियों का सेवन करना।
  2. विटामिन बी3 की गोलियां : चिकित्सक द्वारा निर्धारित निकोटिनामाइड की गोलियां लेना।
  3. आहार में सुधार : संतुलित आहार लेना जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज लवण शामिल हों।
  4. अल्कोहल और तंबाकू का सेवन कम करना या छोड़ना।

समय रहते उचित उपचार करने पर पेलाग्रा पूरी तरह से ठीक हो सकता है। इसलिए संतुलित आहार लेना और विटामिन की कमी न होने देना महत्वपूर्ण है।


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हम भी सिंह¸ सिंह तुम भी हो¸ पाला भी है आन पड़ा। आओ हम तुम आज देख लें हम दोनों में कौन बड़ा।। निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

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हम भी सिंह, सिंह तुम भी हो,
पाला भी है आन पड़ा।
आओ हम तुम आज देख लें
हम दोनों में कौन बड़ा ।।

संदर्भ : ये काव्य पंक्तियां कवि ‘श्याम नारायण पांडे’ द्वारा लिखी गई ‘हल्दीघाटी’ नामक काव्य के प्रथम सर्ग से ली गई हैं। इन पंक्तियों का  प्रसंग उस समय का है, जब महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह वन में शिकार खेलने गए और  उनमें आपस में वीरता के प्रदर्शन को लेकर विवाद हो गया था। इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…

भावार्थ : महाराणा प्रताप शक्ति सिंह से कहते हैं कि मैं सिंह के समान यानि मैं वीर हूँ और तुम भी सिंह के समान यानि तुम भी वीर हो। आज हम दोनों का आमना-सामना हो रहा है। आज हम दोनों की शक्ति प्रदर्शन हो जाए। आज ये भी निश्चित हो जाएगा कि हम दोनों में से श्रेष्ठ वीर कौन है, कौन सही अर्थों में श्रेष्ठ वीर राजपूत है।


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दो सैनिकों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद लेखन

दो सैनिकों के बीच संवाद

 

पहला सैनिक ⦂ कैसे हो भाई?

दूसरा सैनिक ⦂ मैं ठीक हूँ। तुम बताओ आज बहुत खुश नजर आ रहे हो।

पहला सैनिक ⦂ हाँ भाई मैं बहुत खुश हूँ। ये लो मिठाई खाओ।

दूसरा सैनिक ⦂: शुक्रिया भाई लेकिन यह मिठाई किस खुशी में खिला रहे हो।

पहला सैनिक ⦂ मेरी छुट्टी मंजूर हो गई है।

दूसरा सैनिक ⦂ क्या तुम छुट्टी मंजूर होने की खुशी में मिठाई खिला रहे हो?

पहला सैनिक ⦂ नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल मेरी छोटी बहन की शादी है।

दूसरा सैनिक ⦂ ओह ! तो ये बात है। फिर तो मेरी तरफ से तुम्हे बधाई। अब तो तुम्हे अपनी बहन की शादी के लिए जाना ही होगा।

पहला सैनिक ⦂ हाँ भाई। मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी सगी बहन की ही शादी हो रही हो।

दूसरा सैनिक ⦂ ऐसा क्यों? जिसकी शादी हो रही है क्यो वो तुम्हारी सगी बहन नहीं है क्या?

पहला सैनिक ⦂ भाई, वो मेरी सगी बहन से भी बढ़कर है। दरअसल मेरे माता-पिता ने उसे सगी बेटी की तरह पाला है।

दूसरा सैनिक ⦂ सगी बेटी की तरह पाला है। क्या मतलब?

पहला सैनिक ⦂ वह मेरे माता-पिता को एक मंदिर के सामने रोती हुई मिली थी, उसे कोई वहाँ छोड़ गया था।

दूसरा सैनिक ⦂ वाह भाई तुमने तो बहुत महान काम किया है। तुम्हें मेरा सलाम है।

पहला सैनिक ⦂ तुम्हें भी उसकी शादी में ज़रूर  आना है।

दूसरा सैनिक ⦂ हाँ-हाँ क्यों नहीं मैं ज़रूर आऊँगा ।


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सरल मशीन कितने प्रकार की होती हैं? विस्तार से बताइए।

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सरल मशीन छः प्रकार की होती है, जोकि निम्नलिखित है…
  1. उत्तोलक यानि लीवर
  2. पहिया
  3. घिरनी
  4. ढलवाँ तल
  5. पेंच
  6. फन्नी

उत्तोलक : उत्तोलक यानि लीवर एक तरह की वह मशीन होती है, जोकि किसी भार को उठाने का कार्य करती है। उत्तोलक के तीन बिंदु होते हैं, आलम्ब, आयास और भार। उत्तोलक भी तीन प्रकार के होते हैं।। प्रथम श्रेणी का उत्तोलक, द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक तथा तृतीय श्रेणी का उत्तोलक।

पहिया : ये एक सरल मशीन है, जो घूर्णन करने वाली मशीन होती है अर्थात यह घूमने वाली एक सरल मशीन है। पहिए की क्षैतिज या ऊर्धवाकार आकार होती है तथा इसके किनारे वक्राकार होते हैं। जिससे यह गति करता है। पहिया एक बेहद प्राचीन मशीन है और यह हजारों वर्षों से सरल मशीन के रूप में प्रचलित है।

घिरनी : घिरनी एक सरल मशीन है जो कुएं से पानी आदि बाल्टी द्वारा पानी निकालने के लिए कार्य में लाई जाती है। घिरनी दो प्रकार की होती है। स्थिर घिरनी और चलायमान घिरनी।

ढलवाँ तल : एक सरल मशीन है, जो इसी वस्तु को उच्च स्थान से निम्न स्थान की ओर अथवा किसी वस्तु को निम्न स्थान से उच्च स्थान की ओर ले जाने के लिए प्रयोग में लाई जाती है।

पेंच : पेंच एक सरल मशीन है। इसमें घुमावदार कटाव होते हैं और किनारा वक्राकार होता है। इसका प्रयोग वस्तुओं को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।

फन्नी : पन्नी धातु अथवा लकड़ी का त्रिकोणीय टुकड़ा होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं को अलग करने के लिए अथवा उन्हें उठाने के लिए किया जाता है। चाकू, छुरी, छेनी आदि सामान्य रूप से इस्तेमाल किए जाने वाली फन्नी हैं।


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लघु निबंध

खान-पान द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रभाव

 

खान-पान का हमारे शरीर पर बहुत गहरा प्रभाव पढ़ता है हम अपने आस-पास अकसर देखते हैं कि कुछ लोग जरूरत से ज्यादा मोटे और कुछ लोग जरूरत से ज्यादा पतले या कमजोर होते हैं । इसी तरह अनेक बच्चे छोटी उम्र में ही मोटापे और कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं जबकि कुछ बच्चे काफी कमजोर या पतले होने की वजह से बीमारियों से ग्रसित होते हैं । क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है ? ऐसा नहीं है कि इस तरह के लोग या बच्चे खाते-पीते नहीं है या उन्हें खाने की वस्तुएं नहीं मिलती हैं । दरअसल इस तरह के मोटापे या बीमारियों की सबसे बड़ी वजह होती है उनका संतुलित आहार नहीं खाना । संतुलित आहार नहीं लेने से न केवल शारीरिक और मानसिक विकास बाधित होता है बल्कि व्यक्ति की उत्पादकता भी काफी कम हो जाती है ।

संतुलित आहार में शामिल विटामिन और मिनरल हमें ताजे फलों और सब्जियों से प्राप्त होते हैं । आयोडीन, आयरन, कैल्शियम और पोटेशियम महत्वपूर्ण मिनरल्स होते हैं । इससे शरीर में खून की कमी दूर होती है और हड्डियां मजबूत बनती है । संतुलित आहार में फाइबर का होना भी जरूरी है । फाइबर युक्त आहार का सेवन पाचन तंत्र के लिए काफी फायदेमंद होता है । मेडिकल साइंस के मुताबिक एक वयस्क को रोजाना करीब 25 से 30 ग्राम फाइबर जरूर लेना चाहिए ।

संतुलित भोजन के लिए सबसे जरूरी है खाने के साथ उचित मात्रा में पानी पीना । कम पानी पीने से शरीर में अनेक बीमारियों पैदा होती हैं । इसलिए खुद को हाइड्रेट रखने के लिए हर रोज कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीना जरूरी है। संतुलित आहार लेते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि प्रतिदिन पांच ग्राम से कम नमक (करीब एक चम्मच के बराबर) और आयोडीन युक्त नमक ही खाना है । संतुलित आहार में मौजूद पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें शामिल प्रोटीन मांसपेशियों को मजबूत करने के साथ ही शरीर के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है । प्रोटीन न मिले तो गठिया, हृदय रोग, गंजापन जैसी तमाम बीमारियां हो जाए । प्रोटीन को प्रोटीन मिले इसके लिए मीट, अंडा, सी फूड, दूध, दही, सूखे मेवे खाना चाहिए जो प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। वहीं कार्बोहाइड्रेट लेने से शरीर को ऊर्जा मिलती है । यह कई बीमारियों को रोकने में सहायक है ।

साबुत अनाज, ब्राउन राइस, दाल, फलियां, आलू, केला इसके मुख्य स्रोत हैं। हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ समाज द्वारा ही एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे समाज के आहार और पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाए। ऐसे में हाल ही में शुरू किया गया आहार क्रांति (उत्तम आहार-उत्तम विचार)’ अभियान न केवल बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों और महिलाओं को कुपोषण और गंभीर बीमारियों से बचाएगा बल्कि एक उन्नत समाज और श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में काफी सहायक सिद्ध होगा।


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कवि क्या करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है?

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कवि मनुष्य को सफलता पाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। कवि का कहना है कि यदि मनुष्य को अपने लक्ष्य को पाना है तो उसे अपने पथ पर निरंतर चलते रहना होगा। उसे हर समय प्रयास करते रहना होगा। यदि मनुष्य अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ता रहेगा तो उसे उसकी राह में अनेक ऐसे मनुष्य मिलेंगे जो उसका सहयोग करेंगे। इस तरह आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हुए सभी अपने अपने लक्ष्य को की ओर बढ़ते रहेंगे और एक न एक दिन सफलता प्राप्त करके रहेंगे। मिलकर साथ चलने से परस्पर सहयोग द्वारा कोई भी कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। कवि का यही कहने का भाव है। वह मनुष्य को सफलता पाने के लिए यही प्रवृत्ति अपनाने को प्रोत्साहित कर रहा है।


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गद्य की अपेक्षा कविता का अनुवाद कठिन क्यों होता है या कविता की अपेक्षा गद्य का अनुवाद सरल क्यों होता है।

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आशय कीजिए- “यह वह समय है जब बच्चा मनाता होगा कि काश! उसके पिता अनपढ़ होते।”

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‘यह वह समय है जब बच्चा मनाता होगा कि काश! उसके पिता अनपढ़ होते।’ इस पंक्ति का आशय इस प्रकार है कि बच्चे एक ऐसे युग में जी रहे हैं, जहाँ वो पूरी तरह से आजादी चाहते हैं। उनके मन में अब माता-पिता के प्रति वैसा सम्मान नहीं है। वह केवल माता-पिता को एक साधन समझते हैं। पिछली ज्यादातर माता-पिता अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे होते थे और अपनी संतान को खूब पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आज बच्चे जिस पीढ़ी के हैं, उसकी पहली पीढ़ी यानी उनके माता-पिता भी पढ़े लिखे हैं। इसलिए वे अपनी संतान की पढ़ाई के प्रति जागरूक है।

आजकल के माता-पिता हर बात पर नजर रखते हैं कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं। उनके बच्चे पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं या नहीं? वे कौन सी पढ़ाई कर रहे हैं। इसलिए वह अपने बच्चों को निरंतर टोकते रहते है। आजकल के माता-पिता टेक्निक फ्रेंडली भी हैं, इसलिए डिजिटल जगत और सोशल मीडिया में अथवा टीवी-मोबाइल पर उनका बच्चा क्या कर रहा है ये बात भी वे अच्छी तरह से जानते हैंं और अपने बच्चे पर लगातार नजर रखते है । ऐसे में बच्चे चाहते हैं कि उनके माता-पिता अनपढ़ होते तो शायद वह उन पर नजर नही रख पाते और ना ही समझ पाते। इस तरह बच्चे अपने माता-पिता को आसानी से चकमा दे सकते थे और अपनी मर्जी के अनुसार कार्य कर सकते थे। लेकिन माता-पिता पढ़े लिखे हैं इस कारण बच्चों द्वारा माता पिता को चकमा देना संभव नहीं होता। इसीलिए आज का यह समय है, जब बच्चे मनाते हैं, उसके माता-पिता अनपढ़ होते।


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‘हम सब में है मिट्टी’- कथन से कवि का क्या आशय है?

महिला और दूधवाला के बीच हुए संवाद को लिखें।

संवाद लेखन

महिला और दूधवाला के बीच संवाद

 

दूधवाला ⦂ नमस्ते भाभी जी।

महिला ⦂ नमस्ते भईया, आज बहुत लेट आए हो?

दूधवाला ⦂ हाँ, भाभी जी, आज रास्ते में बहुत ट्रैफिक था।

महिला ⦂ अच्छा।

दूधवाला ⦂ (दूध की थैली महिला को देते हुए) ये लो भाभी जी, एक लीटर दूध। एक तारीख से दूध के दो रुपये ज्यादा देने होंगे दूध के दाम बढ़ गए हैं।

महिला ⦂ (दूध लेते हुए) भईया, ये क्या बात हुई। अभी दो महीने पहले ही तो आपने दाम बढ़ाए थे।

दूधवाला ⦂ हम क्या करें भाभीजी। हम जहाँ से थोक में दूध लेते हैं, वहीं से हमको ज्यादा दाम पर दूध मिल रहा है।

महिला ⦂ हर जगह देखो महंगाई हो रखी है। तुमने दूध के दाम तो बढ़ा दिए लेकिन आज कल आपका दूध बहुत पतला होता है, पहले की तरह प्योर नहीं होता।

दूधवाला ⦂ नहीं, भाभी जी दूध तो ठीक आता है।

महिला ⦂ भईया, मैं ठीक कह रही हूँ। अब दूध में पहले जैसे मोटी मलाई नहीं जम रही है। तुम दूध पानी जैसा दे रहे हो।

दूधवाला ⦂ भाभी जी, आप चिंता न करो। कुछ भूल हो गई होगी। कल से देखना आपको एकदम प्योर दूध मिलेगा।

महिला ⦂ ठीक है, देखती हूँ। एक तो दूध महंगा कर दिया और दूध भी पतला दे रहे हो। अगर ऐसा रहा तो मैं दूध बंद कर दूंगी।

दूधवाला ⦂ नही भाभीजी, कल से आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

महिला ⦂ ठीक है, देखते है।


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मणिपुर राज्य की विशेषता के बारे में बात करते हुए दो दोस्तों के बीच संवाद लिखिए।

नेताजी की मूर्ति बनवाने को लेकर लेखक ने नगर पालिकाओं की कार्यप्रणाली पर जो व्यंग्य किया है, उसे स्पष्ट कीजिए।

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‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में नेता जी की मूर्ति बनवाने को लेखक ने नगर पालिकाओं की कार्य प्रणाली पर अनेक व्यंग्य किए है। लेखक के अनुसार कस्बे में नगरपालिका थी तो वह खानापूर्ति के लिए कुछ ना कुछ वह कार्य करवाते ही रहती थी। नगर पालिका बजट के हिसाब से कार्य करवाती थी और किसी भी बात का निर्णय लेने में उहापोह और चिट्ठी पत्री में भी काफी समय बर्बाद होता था। किसी भी कार्य की समय अवधि समाप्त हो जाने से पहले कार्य पूरे करने की जल्दी में वह उल्टा सीधा खानापूर्ति करके कार्यों को संपन्न कर लेते थे ताकि शासन प्रशासन को सही समय पर रिपोर्ट सौंपी जा सके। नगरपालिकाओं की यही कार्यशैली होती है कि वह खानापूर्ति पर अधिक ध्यान देते हैं ना कि कार्य के मूल सार्थकता और उसकी गुणवत्ता पर।

नगर पालिका ने जल्दी-जल्दी में आनन-फानन में जो मूर्ति बनाने का काम विद्यालय के ऐसे मास्टर को दे दिया जोकि मूर्ति बनाने का कोई बहुत वड़ा विशेषज्ञ नही था। इस कारण वो मूर्ति बनाते समय उसमे एक बड़ी कमी छोड गया और मूर्ति पर कोई चश्मा नही बनाया जोकि नेताजी के व्यक्तित्व की पहचान थी।


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‘नेताजी का चश्मा’ कहानी के अनुसार देश के निर्माण मे बड़े ही नहीं बच्चे भी शामिल हैं। आप देश के नव निर्माण मे किस प्रकार योगदान देंगे?

‘पूस की रात’ कहानी की दो संवेदनात्मक विशेषताएं लिखिए।

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‘पूस की रात’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कहानी है, जिसमें उन्होंने ‘हल्कू’ नामक एक गरीब किसान की व्यथा का वर्णन किया है। ‘हल्कू‘ किसान के माध्यम से उन्होंने भारत के लगभग हर गरीब किसान की व्यथा को व्यक्त कर दिया है।

इस कहानी की दो संवेदनात्मक विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  1. ‘पूस की रात’ कहानी भारत के गरीब किसान की व्यथा को व्यक्त करती है, जो कठोर परिश्रम तो करते हैं और अपने अथक परिश्रम से फसल भी उगा लेते हैं, लेकिन कोई ना कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जिस कारण उनके परिश्रम का पूरा लाभ नहीं मिल पाता और उनकी आर्थिक स्थिति हमेशा ही दयनीय बनी रहती है। वे पूरी जिंदगी अभावों में ही गुजार देते हैं।
  2. ‘पूस की रात’ कहानी उन किसानों की कठिन परिस्थितियों को भी उजागर करती है, जो जीवन के संघर्षों से निरंतर जूझते रहते हैं। चाहे जाड़ों की हड्डियों को कंपा देने वाली ठंड हो या शरीर को झुलसा देने वाली सूर्य की तेज गर्मी हो, उन्हें हमेशा काम करते रहना पड़ता है, लेकिन वह अपने लिए आवश्यक साधन भी नहीं जुटा पाते। उन्हें ठंड में कंपकपाना पड़ता है तो गर्मी में उन्हें धूप से जलना पड़ता है। वे सभी के लिए अन्न उत्पन्न करते हैं, सबका पेट भरते हैं, लेकिन उनका जीवन हमेशा खाली ही रहता है।

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‘दीरघ-दाघ निदाघ’ में अलंकार है (क) श्लेष (ख) उपमा (ग) यमक (घ) अनुप्रास।

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सही विकल्प होगा

(घ) अनुप्रास
काव्य पंक्ति : दीरघ-दाघ-निदाघ
अलंकार भेद : अनुप्रास अलंकार

स्पष्टीकरण

‘दीरघ-दाघ निदाघ’ में ‘अनुप्रास अलंकार’ इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ‘द’ वर्ण की आवृत्ति दो बार हुई है। क्योंकि हम जानते हैं कि अनुप्रास अलंकार उस काव्य में प्रकट होगा जहाँ पर किसी वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार शब्द के प्रथम वर्ण के रूप में हुई हो।

‘अनुप्रास अलंकार किसी अलंकार का वह भेद होता है, जिसमें किसी भी शब्द के प्रथम वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो तो वहाँ ‘अनुप्रास अलंकार’ प्रकट होता है। अथवा अनुप्रास अलंकार वहां भी प्रकट होता है, जहां पर कोई पूरे शब्द की आवृत्ति काव्य में एक से अधिक बार समान अर्थों में हो तो वहां पर भी अनुप्रास अलंकार प्रकट होता है।


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ईमानदारी के महत्व के कौन परिचित नहीं है? ईमानदारी का महत्व और ईमानदारी के फायदे तो सभी जानते हैं, लेकिन ईमानदारी का पालन कोई भी पूरी ईमानदारी से नहीं कर पाता। ईमानदारी अनेक लाभ हैं, लेकिन ये लाभ तुरंत नहीं मिलने बल्कि इनके लिए संयम रखना पड़ता है। जो लोग संयम नहीं रख पाते वे ईमानदारी के पथ से डगमगा जाते हैं। ईमानदारी के लाभ और हानि का विवेचन करते हुए ईमानदारी का पक्ष और विपक्ष प्रस्तुत है।

ईमानदारी का पक्ष :

  • ईमानदार व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता है और उसकी छवि नैतिक मूल्यों को मानने वाले एक आदर्श व्यक्ति के रुप में समाज में बनी होती है ।
  • ईमानदारी, मनुष्य को भरोसेमंद बनाती है ।
  • ईमानदारी ही एक ऐसा गुण होता है, जिससे सामने वाला का भरोसा आसानी से जीता जा सकता है ।
  • ईमानदार लोग निडर और निस्वार्थ होकर खुशीपूर्वक अपना जीवनयापन करते हैं ।
  • ईमानदार व्यक्ति, समाज में अपूर्व सम्मान एवं प्रतिष्ठा हासिल करता है ।
  • ईमानदारी, व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास की भावना को जागृत करती है ।
  • ईमानदार व्यक्ति के मन में सदैव अच्छे विचार आते हैं और उसका मन शांत रहता है ।
  • ईमानदारी, मनुष्य को मानसिक रुप से भी खुशी प्रदान करती है ।

ईमानदारी का विपक्ष :

  • आपके कम दोस्त होंगे ।
  • ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश लोग सुरक्षित महसूस करते हैं, जब वे जानते हैं कि आप सामाजिक मानदंडों का पालन करेंगे ।
  • दूसरे आपको नकारात्मक रूप से जवाब देंगे, जब आप उनकी भावनाओं की परवाह किए बिना ईमानदारी से अपनी राय देंगे ।
  • दूसरे आपको असभ्य पाएंगे ।
  • जब आप सच्चाई से अपनी राय व्यक्त करते हैं, जिस तरह से दूसरे आपसे उम्मीद करते हैं वैसे नहीं, तो वे आपको असभ्य समझेंगे ।
  • ईमानदारी की राह पर चलने में आपको सफलता पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।

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छोटे भाई को ईमानदारी के विषय में समझाते हुए दो भाइयों के मध्य वार्तालाप लिखिए।

अपने मित्र को मिट्टी के विभिन्न प्रकार बताते हुए एक संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

मिट्टी के विभिन्न प्रकार के बारे में बात करते हुए मित्र से संवाद

 

पहला मित्र ⦂ इस बार फसल कुछ खास नहीं हुई है ।

दूसरा मित्र ⦂ हाँ तुम सही कह रहे हो।

पहला मित्र ⦂ इस बार बारिश भी तो ठीक से नहीं हुई है।

दूसरा मित्र ⦂ मित्र दरअसल हमारे क्षेत्र की मिट्टी चिकनी है।

पहला मित्र ⦂ तो क्या चिकनी मिट्टी अच्छी नहीं होती है ?

दूसरा मित्र ⦂ दरअसल चकनी मिट्टी की अपेक्षा दोमट मिट्टी में अधिक पोषक तत्व होते हैं, अधिक नमी होती है और इसकी जुताई चिकनी मिट्टी की अपेक्षा आसान होती है। दोमट मिट्टी बागवानी तथा कृषि कार्यों के लिए बहुत ही उत्तम मानी जाती है।

पहला मित्र ⦂ क्या तुम्हें मालूम है कि भारत में मिट्टी के कितने प्रकार हैं ?

दूसरा मित्र ⦂ भारत में आठ प्रकार की मिट्टी है।

पहला मित्र ⦂ कौन-कौन सी मिट्टी होती है ?

दूसरा मित्र ⦂ लाल मिट्टी, काली मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी, क्षारयुक्त मिट्टी, हल्की काली एवं दलदली मिट्टी, रेतीली मिट्टी, जलोढ़ या कांप मिट्टी और वनों वाली मिट्टी।

पहला मित्र ⦂ तुम्हें मिट्टी की इतनी जानकारी कैसे हुई ?

दूसरा मित्र ⦂ मेरे चाचा ने मुझे बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र INDIAN COUNCIL OF AGRICULTRE (I .C. A.R.) ने भारतीय मिट्टी को आठ भागों में बांटा है, मेरे चाचा वहीं पर नौकरी करते हैं।


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पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

‘अंधे की लकड़ी/लाठी’ मुहावरे का अर्थ क्या होता है?

मुहावरा : अंधे की लकड़ी/लाठी
अर्थ : एकमात्र सहारा

वाक्य प्रयोग-1 : श्रवण कुमार अपने माता पिता के अंधे की लकड़ी/लाठी थे ।

वाक्य प्रयोग-2 :  रमेश के पिता रमेश से कहा कि मैंने सारी पूँजी तुम्हे पढ़ाने में लगा दी। अब तुम ही मेरी लिए अंधे की लकड़ी के समान हो।

मुहावरे वे वाक्यांश होते हैं, जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं। अक्सर बातचीत की प्रक्रिया में मुहावरों का प्रयोग करके अपनी बात को कहने को वजनदार बनाया जा सकता है।

किसी एक बड़ी बात को छोटे से मुहावरे के माध्यम से प्रभावशाली रूप में व्यक्त किया जा सकता है। मुहावरे में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्द अपने वास्तविक अर्थ से अलग कोई विशिष्ट अर्थ व्यक्त करते हैं।


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‘खदेड़ देना’ मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग करें।

दिए गए मुहावरों का अर्थवरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करें- क) हृदय पर साँप लोटना ख) अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना​।

ओहदे को पीर की मजार कहने में क्या व्यंग्य है? ‘नमक के दारोगा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

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‘ओहदे को पीर की मजार कहने में’ ये व्यंग्य निहित है कि ओहदा अर्थात पद ऐसा होना चाहिए, जहाँ पर अधिक से अधिक ऊपरी कमाई का रास्ता बने।

नमक का दरोगा’ पाठ में मुंशी जी अपने पुत्र दरोगा बंशीधर को समझाते हुए कहते हैं कि नौकरी ढूंढते समय ऐसा ओहदा अर्थात पद ढूंढना जहाँ पर ऊपरी कमाई की अधिक संभावना हो। पद बड़ा छोटा नहीं होता। पद की ओर ध्यान नहीं देना बल्कि इस बात का ध्यान देना कि वहाँ ऊपरी कमाई की कितनी अधिक संभावना है। इसलिए छोटा पद हो और वहां पर ऊपरी कमाई अधिक हो तो उसको भी स्वीकार कर लेना। यह बात भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की ओर इंगित करती है। मुंशी जी अपने पुत्र बंशीधर को रिश्वतखोरी के लिए उकसा रहे हैं।


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पंडित अलोपदीन कौन थे? पंडित अलोपदीन की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए। (नमक का दरोगा)

वंशीधर के पिता वंशीधर को कैसी नौकरी दिलाना चाहते थे?

न्यायालय से बाहर निकलते समय वंशीधर को कौन-सा खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ?

गांधीजी को ‘कोटि-मूर्ति’ और ‘कोटि-बाहु’ क्यों कहा गया है ?

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गांधीजी को ‘कोटि-मूर्ति’ और ‘कोटि-बाहु’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि गांधीजी स्वाधीनता आंदोलन के समय कोटि भारतवासियों यानी करोड़ों भारतवासियों के पथ प्रदर्शक थे। गांधीजी उस समय जो भी करते, करोड़ों भारतवासी उसका अनुसरण करते थे। वह भारत वासियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे, यानी गांधी जी के अकेले गांधी जी नही थे, बल्कि गांधी जी के रूप में करोड़ों भारतवासी स्वयं गांधीजी के समान थे। इसीलिए गांधीजी कोटि मूर्ति के समान है। इसके अतिरिक्त गांधीजी की दो भुजाएं नहीं थीं। उनकी कोटि भुजाएं थीं। करोड़ों भारतीयों की भुजाएं गांधी जी की भुजाओं के समान थी। गांधीजी जिधर दृष्टि डालते करोड़ों आँखें उधर ही मुड़ जाती थीं। गांधीजी जिधर चल पड़ते, करोड़ों भारतवासी उनका अनुसरण करते उसी पथ पर चल पड़ते थे, इसी कारण गांधी जी को कोटि-मूर्ति और कोटि-बाहु कहा गया है।

कोटि शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, यहाँ पर कोटि का अर्थ करोड़ से है। गाँधी करोड़ों व्यक्ति के रूप में थे तो उनकी करोड़ों भुजाएं थीं।


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गांधी जी हरिश्चंद्र की तरह सत्यवादी क्यों बनना चाहते थे?

‘बस की यात्रा’ पाठ में लेखक ने गाँधीजी के किसी आंदोलन की बात की है। वे आन्दोलन कौन-कौन से हैं ? लेखक ने उनकी चर्चा क्यों की है?

‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी को आप क्या शीर्षक देना चाहेंगे और क्यों? लिखिए।

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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को हम अगर कोई दूसरा नाम देना चाहें तो यह नाम देना चाहेंगे..

अत्याचार का बोध’

‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी एक कैसे जमीदार और  एक बूढ़ी विधवा स्त्री पर अत्याचार किया और उस गरीब विधवा स्त्री की झोपड़ी को केवल इसलिए हटवा दिया क्योंकि वह उसके शानदार महल के सामने थी। इस तरह उसने उस बूढ़ी स्त्री को बेघर करके उस पर अत्याचार किया था। लेकिन बाद में कुछ ऐसी घटान घटी कि जमींदार को स्वयं द्वारा बुढ़िया पर किए गए अत्याचार का बोध हो गया इसलिए हम इस कहानी को ‘अत्याचार का बोध’ नाम देना चाहेंगे।

‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी ‘माधव राव सप्रे’ द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें एक बूढ़ी स्त्री की झोपड़ी जमींदार के महल के सामने थी। जमींदार को अपने सामने साधारण सी झोपड़ी अच्छी नहीं लगती थी। उसे गरीब बुढ़िया की वह झोपड़ी अपने महल के सामने महल की शान और सुंदरता में दाग के समान लगती थी, इसलिए उसने षड्यंत्र करके अपने बाहुबल के जोर पर गरीब विधवा की झोपड़ी  को वहाँ से हटवा दिया, जिससे वह गरीब बुढ़िया बेघर हो गई ।


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‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए। इस कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?

“हमारा जीवन दूसरों को सहायता करने से ही सफल होता है।” ‘गानेवाली चिड़िया’ कहानी के आधार पर बताइए?

आपके विद्यालय में पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता। इसकी शिकायत करते हुए सुधार के लिए प्रार्थना करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

पीने का पानी की शिकायत के संबंध में प्रधानाचार्य को पत्र

 

दिनाँक – 10 जून 2024

सेवा में,
प्रधानाचार्य जी,
डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल,
न्यू शिमला,
शिमला 171001

विषय : पीने के पानी की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करवाने के लिए पत्र ।

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,

मेरा नाम सक्षम शर्मा है। मैं इस प्रतिष्ठित विद्यालय की कक्षा दसवीं का छात्र हूँ। मैं आपका ध्यान हमारे विद्यालय में पीने के पानी की समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। विद्यालय में एक वाटर कूलर है जो कि कई दिनों से ख़राब पड़ा है। मैं और मेरी तरह अन्य विद्यार्थी सुबह अपने साथ पानी की बोतल लेकर आते हैं। जब वह बोतल समाप्त हो जाती है तो उसके बाद बहुत परेशानी होती है। इतनी गर्मी में बिना पानी के बहुत तकलीफ होती है। पिछले कुछ दिनों से पीने का पानी स्वच्छ नहीं आ रहा है। पानी में छोटे-छोटे कीड़े भी आ रहे हैं व पानी में बदबू भी आती है। गंदा तथा दुर्गंध युक्त पानी पीने के कारण छात्रों का स्वास्थ्य भी खराब होने की आशंका बनी रहती है। इसके अलावा स्कूल समाप्त होने से पहले ही पानी की टंकी खाली हो जाती है।

मेरा सभी विद्यार्थियों की तरफ से आपसे अनुरोध है कि आप कर्मचारियों से कहकर पानी की टंकी की सफाई हर सप्ताह करवाने की कृपा करें, जिससे छात्रों को पीने योग्य स्वच्छ पानी मिल सके और पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाने की कृपा करें । आशा है कि आप विद्यार्थियों की इस समस्या का निराकरण शीघ्र करेंगे।

धन्यवाद सहित

आपका आज्ञाकारी शिष्य

नाम : सक्षम शर्मा
कक्षा : दसवीं
अनुक्रमांक : 18


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आपको परीक्षा में बहुत कम अंक मिले हैं जबकि आपके अनुसार पेपर अच्छे हुए थे। प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर उत्तर-पुस्तिकाएं दिखाए जाने की प्रार्थना कीजिए।

प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि विद्यालय में अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाए जाएं।

फ़ीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखो।

स्कूल में साफ-सफाई करवाने हेतु प्रधानाचार्य जी को प्रार्थना-पत्र लिखिए​।

‘खदेड़ देना’ मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग करें।

‘खदेड़ देना’ मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग

मुहावरा : खदेड़ देना

अर्थ : डरा धमकाकर भगा देना

वाक्य प्रयोग-1 : भारतीय सेना नें युद्ध में पाकिस्तानी सेना को कारगिल से खदेड़ दिया
वाक्य प्रयोग-2 : मोहन की माँ को जैसे ही घर में चोर के घुसे होने का पता उन्होंने शोर मचा दिया। शोर को सुनकर आसपास से सभी लोग आ गए उन्होंने चोरों को खदेड़ दिया
वाक्य प्रयोग-3 : गाँववालों ने डाकुओं को ऐसा खदेड़ा कि उन्होंने फिर कभी गाँव का रूख नही किया।

मुहावरे की परिभाषा

मुहावरे वे वाक्यांश होते हैं, जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं। अक्सर बातचीत की प्रक्रिया में मुहावरों का प्रयोग करके अपनी बात तो कहने को वजनदार बनाया जा सकता है। किसी एक बड़ी बात को छोटे से मुहावरे के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। मुहावरे में प्रयुक्त किए जाने वाले शब्द अपने वास्तविक अर्थ से अलग कोई विशिष्ट अर्थ व्यक्त करते हैं।


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‘मर्म को छूना’ इस मुहावरे का अर्थ पहचानकर लिखिए। (क) हँसी उडाना (ख) हृदय को छूना (ग) दुखित होना

दिए गए मुहावरों का अर्थवरों का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करें- क) हृदय पर साँप लोटना ख) अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना​।

आपको परीक्षा में बहुत कम अंक मिले हैं जबकि आपके अनुसार पेपर अच्छे हुए थे। प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर उत्तर-पुस्तिकाएं दिखाए जाने की प्रार्थना कीजिए।

औपचारिक पत्र

उत्तर-पुस्तिकाएं को दिखाने का अनुरोध करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र

दिनाँक  – 10 जून 20224

 

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
समरविला हाईस्कूल,
मयूर विहार, दिल्ली-110091

विषय : परीक्षा की उत्तर-पुस्तिकाएं दिखाए जाने का अनुरोध

आदरणीय प्रधानाचार्य सर,

मेरा नाम राहुल शर्मा है। आपके समरविला हाईस्कूल की ग्यारहवीं (ब) कक्षा का छात्र हूँ । मैं विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान भी हूँ । मैं हर वर्ष परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता हूँ। मैंने इस वर्ष अर्द्धवार्षिक परीक्षा में 95%अंक प्राप्त किए थे। लेकिन वार्षिक परीक्षा में मेरे केवल 60%अंक ही आए हैं, जबकि मेरे सभी पेपर बहुत अच्छे हुए हैं। मुझे कम से कम 80% अंक आने की आशा थी। सर, मुझे अपनी उत्तर पुस्तिका को जाँचने के विषय में संदेह है। मैं अपनी उत्तर पुस्तिका को देखना चाहता हूँ ताकि उत्तर पुस्तिका की जाँच के विषय में अपने संदेह को दूर कर सकूं। इसलिए सर, मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप कृपया मेरी परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं दिखाने की कृपा करें और मेरी सभी उत्तर पुस्तिकाओं की दोबारा जांच करवाएं । आपकी बहुत कृपा होगी ।

धन्यवाद सहित

आपका आज्ञाकारी शिष्य

राहुल शर्मा
कक्षा : 11-ब
अनुक्रमांक : 12
समरविला हाईस्कूल,
मयूर विहार,
नई दिल्ली-110091


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बहन के विवाह में शामिल होने को जाने हेतु पाँच दिन की छुट्टी लेने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए

अपने विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति के लिए विद्यालय प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।।

विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने के लिए प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।

प्रधानाचार्य को शुल्क मुक्ति हेतु प्रार्थना पत्र​ लिखें।

आपका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर अपने मित्र को पत्र लिखकर आमंत्रित कीजिए।

अनौपचारिक पत्र

जन्मदिन के लिए आमंत्रित करते हुए मित्र को पत्र

दिनाँक – 10 जून 2024

एस . ए. कॉन्प्लेक्स,
कसूमपट्टी, शिमला,
(हि. प्र.) 171002,

प्रिय मित्र मोहन
स्नेह !

आशा करता हूँ कि तुम वहाँ सकुशल होगे। यहाँ भी सब कुशल मंगल है। बहुत समय से तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला, मैं जानता हूँ कि तुम्हारी वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम हर वर्ष कि तरह इस वर्ष भी प्रथम स्थान प्राप्त करोगे । मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि आने वाली 15 जून को मेरा जन्मदिन है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मैं इसे बड़ी ही धूमधाम से मनाने जा रहा हूँ । मेरे जन्मदिन के अवसर पर मैं तुम्हें आमंत्रित कर रहा हूँ। तुम्हें जन्मदिन पर अवश्य आना है। तुम्हारे आने से मेरे जन्मदिन की खुशी दोगुनी हो जाएगी। तुम्हारी उपस्थिति मेरे लिए बहुत ही खास है।

अपने पिताजी और माता जी को मेरा सादर प्रणाम कहना तथा छोटों को प्यार देना । शेष मिलने पर ।

तुम्हारा मित्र,
सोहन


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विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए अपने मित्र को निमंत्रण पत्र लिखो ।

आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अपने मित्र को पत्र लिखें जिसमें योग एवं व्यायाम का महत्व बताया गया हो।

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छोटे भाई को ईमानदारी के विषय में समझाते हुए दो भाइयों के मध्य वार्तालाप लिखिए।

संवाद लेखन

छोटे भाई को ईमानदारी के विषय में समझाते हुए दो भाइयों के मध्य वार्तालाप

 

बड़ा भाई ⦂ अंकुश, तुम्हें बहुत बधाई हो, तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई ।

छोटा भाई ⦂ हाँजी धन्यवाद, भैया ।

बड़ा भाई ⦂ तुम्हारी सरकारी नौकरी लग तो गई लेकिन आज मैं तुमसे एक वचन लेना चाहता हूँ।

छोटा भाई ⦂ वचन? कौन सा वचन भैया।

बड़ा भाई ⦂ तुम अपनी जॉब पूरी तरह ईमानदारी से करोगे।

छोटा भाई ⦂ हाँजी भाई, मैं पूरा वचन देता हूँ।

बड़ा भाई ⦂ तुम्हें हमेशा अपना काम ईमानदारी से करना है, कभी भी भ्रष्टाचार और बेईमानी का रास्ता कभी नहीं अपनाना है।

छोटा भाई ⦂ हाँजी मैं अपनी नौकरी ईमानदारी से करूंगा।

बड़ा भाई ⦂ ईमानदारी के रास्ते पर चलने से समाज में इज्ज़त बनी रहती है और सब लोग तारीफ करते है।

छोटा भाई ⦂ भाई, मैं हमेशा से ईमानदारी के रास्ते अपनाया और हमेशा ऐसा ही रहूंगा।

बड़ा भाई ⦂ शाबाश, हमें हमेशा अच्छे काम करने चाहिए।

छोटा भाई ⦂ ईमानदारी के रास्ते पर चलना हमारा धर्म है।

बड़ा भाई ⦂ यही सोच सब की होनी चाहिए, तभी हमारे देश से भ्रष्टाचार खत्म होगा।

 


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अनौपचारिक पत्र

कुसंगति के बारे में बताते हुए छोटे भाई को पत्र

सेक्टर – 45, मयूर विहार,
नई दिल्ली

प्रिय भाई अनुपम,
स्नेह !

हम सब यहाँ पर सकुशल हैं और आशा करता हूँ कि तुम भी कुशलता से होंगे। कल तुम्हारे प्रधानाचार्य का पत्र मिला पढ़ कर बहुत दुख हुआ कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा में तुम्हें केवल 40% अंक ही मिले हैं और तो और तुम आजकल कक्षा मैं भी कम ही दिखाई देते हो ज्यादातर तुम्हारा समय स्कूल कैन्टीन में ही गुज़रता है। कक्षा कार्य भी पूरा नहीं होता है। उनका कहना है कि तुम बुरी संगति में पड़ गए हो और इसका असर तुम्हारी पढ़ाई पर पढ़ रहा है।

प्रिय भाई, तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते मैं तुम्हें समझना चाहता हूँ कि बुरी संगत बड़ी संक्रामक होती है, सरलता से उत्पन्न की जाती है, तेजी से फैलती है। यह खरपतवार की तरह होती है। जैसे खरपतवार फसल को सिमटा देते हैं, वैसे ही यह बच्चे-बड़े सब को निगल लेती है। इसके विपरीत अच्छाई देर से पनपती है, धीमे-से फैलती है, नीम समान कड़वी लग सकती है क्योंकि अच्छे लोग जबरन हाँ में हाँ नहीं मिलायेंगे। वे विश्लेषण करते हुए सुधार करना चाहेंगे फिर चाहे वह किसी को नापसंद क्यों न हो।

प्रिय भाई हमारे गुरु भी अनुशासन इत्यादि के कारण कठोर लगते है किन्तु जीवन-सुधार के लिए औषधि का कार्य करते हैं। इसलिए ‘अनुकूलता ढूँढने की चाह में कुसंगति के पास व सुसंगति से दूर न जाओ। ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ, तुलना करने, पीठ पीछे निन्दा, बातें घुमाने अथवा बढ़ाने -घटाने, झूठ बोलने, उपभोक्ता वादी, बाज़ार वादी, भौतिक वादी, कीमत लगाने इत्यादि मन दोषों से ग्रसित लोग जब आपसे बात करें तो एक निश्चित दूरी बनाकर रखो।

यदि तुम किसी प्रकार की कुसंगति में उलझ ही चुके हों तो कभी भी ऐसा न सोचना कि अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो बहुत दूर निकल गए हो और वापसी सम्भव नहीं। वास्तव में ‘जब जागो तभी सवेरा’ के तहत वहीं से पलटकर सही दिशा में लौट आओ। ईश्वर कभी शरणागत की अनदेखी नहीं करता। बाकी तुम समझदार हो, तुम जानते हो कि मैं तुम्हें क्या समझाना चाहता हूँ।

हम सभी को तुम से बहुत सी उम्मीदें हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उन उम्मीदों पर खरा उतरोगे। पत्र मिलते ही उत्तर जरूर देना। तुम्हारे पत्र के इंतजार में।

तुम्हारा बड़ा भाई,

ईशान


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अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए कि वह अपने स्कूल में सदा उपस्थित रहे और परीक्षा की भली-भाँति तैयारी करे।

आपको एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपने पुराने स्कूल शिक्षक को धन्यवाद देने के लिए एक पत्र लिखें।

साक्षरता अभियान में सहयोग देने का अनुरोध करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

साक्षरता अभियान में सहयोग के लिए मित्र को पत्र

 

दिनाँक : 9 जून 2024

प्रिय मित्र आकाश,

तुम जानते हो हमारे देश में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है। इसीलिए हमारे देश में अक्सर साक्षरता अभियान चलते रहते हैं। मैं भी एक सामाजिक संस्था से जुड़ा हूँ, जो पिछले कई दिनों से साक्षरता अभियान चला रही है। हम लोग अलग-अलग बस्तियों में जाकर निरक्षर लोगों को साक्षर करने का प्रयास करते हैं। मैं चाहता हूं कि तुम भी हमारे साक्षरता अभियान में जुड़ो और सहयोग करो। यह एक सामाजिक और परोपकार युक्त कार्य है अपने देश के लोगों को अधिक से अधिक साक्षर बनाने से हमारे देश का ही गौरव बढ़ेगा। जब हमारा देश का हर नागरिक शिक्षित होगा तो देश की प्रगति तेज गति से होने से कोई नहीं रोक सकता।

आशा है तुम भी साक्षरता के इस अभियान में अपना हाथ हटा कर पुण्य के भागी बनाना चाहोगे। तुम अपने निर्णय के बारे में मुझे बता देना। अभियान में कैसे जुड़ना है और क्या करना है, इसकी सारा विवरण मैं तुमसे मिलकर तुम्हें बताऊंगा।

तुम्हारा मित्र

अवधेश

 


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विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए अपने मित्र को निमंत्रण पत्र लिखो ।

आपने अपना जन्मदिन कैसे मनाया उसके बारे में अपने मित्र को पत्र लिखिए।

आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए।

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आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर हमारे मन में बेहद रोमांचक ख्याल आते हैं। आसमान में उड़ती हुई रंग बिरंगी पतंगों को देखकर हमारा मन रोमांचित हो उठता है। इन रंग बिरंगी पतंगों को देखकर हमारा मन करता है, काश हम भी पतंग होते तो हम भी यूं ही आसमान में स्वच्छंद होकर उड़ रहे होते। तब सबका ध्यान हमारी और ही होता। हम भी पतंग की तरह स्वच्छंद भाव से आसमान में चारों दिशाओं में उड़ान भर रहे होते। जब हमारा मन करता तो हम नीचे आ जाते, हम बच्चों की खुशी और आनंद का कारण बनते, इससे हमारी खुशी भी दुगनी हो जाती।

“पतंग” कविता जो कि ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित की गई है। वह उनके एकमात्र कविता संग्रह से ली गई है। यह बेहद लंबी कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने बाल सुलभ आकांक्षाओं और उमंगों का सुंदर चित्रण किया है। उन्होंने बाल क्रियाकलापों तथा प्रक़ति में आए परिवर्तनों को अभिव्यक्त करने के लिए बिंबों का प्रयोग किया है। कविता के माध्यम से उन्होंने बाल मन को टटोलने की कोशिश की है। कविता बिंबों के सहारे एक अनोखी दुनिया में ले जाती है, जो रंग बिरंगी दुनिया है। जहाँ पर बालमन आकांक्षाएं विचरण करती हैं।आलोक धन्वा हिंदी के प्रसिद्ध कवि रहे हैं, जिनका जन्म 1948 में बिहार के मुंगेर में हुआ था। उन्होंने अनेक कविताओं की रचना की जो उनके एकमात्र कविता संग्रह में संकलित की गई है। उन्हें राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान जैसे सम्मान मिल चुके हैं।

संदर्भ पाठ :
“पतंग”, आलोक धन्वा (कक्षा – 12, पाठ – 2, हिंदी, आरोह)


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‘पुष्प पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूं मैं’ पंक्ति में ‘पुष्प पुष्प’ किसका प्रतीक हैं?

पाठ ईदगाह के आधार पर बताइए मेलों का हमारे जीवन में क्या महत्व है​?

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‘ईदगाह’ पाठ के आधार पर अगर हम कहें तो मेलों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है। मेले हमारी भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा है। यह सामाजिक समरसता और उत्सव की प्रासंगिकता को प्रकट करते हैं। मेले भारत  ग्रामीण संस्कृति और शहरी संस्कृति में न केवल समुदायिकता की भावना को पोषित करते हैं बल्कि यह लोगों को अपनी जरूरत की सभी चीजों को एक जगह पाने के अलावा मनोरंजन और अपनी कला के प्रदर्शन करने का भी माध्यम रहे हैं।

मेले भारत की लोक संस्कृति के प्रदर्शन का सशक्त जरिया रहे हैं। मेलों की संस्कृति भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलति रही है। भारत के हर क्षेत्र में कोई ना कोई मेला अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। मेरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने का उचित माध्यम रहे हैं। मेलों के माध्यम से भारत की लोक कला, शिल्प कला, रंगमंच और लोक संस्कृति को भी प्रचारित-प्रसारित किया जाता रहा है। 

मेले भारत के पर्व-त्योहार को मनाने का भी केंद्र बिंदु रहे हैं। जैसा कि ईदगाह कहानी स्पष्ट है कि यह ईद त्योहार को मनाने पर केंद्र मेला था। उसी तरह भारत के अनेक व्रत-त्योहार से संबंधित मेले हर वर्ष लगते हैं। चाहे वह दिवाली हो अथवा होली अथवा रक्षाबंधन अथवा जन्माष्टमी या नवरात्रि या दशहरा मेला। सभी त्योहारों पर किसी न किसी क्षेत्र में उस त्योहार पर केंद्रित मेला लगता रहता है।

रामलीला का मंचन भारत में सदियों से प्रचलित है। सितंबर अक्टूबर माह में भारत में भारत में विशेषकर उत्तर भारत में रामलीला पर मेला लगा काफी समय से प्रचलित रहा है और यह आकर्षण का केंद्र बिंदु भी रहा है। इस तरह अलग-अलग त्योहार पर केंद्रित होकर मेले लगते रहे हैं। मेले भारत की संस्कृति का परिचायक है। यह भारतीय संस्कृति को आगे ले जाने का कार्य करते हैं।


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प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘ईदगाह’ के प्रमुख पात्र हामिद और मेले के दुकानदार के बीच हुआ संवाद लिखें।

प्रेमचंद की कहानियों का विषय समयानुकूल बदलता रहा, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।

“बदलें अपनी सोच” पाठ में युगरत्ना की जगह आप होते तो संयुक्त राष्ट्र संघ में क्या भाषण देते ?

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“बदलें अपनी सोच” पाठ के आधार पर अगर हम कहें तो युगरत्ना की जगह अगर हम होते तो हम ये भाषण देते। युगरत्ना की जगह अगर मैं होता/होती तो मेरा भाषण इस प्रकार होता…

“प्रिय संसार वासियों हमारी पृथ्वी हमारा घर है। यह हमारा आश्रय स्थल है। यह हमारे जीने का सहारा है। पृथ्वी हमें जीवन में सब कुछ प्रदान करती है। लेकिन जरा सोचिए! हम अपनी पृथ्वी को बदले में क्या दे रहे हैं। पृथ्वी ने हमें क्या नहीं दिया। वह हमें अपनी हर चीज दिल खोल कर देती है। पृथ्वी से ही हमें अनाज, फल-फूल, भोजन, वस्त्र, आवास आदि प्राप्त होता है। लेकिन हम बदले में पृथ्वी को क्या देते हैं। बल्कि हम तो इसी पृथ्वी का विनाश करने पर तुले हुए हैं।

पहले हमारी जो पृथ्वी हर जगह हरी-भरी नजर आती थी। अब वह कंक्रीट के जंगलों से ढक गई है। अब हमारे पृथ्वी से हरियाली गायब होती जा रही है ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। पृथ्वी पर पानी की कमी होती जा रही है तो समुद्रों का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है।

आप लोग जरा सोचिए! क्या इसके लिए हम सब मानव जिम्मेदार नहीं हैं? हम सब मानव के अंधाधुंध विकास कार्यों के कारण ही पृथ्वी की यह दशा हुई है। यदि हम समय रहते नहीं चेते और हमने अपनी पृथ्वी को बचाने के प्रयास आज से ही आराम नहीं किए तो एक दिन हमारा विनाश निश्चित है। तब सोचिए! हमारे द्वारा किए गए विकास कार्यों का क्या औचित्य रहेगा। जब तक हमारी पृथ्वी सुरक्षित है, तभी तक हम सुरक्षित हैं। इसीलिए हमें आज से ही अपनी पृथ्वी और उसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रयास आरंभ कर देनी चाहिए। धन्यवाद”


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‘शहरीकरण तथा पर्यावरण’ पर अनुच्छेद लिखिए।

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‘निः + आकार’ में संधि बताइए।

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‘निः + आकार’ में संधि और संधि का भेद

निः + आकार :  निराकार

संधि का भेद : विसर्ग संधि

विसर्ग संधि क्या है?

विसर्ग सधि में स्वर एवं व्यंजन का मेल होता है। विसर्ग संधि में जब दो शब्दों की संधि की जाती है, तो प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण जोकि कोई स्वर या व्यंजन का मेल द्वितीय शब्द के प्रथम वर्म के स्वर या व्यंजन से होता है। स्वर और व्यंजन के मेल से जो संधि बनती है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

विसर्ग संधि के कुछ उदाहरण…

निस्सन्देह : निः +सन्देह
निराधार : निः +आधार
निस्सहाय : निः + सहाय
निर्भर : निः +भर
निष्कपट : निः +कपट
निश्छल : निः +छल
निरन्तर : निः + अन्तर
निर्गुण : निः + गुण
निस्सार : निः +सार
निर्मल : निः + मल
निस्तार : निः + तार
नीरव : निः + रव
नरोत्तम : नर + उत्तम


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‘रामायण’ शब्द में क्या ‘अयादि संधि’ हो सकती हैं?

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान (निबंध)

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निबंध

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान

 

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान : वैज्ञानिक प्रगति में भारत के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। भारत प्राचीन काल से ही वैज्ञानिक देश रहा है और भारत देश में प्राचीन काल में अनेक महान वैज्ञानिक हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान से इस विश्व को समृद्ध किया है। वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान पर निबंध प्रस्तुत है…

प्रस्तावना

भारत हमेशा विद्वानों की भूमि रही है। जब पूरे विश्व में अज्ञानता का अधिकार था, तब भारत में ऐसे अनेक ज्ञानी-विद्वान-विज्ञानी हुए जिन्होंने अपने ज्ञान से इस विश्व को आलोकित किया। प्राचीन भारत के महान विज्ञानाचार्यों में आर्यभट्ट, वाराह्मीहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, नागार्जुन,सुश्रुत, भारद्वाज, धन्वंतरि जैसे अनेक विज्ञानी रहे हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान से इस विश्व को आलोकित किया है। आधुनिक भारत में भी अनेक वैज्ञानिकों ने अपने ज्ञान से इस विश्व के समृद्ध किया, जिनमें चंद्रशेखर वेंकटरमन, एस. रामानुजन, जगदीशचंद्र बसु, हरगोविंद खुराना, होमी जहाँगीर बाबा, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, प्रफुल्ल चंद्र राय आदि के नाम प्रमुख हैं।

वैज्ञानिक प्रगति में भारत का योगदान

विश्व को शून्य की खोज भारत में हुई थी। भारत में आज अंक पद्धति के लिए गणना करने में शून्य का बेहद महत्व है। शून्य की खोज भारत में ही हुई और भारत में ही इस विश्व को शून्य के ज्ञान से परिचित कराया। आर्यभट्ट ने लगभग गणितीय सिद्धांत प्रतिपादित किए और संख्याओं के मान के लिए उन्होंने अक्षरों की सांकेतिक भाषा बनाई।

आर्यभट्ट ने ही वर्गमूल, घनमूल, क्षेत्रफल, आयतन, वृत्त की परिधि आदि ज्ञात करने की विधियां भी प्रतिपादित की। आज भले ही बड़े-बड़े पश्चिमी देश अंतरिक्ष में सुदूर ग्रहों तक जा पहुंचे हों, लेकिन भारत ने प्राचीन काल में ही ग्रहों की स्थिति के ज्ञान से विश्व को परिचित करा दिया था। आर्यभट्ट ने सबसे पहले ग्रहों की स्थिति की विवेचना की और सौरमंडल आदि के बारे में बताया। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और कौन-कौन से ग्रह होते हैं, यह सारी बातें प्राचीन काल में ही भारत में जानी जा चुकी थीं।

वराहमिहिर ने फलित ज्योतिष संबंधी रचनाएं की और उन्होंने फलित ज्योतिष पर आधारित अनेक सिद्धांतों को प्रतिपादित किया। ब्रह्मगुप्त ने गणित और ज्योतिष का ज्ञान इस विश्व को दिया। उन्होंने गुणनफल निकालने की विधियों का भी प्रतिपादन किय। भास्कराचार्य ने पृथ्वी को गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से परिचित कराया।

महर्षि कणाद का परमाणु के मूल संकल्पना को प्रतिपादित करने में बड़ा योगदान रहा है। परमाणु के अस्तित्व की खोज सबसे पहले हमारे भारत में ही हुई और महर्षि कणाद ने परमाणु की स्थिति का ज्ञान सबसे पहले इस विश्व को दिया था, हालांकि इसका श्रेय पश्चिम के वैज्ञानिक लूट ले गए थे।

रसायन शास्त्र के क्षेत्र में नागार्जुन की कोई सानी नहीं, उन्होंने स्वर्ण भस्म, रजत भस्म आदि बनाने की विधियां प्रतिपादित कीं। उन्होंने सोने और चाँदी के उपयोग और उनके औषधीय गुणों की जानकारी दी। उन्होंने रसायन शास्त्र के क्षेत्र में अनेक सिद्धांतों और रसायनों के उपयोग का वर्णन अपने ग्रंथों के माध्यम से किया। सुश्रुत को कौन नहीं जानता जिनका योगदान शल्य चिकित्सा में रहा है। विश्व की पहली शल्य चिकित्सा भारत में ही हुई थी और वह सुश्रुत ऋषि ने की थी। भास्कराचार्य ने गणित में पाई का मान चतुर्भुजों के क्षेत्रफल ज्ञात करने की विधि का वर्णन अपने ग्रंथों के माध्यम से किया।

भारद्वाज ऋषि तथा आत्रेय ऋषि ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया और काय चिकित्सा की आधारशिला भी रखी थी। भारत के आधुनिक विज्ञानियों की बात की जाए तो जगजीत चंद्र बसु ने भारत का नाम ऊँचा किया। उन्होंने भौतिक विज्ञान क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने बेतार के तार पर खोज की और तरंगों के संचार का माध्यम बनाने में सफलता प्राप्त की। जगदीश चंद्र बसु ने ही बताया था कि पौधों में संवेदनशीलता पाई जाती है।

रसायन के क्षेत्र में डॉ प्रफुल्लचंद्र राय ने पदार्थ के गुणधर्म का परीक्षण करके नई खोज की। वह भारत में आधुनिक रसायन के संस्थापक भी माने जाते हैं। डॉ हरगोविंद खुराना जोकि भारतीय मूल के ही अमेरिकी वैज्ञानिक थे, उन्होंने औषधि विज्ञान और शरीर क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। वह नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए गए थे। महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का नाम भारत में सब जानते हैं। उन्हें महान गणितज्ञ माना जाता है। उन्होंने ऐसे गणितीय सिद्धांत प्रतिपादित किए जो उससे पहले किसी ने नहीं प्रतिपादित किए थे। उन्होंने बड़ी से बड़ी संख्या को छोटी संख्या में विभक्त करने का सूत्र खोजा।

कम शिक्षा प्राप्त होने बेहद कम आयु में ही उन्होंने गणित जैसे जटिल विषय पर सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। डॉक्टर सत्येंद्र नाथ बसु ने रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र और गणित तीनो क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सी वी रमन चंद्रशेखर वेंकटरमन जोकि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं वह भी भारत के एक महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने प्रकाश तरंगों के प्रकीर्णन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था जो ‘रमन प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है। वह भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई व्यक्ति थे।

डॉक्टर होमी जहाँगीर बाबा भारत के एक महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे, जिन्होंने ब्रहाण्ड किरणों का शोध करके ‘कॉस्केड थ्योरी’ नामक सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। होमी जहाँगीर भाभा के बाद विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के जनक भी माने जाते हैं। उन्हीं के प्रयासों से भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगतिशील देशों के समकक्ष आकर खड़ा हो गया था। उनके अलावा प्रोफेसर सतीश धवन का नाम भी अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय रहा है।

डॉ मेघनाद साहा भी एक महान गणित शास्त्री थे। जिन्होंने भौतिक विज्ञान और ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने परमाणु के गुणों का अध्ययन करके गणित के नियमों की सहायता से अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किए। उन्होंने एक वैज्ञानिक पंचांग भी बनाया था। एक अन्य भौतिक विज्ञानी श्रीनिवासन ने भी प्रकाश परमाणु और अणु के गुणधर्मों पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किए थे। अंत में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को कौन नहीं जानता जो भारत के मिसाइल मैन कहे जाते हैं। भारत के परमाणु कार्यक्रम में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

उपसंहार

इस तरह हम देखते हैं कि भारत भूमि प्राचीन काल से ही विज्ञानियों की धरती रही है। आधुनिक काल में ही नहीं प्राचीन काल में भी भारत में ऐसे अनेक विद्वान विज्ञानी ऋषि मुनि हुए जो जिन्होंने अपने विज्ञान संबंधी ज्ञान से इस विषय को समृद्ध किया था। उन्होंने यह सब ज्ञान तब दिया था, जब विश्व में हुई सब जगह अज्ञानता का अंधेरा फैला हुआ था। इसलिए भारत का विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी होने के कारण ही भारत को विश्व गुरु कहा जाता था।


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पहला वनडे इंटरनेशनल दोहरा शतक (पुरुष) किसने और कब लगाया?

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पहला वनडे इंटरनेशनल दोहरा शतक सचिन तेंदुलकर ने 24 फरवरी 2010 को साउथ अफ्रीका के विरुद्ध लगाया था। उन्होंने कुल 200 रन बनाए।

24 फरवरी 2010 का दिन वह दिन था, जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में किसी पुरुष खिलाड़ी द्वारा पहला दोहरा शतक लगाया गया था।

यह दोहरा शतक 24 फरवरी 2010 को भारत के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम में साउथ अफ्रीका के विरुद्ध लगाया था। 24 फरवरी 2010 को भारत और साउथ अफ्रीका के बीच ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम में एकदिवसीय क्रिकेट मैच खेला गया, जिसमें भारत ने पहले बल्लेबाजी की और सचिन तेंदुलकर ने ओपनर के रूप में एकदिवसीय क्रिकेट का पहला दोहरा शतक लगाया। यह दोहरा शतक किसी पुरुष क्रिकेट खिलाड़ी द्वारा लगा गया पहला दोहरा शतक था।

भारत और साउथ अफ्रीका के बीच वनडे मैच की सीरीज चल रही थी जिसमें ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम में भारत और साउथ अफ्रीका के बीच मैच हुआ। भारत ने पहले बैटिंग करते हुए 300 रन बनाए, सचिन तेंदुलकर वीरेंद्र सहवाग के साथ ओपनिंग करने उतरे। वीरेंद्र सहवाग मात्र 25 रन के कुल योग पर आउट हो गए, उसके बाद सचिन तेंदुलकर ने दिनेश कार्तिक और यूसुफ पठान के साथ अलग-अलग महत्वपूर्ण साझीदारयां की उन्होंने 50वें ओवर की तीसरी गेंद पर 1 रन लेकर अपने स्कोर के 200 आंकड़े को छुआ। इस तरह उन्होंने भारतीय पुरुष क्रिकेट के वनडे इतिहास में पहला दोहरा शतक लगाया। उनका यह रिकॉर्ड उनके ही साथी खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग ने 1 साल 9 महीने 14 दिन बाद तोड़ दिया। जब भारत में 2011 में खेले जाने वाले वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप भारत में बांग्लादेश के विरुद्ध कुल 219 रन की पारी खेली।

महिला और पुरुष खिलाड़ी दोनों के संदर्भ में बात की जाए तो एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का पहला दोहरा शतक ऑस्ट्रेलिया की महिला खिलाड़ी बेलिंडा क्लार्क ने 16 दिसंबर 1997 को डेनमार्क के विरुद्ध लगाया था, जब उन्होंने कुल 229 रन बनाए।

पुरुष और महिला दोनों क्रिकेट खिलाड़ियों द्वारा अब तक कुल 12 दोहरे शतक लगाए जा चुके हैं, जो कि इस प्रकार हैं…

  1. 264 रन — रोहित शर्मा (भारत) विरुद्ध श्रीलंका — 2014
  2. 237 रन — मार्टिन गुप्टिल (न्यूजीलैंड) विरुद्ध वेस्टइंडीज — मार्च 2015
  3. 235 रन — एमेलिया कर (न्यूजीलैंड) विरुद्ध आयरलैंड — जून 2018
  4. 229 रन — बेलिंडा क्लॉर्क (ऑस्ट्रेलिया) (महिला खिलाड़ी) विरुद्ध डेनमार्क — दिसंबर 1997
  5. 219 रन — वीरेंद्र सहवाग (भारत) विरुद्ध वेस्टइंडीज — दिसंबर 2011
  6. 215 रन — क्रिस गेल (वेस्टइंडीज) विरुद्ध जिंबाब्वे — फरवरी 2015
  7. 210 रन — फखर ज़मान (पाकिस्तान) विरुद्ध जिंबाब्बे — जुलाई 2018
  8. 210 रन — इशान किशन (भारत) विरुद्ध बांग्लादेश — दिसंबर 2022
  9. 209 रन — रोहित शर्मा (भारत) विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया — नवंबर 2013
  10. 208 रन — रोहित शर्मा (भारत) विरुद्ध श्रीलंका — दिसंबर 2017
  11. 208 रन — शुभमन गिल (भारत) विरुद्ध न्यूजीलैंड — जनवरी 2023
  12. 200 रन — सचिन तेंदुलकर (भारत) विरुद्ध दक्षिण अफ्रीका — फरवरी 2010

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बिहार के प्रथम राज्यपाल कौन थे?

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बिहार के प्रथम राज्यपाल का नाम ‘जयरामदास दौलतराम’ था।

बिहार के प्रथम राज्यपाल ‘जयरामदास दौलतराम’ थे। जो भारत की आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को बिहार के प्रथम राज्यपाल बने।

वह 15 अगस्त 1947 से 11 जनवरी 1948 तक बिहार के राज्यपाल रहे। उसके बाद 12 जनवरी 1948 से बिहार ‘माधव श्रीहरि एनी’ बिहार के दूसरे राज्यपाल बने। यहाँ पर भारत की आजादी के बाद बने बिहार के राज्यपालों की बात हो रही है। बिहार में भारत की आजादी से लेकर अब तक कुल 33 राज्यपाल हो चुके हैं। जिनमें पहले राज्यपाल ‘जयरामदास दौलतराम थे’।

वर्तमान समय में बिहार के राज्यपाल ‘विश्वनाथ अर्लेकर’ हैं, जो 12 फरवरी 2023 से बिहार के नवीनतम राज्यपाल बने हैं। इससे पहले फागु चौहान बिहार के 32 वें राज्यपाल थे और कुल 39वें राज्यपाल थे। बिहार ब्रांच में कुल राज्यपालों की दृष्टि से आजादी से पहले से लेकर अब तक कुल 40 राज्यपाल हुए हैं। जिनमें सर ‘जेम्स सिफ्टन’ प्यार के पहले राज्यपाल थे, जो 1 अप्रैल 1936 को बिहार के राज्यपाल बने। लेकिन भारत की आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम थे।


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संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना/चुने जाने वाला/वाली एकमात्र भारतीय कौन था/थी ? A विजयलक्ष्मी पंडित B वी.के. कृष्णा मेनन C जवाहरलाल नेहरू D राजेश्वर दयाल

गैंडा अभ्यारण्य किस राज्य में अवस्थित है ? A. असम B. पश्चिम बंगाल C. उत्तर प्रदेश D. बिहार”

मणिपुर राज्य की विशेषता के बारे में बात करते हुए दो दोस्तों के बीच संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

मणिपुर राज्य की विशेषता बताते हुए दो दोस्तों के बीच संवाद

 

पहला दोस्त ⦂ (दूसरे दोस्त से) कैसे हो ? बहुत खुश दिखाई दे रहे हो ।

दूसरा दोस्त ⦂ हाँ ! खुशी की ही बात है इस बार मैं अपने पूरे परिवार के साथ मणिपुर घूमने जा रहा हूँ ।

पहला दोस्त ⦂ वाह ! भारत देश के सबसे खूबसूरत स्थानों के रूप में मणिपुर को भी गिना जाता है ।

दूसरा दोस्त ⦂ क्या तुम जानते हो मणिपुर ही वह स्थान हैं जहां से ही पोलो नामक खेल की शुरुआत हुई थी ।

पहला दोस्त ⦂ हाँ, मणिपुर के लोग पोलो को “सगोल कांजेई” कहते है ।

दूसरा दोस्त ⦂ मेरे पिता जी बता रहे थे कि व्यापारिक दृष्टि से भी मणिपुर का एक अलग ही स्थान है । मणिपुर में सुन्दर आभूषण बनाये जाते है जोकि अपनी हस्तकला का शानदार उदाहरण हैं ।

पहला दोस्त ⦂ क्या तुम जानते हो मणिपुर के स्थानीय भोजन में मुख्य रूप से चावल तथा मछली प्रसिद्धब है।

दूसरा दोस्त ⦂ हाँ ! मणिपुर के लोग बिना तेल का पकाया हुआ खाना बहुत ज्यादा पसंद करते है । इसके साथ ही यहाँ चाइनीस खाना भी बहुत अच्छा मिलता है । मैं तो वहाँ जाकर चाइनीस खाना ही खाऊँगा ।

पहला दोस्त ⦂ मणिपुर की राजधानी इम्फाल है और मणिपुर को साउथ एशिया का प्रवेश द्वार भी माना जाता है ।

दूसरा दोस्त ⦂ हाँ ! इसी कारण पंडित जवाहरलाल नेहरु जी नें मणिपुर को “भारत का गहना” नाम दिया था।

पहला दोस्त ⦂ मैंने सुना है कि मणिपुर राज्य से ही रासलीला की उत्पत्ति हुई है । मणिपुर के लोग नृत्य गायन में बहुत रुचि रखते है ।

दूसरा दोस्त ⦂ हाँ ! तुम सही कह रहे हो । अच्छा अब मैं चलता हूँ क्योंकि कल सुबह हमें जल्दी निकलना है।

पहला दोस्त ⦂ ठीक है । अपना ख्याल रखना ।


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मेरी अंतरिक्ष यात्रा (निबंध)

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निबंध

मेरी अंतरिक्ष यात्रा

 

भूमिका

अंतरिक्ष के प्रति सभी लोगों का आकर्षण रहा है और बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अंतरिक्ष जाना चाहते हैं। लेकिन अंतरिक्ष जाना हर किसी के बस की बात नहीं और हर किसी के लिए संभव नहीं है। यहां पर मेरी अंतरिक्ष यात्रा से संबंधित एक सुंदर सा निबंध प्रस्तुत है।

निबंध

मुझे शुरु से ही अंतरिक्ष के प्रति एक जिज्ञासा रही है। मेरा मैं शुरू से ही यह सपने देखता था कि मैं अंतरिक्ष की सैर कर रहा हूँ। मुझे पृथ्वी के बाहर के संसार में झांकने की जिज्ञासा रही है। हमेशा यही सपने देखते रहने के कारण हमेशा मेरे मन में अंतरिक्ष और पृथ्वी के बाहर के ग्रह आदि ही घूमते रहते थे। मैंने तय कर लिया था कि मैं अंतरिक्ष यात्री (एस्ट्रोनॉट) बनूंगा और पृथ्वी के बाहर अंतरिक्ष की सैर करूंगा। इसीलिए  रोज अंतरिक्ष से संबंधित किताबें पढ़ता और पत्रिकाएं पढ़ता, फिल्में और टीवी प्रोग्राम देखता ताकि मैं अधिक से अधिक अंतरिक्ष के विषय में जान सकूं।

एक दिन मैंने निश्चय कर लिया था बड़ा होकर अंतरिश्र यात्री ही बनूंगा। एक दिन यात्रा से संबंधित फिल्म देखते-देखते मैं सो गया और फिर मैं सपने में अंतरिक्ष की सैर करने लगा। मैंने देखा कि मैं बड़ा हो गया हूं और मैंने वैज्ञानिक के रूप में भारत के इसरो संस्थान को ज्वाइन कर लिया है। भारत अपना एक बड़ा अंतरिक्ष कार्यक्रम चलाने वाला है।

वह अंतरिक्ष पर एक और यान भेजने वाला है। अंतरिक्ष यात्री के रूप में 5 लोगों का चयन किया गया है। उन 5 लोगों में मेरा भी नाम आ गया है। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। लगभग छः महीने तक हम लोगों की ट्रेनिंग हुई और हम लोगों को अंतरिक्ष में रहने लायक वातावरण के अभ्यस्ता बनाया गया।

छः महीने बाद हम लोग अंतरिक्ष यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार हो गए थे। अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण की भी तैयारी हो चुकी थी। हम सब लोग तैयार हो गए स्पेस सूट पहनकर अपने अंतरिक्ष यान मे बैठ गये। यह बड़ा ही रोमांचकारी अनुभव था। यान के प्रक्षेपण होते ही रॉकेट ने पृथ्वी की कक्षा को छोड़ दिया और अंतरिक्ष की ओर बढ़ चला। अंतरिक्ष में एक पहले से निश्चित कक्षा में हमारा यान रॉकेट अलग हो गया और अंतरिक्ष यान पृथ्वी के चक्कर लगाने लगा। अपने यान से पृथ्वी को देखने पर एक नीला सुंदर ग्रह दिख रही थी। यह बड़ा ही सुंदर दृश्य था।

हमारी पृथ्वी बड़ी ही सुंदर दिख रही थी। आसपास चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था और दूर-दूर अलग-अलग रहे छोटे छोटे ग्रह दिखाई दे रहे थे। हम लोग यान में सही से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे, क्योंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं था। इस कारण हम यान में तैर कर अपने कार्य कर रहे थे। यहाँ तक कि हमारा खाना और पानी भी यान में तैर रहा था और उसे हमें पकड़-पकड़ कर खाना पड़ रहा था। हमें अपने यान में 5 दिन बिताने थे और वहां की सारी रिपोर्ट नीचे अंतरिक्ष एजेंसी में भेजने थी।

हममें ऐसे ही अंतरिक्ष का अध्ययन करते हुए 5 दिन बिताए और अंतरिक्ष के अलग-अलग अनुभव किये। 5 दिन पूरा होते ही हमारा वापस पृथ्वी की कक्षा में लैंड करा दिया गया और हम अपनी अंतरिक्ष एजेंसी में सफलतापूर्वक वापस आ गए। हमारी सफल अंतरिक्ष यात्रा सफल रही। अंतरिक्ष एजेंसी ने जिस काम के लिये हमे भेजा था, हमारा वह काम पूर्ण हुआ। हमें अपने देश की तरफ से सफल अंतरिक्ष अंतरिक्ष यात्रा के लिए पुरस्कृत भी किया गया।

मैं जब पुरुस्कार लेने स्टेज पर जा रहा था, तभी अचानक मेरी नींद खुल गई और तब मुझे पता चला कि ये एक सपना था। लेकिन मैंने निश्चय कर लिया था कि अपने सपने को पूरा अवश्य करना है। अंतरिक्ष यात्री बन कर अपने देश का नाम रोशन करना है और अंतरिक्ष यात्रा का पुरस्कार भी लेना है।


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बादल-सा सुख का क्या आशय है?

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बादल-सा सुख से कवि का आशय उस सुख से है, जो बेहद संघर्ष और क्रांति करने के पश्चात मिलता है।

‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक बनाया है, जो भीषण गर्मी से त्रस्त मानव मन को शीतलता प्रदान करते हैं। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह संसार में अत्याचार एवं अन्याय के शोषण से त्रस्त जन शोषकों के प्रति क्रांति करते हैं और क्रांति के परिणाम के बाद उन्हें जो न्याय प्राप्त होता है, उस सुख का अनुभव ही अलग होता है। उसी तरह जब गर्मी और ताप से त्रस्त व्यक्ति मानव मन को बादल अपनी मूसलाधार बारिश से शीतलता प्रदान करते हैं तो उसका अनुभव विशिष्ट होता है। बादल का सुख वही सुख है जो कड़े संघर्ष और क्रांति के पश्चात प्राप्त होता है।


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बुद्धि लब्धि क्या है? विस्तार से बताएं। इंटेलीजेंट कोशेंट (आइक्यू) — Intelligent Quotient (IQ)

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बुद्धि लब्धि इंटेलीजेंट कोशेंट (आइक्यू)

बुद्धि लब्धि या इंटेलीजेंट कोशेंट (आईक्यू) कई तरह के मानकीकृत परीक्षणों से प्राप्त एक गणना है। बुद्धि लब्धि की सहायता से किसी व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता का आकलन किया जाता है ।

बुद्धि लब्धि — इंटेलीजेंट कोशेंट (आइक्यू) ‘बुद्धि लब्धि’ यानी ‘इंटेलीजेंट कोशेंट’ (Intelligent Quotient)  से तात्पर्य मनुष्य की बौद्धिक क्षमता के आकलन से होता है। बुद्धि लब्धि शब्द बौद्धिक क्षमता के मापन के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है।

हम सबको पता है कि किसी हर व्यक्ति की समान बुद्धि का स्तर समान नहीं होता। कोई बहुत अधिक बुद्धिमान होता है, तो कोई मध्यम स्तर का बुद्धिमान होता है। कोई व्यक्ति साधारण बुद्धि वाला होता है, तो कोई व्यक्ति मूर्ख होता है। किसी की भी बुद्धि का स्तर समान नहीं होता, इसी कारण कोई विद्वान बन जाता है, तो कोई वैज्ञानिक बन जाता है। कोई गणित, विज्ञान अथवा अर्थशास्त्र के बड़े-बड़े सूत्रों को आसानी से हल कर लेता है, तो कहीं कोई साधारण बुद्धि वाला होता है जो सामान्य बात को भी आसानी से समझ नहीं पाता और केवल साधारण कार्य करने तक ही सीमित रह जाता है।

मनुष्य की अलग-अलग बुद्धि क्षमता के अलग-अलग स्तर के अनेक कारण होते हैं। यह कारण कारण पारिवारिक कारण हो अथवा आनुवंशिक हो सकते हैं। सामाजिक कारण भी बुद्धि को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा व्यक्ति को मिलने वाली शिक्षा भी उसके बुद्धि के स्तर निर्धारित करने का एक मुख्य कारण हो सकती है।

मनुष्य की बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक उसकी बुद्धि का निरंतर विकास होता रहता है। विकास की इस प्रक्रिया में आयु की एक ऐसी अवस्था आती है, जब मनुष्य की बुद्धि स्थिर हो जाती है। उसके बाद मनुष्य की बुद्धि का विकास नहीं होता। यह बुद्धि के विकास का चरम बिंदु होता है। इस स्थिर बिंदु के बाद मनुष्य की बुद्धि का विकास रुक जाता है और वह बुद्धि की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है। बुद्धि लब्धि निरंतर परिवर्तनशील होती है और आयु के साथ-साथ बुद्धि लब्धि में परिवर्तन होता रहता है।

बाल्यावस्था और किशोरावस्था में जहां बुद्धि तीव्र होती है, वहीं प्रौढ़ावस्था में मनुष्य की बौद्धिक क्षमता में कमी भी आ सकती है बुद्धि लब्धि को मापने की प्रक्रिया में मानसिक आयु महत्वपूर्ण बिंदु होती है। मानसिक आयु से तात्पर्य उस आयु से होता है, जो किसी व्यक्ति के कार्यों द्वारा ज्ञात की जा सकती है जिस व्यक्ति से उसकी आयु में जिस सामान्य कार्य की अपेक्षा होती है, वह कार्य मनुष्य जिस क्षमता से करता है, उससे उसकी मानसिक आयु निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए यदि कोई 12 वर्ष का बच्चा यदि 16 वर्ष के बच्चे की क्षमता वाले सारे प्रश्नों को हल कर लेता है तो उसे इसकी मानसिक आयु माना जायेगा।

बुद्धि लब्धि (आईक्यू) को निकालने के लिये निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

बुद्धि लब्धि : मानसिक आयु X 100 /वास्तविक आयु

प्रतिभाशाली ➔ 140 या उससे उपर
अतिश्रेष्ठ 120 से 139
श्रेष्ठ 110 से 119
सामान्य 90 से 109
मन्द 80 से 89
सीमान्त मंद बुद्धि 70 से 79
मंद बुद्धि 60 से 69
हीन बुद्धि 20 से 59
जड़ बुद्धि 20 से कम

अलग-अलग आयु के अलग-अलग बालकों की बुद्धि-लब्धि की परीक्षा के लिए उनके लिए अलग-अलग प्रश्नों का सेट तैयार किया जाता है और उनकी आयु के अनुसार तैयार किए गए प्रश्नों के सेट से जो प्रश्न पूछे जाते हैं और उनके द्वारा दिए गए उत्तर के आधार पर बुद्धि लब्धि निकाली जाती है।

बुद्धि लब्धि बुद्धि का क्षेत्र व्यापक और जटिल होता है। बुद्धि के लिए एक निश्चित पैमाना बना पाना सरल कार्य नहीं होता। किसी भी व्यक्ति के व्यवहार से उसकी बुद्धि के स्तर का आकलन नहीं किया जा सकता। एक बुद्धिमान व्यक्ति भी खराब व्यवहार कर सकता है और एक कम बुद्धि वाला व्यक्ति अच्छा व्यवहार कर सकता है, इसलिए बुद्धि लब्धि के मापन के लिए एक विशिष्ट सूत्र को तैयार किया गया, जिसके आधार पर बुद्धि लब्धि का मापन किया जा सकता है। यह बुद्धि लब्धि का सूत्र ऊपर दिया गया सूत्र ही है।

बुद्धि लब्धि के जनक के तौर पर विद्वान टर्मन को जाना जाता है, जिन्होंने बुद्धि लब्धि के सूत्र का सर्वप्रथम सही और परिमार्जित रूप में प्रतिपादन किया था।


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फयॉन्स क्या होता है? ये कहाँ पाये जातें हैं।

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फयॉन्स का संबंध हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से रहा है। फयॉन्स’ एक तरह का पदार्थ होता था, जो घिसी हुई रेत अथवा बालू में तरह-तरह के रंग तथा कई अन्य तरह के चिपचिपे पदार्थों के मिश्रण को तैयार कर उस मिश्रण को पका कर तैयार किया जाता था। इस पदार्थ को ‘फयॉन्स’ कहते थे।

फयॉन्स’ नामक इस पदार्थ से अनेक तरह के पात्र बनाए जाते थे, जिनमें कई तरह की कीमती तथा दुर्लभ वस्तुएं रखी जाती थीं। फयॉन्स से बने यह छोटे पात्र उस समय बहुत कीमती माने जाते थे, क्योंकि इनको बनाने की विधि बेहद जटिल थी। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के उत्खनन स्थल से इस तरह के अनेक फयॉन्स प्राप्त हुए हैं।


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‘ठगनी क्यूँ नैना झमकावै, तेरे हाथ कबीर न आवै।’ ‘इस पंक्ति में ‘ठगनी’ मोह माया को कहा गया है। कबीर सांसारिक मोह माया को ठगिनी के समान मानते हैं और वह कहते हैं कि यह मोह माया उनके मन को भरमाने का प्रयास कर रही है, लेकिन वह अपनी इस प्रयास में सफल नहीं हो सकती क्योंकि वह यानी कबीर उसके झांसे में नहीं आने वाले। वे मोहमाया भ्रम जाल में फंसने नहीं वाले। वह मोह-माया के जाल में नहीं फंसने वाले। उन्हें ईश्वर की सच्चे भक्ति और ज्ञान का अनुभव हो गया है और वह सांसारिक मोह-माया के जाल में ना फंस कर ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर चल पड़े हैं।


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सही विकल्प :

2. कुम्मी

व्याख्यात्मक विवरण

यायावर लोग घोड़ी के दूध को कुम्मी (Kumiss) कहते थे। 12 वीं शताब्दी में मध्य एशिया के यायावर कबीलों का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन होता था। मध्य एशिया के मंगोलिया में उस समय अनेक तरह के चारागाह होते थे। यायावर लोगों का प्रमुख भोजन माँस एवं दूध होता था। मंगोल लोग घोड़े के मांस खाने के बहुत शौकीन होते थे। वह हर तरह के जानवर का मांस खा जाते थे, जिसमें गाय, भेड़, बकरी, कुत्ते, लोमड़ी, खरगोश, चूहे आदि थे। वह या तो सामान्य तौर पर माँस को पका कर खाते थे अथवा उसे उबाल कर खाते थे। कभी-कभी वह कच्चा माँस भी खा जाते थे। वह खाने के बर्तनों में सफाई का बेहद कम ध्यान रखते थे।

यायावर लोग घोड़ी के दूध पीने के बड़े शौकीन थे और वह घोड़ी के दूध को ‘कुम्मी’ (Kumiss) कहते थे।


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“बाल कल्पना के से पाले” में कौन सा अलंकार है?

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‘बाल कल्पना के से पाले’ में ‘उपमा अलंकार’ है।

काव्य पंक्ति : बाल कल्पना के से पाले

अलंकार भेद : उपमा अलंकार

स्पष्टीकरण

‘बाल कल्पना के से पाले’ में उपमा अलंकार’ इसलिए है क्योंकि यहां पर पाले की तुलना बाल कल्पना से की गई है। पाले को बाल कल्पना की उपमा दी गई है।

उपमा अलंकार में दो समान वस्तुओं की आपस में तुलना की जाती है। किसी एक व्यक्ति अथवा वस्तु की तुलना दूसरी किसी प्रसिद्ध व्यक्ति अथवा वस्तु से की जाए तथा दोनों वस्तुओं या व्यक्ति आदि में समानता का भाव दर्शाया जाए तो वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार में दो भिन्न व्यक्ति अथवा वस्तुओं के गुणों, आकृति आदि में समानता का भाव दर्शाया जाता है। इसलिए इन पंक्तियों में उपमा अलंकार है।


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पुष्प पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूं मैं’ इस पंक्ति में पुष्प-पुष्प’ युवाओं का प्रतीक है। कवि सुमित्रानंदन पंत अपनी ध्वनि’ नामक कविता में कहते हैं कि वे हर उस फूल से आलस को खींच लेना चाहते हैं, आलस के प्रमाद में है अर्थात मैं वसंत ऋतु हर पुष्प से नींद के आलस्य को खींचकर उसमें स्फूर्ति भर देना चाहते हैं। यहाँ पर पुष्प से तात्पर्य देश के युवाओं से है। वह देश के युवाओं के अंदर व्याप्त आलस को खींचकर उनमें उमंग एवं उत्साह भर देना चाहते हैं, ताकि वह देश के विकास के पथ पर दौड़ सके और अपने कर्म के लिए तत्पर हो जाएं। वह हर युवा को प्राणवान और चुस्त बना देना चाहते हैं ताकि वह अपने आलस को त्याग कर कर्म के पथ पर गतिशील हो जाएं।

संदर्भ पाठ

‘ध्वनि’ कविता, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला


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गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन प्रतियोगिता क्या होती है? कृपया इसके बारे में लिखें।

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‘गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन’ यह शब्द काफी रोचक शब्द है। यह शब्द ‘क्रिकेट’ नामक खेल के हिंदी और देसी अर्थ के संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है।हम सभी जानते हैं कि क्रिकेट के अंग्रेजों का खेल है। अंग्रेज हमारे देश में क्रिकेट खेल को लेकर आए। क्रिकेट का कोई देसी नाम नहीं था।

‘क्रिकेट’ नाम अंग्रेजों द्वारा दिया गया अंग्रेजी नाम है। क्रिकेट खेलने की शैली, इसमें प्रयोग किए जाने वाले गेंद और बल्ले के आधार पर क्रिकेट को हिंदी भाषा में परिभाषित किया जाए और उसका एक विशुद्ध देसी अर्थ तैयार किया जाए तो उसे कहेंगे ‘गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दना दन’। हालाँकि इतना लंबा नाम व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और ना ही ठीक है, लेकिन क्रिकेट के हिंदी अर्थ के रूप में यह रोचक नाम क्रिकेट के हिंदी अनुवाद के तौर पर तैयार किया गया है।क्रिकेट में ही गोल गट्टम यानि गोल गेंद को लकड़ पट्टम यानि लकड़ी के बल्ले से दनादन मारा जाता है और रन बनाए जाते हैं। इसलिए…

गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन = क्रिकेट


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समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?

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समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए केवल हमारे प्रयास से ही सब कुछ नहीं हो जाएगा। समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए किसी एकल व्यक्ति द्वारा बहुत कुछ नहीं किया जा सकता। गरीबों के जीवन स्तर सुधारने के लिए समाज के बड़े वर्ग को तथा सरकार को आगे आना होगा, तभी गरीबों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है। हम गरीबों के जीवन स्तर सुधारने संबंधी कुछ सुझाव दे सकते हैं, इसमें अपना यथासंभव योगदान भी हम दे सकते हैं।

समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए हमें सबसे पहले रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराने होंगे। गरीबी का सबसे बड़ा एवं प्रमुख कारण बेरोजगारी होता है। यदि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार पर्याप्त रोजगार मिल जाए जिससे उसका जीवन स्तर ठीक प्रकार चल सके तो समाज में गरीबी दूर हो सकती है। गरीबी का दूसरा मुख्य कारण अशिक्षा और अज्ञानता है।

इसलिए गरीबी गरीब को दूर करने तथा गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। साथ ही सरकार द्वारा ऐसा वातावरण निर्मित किए जाने की आवश्यकता है कि गरीब से गरीब व्यक्ति को भी आसानी से, सहज रूप से, सुलभता से शिक्षा प्राप्त हो जाए। गरीबी के अन्य कई छोटे-मोटे कारणों में नशाखोरी, गलत आदतें तथा धन की पीछने भागना भी होती है। यह सब कारण भी गरीबों को दूर करने के लिए उन्हें जागरूक करना आवश्यक है शिक्षा एवं रोजगार एवं शिक्षा यह तो सबसे ग़रीबी के सबसे प्रमुख कारण है यदि पर्याप्त रोजगार, शिक्षा उपलब्ध कराई जाए तो समाज में कोई व्यक्ति गरीब नहीं रहेगा और सभी व्यक्तियों का जीवन स्तर सुधर जाएगा।

इस तरह समाज में गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए अंकित किए जा सकते हैं इन सभी प्रयासों में यथासंभव योगदान दे सकते हैं समाज के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ऐसी व्यक्ति की अवश्य मदद करें जो किसी न किसी समस्या से पीड़ित है यदि बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है तो उसे पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में उसकी सहायता करें अथवा अपने पास से धन आदि देकर उसे कोई छोटा-मोटा रोजगार आरंभ करने के लिए प्रेरित करें इस तरह हम अपने छोटे-छोटे नागरिक प्रयासों से गरीबों का जीवन सुधार सकते हैं। लेकिन गरीबों को जीवन स्तर सुधारने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर प्रयास करना होगा, तभी सार्थक बात बनेगी ।


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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने के कारण वायु प्रदूषण में भी इज़ाफा हो रहा है। इसका कारण यह है कि तापमान में वृद्धि से पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन गैस का स्तर बढ़ जाता है जो की कार्बन गैसों और सूरज की रोशनी की गर्मी के साथ प्रतिक्रिया करने पर पैदा होती है। वायु प्रदूषण के स्तर में होती वृद्धि ने कई स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को जन्म दिया है। खासकर सांस की समस्याएं और फेफड़ों के संक्रमण (infection) के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। इससे अस्थमा के रोगी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप महासागर का पानी दिन प्रतिदिन गर्म हो रहा है और इन दोनों के चलते समुद्र में पानी का स्तर बढ़ गया है। इससे आने वाले समय में तापमान में वृद्धि के साथ समुद्र के पानी के स्तर में और ज्यादा वृद्धि होने की उम्मीद है और यह चिन्ता का एक बहुत बड़ा कारण है क्योंकि इससे तटीय और निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाएगी जिससे मनुष्य जीवन के सामने बड़ा मसला खड़ा हो जाएगा। इसके अलावा महासागर का पानी भी अम्लीय हो गया है जिसके कारण जलीय जीवन खतरे में है।

भूमि पर प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई जगहों के मौसम में भयंकर बदलाव हो रहे हैं। कई जगहों में बार-बार भारी बारिश तथा बाढ़ के हालत बन रहे हैं जबकि कुछ क्षेत्रों को अत्यधिक सूखा का सामना करना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग ने न केवल लोगों के जीवन को प्रभावित किया है बल्कि कई क्षेत्रों में भूमि की उपजाऊ शक्ति को भी कम कर दिया है। इसी वजह से कृषि भूमि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

महासागरों पर प्रभाव और समुद्र के स्तर में वृद्धि

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों की बर्फ पिघल रही है तथा महासागरों के पानी भी गरम हो रहा है जिससे समुद्र के पानी का स्तर लगातार बढ़ रहा है। इससे अप्रत्यक्ष रूप से तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया है। दूसरी तरफ, इन गैसों के अवशोषण के कारण महासागर अम्लीय होते जा रहे हैं और यह जलीय जीवन को बड़ा परेशान कर रहा है।

बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं

ग्लोबल वार्मिंग के कारण स्वास्थ्य समस्याओं में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। हवा में प्रदूषण के बढ़ते स्तर से साँस लेने की समस्याएं और फेफड़े के संक्रमण जैसी बीमारियाँ पनप रही है। इससे अस्थमा के रोगियों के लिए समस्या पैदा हो गई है। तेज़ गर्म हवाएं और बाढ़ भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में इज़ाफे का एक कारण है। बाढ़ के कारण अलग-अलग क्षेत्रों में जमा हुए पानी मच्छरों, मक्खियों और अन्य कीड़ों के लिए आदर्श प्रजनन स्थल है और इनके कारण होने वाले संक्रमणों से हम अच्छी तरह से जानते हैं।

जानवरों के विलुप्त होने का खतरा

ग्लोबल वार्मिंग के कारण न केवल मनुष्यों के जीवन में कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं बल्कि इसने विभिन्न जानवरों के लिए भी जीवन कठिन बना दिया है। मौसम की स्थितियों में होते परिवर्तन ने पशुओं की कई प्रजातियों का धरती पर अस्तित्व मुश्किल बना दिया है। कई पशुओं की प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो चुकी है या फिर विलुप्त होने की क़गार पर खड़ी हैं।

मौसम में होते बदलाव

ग्लोबल वार्मिंग से विभिन्न क्षेत्रों के मौसम में भारी बदलाव होने लगा है। भयंकर गर्मी पड़ना, तेज़ गति का तूफ़ान, तीव्र चक्रवात, सूखा, बेमौसम बरसात, बाढ़ आदि सब ग्लोबल वार्मिंग का ही कारण है।

उपसंहार

ग्लोबल वार्मिंग का तेज़ी से बढ़ना वैश्विक स्तर पर एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। ज्यादातर लोगों को ग्लोबल वार्मिंग और उससे भविष्य में होने वाले खतरे के बारे में जानकारी नहीं है। हमें अपने आस पास के लोगों को ग्लोबल वार्मिंग से अवगत करवाना है और इसको कम करने लिए उचित उपायों से लोगों को रूबरू कराना होगा। हमें खुद भी इसके बारे में गंभीरता से विचार करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए इस खतरे को कम किया जा सके।

ग्लोबल वार्मिंग बड़ी चिन्ता का विषय बन चुका है। अब सही समय आ चुका है कि मानव जाति इस तरफ ध्यान दे तथा इस मुद्दे को गंभीरता से ले। कार्बन उत्सर्जन में कमी से ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों को कम किया जा सकता है। इसलिए हम में से हर एक को अपने स्तर पर कार्य करने की जरूरत है जिससे ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणामों पर क़ाबू पाया जा सके।


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‘कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी।’ इस उक्ति का अर्थ बताकर इसकी व्याख्या करें।

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‘कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी।’

अर्थ : इस उक्ति का तात्पर्य यह है कि भारत बहुल संस्कृति और भाषा की विविधता वाला देश है, यानी भारत में संस्कृत की विविधता से भरी हुई है और भारत में अनेक भाषाएं प्रचलित हैं। इसलिए एक कोस यानी हर लगभग तीन किलोमीटर के बाद भारत में संस्कृति और भाषण में थोड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है।

व्याख्या : यह उक्ति भारत की विविधता भरी संस्कृति को प्रकट करती है। इसमें बताया गया है कि भारत सांस्कृतिक विविधता से भरा होने बावजूद अनेकता में एकता को चरितार्थ करता है।

भारत एक संसार का ऐसा एकमात्र देश है, जिसमें अनेक संस्कृतियों हैं। अनेक तरह के खानपान, अनेक तरह की वेशभूषा है। भाषा के विषय में भी भारत में अनेक भाषाएं प्रचलित हैं। हर राज्य की अपनी भाषा है, अपनी संस्कृति है, अपना खान-पान है और अपनी वेशभूषा है। यह भारत की विविधता से भरी संस्कृति को प्रकट करता है। इसी कारण भारत में हर एक किलोमीटर के बाद संस्कृति, भाषा, वेशवूषा, खानपान आदि में थोड़ा बहुत परिवर्तन आ जाता है। यही भारत की बहुलवादी संस्कृति की विशेषता है और अनेकता में एकता का प्रतीक है।


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‘भाइयों और बहनों’- शब्दों का प्रयोग किसने, कब तथा किसके लिए किया है? (पाठ- भेड़ और भेड़िया)

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‘भाइयों और बहनों’ शब्द का प्रयोग बूढ़े सियार ने किया था। इन शब्दों का प्रयोग बूढ़े सियार ने तब किया, जब संत का छद्म वेश बनाकर बैठे भेड़िए के दर्शन करने के लिए हजारों भेड़े आईं और जब उन्होंने संत का रूप धारण किए भेड़िए को पहचान लिया तो वहां से वापस भागने लगी। तब बूढ़े सियार ने भेड़ों को रोकते हुए ‘भाइयों और बहनों’ शब्दों का प्रयोग किया। इन शब्दों का प्रयोग करके वह भेड़ों को समझा-बुझाकर रोक लेना चाहता था। उसने यह भेड़ों को यह समझाने की चेष्टा की कि डरो मत, यह भेड़िए एक बहुत बड़े संत हैं। इन्होंने हिंसा बिल्कुल छोड़ दी है, यह केवल आपका हित चाहते हैं।

‘भेड़ और भेड़िया’ कहानी ‘हरिशंकर परासाई’ द्वारा रचित एक व्यंग्यात्मक कहानी है, जिसके माध्यम से उन्होंने जंगल के भेड़ और भेड़ियों को आधार बनाकर राजनीति पर करारा व्यंग्य किया है।


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‘इसरो’ का पूर्ण रूप हिंदी में क्या है? Full Form of ‘ISRO’?

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इसरो का पूर्ण रूप यानी फुल फॉर्म इस प्रकार होगा :

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इसरो (ISRO) यानी ‘इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन’ जिसे हिंदी में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान’ कहते हैं, वह भारत सरकार का एक उपक्रम है। यह संस्थान अंतरिक्ष के क्षेत्र में कार्य करता है। इसरो भारत का अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है। इस संस्थान का मुख्यालय भारत के कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित है।

भारत सरकार के जो भी अंतरिक्ष संबंधित कार्यक्रम होते हैं। उन सब का संचालन इसरो ही करता है। इस संस्थान का मुख्य कार्य भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए आवश्यक तकनीक उपलब्ध कराना, अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए उपग्रहों और भू प्रणालियों आदि का विकास करना है।

इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) की स्थापना 15 अगस्त 1969 को की गई थी। इसकी स्थापना के समय का नाम ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (INSPSR) था। बाद में इसका नाम बदलकर इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान कर दिया गया।


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धर्म की अवधारणा को बतलाइए तथा भारत में पाए जाने वाले प्रमुख धर्म कौन-कौन-कौन से हैं?

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वर्तमान समय में धर्म की अवधारणा से तात्पर्य किसी विशेष समुदाय से होता है, जो कोई विशिष्ट संस्कृति और पूजा पद्धति का पालन करता है। ऐसे व्यक्तियों का समूह जो जिसकी पूजा पद्धति भिन्न है, जो एक विशेष प्रकार की ईश्वर को मानता है, जिसके अपने अलग धार्मिक ग्रंथ हैं, ऐसे समुदाय को किसी विशेष धर्म का पालन करने वाला समुदाय कहा जाता है। वर्तमान संदर्भ में यही धर्म की अवधारणा है।

भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो धर्म का अर्थ है, अपने कर्तव्य का पालन करना। जीवन में जो मानवीय कर्तव्य हैं, उनका पालन करना ही धर्म है। नैतिकता को बनाए और नैतिकता के रास्ते पर चलते हुए जीवन का निर्वाह करना ही धर्म है, यही धर्म की मूल भारतीय अवधारणा है। आज धर्म का अर्थ बदल गया है और यह विशेष पूजा-पद्धति, अलग ईश्वर को मानने वाले समुदाय तक सीमित कर दिया गया है।

भारत में लगभग 7-8 धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत में सबसे अधिक 79% लोग हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं। मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोग हैं लगभग 15% हैं। सिक्ख धर्म को मानने वाले 2% से कुछ कम हैं। ईसाई धर्म को मानने वाले 2.5% हैं। बौद्ध धर्म को मानने वाले 0.70% लोग हैं। जैन धर्म को मानने वाले भी 0.50% से कम हैं। पारसी धर्म को मानने वाले कुछ अनुयायी हैं। इस तरह भारत में सबसे मुख्य धर्म हिंदू है और उसके बाद दूसरा सबसे बड़ा धर्म मुस्लिम है।


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भाव : ‘थाल में सजा कर लाऊँ भाल’ इस पंक्ति में कवि अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण का भाव प्रकट कर रहा है। कवि अपने देश अर्थात अपनी मातृभूमि से कह रहा है कि माँ आपका मेरे ऊपर आपके बहुत बड़ा ऋण है। आपकी गोद में ही मैं पला-बढ़ा। आपने मेरे पास बड़े उपकार किए हैं। अब मेरे कर्तव्य निभाने का समय आ गया है। अब मैं अपना माथा थाली में सजाकर यदि आपके सामने पेश करूं तो आप इसे दया पूर्वक स्वीकार कर लें। आपके प्रति यही मेरी सच्ची श्रद्धा होगी। यही मेरे कर्तव्य का निर्वहन होगा। यहाँ पर थाल मतलब थाली और भाल मतलब माथा (सिर) है। कवि थाली में अपने सर को मातृभूमि के चरणों में पेश करना चाहता है, अर्थात वो मातृभूमि की रक्षा करते हुए उसकी सेवा करते हुए अपने जीवन का बलिदान करने से भी संकोच नहीं करता। कवि का यही कहने का भाव है।

संदर्भ पाठ :

कविता : ‘चाहता हूँ’, कवि : रामावतार शास्त्री (कक्षा-7 पाठ-1, हिंदी – झारखंड बोर्ड)


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त्योहारों का जीवन में महत्व और संदेश (निबंध)

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निबंध

त्योहारों का जीवन में महत्व और संदेश

 

प्रस्तावना

दुनिया में साल भर त्योहारों का सिलसिला चलता ही रहता है। दुनिया में भारत के अलावा शायद ही ऐसा को देश होगा जहाँ इतने त्यौहार मनाए जाते हैं। भारतीय लोगों का जीवन हमेशा त्योहारों से घिरा रहता है। त्योहारों के अभाव में यहाँ की कल्पना करना कठिन है।

त्योहारों का जीवन में महत्व और संदेश

त्योहार सब के जीवन में अहमियत रखते हैं। यहाँ की खुशियाँ और मनोरंजन का सबसे बड़ा संसाधन ही त्यौहार है। जो समय-समय पर आकर जीवन में ख़ुशी के पल भर देता है। त्योहारों के चक्र की शुरुआत श्रावण तीज के साथ होती है तथा गणगौर पर इसकी समाप्ति हो जाती है इसलिए किसी ने कहा है- तीज तीवाराँ बावड़ी ले डूबी गणगौर। हमारे द्वारा मनाए जाने वाले त्यौहार कुछ न कुछ प्रेरणा जरूर देते है। जिसमें होली रंगों का त्योहार, दीपावली रोशनी का त्योहार, रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार तथा ईद भाईचारे का त्यौहार होता है।

हमारा देश विभिन्नताओं के समूह का एक ऐसा देश है, जहाँ पूरे साल अलग-अलग त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाए जाते हैं। त्योहारों से हमारे जीवन में परिवर्तन और उल्लास का संचार होता है। त्यौहार अथवा पर्व सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं।

यहाँ आए दिन कोई-न-कोई त्यौहार आता ही रहता है क्योंकि जिस प्रकार प्रत्येक समुदाय, जाति व धर्म की मान्यताएँ होती हैं उसी प्रकार इन त्योहारों को मनाने की विधियों में अलग-अलग होती है। सभी त्योहारों की अपनी परंपरा होती है जिससे संबंधित जन-समुदाय इनमें एक साथ भाग लेता है। त्यौहार ही एक ऐसा वक़्त है जो किसी भी जाति के लोगों के बीच एकता बनाए रखने के प्रतीक है।

त्योहारों का महत्व

हमारे जीवन में त्योहारों का बहुत महत्व है , त्योहार हमारा एक साथी है, जो हमेशा जीवन में आकर खुशियों का संचार करता है, तथा गम को ले जाता है। हर पर्व को मनाने के अलग-अलग ढंग होते है। जैसे होली होलिका दहन, दीपावली में लक्ष्मी जी की पूजा, रक्षाबंधन में भाई की राखी, दुर्गा पूजा में दुर्गा माँ के सभी रूपों की पूजा और ईद पर चाँद की पूजा की जाती है।

हमारे जीवन में त्योहारों का बड़ा महत्व है। सभी त्योहारों की अपनी महत्व होती है जिससे संबंधित जन-समुदाय एक साथ मिलकर भाग लेते है। सभी जन त्यौहार के आगमन से प्रसन्नचित्त होते हैं व विधि-विधान से, पूर्ण उत्साह के साथ इन त्योहारों में भाग लेते हैं। सभी त्योहा अपने जन्म-काल से लेकर अब तक उसी पवित्रता और सात्विक की भावना को संजोए हुए रखे हैं।

युग-परिवर्तन और युग का पटाक्षेप इन त्यौहार के लिए कोई मायने नहीं रखता इसीलिए तो सभी त्यौहार आज भी पुराने परम्परा के साथ हंसी-खुशी एकता के साथ मनाए जाते है। त्योहार का रूप चाहे बड़ा हो, चाहे छोटा, चाहे एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित हो, चाहे सम्पूर्ण समाज और राष्ट्र को प्रभावित करने वाला हो, फिर भी इसे सारे जन स दाय बड़े ही उल्लास के साथ इसका आनंद लेते है। इससे कलुषता और हीनता की भावना समाप्त होती है और सच्चाई, निष्कपटता तथा आत्मविश्वास की उच्च ओर श्रेष्ठ भावना का जन्म होता है इसीलिए सभी त्योहारों का बड़ा महत्व है।

सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं त्योहत्योहार सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के प्रतीक हैं। जो की सभी जन-जीवन में जागृति लाते हैं। समष्टिगत जीवन में जाति की आशा-आकांक्षा के चिह्न हैं, उत्साह एवं उमंगों के प्रदाता हैं। राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता का कारण हैं। जीवन की एक-रास्ता से ऊबे समाज के लिए त्यौहार वर्ष की गति के पड़ाव हैं।

वह भिन्न-भिन्न प्रकार के मनोरंजन, उल्लास और आनंद प्रदान कर जीवन-चक्र को सरस बनाते हैं। पर्व युगों से चली आ रही सांस्कृतिक परम्पराओं, प्रथाओं, मान्यताओं, विश्वासों, आदर्शों, नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक मूल्यों का वह मूर्त प्रतिबिम्ब हैं जो जन-जन के किसी एक वर्ग अथवा स्तर-विशेष की झाँकी ही प्रस्तुत नहीं करते। इसीलिए त्योहारों की व्यवस्था समाज-कल्याण और सुख-समृद्धि के उत्पादों के रूप में हुई थी।

हमारे देश के प्रमुख त्योहार

मानवीय मूल्यों और मानवीय आदर्शों को स्थापित करने वाले हमारे देश के त्यौहार को हम दो भागों में बांट सकते हैं। पहले वर्ग में धार्मिक त्यौहार आते हैं जैसे नागपंचमी, ईद, दशहरा, दीपावली, होली, कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, रक्षाबंधन, भैया-दूज आदि त्यौहार इसी वर्ग में आते हैं।

दूसरे वर्ग में राष्ट्रीय पर्व हैं जिस में गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती, अध्यापक दिवस बलिदान दिवस प्रमुख त्यौहार माने जाते है। नाग पंचमी का त्यौहार सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इससे हमारे मन मे नाग देवता (शेष नाग) के प्रति श्रद्धा-भावना व्यक्त होती है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन नाग देवता प्रसन्न होते है।

हमारे त्योहार

दीपावली का त्यौहार भी अत्यन्त ही प्रसन्नता और खुशियाँ भरा पर्व है। यह पर्व श्रीराम के अयोध्या आने की खुशी में मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस के अंधकार को पराजित करने के लिए प्रकाश का आयोजन करके सम्पन्न किया जाता है। होली का त्यौहार हमें संदेश देता है कि हम आपसी कटुता व वैमनस्य को भुलाकर अपने दुश्मनों से भी प्रेम करें। होली का त्योहार जीवन में रंग, मौज-मस्ती, आनंद, उल्सास, प्रेम और भाईचारे के बिखेरने का संदेश देता है।

दशहरा भारत का बहुत ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय त्यौहार है। इसे विजयादशमी भी कहते हैं। भारत में विजयादशमी का पर्व जिस प्रकार असत्य पर सत्य की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश देता है। यह त्योहार रावण पर राम की जीत के सम्मान में पूरे देश में मनाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरा त्यौहार विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।

रक्षाबंधन के त्यौहार का महत्व प्राचीन परंपरा के अनुसार गुरु महत्व को प्रतिपादित करने से है। लोगों को यह मान्यता है कि इस दिन गुरु अपने शिष्य के हाथ में रक्षा सूत्र बांध करके उसे अभय रहने का वरदान देते है। परंपरा के अनुसार बहनें अपने भाइयों के हाथ में राखी का बंधन बांधकर उससे परस्पर प्रेम के निर्वाह का वचन दान लेती है।

जन्माष्टमी का त्यौहार श्रीकृष्ण के जन्मदिन की उपलक्ष में मनाया जाता है। रामनवमी का त्योहार भगवान राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

नवरात्रि का व्रतोत्सव वर्ष में दो बार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और नौ दिन तक देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है। ये त्योहार स्त्रीशक्ति और मातृशक्ति की महत्ता का प्रतीक है।

ईसाइयों का त्यौहार क्रिसमस संसार से पाप के अंधकार को दूर करने का संदेश देता है। ईद और बकरीद मुस्लिम का प्रमुख त्यौहार है।

रमजान का पावन महीना आता है एवं रमजान का महीना व्रत, त्याग और तपस्या का महीना है। रमजान में स्वस्थ मुस्लिम लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोज़ा रखते हैं। सूर्यास्त के बाद नमाज़ पढ़ कर रोज़ा खोलते हैं।

इसी प्रकार हमारे कुछ राष्ट्रीय पर्व हैं। जैसे  गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, बाल दिवस, अध्यापक दिवस व गाँधी जयंती को सभी धर्मों, जातियों व संप्रदायों के लोग मिल-जुल कर खुशी से मनाते हैं। इन अवसरों पर सारा राष्ट्र उन महापुरुषों व देश भक्तों को याद करता है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को सहर्ष न्यौछावर कर दिया।

इस प्रकार सभी त्योहारों के पीछे भारतीय जन जीवन में एक नई उमंग प्रदान करती हैं। राष्ट्रीय एकता के रूप में हमारी पहचान त्यौहार राष्ट्रीय एकता के रूप में हमारी पहचान हैं, राष्ट्र की एकात्मता के परिचायक हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक विस्तृत इस पुण्यभूमि भारत का जन- जन जब होली, दशहरा और दीपावली मनाता है, होली का हुड़दंग मचाता है, दशहरा के दिन रावण को जलाते है और दीपावली की दीप-पंक्तियों से घर, आँगन, द्वार को ज्यांतित करता है, तब भारत की जनता राजनीति-निर्मित उत्तर और दक्षिण का अन्तर समाप्त कर एक सांस्कृतिक गंगा-धारा में डुबकी लगाकर एकता का परिचय दे रही होती है।

दक्षिण का ओणम्, उत्तर का दशहरा, पूर्व की (दुर्गा) पूजा और पश्चिम का महारास,जिस समय एक-दूसरे से गले मिलते हैं, तब भारतीय तो अलग, परदेसियों तक के हृदय- शतदल एक ही झोंके में खिल जाते हैं। इसमें अगर कहीं से बैसाखी के भंगड़े का स्वर मिल जाए या राजस्थान की पनिहारी की रौनक घुल जाए तो कहना ही क्या ? भीलों का भगेरिया और गुजरात का गरबा अपने आप में लाख-लाख इंद्रधनुष की अल्हड़ता के साथ होड़ लेने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए त्यौहार राष्ट्रीय एकता के रूप में हमारी पहचान हैं।

त्यौहार हमें क्या संदेश देते हैं

त्यौहार मनुष्य के जीवन को हर्षोल्लास से भर देते हैं। इन त्योहारों से उसके जीवन की नीरसता समाप्त होती है तथा उसमें एक नवीनता व सरसता का संचार होता है। ऐतिहासिक विरासत और जीवंत संस्कृति के सूचक ये त्योहार विदेशियों के समक्ष भी हमारे सरस और सजीले सांस्कृतिक वैभव का प्रदर्शन करते हैं और हमें गौरवान्वित होने का अवसर देते हैं। जीवन को नई ताजगी देते त्योहार जीवन में जीने का उत्साह और उल्लास का रंग भरते हैं, जिस से जीने का हौसला दोगुना हो जाता है।

रोजमर्रा की परेशानियों को भुला कर हमें सजने संवरने और नए स्वाद चखने का भी अवसर देते हैं। होली का त्योहार जहाँ मस्ती और मौज का संदेश देता है वहीं दीवाली अंधकार को दूर कर के जीवन में रोशनी भरने का। त्यौहार अच्छा खाना, अच्छा पहनना, खुश रहने और जीवन को खुशनुमा बढ़ाने का श्रेष्ठ माध्यम होते हैं। इस का उद्देश्य भाईचारे को बढ़ाते हुए एक दूसरे के दुख सुख का हम सफर बनना है।

दीवाली का त्यौहार आकाश में पटाखों की रोशनी और समृद्धि की अभिव्यक्ति है। आशाओं के उत्सव के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार का महत्व जीवन के अनमोल पहलुओं से जुड़ा हुआ है। यह त्योहार अमावस्या के अंधकार में ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ यानी अंधेरे से रोशनी की तरफ जाने का संदेश देता है।

विजयादशमी असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है। रक्षाबंधन का पावन पर्व भाई-बहन के प्रेम और भाई का बहन की आजीवन रक्षा करने के संकल्प को याद करता है। ईद का त्यौहार हमें भाईचारे का संदेश देता है।

उपसंहार

इस प्रकार सभी त्यौहार और पर्व देश को एक सूत्र में बाँधे रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं अथवा हमारे त्यौहार राष्ट्रीय एकता को मजबूत करते हैं। वह भारतीय नागरिकों के मन में देशप्रेम व मित्रता का भाव जगाते हैं। हमारे त्यौहार हमारी भारतीय सांस्कृतिक परंपरा व भारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं। ये त्यौहार हमारी संस्कृति की धरोहर हैं। इन पर्वों व त्योहारों के माध्यम से हमारी संस्कृति की वास्तविक पहचान होती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि त्योहारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। बढ़ते शहरीकरण ने त्योहारों के महत्व को भुला दिया है, पर आज भी ग्रामीण इलाकों में त्योहारों की झलकियों को महसूस किया जा सकता है। यहाँ लोग त्योहारों को बड़े ही प्रेम के साथ मिलकर मनाते है। हमें हर पर्व को धूमधाम के साथ मनाकर उसका आनंद लेना चाहिए तथा हमारी संस्कृति और परम्परा को बनाए रखना चाहिए, लेकिन आज त्योहारों के अवसर पर ऐसे कार्य होते है, जो नुकसानदायक है, उनकी समाप्ति जरूरी है।


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चाँद को कौन-सा ‘मरज़ ‘है और बिल्कुल ही गोल न हो जाएँ से क्या तात्पर्य है ?​ (चाँद से थोड़ी-सी गप्पें)

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चाँद को घटते रहने और बढ़ते रहने का मरज़ (रोग) है।

चाँद जब घटता जाता है तो घटता ही चला जाता है और जब बढ़ता जाता है तो फिर बढ़ता ही चला जाता है, जब तक वह बिल्कुल गोल ना हो जाए। यहाँ पर बिल्कुल ही गोल ना हो जाए से तात्पर्य चाँद के आकार के गोल हो जाने से है। चाँद की प्रगति होती है कि महीने में वह एक बार करता है, कि वो एक बार बढ़ता है, तो अर्धचंद्राकार से धीरे-धीरे गोल रूप धारण कर लेता है, जब वह घटता जाता है तो गोल रूप से अर्धचंद्राकार होता जाता है। यहाँ पर बिल्कुल ही गोल ना हो जाने से तात्पर्य चंद्रमा के एकदम गोल रूप धारण करने से है।

शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘चाँद से थोड़ी-सी गप्पे’ में एक दस साल की लड़की चाँद से बातें करते हुए उसे उसके आकार के घटने बढ़ने का ताना-उलाहना दे रही है।


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गद्य की अपेक्षा कविता का अनुवाद कठिन क्यों होता है या कविता की अपेक्षा गद्य का अनुवाद सरल क्यों होता है।

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कविता अर्थात पद्य का अनुवाद गद्य की अपेक्षा कठिन इसलिए होता है क्योंकि गद्य का अनुवाद गद्यात्मक शैली में ही करना पड़ता है जबकि कविता एक पद्ययात्मक शैली में रचित की गई रचना होती है, जिसे गद्यात्मक शैली में अनुवादित करना होता है।

कविता का अनुवाद करते समय उसे गद्यात्मक शैली में परिवर्तित करते समय नए-नए शब्दों और वाक्यों का निर्माण करना पड़ता है। कविता के पद को व्याख्यात्मक रूप देना पड़ता है, इसी कारण कविता का अनुवाद गद्य की अपेक्षा अधिक कठिन होता है। पद्य शैली में रचित की की गई कविता आसानी से हर किसी को समझ नहीं आती, उसको समझने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है, जिन्हें भाषा में पूर्ण दक्षता प्राप्त हो और जो पद्य की समझ रखते हों। इसलिए उसमें अधिक श्रम लगता है। पद्य का अनुवाद करते समय नये शब्दों और वाक्यों की गद्य शैली में रचना करनी पड़ती है।

अनुवाद करने समय ये ध्यान भी रखना होता है कि कविता का मूल भाव और उसकी लय न बदलने पाये। कविता की लय और भाव ही उसकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। इसलिए कविता का अनुवाद करने समय विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। यही कारण है कि गद्य की अपेक्षा कविता का अनुवाद कठिन होता है। कविता की अपेक्षा गद्य का अनुवाद सरल इसलिए होता है, क्योंकि गद्य का अनुवाद करते समय से उसे गद्य शैली में ही अनुवादित करना होता है अर्थात दोनों स्रोत और लक्ष्य दोनों एक ही शैली है, इसी कारण बहुत अधिक नए शब्दों या वाक्यों की आवश्यकता नही पड़ती। उसे स्रोत से लक्ष्य भाषा में बस परिवर्तित कर दिया जाता है। इसी कारण गद्य का अनुवाद करना सरल होता है।


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कवि का स्वप्न भंग किस जीवन-सत्य की ओर संकेत करता है?

उत्साह का प्रमुख लक्षण है। (क) जोश (ग) आनंद (ख) साहस (घ) आनंद और जोश

कवि का स्वप्न भंग किस जीवन-सत्य की ओर संकेत करता है?

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कवि का स्वप्न भंग इस जीवन सत्य की ओर संकेत करता है कि स्वप्न केवल मिथ्या होते हैं। वास्तविकता और यथार्थ के धरातल पर उनका कोई भी औचित्य नहीं होता। जब तक हम स्वप्न देखते रहते हैं तब तक हमें बेहद खुशी का अनुभव होता है, हम आनंद और कल्पना के लोक में विचरते रहते हैं। यह सपने हमें हर्षित करते हैं। लेकिन जैसे ही हमारे स्वप्न समाप्त होते हैं। हम यथार्थ के धरातल पर आ जाते हैं। हम वास्तविकता का सामना करते हैं, तब हमें पता चलता है कि स्वप्न तो केवल मिथ्या था, वह सत्य नहीं था। तब हमारा ह्रदय छिन्न-भिन्न हो जाता है। तब हमें दुख होता है। स्वप्न मिथ्या होते हैं यही जीवन का सत्य है।


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‘हम सब में है मिट्टी’- कथन से कवि का क्या आशय है?

‘चरणों में सागर रहा डोल’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्साह का प्रमुख लक्षण है। (क) जोश (ग) आनंद (ख) साहस (घ) आनंद और जोश

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सही विकल्प होगा…

(घ) आनंद और जोश

व्याख्या 

उत्साह का प्रमुख लक्षण आनंद व जोश है। सच्चा उत्साह वह उत्साह होता है, जिसके कारण मनुष्य कोई भी कार्य करने के लिए प्रेरणा प्राप्त करता है। उत्साह ही मनुष्य के जीवन में प्रेरणा का कार्य करता है और उसे कोई कार्य करने के लिए आगे बढ़ाता है। किसी भी कार्य में पूर्ण रूप से तत्पर होने के लिए उसके अंदर कुछ उत्साह होना बेहद आवश्यक होता है। मनुष्य जब किसी विशेष उद्देश्य के लिए कोई कार्य करने का संकल्प लेता है तो उसके अंदर एक उत्साह जगता है, यही उसे एक सुखद अनुभव कराता है। यही सुखद अनुभव ही उसे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करता है। इसीलिए उत्साह का प्रमुख लक्षण आनंद एवं जोश है।


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अपनी आँखों देखी किसी घटना का वर्णन अपने शब्दों में 7 लाइन में कीजिए।

‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’ इस वाक्य में से विशेषण और विशेष्य छांटकर लिखें।

आपको एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपने पुराने स्कूल शिक्षक को धन्यवाद देने के लिए एक पत्र लिखें।

अनौपचारिक पत्र

पूर्व शिक्षक को धन्यवाद करते हुए पत्र

 

दिनांक- 21 अप्रेल 2024

 

प्रेषक – मोहित वर्मा,
112, रामगंज, राज प्रदेश

प्रेषिती – श्री अभय  प्रताप सिंह,
मनोहर विद्यालय, रामगंज, राज प्रदेश

आदरणीय सर,
सादर प्रणाम

आशा करता हूँ कि आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा। मैं मोहित वर्मा आपका पूर्व छात्र हूँ। आपके द्वारा दी गई शिक्षा मेरे जीवन में बहुत काम आई, इसलिए आज मैं आपको धन्यवाद लिखने के लिए पत्र लिख रहा हूँ । आज मैंने अपना लक्ष्य पा लिया है । आज मैं एक अच्छा डॉक्टर बन गया हूँ । आपने मुझे एक अच्छा इंसान बनाया है । आज मुझे अपने पुराने स्कूल के दिन बहुत याद आते है । आपने हमेशा हमें अच्छी बाते सिखाई और सही रास्ता दिखाया । आज मैं यहाँ तक आपकी वजह से पहुंचा हूँ । मैं जीवन भर इसके लिए आपको आभारी रहूंगा । मैं आपका दिल से धन्यवाद करता हूँ।

आपका शिष्य,
मोहित वर्मा ।


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आपका मित्र आई.आई.टी की परीक्षा में चयनित हो गया है उसे बधाई पत्र लिखिए।

अपने मित्र को विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए निमंत्रण पत्र लिखो ।

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बधाई पत्र

मित्र को आई. आई. टी परीक्षा में चयनित होने के लिए बधाई पत्र

 

दिनांक-10-03-2024

प्रिय मित्र सुमित,

आशा करता कि तुम ठीक होगे । माफ़ी चाहता हूँ, थोड़ा विलंब से पत्र लिख रहा हूँ । सबसे पहले तुम्हें आई.आई.टी की परीक्षा में चयनित होने पर बहुत-बहुत बधाई हो । मुझे यह खबर सुनकर बहुत ख़ुशी हुई । आज तुम्हें तुम्हारी मेहनत का फल मिल गया । हम सब जानते कि तुमने इस परीक्षा के लिए बहुत मेहनत की है । मेरी तरफ़ से तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बहुत-बहुत बधाई हो । तुम अपने जीवन में यूँ ही दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करते रहो। मेरी यही शुभकामना है। हम लोग जल्दी मिलेंगे। तुम अपना ध्यान रखना। तुम्हारे पत्र का इंतजार करूंगा।

तुम्हारा मित्र,
अक्षय ।


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अपने मित्र को विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए निमंत्रण पत्र लिखो ।

मई महीने में आपके विद्यालय में हुई परीक्षा, इस बात को बताते हुए अपनी बुआजी को पत्र लिखिए।

आधुनिक युग में विज्ञापन को महत्व क्यों दिया जाता है ?

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आधुनिक युग में विज्ञापन को महत्व इसलिए दिया जाता है, क्योंकि आज का आधुनिक युग प्रचार का युग है। बिना प्रचार के किसी भी उत्पाद की बिक्री और लोकप्रियता संभव नहीं हो पाती है।

आधुनिक युग में उत्पादों का दायरा विशाल और व्यापक हुआ है। उत्पादक अपने उत्पाद को दूर-दूर क्षेत्रों तक पहुंचा पा रहे हैं। अब वह केवल लोकल मार्केट तक सीमित रह नहीं रह गए हैं। दूर-दूर तक अपनी पहुंच बनाने के लिए उन्हें अपने उत्पाद के विज्ञापन का सहारा लेना पड़ता है ताकि लोग उनके उत्पाद के बारे में जाने और उनके उत्पाद को खरीदने के लिए प्रेरित हों। विज्ञापन का सहारा लेने का मुख्य कारण यह भी है आज मीडिया के अनेक साधन विकसित हो गए हैं। जैसे अखबार, टीवी, रेडियो, इंटरनेट आदि। इसलिए उत्पादक को अपने उत्पाद के प्रचार के लिए एक माध्यम मिल गया है तो वह इस माध्यम का पूरा लाभ उठाता है और अपने उत्पाद का विज्ञापन करता है, जिससे उसका उत्पाद दूर-दूर क्षेत्रों तक लोगों की जानकारी में आता है।

आधुनिक युग में विज्ञापन को महत्व देने का मुख्य कारण यह भी है कि आज का प्रचार एवं प्रतिस्पर्धा का युग है। एक ही उत्पाद के अनेक उत्पादक होते हैं जो कि अधिक से अधिक लोगों तक अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में प्रतिस्पर्धा में अपने उत्पाद को बनाए रखने के लिए उत्पादक को अपने उत्पाद के प्रचार की आवश्यकता होती है, इसीलिए आज का आधुनिक युग में विज्ञापन आवश्यक है।


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‘राष्ट्रभाषा’, ‘राजभाषा’ और ‘संपर्कभाषा’ भाषा के इन तीनों रूपों में अतंर स्पष्ट कीजिए।

किसके आने से लेखिका के जालीघर का वातावरण क्षुब्ध हो गया?

विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए अपने मित्र को निमंत्रण पत्र लिखो ।

अनौपचारिक पत्र

विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने के लिए मित्र को निमंत्रण पत्र

 

दिनांक : 1 मार्च 2024

प्रिय मित्र विमल,
खुश रहो,

मित्र, तुम जानते हो कि मेरे विद्यालय का वार्षिकोत्सव दिनाँक 5 मार्च को होने वाला है। इस वार्षिकोत्सव में अनेक तरह के आयोजन होगे। बाल मेला लगेगा। छात्रों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे तथा अनेक तरह की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा। ये वार्षिकोत्सव बहुत मजेदार होने वाला है। मैने मंच पर अपने साथी छात्रों के साथ एक लघु नाटिका प्रस्तुत करने के कार्यक्रम में भाग लिया है। इसके अलावा मै मैंने बैंडमिंटन और कैरम की खेल प्रतियोगिता में भी भाग लिया है।

विद्यालय के छात्र अपने अभिभावको और मित्रों आदि को इस वार्षिकोत्सव में आमंत्रित कर सकते हैं। इसलिए मैं तुम्हे मेरे विद्यालय के वार्षिकोत्सव में आने का निमंत्रण देता हूँ। मैं चाहता हूँ कि जिन प्रतियोगिताओं में मैने भाग लिया है, उन्हें तुम सामने से देखो और मुझे प्रेरित करो। मेरे माता-पिता भी इस वार्षिकोत्सव में आने वाले हैं। तुम भी जरूर आना। 5 मार्च को सुबह 8 बजे तुम मेरे विद्यालय पहुँच जाना। मैं तुम्हें मेरी कक्षा अथवा विद्यालय के हॉल में मिलूंगा। तुम ज़रूर आना।

तुम्हारा मित्र,
रंजन ।


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आप पावनी है। आप छुट्टियों में गुजरात घूमने का कार्यक्रम बना रही हैं। सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखना चाहती है। आपने जो कार्यक्रम बनाया है, उसमें क्या सुधार हो सकता है। अपने चचेरे भाई को लगभग 100 शब्दो में पत्र लिखिए।

मई महीने में आपके विद्यालय में हुई परीक्षा, इस बात को बताते हुए अपनी बुआजी को पत्र लिखिए।

किसी आँखों देखी घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

आँखों देखी घटना

 

मैंने एक घटना कुछ दिन पहले अपनी आँखों से देखी है। एक दिन की बात है जब मैं सुबह ऑफिस के लिए जा रही थी । मैं देखा सड़क के पास एक लड़की बहुत जोर-जोर से रो रही थी । सड़क के पास गुजरते हुए लोग कोई उसे नहीं पूछ रहा था । सब उसे देखकर रहे थे पर उसे पूछ नहीं रहा था । मैं उसे पास भाग-भाग कर गई । मैं उसे देखा तो उसे पैर में चोट लगी हुई थी । उसके पैर से बहुत खून निकल रहा था । मैं उसे चुप करवाया और थोड़ा हौसला दिया । मैंने एम्बुलेंस को बुलाया और उसे अस्पताल लेकर गई । उसने मुझे सारी बात बताई कि मैं रास्ते में पड़ी रही रोती रही पर मेरी किसी ने कोई मदद नहीं की । मुझे सुनकर बहुत बुरा लगा । आज के समय में इंसानियत खत्म हो गई है । कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता ।


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हीरों की घाटी में पहुँचकर सिंदबाद को क्या-क्या अनुभव हुए? अपने शब्दों में लिखो।

‘स्वयं अनुभव किया हुआ आतिथ्य’ इस विषय पर अपने विचार 100 शब्दों में लिखिए।

हीरों की घाटी में पहुँचकर सिंदबाद को क्या-क्या अनुभव हुए? अपने शब्दों में लिखो।

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हीरो की घाटी में पहुंचकर सिंदबाद को विचित्र अनुभव हुए। जैसे ही विशालकाय पक्षी के पंजों में दबा हुआ सिंदबाद हीरो की घाटी पहुंचा तो वहां सिंदबाद को चारों तरफ हीरे हीरे विखरे दिखाई दिए। हीरों के अलावा वहाँ चारों तरफ से सांप ही साँप नजर आ रहे थे। साँपों को देखकर सिंदबाद घबरा गया और एक गुफा में जाकर छुप गया। सुबह जब गुफा से बाहर निकला तो साँप नहीं दिखाई दिए। फिर उसे मांस के टुकड़े गिरते हुए दिखाई दिए। तब सिंदबाद को याद आया कि हीरे की घाटियों में लोग मांस के टुकड़े फेंका करते हैं, ताकि उनसे हीरे चिपक जाए और उकाब पक्षी मांस के टुकड़ों को जब चोंच में दबाकर लाएं तो उनके साथ हीरे भी आ जाएं।

सिंदबाद को वहाँ बड़े-बड़े उकाब पक्षी भी दिखाई दिए। सिंदबाद ने स्वयं को मांस के एक टुकड़े से बांध दिया। जब वो मांस का टुकड़ा एक उकाब पक्षी लेकर उड़ा तो उसके साथ बंधा सिंदबाद भी हीरो की घाटी से निकल आया ।


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अपनी किसी यादगार यात्रा के विषय में लगभग 200 शब्दों में लिखिए।

रक्षाबंधन पर अनुच्छेद लिखें, 200 शब्दों में।

प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः। त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।। स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्। अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।। शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति स बान्धवः।। सभी श्लोक का अर्थ बताएं।

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सभी श्लोकों का अर्थ इस प्रकार है…

प्रदोषे दीपकः चन्द्रः प्रभाते दीपकः रविः।
त्रैलोक्ये दीपकः धर्मः सुपुत्रः कुल-दीपकः।।

अर्थ : जिस तरह संध्याकाल में चंद्रमा दीपक के समान होता है, अर्थात प्रकाश फैलाकर अंधकार भगाता है। सुबह के समय सूर्य दीपक के समान होता है, अर्थात वो अपने प्रकाश से अंधकार का नाश कर देता है। तीनों लोकों में धर्म दीपक के समान होता है अर्थात धर्म अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है। उसी तरह सुपुत्र पूरे कुल के दीपक के समान होता है, अर्थात उत्तम गुणों वाला पुत्र पूरे परिवार (खानदान) का नाम उज्जवल करता है।

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।

अर्थ : मूर्ख व्यक्ति केवल अपने घर में ही महत्व पाता है। धनी व्यक्ति केवल अपने गाँव-नगर में ही महत्व पाता है। राजा केवल अपने देश में ही सम्मान पाता है। परन्तु विद्वान व्यक्ति सब जगह महत्व-सम्मान पाते हैं। अर्थात इन तीनों व्यक्तियों की सम्मान पाने की एक सीमा है, लेकिन विद्वान सभी जगह पर पूजा जाता है। विद्वान का महत्व सर्वत्र व्याप्त है।

उत्तमे तु क्षणं कोपो मध्यमे घटिकाद्वयम्।
अधमे स्याद् अहोरात्रं चाण्डाले मरणान्तकम्।।

अर्थ : जो व्यक्ति उत्तम श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध केवल क्षण मात्र के लिए ही रहता है। वह क्षण मात्र को क्रोधित होकर शांत हो जाते हैं। जो व्यक्ति मध्यम श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध दो प्रहर अर्थात लगभग 4-6 घंटे तक ही रहता है। इसके बाद उनका क्रोध शांत हो जाता है। जो व्यक्ति निम्न श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध पूरे दिन रात बना रहता है। अर्थात वह एक दिन-एक रात क्रोध करने के बाद शांत हो जाते हैं। लेकिन जो व्यक्ति बेहद पापी और निकृष्ट श्रेणी के होते हैं, उनका क्रोध हमेशा सदैव बना रहता है। उनका क्रोध कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ता और वह सदैव क्रोधित ही रहते हैं

शैले-शैले माणिक्यं मौक्तिकं गजे-गजे।
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं वने-वने।।

अर्थ : सभी पहाड़ों-पर्वतों पर मणि नहीं पाई जाती। हर हाथी में गजमुक्त नामक मोती नहीं पाया जाता। जो व्यक्ति सज्जन होते हैं, ऐसे सज्जन व्यक्ति हर जगह नहीं पाए जाते। चंदन का वृक्ष भी सभी वनों में नहीं पाया जाता। अर्थात यह सभी वस्तुएं मणि, मोती, साधु, सज्जन और चंदन के वृक्ष दुर्लभ होते हैं और यह हर जगह नहीं पाए जाते हैं। इसी कारण इनका महत्व है

उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने यः तिष्ठति बान्धवः।।​

अर्थ : अच्छा बंधु और हितेषी मित्र कौन है, इसकी पहचान तब होती है। जब उत्सव के समय अथवा बुरे समय में, अकाल के समय में, राष्ट्र में उपद्रव होने के समय में, राज दरबार के समय में तथा अंत में श्मशान में जो साथ रहता है, वही सच्चा बंधु है, वही सच्चा हितैषी है, वही सच्चा मित्र है। अर्थात सच्चा बंधु-हितैषी जीवन के सुख-दुख हर पल में साथ रहता है, कभी साथ नहीं छोड़ता।


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अस्माकं देशस्य नाम भारतवर्षम् अस्ति। भारतवर्षम् एकः महान् देशः अस्ति। अस्य संस्कृतिः अति प्राचीना अस्ति। अस्य प्राचीनं नाम आर्यावर्तः अस्ति। पुरा दुष्यन्तः नाम नृपः अभवत्। सः महर्षेः कण्वस्य सुतया शकुन्तलया सह विवाहम् अकरोत्। तस्य भरतः नाम्नः पुत्रः अभवत्। इति कथयन्ति स्म यत् तस्य नामानुसारेण देशस्य नाम अपि भारतम् अभवत्।​ इस संस्कृत गद्यांश का हिंदी अनुवाद करें।

‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’ इस वाक्य में से विशेषण और विशेष्य छांटकर लिखें।

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‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’

विशेषण : मीठे

विशेष्य : अंगूर

स्पष्टीकरण :

दिए गए वाक्य में  में ‘मीठे’ शब्द एक विशेषण है, जो ‘अंगूर’ विशेष्य के लिए प्रयुक्त किया गया है। अंगूर एक संज्ञा शब्द है, जो किसी विशेषण के लिए विशेष्य का कार्य करता है। विशेषण के लिए एक विशेष्य होना आवश्यक है।

‘मीठे’ एक गुणवाचक विशेषण है। यहाँ पर मीठे शब्द को बहुवचन रूप में प्रस्तुत किया गया है क्योंकि अंगूर के विशेषण के रूप में हमेशा बहुवचन प्रयुक्त किया जाता है, क्योंकि अंगूर हमेशा गुच्छे में होते हैं, इसलिए उनके लिए बहुवचन नियुक्त किया जाता है। गुणवाचक विशेषण वे विशेषण होते हैं, जो किसी भी वस्तु, पदार्थ स्थान आदि के गुण, दोष, अवस्था आदि को प्रकट करते हैंय़

दिए गए वाक्य में अंगूर एक संज्ञा शब्द है, यह जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत आता है। मीठे शब्द अंगूर के विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता है जो अंगूर की विशेषता बता रहा है अर्थात अंगूर में मिठास है।

विशेषण से तात्पर्य उन शब्दों को है से है जो किसी संज्ञा शब्द की विशेषता को प्रकट करते हैं। विशेषण के पाँच भेद होते हैं।


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‘दमा’ का विशेषण क्या होगा ?

‘शिमला’ में कौन सा समास है? बताएं।

बेफिक्र होकर सो जाने का दूसरा नाम ‘आजादी’ क्यों नहीं है?

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बेफिक्र होकर सो जाने का दूसरा नाम आजादी इसलिए नहीं है, क्योंकि आजादी हमें बेफिक्र होकर सो जाने के लिए नहीं मिली है। आजादी अपने साथ जिम्मेदारियों का भार लेकर आती है। यदि हमें आजादी मिली है तो हमें आजादी के साथ कुछ उत्तरदायित्व भी मिले हैं, हमें उन उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना होगा। यदि हम बेफिक्र होकर सो जाएंगे तो हमारी आजादी खतरे में पड़ सकती है। अपनी आजादी को निरंतर बनाए रखने के लिए हमें हमेशा सदैव सचेत रहना पड़ेगा। सचेत रहकर ही अपनी आजादी को कायम रखा जा सकता है। इस संसार में आजादी और अधिकारों का हनन करने वालों की कमी नहीं। यदि हम सचेत नहीं रहेंगे तो कोई भी हमारी आजादी को छीन सकता है, हमारे अधिकारों का हनन कर सकता है इसलिए बेफिक्र होकर सो जाने का अर्थ आजादी नहीं है, क्योंकि तब हमारी आजादी पर संकट की छाया मंडरा रही है। यदि हम अपने उत्तरदायित्वों के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आजादी का प्रयोग करेंगे, तभी आजादी का अर्थ सार्थक है।


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यदि सरदार पटेल ने रियासतों को भारतीय संघ में न मिलाया होता तो क्या होता?

भारत विश्व में शांति कैसे स्थापित कर सकता है?

मंगोल सेना की सबसे बड़ी इकाई में कितने सैनिक शामिल थे?

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मंगोल सेना की बड़ी इकाई में लगभग 10000 सैनिक शामिल होते थे। मंगोल सेना की इस बड़ी इकाई को ‘तुमन’ कहा जाता था।

‘तुमन’ नाम की इस इकाई में सैनिकों की संख्या 10000 के आसपास होती थी। इन सैनिकों में मंगोलों के अनेक कुलों व कबीलों के सैनिक शामिल होते थे। यह मंगोल सेना की सबसे बड़ी इकाई होती थी। इसके नीचे मंगोल सेना की छोटी इकाइयां होती थीं। यह छोटी सैनिक टुकड़ियों चंगेज खान ने अपने पुत्रों को अलग-अलग क्षेत्रों का अधिकार देने के लिए बनाई थीं। इन्हें उनके ‘नोयान’ कहा जाता था।

मंगोल सेना में कठोर अनुशासन पर और अधिक जोर दिया जाता था। इतना कठोर अनुशासन था कि अपने अधिकारी की अनुमति के बिना सैनिक अपने समूह से बाहर भी नहीं जा सकते थे और यदि वे ऐसा करते भी तो उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। मंगोल सेना की यह एकीकृत सेना तेरहवीं शताब्दी के आसपास चंगेज खान ने विकसित की थी।


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अब्दुल फजल कौन था? अकबरनामा को उसके महत्वपूर्ण योगदान में से एक क्यों माना जाता है स्पष्ट कीजिए!

हड़प्पा सभ्यता की मुहरों के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

‘राष्ट्रभाषा’, ‘राजभाषा’ और ‘संपर्कभाषा’ भाषा के इन तीनों रूपों में अतंर स्पष्ट कीजिए।

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‘राष्ट्रभाषा’, ‘राजभाषा’ और संपर्क भाषा’ के तीनों रूपों में मुख्य अंतर यह है कि राष्ट्रभाषा वह भाषा होती है, जो देश की सबसे मुख्य भाषा होती है, उसे देश के अधिकांश व्यक्ति बोलते हैं। उस भाषा को किसी पूरे देश में सम्मान प्राप्त होता है और वह भाषा देश की भाषा के पहचान के तौर पर मानी जाती है। ऐसी भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है । ये भाषा आधिकारिक रूप से सरकार द्वारा राष्ट्रभाषा घोषित कर दी जाती है। राजभाषा वह भाषा होती है जो सरकार द्वारा सरकारी कामकाज का कार्य करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। किसी भी देश की सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से सरकारी कामकाज के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा ही राजभाषा कहलाती है। राजभाषा के लिए आवश्यक नही कि वह राष्ट्रभाषा हो। हालाँकि अधिकांश देशों की राष्ट्रभाषा ही राजभाषा होती है। संपर्क भाषा वह भाषा होती है, जिसे सामान्य वर्ग से संबंधित व्यक्ति एक दूसरे से बातचीत के लिए प्रयोग में लाते हैं। संपर्क भाषा एक भाषा वाले व्यक्ति का दूसरी भाषा वाले व्यक्ति से संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संपर्क भाषा भाषा अलग-अलग क्षेत्रों के बीच संपर्क का कार्य करती है।


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भाषा किसे कहते हैं? भाषा के कितने रूप है? लिखित भाषा किसे कहते हैं? मौखिक भाषा किसे कहते हैं?

मुहावरे का भाषा पर क्या प्रभाव पड़ता है​?

इतिहासकार से क्या अभिप्राय होता है? विस्तार से बताएं।

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इतिहासकार से अभिप्राय उस व्यक्ति से होता है, जो इतिहास के अध्ययन में विशेषज्ञता रखता है। अपनी विशेषज्ञता के आधार पर तथा इतिहास के संबंध में प्राप्त तथ्यों के आधार पर वह इतिहास संबंधी पुस्तकों और लेखों की रचना करता है। इतिहासकार बनने के लिए व्यक्ति को वर्षों तक इतिहास का अध्ययन करना पड़ता है तथा प्रमाणिक तथ्यों को खोजना पड़ता है। इन प्रमाणिक तथ्यों तथा अतीत के गहन अध्ययन के आधार पर इतिहासकार पिछले इतिहास के बारे में लिखता है। इतिहासकार बनने के लिए इतिहास के संबंध में रुचि होनी चाहिए तथा अतीत को समझने की बौद्धिक क्षमता होनी चाहिए। इसके अलावा तथ्यों की प्रमाणिकता की पुष्टि करने का कौशल भी एक इतिहासकार के लिए आवश्यक है। यह सब गुण के होने पर ही वह सही और सटीक इतिहास लिख सकता है। हम सबने अपनी पाठ्य पुस्तकों में जो इतिहास पढ़ा है, वह किसी ने किसी इतिहासकार द्वारा ही लिखा गया है। इतिहासकार कोई एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह हो सकता है।


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तानाशाही और राजशाही (राजतंत्र) में क्या अंतर है?

भारत विश्व में शांति कैसे स्थापित कर सकता है?

कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल। आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।। अर्थ बताएं?

कबीर सुमिरन सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल​।।

अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि हरि यानि भगवान के नाम का स्मरण करना ही इस संसार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। भगवान के नाम के स्मरण करने के अलावा अन्य सभी मार्ग कष्टों भरे हैं। यही संसारिक एक दुखों का कारण हैं। कवि ने भगवान के नाम के स्मरण के अतिरिक्त शुरू से लेकर आखिर तक चलकर सब जांच-परख लिया है और उन्होंने पाया है कि यह सभी रास्ते दुख भरे हैं। ये सभी सांसारिक रास्ते दुखों का कारण है, इसलिए ईश्वर के नाम के स्मरण करना ही सबसे श्रेष्ठ कार्य है। यही सभी दुखों से मुक्ति दिलाएगा। कबीर के कहने का तात्पर्य यह है कि साधना और भक्ति का मार्ग ही सर्वोत्तम उपाय है, जिससे संसार के दुखों से छुटकारा मिल सकता है। सांसारिक दुखों और कष्टों से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर की भक्ति के पथ पर चलना ही सर्वोत्तम उपाय है, यह बात उन्होंने जांच परख कर कही है।


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माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।। भावार्थ लिखिए।

कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।। हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा। त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा। जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी। कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।। आँधी पीछे जो जल बुठा, प्रेम हरि जन भींनाँ। कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं।

हमारा देश विकसित है या विकासशील?

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हमारा देश विकासशील देश है। हमारा देश भारत एक विकासशील देश है, क्योंकि यह विकसित देश के मानकों पर अभी खरा नहीं उतर पाया है। किसी भी विकसित देश के कुछ निश्चित पैमाने होते हैं। वहाँ पर जीवन प्रत्याशा कितनी है? प्रति व्यक्ति आय कितनी है? देश की अर्थव्यवस्था कैसी है? वहाँ के लोगों का जीवन स्तर कैसा है? देश की आधारभूत संरचना कैसी है? जन सुविधा की सारी प्रणाली कैसी है? इन सभी मानकों के आधार पर किसी देश को विकसित देश माना जाता है। हमारा देश इस विषय में अभी काफी पीछे है और विकासशील है यानी विकास की ओर अग्रसर है। वह अभी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं है। भारत में प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की प्रति व्यक्ति आय के जितनी नहीं है। भले ही भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत अभी भी विकसित देशों के संमकक्ष नहीं है। इसलिए हमारा देश विकसित देश नहीं बल्कि विकासशील देश है।


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“शिक्षा में राजनीति का बढ़ता दवाब ” विषय के पक्ष और विपक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

गठबंधन की राजनीति क्या है? गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव क्या हैं? विस्तार से लिखिए।

अपने क्षेत्र के सरकारी अस्पताल की सुविधाओं को सुधारने के लिए अपने क्षेत्र के विधायक को पत्र लिखें।

औपचारिक पत्र

सरकारी अस्पताल की सुविधा सुधारने के लिए विधायक को पत्र

दिनाँक : 1 जून 2024

 

सेवा में,
श्रीमान विधायक महोदय,
रूपनगर विधानसभा क्षेत्र,
रूप नगर (उत्तम प्रदेश)

विषय : सरकारी अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं को सुधारने के संबंध में

 

माननीय विधायक महोदय,

मेरा नाम सुमित आहूजा है। मैं रूपनगर की जनता विहार कॉलोनी का निवासी हूँ। हमारी जनता विहार कॉलोनी के पास एक बड़ा सरकारी अस्पताल है, जो पूरे रूप नगर का एकमात्र सरकारी अस्पताल है। इस सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के नाम पर बेहद कम सुविधाएं हैं। कहने को तो यह पूरे रूप नगर का सरकारी अस्पताल है, लेकिन यहां पर सुविधाओं की संख्या नाम मात्र की है। पूरे रुपनगर शहर से मरीज इसी अस्पताल में इलाज कराने के लिए आते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में उन्हें पर्याप्त इलाज नहीं मिल पाता। डॉक्टर और अस्पताल स्टाफ को शिकायत करने पर वह सुविधाओं के अभाव का हवाला देखकर हाथ खड़े कर लेते हैं।

पर्याप्त इलाज न मिल पाने के कारण हमारे रुपनगर शहर के लोगों को पास चंदनपुर शहर के सरकारी अस्पताल में जाना पड़ता है अथवा किसी निजी अस्पताल में महंगा इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

विधायक जी, आप हमारे क्षेत्र के विधायक हैं। हमारे क्षेत्र के विकास की आशा में ही हमने आपको वोट दिया  था। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि हमारे रूपनगर के एकमात्र सरकारी अस्पताल में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए प्रयास करें और स्वास्थ्य विभाग को इस संबंध में निर्देश दें ताकि हम सभी निवासी अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठा सके और हमें अपनी बीमारियों के उपचार के लिए दूर किसी अस्पताल में नहीं भटकना पड़े।

आशा है आप मेरे अनुरोध पत्र पर विचार करेंगे और सरकारी अस्पताल में सुविधाओं को बढ़ाने हेतु शीघ्र ही सार्थक कदम उठाएंगे।

धन्यवाद,

भवदीय,
सुमित आहूजा,
ए-54, जनता विहार कॉलोनी,
रूपनगर (उत्तम प्रदेश)


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समाज में व्याप्त आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जनसत्ता के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।

इससे पहले अमित को मीनू कहाँ मिली थी? क्या उस दिन मीनू से उसकी बात हो सकी थी? यदि नहीं, तो क्यों?

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इससे पहले अमित को मीनू तब मिली थी जब अमित अपने माता-पिता के साथ मीनू को देखने आया था और विवाह की बात करने आया था। मीनू को देखते ही अमित ने उसे पहली नजर में ही पसंद कर लिया था। अमित को मीनू की सादगी और गुण बेहद पसंद आए। वह एक ऐसी ही लड़की चाहता था जो उसके माता-पिता के साथ ठीक प्रकार से रह सके और उनका सम्मान कर सके। उस दिन अमित से मीनू की बात नहीं हो सकी क्योंकि वे लोग विवाह का संबंध तय करने आए थे। अमित एवं मीनू के माता-पिता ही आपस में बात करते रहे थे। अमित के माता-पिता मीनू के देखकर विवाह के बारे में बाद में जवाब देने की बात कहकर वहाँ से चले आए। बाद में अमित के माता-पिता ने मीनू के साथ विवाह करने से मना कर दिया, क्योंकि उन्हें अधिक दहेज लाने वाली दूसरी लड़की मिल रही थी।

संदर्भ पाठ :

नया रास्ता – सुषमा अग्रवाल


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कैलाश गौतम की कविता ‘नौरंगिया’ की व्याख्या कीजिए।

आप पावनी है। आप छुट्टियों में गुजरात घूमने का कार्यक्रम बना रही हैं। सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखना चाहती है। आपने जो कार्यक्रम बनाया है, उसमें क्या सुधार हो सकता है। अपने चचेरे भाई को लगभग 100 शब्दो में पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

चचेरे भाई को छुट्टियों में गुजरात यात्रा संबंधी कार्यक्रम के बारे में पत्र

 

दिनांक : 23 मई 2024

 

प्रिय भाई प्रवीन,
कैसे हो?

हम लोग अगले हफ्ते गुजरात घूमने जा रहे हैं और वहाँ पर संसार की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखेंगे। हमारे इस कार्यक्रम में अब हमें कुछ बदलाव करना होगा। इसी बारे में मैं तुम्हे यह पत्र लिख रही हूँ। अब कार्यक्रम में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है ताकि हम छुट्टियों का पूरा आनंद ले सकें।

हम लोग अगले हफ्ते ही गुजरात घूमने जाने वाले हैं और वहाँ पर अहमदाबाद के प्रमुख स्थलों का दर्शन करेंगे तथा सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा भी देखेंगे। इसके अलावा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में भी जाएंगे। हमारे कार्यक्रम में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ गई है। हमारी गुजरात के लिए ट्रेन का जो टिकट सुबह दिल्ली से अहमदाबाद का है, वह रात में अहमदाबाद पहुंचेगी। इस तरह अगले दिन ही हमें अहमदाबाद घूमने को मिल पाएगा।

मैंने एक दूसरी ट्रेन के बारे में पता किया है जो दिल्ली से रात में चलती है और सुबह अहमदाबाद पहुंचा देगी। उस ट्रेन में अभी टिकट उपलब्ध हैं। मैंने टिकट बुक करा दिए हैं। हम रात में ट्रेन में बैठकर अगले दिन सुबह अहमदाबाद पहुंच जाएंगे और सुबह ही फ्रेश होकर अहमदाबाद घूम सकते हैं। हम लोग रात में ट्रेन में सो लेंगे जिससे हमें आराम भी मिल जाएगा। ऐसा करने से हमे एक दिन अतिरिक्त मिल जाएगा और हमारे समय की बचत होगी। इस अतिरिक्त एक दिन का उपयोग हम घूमने में कर सकते हैं। इसीलिए मैं तुम्हें यह पत्र लिख रही हूँ।

मैंने इस टिकट बुक कर दिए हैं, जो पुराने टिकट हैं, वह तुम्हारे पास हैं। तुम उन्हें कैंसिल करवा देना। टिकट आज ही कैंसिल करवा देना ताकि पूरे पैसे रिटर्न मिल जाए।

अब यात्रा वाले दिन सुबह दिल्ली स्टेशन रेलवे स्टेशन पर मिलेंगे। ट्रेन का समय सुबह 6:30 बजे है। मैने टिकट की फोटोकापी पत्र के साथ लगा दी है।

तुम्हारी बहन
पावनी


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आने वाली वार्षिक परीक्षा की तैयारी के लिए अपनी छोटी बहन को प्रेरक पत्र लिखिए​।

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आजकल महँगाई बढ़ती ही जा रही है। इससे परेशान दो महिलाओं की बातचीत संवाद के रूप में लिखिए।

संवाद

आजकल बढ़ती हुई महँगाई से परेशान दो महिलाओं की बातचीत

 

महिला 1 क्या हुआ रमा, इतनी परेशान होकर क्यों बैठी हो ?

महिला 2 ⦂ परेशानी की बात है, सोनू की मम्मी, आए दिन महँगाई बढ़ती ही जा रही है।​

महिला 1 ⦂ बात तो सही कह रही हो, आज के समय में सब कुछ महंगा हो रहा है।​ बचत तो कुछ हो नहीं पाती है।​

महिला 2 ⦂ आजकल तो कुछ नहीं बचा पाते है, सब रोज़ के घर खर्च में निकल जाता है।​

महिला 1 ⦂ सरकार ने बहुत महँगाई कर रखी है और नौकरियां दे नहीं रहे है।​

महिला 2 ⦂ मुझे तो समझ नहीं आता कि बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी आगे ? महंगाई का यही हाल चलता रहा तो, हम सब का भविष्य खराब है।​

महिला 1 ⦂ मुझे हर दिन बहुत चिन्ता होती है कि कैसे सब कुछ होगा ।​

महिला 2 ⦂ सब कुछ महंगा हो रहा है, सब्जी से लेकर कपड़े, घर, पेट्रोल सब के दम बढ़ते ही जा रहे है।​

महिला 1 ⦂ सरकार भी कुछ नहीं करने वाली है, अब ऐसे ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।​


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पिकनिक की योजना बनाते हुए भाई-बहन के बीच संवाद लिखिए।

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अव्यय क्या हैं? अव्यय की परिभाषा, अव्यय के भेद जानें। (हिंदी व्याकरण)

अव्यय क्या हैं? अव्यय की परिभाषा, अव्यय के भेद

भूमिका

हिंदी व्याकरण में अव्यय का अलग महत्व है। अव्यय अविकारी शब्दों की श्रेणी में आते हैं, जिनका हिंदी व्याकरण में प्रयोग बहुत ही सामान्य है। अव्यय क्या होते हैं? अव्यय की क्या परिभाषा है? अव्यय को कैसे पहचाना जा सकता है? अव्यय के कितने भेद होते हैं? अव्यय के क्या उदाहरण हैं? आइए समझते हैं…

अव्यय की परिभाषा

अव्यय से तात्पर्य उन अविकारी शब्दों से होता है, जिनमें वचन, लिंग, कारक, काल आदि की दृष्टि से कोई भी परिवर्तन ना होता हो। अर्थात अविकारी शब्द वह शब्द कहलाते हैं, जो ना तो वचन की दृष्टि से बदलते हैं, ना ही कारक की दृष्टि से बदलते हैं, ना ही उनमें काल का परिवर्तन किया जा सकता है और ना ही उनमें में लिंग की दृष्टि से परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे

अव्यय के भेद

अव्यय के पाँच भेद होते हैं, जोकि इस इस प्रकार हैं…

  • क्रिया-विशेषण अव्यय
  • संबंधबोधक अव्यय
  • समुच्चयबोधक अव्यय
  • विस्मयादिबोधक अव्यय
  • निपात अव्यय

अव्यय के भेदों की व्याख्या

अव्यय के इन पाँच भेदों की व्याख्या इस प्रकार हैं..

क्रिया-विशेषण अव्यय

क्रियाविशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो किसी क्रिया की विशेषता को प्रदर्शित करते हैं। जैसे वह बालक बड़ा तेज से दौड़ रहा है। तुम थोड़ा कम झूठ बोला करो। क्रिया-विशेषण अव्यय के चार भेद होते हैं।

  • कालवाचक क्रिया-विशेषण
  • स्थानवाचक क्रिया-विशेषण
  • रीतिवाचक क्रिया-विशेषण
  • परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

कालवाचक क्रिया-विशेषण

कालवाचक क्रिया-विशेषण से तात्पर्य होते हैं, जो समय अथवा काल को प्रदर्शित करते हैं। कालवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।

जैसे… सुबह, शाम, कभी-कभी, प्रतिदिन, परसों, आज, कल, अब, कब आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

राधा प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठ जाती है।
राहुल कल घूमने जा रहा है।
तुम मेरे घर खाना खाने कब आओगे?
आजकल कम आयु में हृदयाघात मामले बहुत बढ़ते जा रहे हैं।

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय

स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो किसी स्थान विशेष का बोध कराते हैं।

जैसे… यहाँ, वहाँ, कहाँ, इधर-उधर, ऊपर-नीचे, अंदर, बाहर आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

मोहन यहाँ पर रहता है।
इतनी भरी गर्मी में तुम कहाँ जा रहे हो?
अंदर जाकर मेरे लिए पानी ले आओ।
इधर-उधर मत घूमो।

रीतिवाचक क्रिया-विशेषण 

रीतिवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन क्रिया विशेषण से होता है, जो क्रिया करने की विधि का बोध कराते हैं। अर्थात क्रिया किस तरह से संपन्न की गई, इस बात का बोध रीतिवाचक क्रिया विशेषण अव्यय कराते हैं।

जैसे… धीरे-धीरे, ठीक-ठाक, ध्यानपूर्वक, तेज, हौले-हौले, जल्दी-जल्दी इत्यादि

उदाहरण हेतु वाक्य

धीरे-धीरे चलो नहीं तो गिर जाओगे।
रमेश ने अपने पिता के पास का बैठकर ध्यानपूर्वक रामायण सुनता है।
तुम यहाँ पर कैसे आए?

परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

परिमाण क्रिया-विशेषण अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो कि किसी क्रिया करने की मात्रा, परिमाण या नाप-तोल आदि का बोध कराते हैं।

जैसे… ज्यादा. थोड़ा, जरा, अधिक, बिल्कुल, जरा सा,

उदाहरण हेतु वाक्य

झूठ कम बोला करो, नुकसानदायक होगा।
तुम बहुत खाना खाने लगे हो इसीलिए मोटे होते जा रहे हो।
बहुत अधिक नही बोलना चाहिए।
यदि तुम्हारे पास थोड़ा सा समय हो तो तुम्हे कुछ कहूँ।

संबंधबोधक अव्यय

संबंधबोधक अव्यय से तात्पर्य उन शब्दों से होता है, जो किसी संज्ञा व सर्वनाम के तुरंत बाद आकर उस संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से कराते हैं। ऐसे शब्दों को संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे… पीछे से, दूर से, सामने, की ओर, बाहर, तुल्य, सदृश आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

मेरे घर के पीछे एक विशाल मैदान है।
मुंबई यहाँ से दूर है।
इंडिया गेट के सामने कर्तव्य पथ है।
तुम जिसे ढूंढ रहे हो गए वह बाजार की ओर गया है।

समुच्चयबोधक अव्यय

समुच्चयबोधक अव्यय से तात्पर्य उन अव्यय से होता है, जो दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्य को आपस में जोड़ने का कार्य करते हैं अथवा दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्य को अलग होने का कार्य करते हैं। ऐसे अव्यय को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।

जैसे… और, एवं, तथा, या, तथा, किंतु, परंतु, इसलिए, लेकिन, वरना आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

माता और पिता दोनों पूजनीय होते हैं।
मैं जल्दी घर आ गया क्योंकि मेरे सर में दर्द हो रहा था।
तुम खूब मेहनत करो ताकि तुम अपनी कक्षा में प्रथम आ सको।
वह खूब तेज दौरा फिर भी दौड़ में चौथे स्थान पर ही रहा।

विस्मयादिबोधक अव्यय

विस्मयादिबोधक अव्यय से होता है, जो मन के उद्गारों को व्यक्त करने का कार्य करते हैं। ऐसे भाव जो हृदय के भावों से संबंधित हों, विस्मयादिबोधक अव्यय के माध्यम से व्यक्त किए जाते हैं। ये उद्गार आश्चर्य, हर्ष, विषाद, सुख, दुख, हैरानी, शोक, आदि भावों से संबंधित होते है। ऐसे शब्दों के साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का भी प्रयोग किया जाता है।

जैसे… आह, वाह, ओह, हाय, हे भगवान, शाबास आदि।

उदाहरण हेतु वाक्य

वाह! कितनी सुंदर बिल्ली है।
वाह! खाना खाकर मजा आ गया।
शाबाश! तुमने अच्छा कार्य किया।
हाय! मेरे साथ यह क्या हो गया।

निपात अव्यय

निपात अव्यय से तात्पर्य ऐसे अव्यय से होता है, जो किसी शब्द के तुरंत बाद लग कर उस शब्द के अर्थ में एक विशेष प्रकार का बल या भाव पैदा करते हैं। निपात अव्यय किसी शब्द के अर्थ के वजन को बढ़ा देते हैं और उसके भाव उसके अर्थ को गहरा कर देते हैं। निपात शब्द के लिए सहायक का कार्य करते हैं।

जैसे भी… ही, तक, काश, जी, हाँजी आदि

उदाहरण हेतु वाक्य

तुम्हे मेरे घर आना ही पड़ेगा।
कल राजेश भी हमारे साथ घूमने जायेगा।
भगत सिंह को बच्चा तक जानता है।
आखिरकार राजू को बोलना ही पड़ा।


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यदि बस जीवित प्राणी होती और वह बोल सकती तो वह अपना कष्ट किन शब्दों में व्यक्त करती?​

यदि बस जीवित प्राणी होती और बोल सकती होती तो..

यदि बस जीवित प्राणी होती और वह बोल सकती होती तो वह अपनी पीड़ा बोलकर व्यक्त कर सकती थी। अक्सर बसों में उसकी क्षमता से अधिक यात्री भर दिए जाते हैं। इस तरह पर बस पर अतिरिक्त भार पड़ता है बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि मेरी जितनी क्षमता नहीं है, उससे ज्यादा यात्री मेरे अंदर समा जाते हैं। तब मुझे चलते समय कितनी अधिक परिश्रम करना पड़ता है, कितना अतिरिक्त श्रम लगाना पड़ता है, उसकी पीड़ा मैं ही जानती हूँ।

बस यह भी बोलती कि कुछ ड्राइवर अक्सर मुझे अंधाधुंध स्पीड में दौड़ते हैं, जिस कारण मुझे बहुत अधिक तेज दौड़ना पड़ता है और मेरे कल-पुर्जों को नुकसान पहुंचने का भी खतरा रहता है और दुर्घटना होने की आशंका रहती है।

बस यह भी बोल सकती थी कि जब भी कहीं पर आंदोलन आदि होते हैं तो अक्सर उपद्रवी मुझको ही निशाना बनाते हैं और मेरे शीशे आदि को तोड़ते हैं। मुझ पर पत्थरबाजी करते हैं। इन सब के गुस्से का शिकार मैं ही बनती हूँ। यदि बस बोल सकती होती तो बस ड्राइवर और यात्रियों से कहती कि आप लोग मेरे अंदर उतने लोग ही सवारी करो, जितनी मेरी क्षमता है। मेरी क्षमता से अधिक मुझ पर भार लादने की कोशिश मत करो।

यदि बस बोलती होती तो वह आंदोलनकारियों से कहती की तुम अपना गुस्सा मुझ पर मत उतारा करो। जिनके खिलाफ आप लोग आंदोलन कर रहे हो उस पर अपना गुस्सा उतारो मेरा जिस बात से कोई संबंध नहीं उसके लिए अपना गुस्सा मुझ पर उतर कर मेरा नुकसान क्यों करते हो।

बस यदि बोल सकती होती तो वह कहती कि अक्सर बस के मालिक ड्राइवर आदि उमसें आवश्यकता से अधिक सवारी और समान लेकर चलते हैं और मेंटेनेंस नहीं करते, जिससे बस की हालत खराब होती जाती है और वह समय से पहले ही खराब हो जाती है।

यदि बस बोल सकती तो बस यह कहती कि मेरी भी बराबर देखभाल करो और मुझे उतना ही प्रयोग में लो जितना उचित हो। आवश्यकता से अधिक मुझे प्रयोग मिलकर मेरे कल-पुर्जों की हालत को खराब मत करो।

यदि बस बोल सकी होती तो सभी यात्रियों से कहती कि मैं आपको आपकी मंजिल तक पहुँचाती हूँ। मैं बारिश, धूप ,सर्दी-गर्मी का परवाह न करती हुई काम करती रहती हूँ। मेरे अंदर बैठकर आप सब आराम से सुरक्षित यात्रा करते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचते हो। यदि आप अपनी सफलता यात्रा के लिए थोड़ी विनम्रता दिखाते हुए मुझे धन्यवाद दिया करो तो इससे मुझे काम करते रहने का उत्साह मिलता है।

 


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सब तुम्हें ‘स्वावलंबी’ कहें, इसके लिए तुम कौन-कौन से कार्य स्वयं करोगे?

कचरा बीनने वाले से हुए संवाद को लिखिए।

संवाद लेखन

कचरा बीनने वाले से संवाद

 

गृहिणी ⦂ भइया मैं एक स्वयंसेवी संस्था की सदस्य हूँ। मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ।

कचरा बीनने वाला ⦂ पूछिए बहनजी।

गृहिणी ⦂ भइया, तुम्हारी आमदनी का मुख्य स्रोत क्या है?

कचरा बीनने वाला ⦂  बहनजी, आपके घर से और कॉलोनी से घरों से जो भी कचरा जमा होता है, वही मेरी आमदनी का जरिया बनता है।

गृहिणी ⦂ लेकिन इस कचरे से कैसे अपना पेट पालते हो?

कचरा बीनने वाला ⦂ बहनजी, हम इस कचरे के ढेर से प्लास्टिक, धातुएं तथा दूसरी तरह के सामान को छांटतें हैं और फिर उन्हें उन कारखानों में बेचते हैं जहां पर इन्हें रिसाइकल करके नई चीज़ें बनाई जाती हैं।

गृहिणी ⦂ तो इससे तुम्हें कितनी आमदनी होती है?

कचरा बीनने वाला ⦂ बहुत कम, मैं और मेरी बीवी मिलकर यह काम करते हैं और शाम तक 400 से 500 तक कमा लेते है।

गृहिणी ⦂ और कारखाने वाले इससे कितना कमाते है ।

कचरा बीनने वाला ⦂ एक दिन के हमारे दिये गए कचरे से तकरीबन 10000 से 15000 तक कमाते है।

गृहिणी ⦂ तो फिर तो यह बेइंसाफी हुई आपके साथ।

कचरा बीनने वाला ⦂ नहीं मैडम जी, हमारे पास तो इतना पैसा है नहीं कि हम खुद कारोबार शुरू करें, यह तो शुक्र है कि वह हमसे कचरा लेकर हमें कुछ पैसे दे देते हैं।

गृहिणी ⦂ लेकिन आप तो जगह-जगह से कचरा उठाते हो और उसमें जैविक कचरा भी होता है और क्या उससे आप के जीवन को खतरा नहीं है ?

कचरा बीनने वाला ⦂ वह हम जानते हैं मैडम, लेकिन क्या करें, नहीं काम करेंगे तो खाएँगे क्या ?

गृहिणी ⦂ लेकिन भाई, इससे कई लोगों की जान जा चुकी है अगर तुम्हें कुछ हो गया तो तुम्हारे बच्चे तो अनाथ हो जाएंगे, यह नहीं सोचा कभी।

कचरा बीनने वाला ⦂ बहुत बार सोचा मैडम, लेकिन उन्हें भूखा भी नहीं देखा जाता है।

गृहिणी ⦂ कुछ और काम भी तो कर सकते हो ।

कचरा बीनने वाला ⦂ कैसे मैडम, कुछ तो पैसा चाहिए किसी भी तरह का काम करने को।

गृहिणी ⦂ मैं एक स्वयं सेवी संस्था से जुड़ी हूँ, तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ ।

कचरा बीनने वाला ⦂ आपका जीवन भर आभारी रहूँगा, क्या करना होगा मुझे ।

गृहिणी ⦂ बस कल से शहर में स्थित रोजगार कार्यालय में आ जाना, मैं तुम्हें कुछ काम दिला दूंगी ।

कचरा बीनने वाला ⦂ ठीक है मैडम, लेकिन काम क्या करना होगा ।

गृहिणी ⦂ हथकरघा कारख़ाना में दरियाँ बनाने का काम है और दिन के तुम दोनों को 1000 से 1200 रुपए मिल जाएंगे और इस गंदगी और बीमारी से भी दूर हो जाओगे ।

कचरा बीनने वाला ⦂ ठीक है मैडम, मैं कल ही बीवी के साथ पहुँच जाऊँगा ।

गृहिणी ⦂ सही है, लेकिन इसके बदले मेरा एक काम करना होगा ।

कचरा बीनने वाला ⦂ (थोड़ा सहम कर) क्या काम मैडम जी ?

गृहिणी ⦂ जितने भी और कचरा बीनने वाले हैं उनको भी इस बारे में बताओ और उनसे कहो कि इस गंदे काम के कारण आप लोगों की जान को बहुत खतरा है इसलिए यह काम छोड़ कर, हमारे यहाँ आओ और सुख से जीवन व्यतीत करो ।

कचरा बीनने वाला ⦂ जी मैडम, मैं अपने सब जानने वालों को इस बारे में बताऊंगा ताकि उनका जीवन भी इस संक्रमण से बच सके और वह एक स्वस्थ जीवन जी सके, बहुत-बहुत धन्यवाद ।


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कुब्जा’ नामक मोरनी आने से जालीघर का वातावरण क्षुब्ध हो उठा था। कुब्जा एक मोरनी थी, अपने नाम के अनुरूप ही कुब्जा थी। वह ईर्ष्यालु स्वभाव की थी। वह सभी से लड़ती रहती थी, इसी कारण उसकी जालीघर के अन्य पशु-पक्षियों से नहीं बनती थी। वह दूसरी मोjनी राधा से ईर्ष्या करती थी और हमेशा उसको चोंच मारकर घायल कर देती थी। वह नीलकंठ मोर से प्रेम करती थी और इसी कारण वह राधा मोरनी से ईर्ष्या करती थी क्योंकि नीलकंठ और राधा मोर-मोरनी में आपस में प्रेम था।

‘नीलकंठ’ कहानी जोकि महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई है, उसमें महादेवी वर्मा ने एक मोर नीलकंठ और राधा एवं कुब्जा नाम की दो मोरनियों को अपने घर में पाला था। नीलकंठ मोर की हो आधार बनाकर उन्होने ‘नीलकंठ’ कहानी की रचना की है। महादेवी वर्मा का पशु पक्षियों से बेहद लगाव रहा है। उन्होंने अपने घर में अनेक पशु पक्षी पाल रखे थे। अलग-अलग पशु पक्षियों के संदर्भ में उन्होंने अनेक संस्मरणात्मक कहानियाँ लिखी है, जिनमें नीलू, गिल्लू, गौरा आदि के नाम प्रमुख हैं।

संदर्भ पाठ

‘नीलकंठ’ लेखिका – महादेवी वर्मा (कक्षा – 7, पाठ -15)


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मेरी प्रिय ऋतु – वसंत (निबंध)

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निबंध

मेरी प्रिय ऋतु – वसंत

 

मेरी प्रिय ऋतु – वसंत : भारत ऋतुओं का देश है। यहाँ पर सबसे अधिक ऋतुएं पाईं जाती हैं। हर ऋतु का अपना अलग महत्व है। हर किसी को कोई न कोई ऋतु विशेष रूप से प्रिय होती है। मेरी प्रिय ऋतु वसंत है। इसलिए मेरी प्रिय ऋतु वसंत पर निबंध प्रस्तुत है।

प्रस्तावना

भारत भूमि पर विधाता की विशेष कृपा दृष्टि है , क्योंकि यहाँ पर समय की गति के साथ ऋतुओं का चक्र घूमता रहता है । इससे यहाँ प्राकृतिक परिवेश में निरंतर परिवर्तन एवं गतिशीलता दिखाई देती है । सामाजिक चेतना, भौगोलिक सुषमा एवं पर्यावरणीय विकास की दृष्टि से भारत में ऋतु परिवर्तन का अनेक तरह से काफी महत्व माना जाता है। इसमें भी वसंत ऋतु का अपना विशिष्ट सौन्दर्य सभी को आनन्द दायी लगता है। आइए जानते है वसंत ऋतु के बारे में।

भारत में ऋतुएँ

हमारे भारत में एक वर्ष में छः ऋतुएँ होती है वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत । प्रत्येक ऋतु का समय दो माह (महीने ) का होता है। जब सूर्य कर्क रेखा पर होता है, तब ग्रीष्म ऋतु पड़ती है। इस ऋतु में भयानक गर्मी और तपन रहती है । फिर सावन भादों में वर्षा ऋतु आती है और चारों ओर जल वर्षण होता रहता हैं। सूर्य विषुवत रेखा पर रहता है तब शरद् ऋतु आती है, दीपावली के बाद शिशिर ऋतु प्रारम्भ होती है। इसमें कड़ाके की ठंड पड़ती है तथा पर्वतीय स्थलों पर बर्फ व पाला गिरता है। इसके बाद हेमंत ऋतु आती है, इसमें वृक्षों लताओं के पत्ते सूखकर झड़ने लगते है। सूर्य वापिस विषुवत रेखा पर पहुँचते ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। इस प्रकार भारत में वर्ष भर में छः ऋतुएँ बदल जाती हैं।

ऋतुराज कहलाने का कारण

वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं । प्रत्येक ऋतु का अपना अलग महत्व है परन्तु वसंत ऋतु का विशेष महत्व हैं । इस ऋतु में समस्त प्रकृति में सौन्दर्य एवं उन्माद छा जाता हैं । धरती का नया रूप सज जाता है , प्रकृति अपना श्रृंगार सा करती है तथा समस्त प्राणियों के ह्रदय में उमंग , उत्साह एवं मादकता से भर जाते हैं । इस ऋतु का आरम्भ माघ शुक्ल पंचमी से होता है , होली का त्यौहार इसी ऋतु में पड़ता है । नए संवत्सर का आरम्भ भी इसी से माना जाता हैं ।  इन सब कारणों से वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा जाता हैं । कवियों एवं साहित्यकारों ने इस ऋतु की अनेकश प्रशंसा की हैं ।

प्राकृतिक वातावरण

वसंत ऋतु में सभी पेड़ पौधे नयें पत्तों, कोपलों, कलियों एवं पुष्पों से लद जाते हैं । शीतल, मंद एवं सुगन्धित हवा चलती है । वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं ।  न गर्मी और न सर्दी रहती है । कोयल कूकने एवं भौरें गुंजार करने लगते है । होली, फाग एवं गणगौर का उत्सव किशोर किशोरियों को उमंगित करता है । सारा ही प्राकृतिक वातावरण अतीव सुंदर , मनमोहक एवं मादक बन जाता हैं | कवियों के कंठ से श्रृंगार रस झरने लगता है। दूर-दूर तक सौन्दर्य एवं पीताभ सुषमा फ़ैल जाती है । रात्रि का परिवेश भी अतीव मनोरम लगता हैं ।

भागवत गीता में वसंत

वसंत को ऋतुओं का राजा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति यानी उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा बढ़ जाती है । यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है । वे सारे देवताओं और परम शक्तियों में सबसे ऊपर हैं वैसे ही बसंत ऋतु भी सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है।

वसंत की उत्पत्ति के संबंध में कथा अंधकासुर नाम के राक्षस का वध सिर्फ भगवान शंकर के पुत्र से ही संभव था । तो शिवपुत्र कैसे उत्पन्न हो तब इसके लिए कामदेवम के कहने पर ब्रह्माजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था । ब्रह्मा जी ने शक्ति की स्तुति की उसके बाद देवी सरस्वती प्रकट हुई । ब्रह्मा और देवी सरस्वती ने सृष्टि सृजन किया । इसलिए वसंत में नए पेड़-पौधे उगते हैं । उनमें लगने वाले फूलों में कामदेव को स्थान दिया गया।

कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला , आकर्षक नैन – नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला , मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे ऐसे गुणों से भरपूर बताया है । फूलों का मौसम है वसंत वसंत ऋतु को फूलों का मौसम कहा गया है । इस मौसम के न तो अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक ठण्ड लिहाजा फूल काफी दिनों तक बने रहते है । इन फूलों की अधिक देखभाल नहीं करनी पड़ती है रोपने के बाद समय – समय पर उसकी सिंचाई जरूरी है । गोबर की खाद इनके लिए काफी है।

उपसंहार

भारत में वैसे सभी ऋतुओं का महत्व है, सभी उपयोगी है और समय परिवर्तन के साथ प्राकृतिक परिवेश की शोभा बढ़ाती है । परन्तु सभी ऋतुओं में वसंत का सौन्दर्य सर्वोपरि रहता है । इसी से इसे ऋतुराज कहा जाता है । यह ऋतु कवियों , प्रकृति प्रेमियों एवं भावुकजनों को अतिशय प्रिय लगती है ।

वसंत ऋतु मानव को यह संदेश देती हैं कि दुःख के बाद एक दिन सुख का आगमन भी होता है । जिस तरह परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है । जिस तरह शिशिर ऋतु के बाद वसंत की मादकता का अपना एक अलग ही आनन्द होता है , उसी प्रकार जीवन में भी दुखों के बाद सुख का आनन्द दुगुना हो जाता हैं ।


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राजनीति का अपराधीकरण (निबंध)

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निबंध

राजनीति का अपराधीकरण

 

राजनीति का अपराधीकरण : राजनीति में अपराधीकरण आज की एक ज्वलंत समस्या बन गई है। इस कारण राजनीति बेहद दूषित हो चली है। आज की राजनीति आज जनता की हितों में न होकर नेताओं द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति का माध्यम बन कर रह गई है और अपराधियों का अखाड़ा बनकर रह गई है। राजनीति के अपराधीकरण पर निबंध प्रस्तुत है…

प्रस्तावना

राजनीति का अपराधीकरण आज के समय में एक सामान्य बात हो कर रह गई है। आज अपराधियों के लिए राजनीति सबसे सुरक्षित जगह बन गई है। राजनीति एक समय में राजनीति को सेवा का क्षेत्र माना जाता था और इस क्षेत्र में केवल वही लोग आते थे, जिनके मन में समाज के प्रति सेवा की भावना होती थी। जिनका चरित्र उज्जवल होता था और जो सच्चे मन से जनता की सेवा करना चाहते थे, वही लोग राजनीति में आते थे।

भारत की आजादी के बाद कुछ समय तक यही स्थिति रही उसके बाद राजनीति में अपराधी लोगों का प्रवेश होने लगा और राजनीति का स्वरूप बिगड़ता चला गया। बाहुबल, धनबल आदि का प्रयोग राजनीति में धड़ल्ले से होने लगा। इसी कारण राजनीति में ऐसे गलत लोगों का प्रवेश हो चुका है, जिससे देश की विकास प्रभावित हो रहा है। ये लोग ढेर सारा धन कमाने के लिए ही राजनीति में आते हैं। जनता की सेवा करने से उनका कोई लेना देना नहीं होता।

राजनीति का अपराधीकरण

राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या अब बेहद चिंतनीय विषय बनती जा रही है। आज ऐसे सांसदों या विधायकों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, जिनके ऊपर किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज होता है। आज ऐसा कोई भी राजनीतिक दल नहीं रह गया है, जिसमें अपराधी प्रवृत्ति के लोग नेता बन कर ना घूम रहे हों।

बड़ी-बड़ी स्वच्छता स्वच्छता आदि की दुहाई देने वाले सभी राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देने से नहीं चूकते।राजनीति अपराधियों का जमावड़ा बनती जा रही है। अपराधियों को अपने अपराधों को संरक्षित करने के लिए राजनीति एक सबसे सही मंच लग रहा है, जहाँ वह अपनी अपराधों के लिए ढाल बना लेते हैं।

अपराधी प्रवृत्ति के लोग रॉबिनहुड का दर्जा हासिल कर लेते हैं। वह गलत तरीकों से धन कमा कर थोड़ा बहुत धन गरीबों आदि में बांटकर उनकी सहानुभूति हासिल कर लेते हैं और इसी सहानुभूति के आधार पर वे राजनीति में प्रवेश कर चुनाव जीत जाते हैं। जब वह नेता बन जाते हैं तो अपना असली रंग दिखाने लगते हैं और धीरे-धीरे देश को खोखला करने में लग जाते हैं।

अपराधी अपराध करने से कभी नहीं बाज आते। यही बात राजनीति में प्रवेश करने वाले अपराधियों के संदर्भ में भी होती है। वे अपराथ करने की प्रवृत्ति से बाज नहीं आते और राजनीति में आने के बाद उन्हें और अधिक शक्ति प्राप्त हो जाती है और घोटाले करते हैं। इसका सीधा असर जनता पर पड़ता है क्योंकि वह देश को खोखला करते हैं और विकास के कार्य के लिए लगने वाला धन स्वयं डकार जाते हैं, जिससे देश का विकास नही हो पाता। जब राजनीति में अपराधियों का प्रवेश निरंतर बढ़ता जा रहा था, तभी बीच में कुछ सार्थक कदम उठाने का भी प्रयत्न किए गए थे।

अदालतों ने अपराधियों के राजनीतिक प्रवेश पर अंकुश लगाने के लिए कुछ सख्त कदम उठाये और सरकारों द्वारा भी कुछ ऐसे नए कानून बनाए गए हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर कुछ-कुछ लगे। एक कानून के अनुसार अब ऐसा व्यक्ति जो किसी अपराधिक मामले में सजा पा जाता है तो वो चुनाव के लड़ने योग्य नहीं रहता और उस पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग जाता है। ये एक सार्थक कदम है। इससे सजा पाने वाला अपराधी हमेशा के लिए चुनाव से वंचित हो जाएगा और ऐसे व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश कम हो पाएगा।

हालांकि सरकार और अदालत को ऐसा कानून भी बनाना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति पर अपराधिक मामला है, तो उसको उस समय ही चुनाव लड़ने पर रोक लग जानी चाहिए और यदि उस पर अपराध सिद्ध हो जाता है तो उसे हमेशा के लिए चुनाव से वंचित कर देना चाहिए। यदि अपराध सिद्ध नहीं होता है, तब ही वह चुनाव लड़ सकता है, क्योंकि भारत की न्याय प्रक्रिया बेहद धीमी गति से चलती है।

अपराधियों पर अपराध के मामले सालों साल तक चलते रहते हैं और इस पूरी अवधि में अपराधी व्यक्ति राजनीति में प्रवेश कर उसकी सुविधा का पूरा लाभ उठा लेते हैं। अमूमन उन्हें इतनी देर होने पर उन्हें सजा भी नही होती और अगर सजा होती भी है, तो सजा मिलने में बहुत देर हो चुकी होती है, और वह अपना पूरा जीवन चुके होते हैं। इससे अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के लिए राजनीति में रोकने के लिए कोई औचित्य नही रह जाता।

उपसंहार

आज ईमानदार एवं साफ-सुथरी वाले लोगों की इस देश की जरूरत है, जो इस देश की बागडोर को संभाले, तभी देश विकास के पथ पर आगे बढ़ सकेगा। आपराधिक प्रवृत्ति वाले नेता लोग देश का कभी भला नहीं कर सकते। वह देश को पूरी तरह बर्बाद कर देंगे, इसलिए हमें इस दिशा में और अधिक सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

सरकार के स्तर पर सरकार और न्यायालय दोनों को सख्त कानून और अधिक सख्त कानून बनाने चाहिए। जनता के स्तर पर बात करें तो जनता को भी जागरूक होकर ऐसे व्यक्तियों को बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए जो ऐसे किसी भी अपराधिक छवि वाले व्यक्ति को बिल्कुल भी वोट न दें। इससे ऐसे लोगों का हौसला पस्त होगा।


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लघु निबंध

‘भारतीय किसान’

भारत मूलतः का एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय किसान भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। उसके बावजूद भारतीय किसानों की स्थिति शुरु से लेकर अभी तक जस की तस बनी है। भारतीय किसान अपने जीवन स्तर को अभी तक नहीं सुधार पाये। वह जिंदगी भर अनेक तरह की समस्याओं से जूझते रहते हैं।

जी-तोड़ मेहनत करने के बावजूद भारतीय किसान की व्यथा यही है कि वह जीवन भर संघर्ष करते रह जाते हैं। कुछ सरकारी नीतियां कुछ आधुनिकता और विकास की होड़ तथा कुछ पारंपरिक प्राचीन खेती पर अधिक निर्भरता भारतीय किसानों को आज भी पीछे किए हुए हैं। इन सब विषमताओं के बावजूद भारतीय किसान की जीवटता सराहनीय है कि वह इन सभी कष्टों से जूझता हुआ भी निरंतर खेती करता रहता है और लोगों के लिए अन्न उपजाता रहता है, जिससे सब का पेट भर सके।

हमें अक्सर समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिलती है कि किसान ने आत्महत्या कर ली। समाचारों में ये घटनाएं सामान्य हो गई है, क्योंकि अक्सर सुनने को मिलती है। इससे भारतीय किसान की दुर्दशा का पता चलता है। आज समय की आवश्यकता है कि भारतीय किसान की स्थिति सुधारने के लिए ऐसे सार्थक एवं ठोस प्रयास किए जाएं कि वह भी एक सम्मानित जीवन जी सके। उसे ना तो महाजनों के कर्ज के जाल में उलझना पड़े और ना कभी भी बीज और खाद के लिए भटकना पडे। ना उसे अपनी फसल के बेमौसम या प्राकृतिक आपदा के कारण हुए नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़े।

भारतीय किसान भी सम्मानित जीवन जी सके, उसे अपनी मेहनत का फल मिले और निर्भीक होकर खेती कर सके, इसके लिए एक युद्ध स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को पूरी तरह नहीं मिल पाता। सरकारी योजनाएं पूरी तरह किसानों तक नही पहुंच पाती है और भी उसका बिचौलिए उठा लेते हैं।

किसानों की अशिक्षा और अज्ञानता के कारण किसान की अधिकतर मेहनत का लाभ बीच के बिचौलिए उठा लेते हैं, और किसान वहीं का वही रह जाता है। किसानों को महाजनों और बिचौलिओं के चंगुल से मुक्त करने के लिए उन्हे जागरुक करना होगा और उन्हे पर्याप्त सहायता उपलब्ध करानी होगी। सरकार ही इस काम को कर सकती है।


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शब्द और शब्द के भेद (हिंदी व्याकरण)

शब्द से तात्पर्य वर्णों के उस समूह से होता है, जो कोई सार्थक अर्थ प्रकट करते हों। अर्थात शब्द व्याकरण की सबसे छोटी इकाई वर्ण के वो समूह होता है, जिसका कोई सार्थक अर्थ निकलता हो। वर्णों से बनी सार्थक सरंचना को ही शब्द कहते हैं।

शब्द की परिभाषा

आइये हिंदी व्याकरण में शब्द और शब्द के भेद को समझते हैं। शब्द वर्णों का वो सार्थक समूह होता है, जो किसी अर्थ को प्रकट करता है। शब्द वर्णों से बनता है। वर्णों से मिलकर जब शब्द बनता है, तभी वर्ण का प्रयोजन पूरा होता है, नही तो वर्णों को कोई महत्व नही। शब्द ही भाषा को आधार प्रदान करते हैं। जब तक वर्णों से शब्द नहीं बनेगा तब तक भाषा कैसे बनेगी?

वर्ण से शब्द बनता है और शब्द से वाक्य, तब व्याकरण की प्रक्रिया पूरी होती है।

वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं। शब्द से वाक्य की रचना होती है। शब्द को जब वाक्य में प्रयुक्त किया जाता है, तो वो व्याकरणिक नियमों से बंध जाता है।

शब्द भेद चार प्रकार के होते है…

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द भेद

अर्थ के आधार पर शब्द के भेद

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद तीन प्रकार के होते हैं :

✫ रूढ़ शब्द

✫ यौगिक शब्द

✫ योगरूढ़ शब्द

रुढ़ शब्द : रूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं, जो किसी अन्य शब्द के योग से ना बने हों और जिन का खंडन नहीं किया जा सकता हो।

यौगिक शब्द : यौगिक शब्द वे शब्द होते हैं, जो दो शब्दों के योग से बनते हैं।

योगरूढ़ शब्द : योगरूढ़ शब्द वे शब्द होते हैं, जो अपने सामान्य अर्थ को ना प्रकट करके कोई विशिष्ट अर्थ प्रकट करते हैं।

उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं :

✫ तत्सम शब्द

✫ तद्भव शब्द

✫ देशज शब्द

✫ विदेशज शब्द

तत्सम शब्द : तत्सम शब्द शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में सीधे ज्यों के त्यों ग्रहण किए गये हों।

तद्भव शब्द : तद्भव शब्द वे शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में ग्रहण तो किए गए हैं लेकिन उनका रूप परिवर्तित हो चुका है।

देशज शब्द : देशज शब्द वे शब्द होते हैं, स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं से हिंदी में ग्रहण किए गए हैं।

विदेश शब्द : विदेशज वे शब्द होते हैं, जो विदेशी भाषाओं से हिंदी भाषा में किए गए हैं।

अर्थ के आधार पर शब्द भेद

अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं

✫ सार्थक शब्द

✫ निरर्थक शब्द

सार्थक शब्द : सार्थक शब्द का कोई ना कोई अर्थ होता है।

निरर्थक शब्द : निरर्थक शब्द का कोई अर्थ नहीं होता और यह सार्थक शब्दों के साथ पूरक जोड़ी के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।

प्रयोग के आधार पर शब्द भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द के आठ भेद होते हैं :

✫ संज्ञा

✫ सर्वनाम

✫ विशेषण

✫ क्रिया

✫ क्रिया विशेषण

✫ संबंध बोधक

✫ समुच्चयबोधक

✫ विस्मयादिबोधक

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया यह चारों शब्द विकारी शब्द की श्रेणी में आते हैं।

क्रिया-विशेषण, संबंध बोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक ये चारों शब्द अविकारी शब्द की श्रेणी में आते हैं।


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स्वर संधि – स्वर संधि के भेद (हिंदी व्याकरण)

उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

मई महीने में आपके विद्यालय में हुई परीक्षा, इस बात को बताते हुए अपनी बुआजी को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

मई महीने में विद्यालय में हुई परीक्षा के बारे में बताते हुए बुआजी को पत्र

दिनाँक : 28 मई 2024

 

आदरणीय बुआजी,
चरण स्पर्श

बुआजी मेरी नौवीं कक्षा की परीक्षा में महीने में संपन्न हो गई है। मैंने पूरे साल परीक्षा अच्छी तैयारी की थी, इस कारण मेरे सारे पेपर अच्छे हुए। केवल गणित के विषय में मेरे दो प्रश्न छूट गए, क्योंकि मैं कुछ सवालों में उलझा गया और समय पर सारे सवालों को हल नहीं कर पाया। बाकी सभी विषयों पेपर बहुत अच्छे हुए।

मैंने पूरे साल परीक्षा के लिए अच्छे से तैयारी की थी और पूरे साल पढ़ाई की थी, इसलिए मुझे परीक्षा के विषय में कोई डर नहीं था। मुझे उम्मीद है कि परीक्षा परिणाम आने मेरे अच्छे अंक आएंगे।

बुआजी, आपको मेरी पढ़ाई की हमेशा चिंता रहती है और आप पिताजी को पत्र लिखते समय अक्सर मेरी पढ़ाई के लिए पूछती रहती हैं। पिताजी ने बताया था कि आप मेरी परीक्षा कैसी हुई इस बारे में पूछ रही थीं। इसीलिए मैंने आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। मेरी परीक्षा के परिणाम 25 जून को घोषित किए जाएंगे। जून महीने में संभव है कि मैं आपके घर आपसे मिलने आऊं। तब मैं 10-15 दिन आपके पास रहूंगा। मेरी तरफ से फूफा जी को प्रणाम और छोटी बहन को स्नेह है।

आपका भतीजा
गौरव


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अपने मामाजी को पत्र लिखकर पिताजी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना दीजिए l

अपने पिताजी को अपनी परीक्षा की तैयारी के विषय में पत्र लिखिए।

कौन से नेता ने किसी लोकसभा चुनाव में एक ही समय में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा? कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकता है?

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एक ही लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर एक साथ चुनाव लड़ने के अवसर कई बार आए हैं। विभिन्न पार्टियों के नेता लोग अक्सर दो-दो सीटों पर चुनावों लड़ते रहे हैं, चाहे वह लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव हों, ऐसा होता रहा है। भारत का संविधान भी किसी भी प्रत्याशी को दो सीटों पर चुनाव लड़ने का अधिकार देता है।

भारत के संविधान के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 33 के अंतर्गत किसी व्यक्ति को एक से अधिक जगह से चुनाव लड़ने का अधिकार मिला हुआ है। इसी अधिनियम के सेक्शन 70 में ये भी उल्लेखित है कि कोई व्यक्ति लोकसभा अथवा विधानसभा का चुनाव एक से अधिक सीटों पर लड़ तो सकता है, लेकिन एक से अधिक सीटों पर चुनाव जीतने की स्थिति में उसे प्रतिनिधित्व केवल एक ही सीट का करना होगा और बाकी सीटों से इस्तीफा देना होगा।

1996 तक भारतीय संविधान में अधिकतम सीटों की कोई सीमा तय नहीं थी। एक व्यक्ति दो से अधिक सीटों पर भी चुनाव लड़ सकता था, लेकिन 1996 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और अधिकतम दो सीटों की सीमा तय की गई यानी कोई भी व्यक्ति लोकसभा अथवा विधानसभा का चुनाव अधिकतम दो सीटों पर ही लड़ सकता है। दोनों सीटों पर जीतने की स्थिति में उसे एक सीट से त्यागपत्र देना होगा।

अब बात करते हैं कि कौन से नेता हैं, जिन्होंने दो से अधिक सीटों पर भी चुनाव लड़ा। सभी को पता है कि दो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के अनेक मामले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ौदा और वाराणसी की लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे। उससे पूर्व लालकृष्ण आडवाणी 1989 में नई दिल्ली और गांधीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। सोनिया गांधी भी रायबरेली और बेल्लारी लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ चुकी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड सीट से चुनाव लड़े। 2014 में भी वह अमेठी और वायला़ से चुनाव लड़े थे।

इसी तरह राज्यों की विधानसभा सीटों पर कई नेता भी दो सीटों पर चुनाव लड़े हैं। इस तरह दो सीटों पर चुनाव लड़ने के अनेक मामले हैं, लेकिन दो से अधिक यानी तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का लोकसभा चुनाव के संदर्भ में केवल एक ही मामला है।

लोकसभा चुनाव में एक ही समय  में तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नेता भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई हैं, जो 1957 के लोकसभा चुनाव में तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे। 

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तीन सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़े थे। अटल बिहारी वाजपेई ने 1957 के आम लोकसभा चुनाव में तीन सीटों से चुनाव लड़ा था। वह उस समय जनसंघ में थे और जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से चुनाव लड़े थे। वह लखनऊ और मथुरा दोनों लोकसभा सीट से चुनाव हार गए लेकिन बलरामपुर सीट से चुनाव जीत गए।

लोकसभा चुनाव के संदर्भ में यह इकलौता मामला है, जब किसी नेता ने तीन सीटों पर एक ही समय में चुनाव लड़ा हो।

विधानसभा चुनाव में भी एक मामला ऐसा रहा है, जब आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक नेता एनटी रामा राव 1995 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में गुडीवडा, हिंदूपुर और नालगोंडा तीन विधानसभा सीटों से चुनाव लड़े और तीनों सीटों पर जीते। उन्होंने हिंदूपुर सीट को बरकरार रखा और बाकी दोनों सीटों से त्यागपत्र दे दिया।

इस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यह दो इकलौते मामले हैं, जहाँ पर कोई नेता दो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है। फिलहाल अभी ये व्यवस्था खत्म हो चुकी है और कोई भी प्रत्याशी एक समय में अधिकतम दो सीटों पर ही चुनाव लड़ सकता है। हालांकि चुनाव आयोग आने वाले समय में ऐसी व्यवस्था भी कर सकता है कि कोई प्रत्याशी अधिकतम एक ही सीट पर चुनाव लड़े।


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स्वर संधि – स्वर संधि के भेद (हिंदी व्याकरण)

स्वर संधि

स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह स्वर संधि’ कहलाती है। आइए आज हम संधि के तीन भेदों में एक भेद स्वर संधि’ और उसके पाँच उपभेदों के बारे में जानेंगे…

संधि-विच्छेद, संधि की परिभाषा

हिंदी व्याकरण में संधि और संधि-विच्छेद एक ऐसी युक्ति है, जिसके माध्यम से दो शब्दों का संयोजन कर के नए शब्द की उत्पत्ति की जाती है और उस नये शब्द को पुनः उसके मूल शब्दों में भी पृथक कर दिया जाता है। यह दोनों प्रक्रियाएं ‘संधि’ एवं ‘संधि-विच्छेद’ कहलाती हैं।

संधि से तात्पर्य दो शब्दों के मेल से है, जिसमें प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण तथा द्वितीय शब्द के प्रथम वर्ण का संयोजन होकर उनमें विकार उत्पन्न होता है और एक नए शब्द की उत्पत्ति होती है। इस प्रक्रिया के कारण परिवर्तित हुए नए शब्द को ‘संधि’ कहते हैं तथा उस शब्द को जब मूल शब्द में पृथक का दिया जाता है, तो वह ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है।

सरल शब्दों में कहें तो संधि का तात्पर्य है, मेल यानी दो शब्दों के परस्पर मेल से उत्पन्न तीसरे शब्द को संधि कहा जाता है। संधि की प्रक्रिया में पहले शब्द का अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण मुख्य भूमिका निभाते हैं। जैसे

  • विद्या + अर्थी : विद्यार्थी
  • गणेश : गण + ईश
  • दिगम्बर : दिक् + अम्बर
  • देव + इंद्र : देवेंद्र

संधि के भेद

संधि के तीन भेद होते हैं :

  • व्यंजन संधि
  • स्वर संधि
  • विसर्ग संधि

स्वर संधि

स्वर संधि से तात्पर्य दो स्वरों के आपस में मेल से बनी संधि से होता है। जब दो स्वरों का आपस में मेल होता है तो उन में जो परिवर्तन आता है, वह स्वर संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए

  • पुस्तकालय : पुस्तक + आलय
  • महोत्सव : महा + उत्सव
  • महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
  • अत्याधिक : अति + अधिक
  • पावक : पौ + अक

स्वर संधि के उपभेद

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं, जोकि इस प्रकार हैं :

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • वृद्धि स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि

दीर्घ स्वर संधि

दीर्घ स्वर संधि के नियम इस प्रकार हैं : जब ‘अ’ और ‘अ’ अथवा ‘अ’ और ‘आ’ अथवा अथवा ‘आ’ और ‘अ’ अथवा ‘आ’ और ‘आ’  का मेल होता है तो ‘आ’ बनता है। जैसे

  • परमार्थ : परम + अर्थ
  • परमात्मा : परम + आत्मा
  • विद्यार्थी : विद्या + अर्थी
  • महात्मा : महा + आत्मा

जब ‘इ’ और ‘इ’ अथवा ‘इ’ और ‘ई’ अथवा ‘ई’ और ‘इ’ अथवा ‘ई’ और ‘ई’ का मेल होता है तो ‘ई’ बनता है।

  • रविन्द्र : रवि + इन्द्र
  • गिरीश्वर : गिरि + ईश्वर
  • योगीन्द्र : योगी + इन्द्र
  • महीश्वर : महीश्वर

जब ‘उ’ और ‘उ’ अथवा ‘उ’ और ‘ऊ’ अथवा ‘ऊ’ का ‘ऊ’  का मेल होता है तो ‘ऊ’ बनता है। जैसे

  • वधूत्सव : वधु + उत्सव
  • साधूर्जा : साधु + ऊर्जा
  • भूत्सर्ग : भू + उत्सर्ग
  • भूर्जा : भू + ऊर्जा

दीर्घ संधि को ह्रस्व संधि भी कहा जाता है।

गुण स्वर संधि

गुण स्वर संधि में जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘इ’ अथवा ‘ई’ का मेल होता है, तो ‘ए’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ का मेल होता है तो ‘ओ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ का मेल होता है  तो ‘अर्’ बनता है। जैसे

  • शैलेन्द्र : शैल + इन्द्र
  • राजेन्द्र : राजा + इन्द्र
  • राजेश : राज + ईश
  • महेश : महा + ईश
  • पुरषोत्तम : पुरुष + उत्तम
  • महोत्सव : महा + उत्सव
  • महोर्मि : महा + ऊर्मि
  • महोर्जा : महा + ऊर्जा
  • राजर्षि : राज + ऋषि
  • महार्षि : महा + ऋषि

वृद्धि स्वर संधि

वृद्धि स्वर संधि के नियम के जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ए’ अथवा ‘ऐ’ का मेल होता है, तो ‘ऐ’ बनता है। जब ‘अ’ अथवा ‘आ’ के साथ ‘ओ’ अथवा ‘औ’ का मेल होता है तो ‘औ’ बनता है। जैसे

  • एकैक : एक + एक
  • मतैक्य : मत + ऐक्य
  • सदैव : सदा + एव
  • महैश्वर्य : महा + ऐश्वर्य
  • जलोघ : जल + ओघ
  • परमौषध : परम + औषध
  • महौजस्वी : महा + ओजस्वी
  • महौषधि : महा + औषधि

यण स्वर संधि

यण स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘इ’ अथवा ‘ई’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह ‘य’ बन जाता है और जब ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ के साथ दूसरे किसी विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह वह ‘व’ बन जाता है। जब ‘ऋ’ के साथ किसी दूसरे स्वर का मेल होता है, तो ‘र्’ बन जाता है । जैसे

  • अत्याधिक : अति + अधिक
  • इत्यादि : इति + आदि
  • अत्यन्त : अति + अंत
  • देव्यागमन : देवी + आगमन
  • अन्वय : अनु + अय
  • स्वागत : सु + आगत
  • अन्वेषण : अनु + एषण
  • प्रत्यक्ष : प्रति + अक्ष
  • पित्रानुमति : पितृ + अनुमति
  • पित्राज्ञा : पितृ + आज्ञा
  • मात्राज्ञा : मातृ + आज्ञा

अयादि स्वर संधि

अयादि स्वर संधि के नियम के अनुसार जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के साथ अन्य कोई भी स्वर हो तो ‘ए’ का ‘अय’ बन जाता है, ‘ऐ’ का ‘आय’ बन जाता है, ‘ओ’ का ‘अव’ तथा ‘औ’ का ‘आव’ बन जाता है। जैसे

  • नयन : ने + अन
  • श्रवण : श्री + अन
  • पावन : पौ + अन
  • नायक : ने + अक
  • नाविक : नौ + इक
  • गायक : गै + अक

Other questions

उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

पतझड़ के आ जाने पर भी उपवन क्यों नहीं मरा करता?

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पतझड़ हो जाने पर भी उपवन मरा इसलिए नहीं करता क्योंकि पतझड़ थोड़े समय के लिए उपवन की सुंदरता को ही नष्ट कर पाता है। बहार आने पर उपवन फिर खिल जाता है और पतझड़ उपवन को नहीं मार पाता। इसलिए पतझड़ कितने भी आए, वह उपवन की सुंदरता को कुछ समय के लिए भले ही कम कर दें, लेकिन वह बहार आने पर और बसंत आने पर फिर हरा-भरा हो जाता है।

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन मरा नहीं करता है’ कविता के माध्यम से कवि नीरज कहते हैं कि छुप-छुप कर आँसू बहाने वालों के जीवन में कुछ दुखों के आ जाने से जीवन नष्ट नहीं हुआ करता। बिल्कुल उसी प्रकार, जिस तरह पतझड़ के आ जाने से कुछ समय के लिए उपवन की सुंदरता भले ही नष्ट हो जाती है। पर पतझड़ बीत जाने और बसंत आ जाने पर उपवन फिर हरा-भरा होता है।

कवि कहते हैं कि उसी तरह जीवन में छोटे-मोटे दुखों के आ जाने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। दुखों के बीत जाने पर सुख अवश्य आएंगे और जीवन फिर खुशहाल हो उठेगा। इसलिए जीवन में कभी भी निराश नही होना चाहिए।

‘कुछ सपनों के मर जाने से जीवन मरा नहीं करता’ कविता हिंदी के जाने-माने कवि ‘गोपालदास नीरज’ द्वारा लिखी गई प्रेरणादायी कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने जीवन की दुःख-तकलीफों से निराश लोगों के मन में आशा का संचार करने का प्रयत्न किया है।


Other questions

धरती स्वर्ग समान’ कविता में कवि ने धरती को स्वर्ग बनाने की संभावनाओं के प्रति आशावादी दृष्टिकोण अपनाया है। – स्पष्ट कीजिए।

लाए कौन संदेश नए घन! दिशि का चंचल, परिमल-अंचल, छिन्न हार से बिखर पड़े सखि! जुगनू के लघु हीरक के कण! लाए कौन संदेश नए घन! सुख दुख से भर, आया लघु उर, मोती से उजले जलकण से छाए मेरे विस्मित लोचन! लाए कौन संदेश नए घन! भावार्थ बताएं।

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लाए कौन संदेश नए घन!
दिशि का चंचल,
परिमल-अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि!
जुगनू के लघु हीरक के कण!
लाए कौन संदेश नए घन!

सुख दु:ख से भर,
आया लघु उर,
मोती से उजले जलकण से
छाए मेरे विस्मि‍त लोचन!
लाए कौन संदेश नए घन!

संदर्भ : महादेवी वर्मा द्वारा रचित कविता लाए ‘लाए कौन संदेश नए घन’ इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है

भावार्थ : कवयित्री कहती हैं कि आकाश में चारों तरफ उमड़ रहे बादल ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, जैसे मैं किसी का संदेश लेकर आ रहे हों। यह बादल चारों तरफ हर दिशा में घूमते रहते हैं। इसी कारण इन्हें चंचल भी कहा जाता है। यह बादल एक जगह पर टिक नहीं रहते और आकाश में चारों तरफ इस तरह छाए रहते हैं, जैसे मानो इन्हें किसी ने मल दिया हो। इसी कारण इन्हें परिमल भी कहा जाता है।

कवयित्री कहती है कि जिस तरह हार के टूटने पर उसके मोती चारों तरफ बिखर जाते हैं। उसी तरह आकाश में यह बादल छोटे-छोटे टुकड़ों में चारों तरफ उसी तरह बिखर जाते हैं। ऐसे लगता है कि आकाश में चारों तरफ हीरे-मोती बिखरे पड़े हो यानी कि रात के समय जिस तरह जुगनू धरती पर जगमगाते हैं और हीरे के समान दिखाई देते हैं, उसी तरह आकाश में यह बादल भी हीरे के समान दिखाई पड़ रहे हैं। यह बादल अपने छोटे से दिल में सुख-दुख का संदेश लेकर आए हैं। जब यह वर्षा करते हैं तो वर्षा की बूंदे मोती के समान व्यक्ति हैं और ऐसा लगता है कि इन बादलों से मोती बरस रहे हों। कवयित्री बादलों को देखकर आश्चर्यचकित हैं। वह मन में सोच रही हैं कि यह घने बादल अब कौन सा संदेश लेकर आए हैं।


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‘गिल्लू’ पाठ में लेखिका की मानवीय संवेदना अत्यंत प्रेरणादायक है । टिप्पणी लिखिए ।

लेखिका व गिल्लू के आत्मिक संबंधों पर प्रकाश डालिए।

‘विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के चुनावी उद्देश्य’ 2024 के आम लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए निबंध लिखिए।

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निबंध

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के चुनावी उद्देश्य

 

राजनीतिक पार्टियाँ चाहे किसी भी विचारधारा की हों, चाहे कोई भी पार्टी हो, हर राजनैतिक पार्टी के कॉमन चुनावी उद्देश्य होता है, वह कॉमन चुनावी उद्देश्य है कि किसी भी तरह सत्ता को प्राप्त करना। सत्ता की कुर्सी प्राप्त करना उनका एक बड़ा उद्देश्य होता है, इसके लिए सारी राजनीतिक पार्टियां सभी तरह के साम-दाम-दंड-भेद अपनाती हैं।

सभी राजनीतिक पार्टियां घोषणा पत्र के नाम पर अपनी भविष्य की योजनाओं को पेश करती हैं कि वह सत्ता में आने पर क्या-क्या करने वाली हैं, लेकिन सामान्यतः यह देखा क्या है कि जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, उनके घोषणा पत्र में जो-जो वादे किए होते हैं, सत्ता में आने पर राजनीतिक पार्टियां उन वादों में से अधिकतर वादों को भूल जाती हैं और औपचारिकता के लिए इक्का-दुक्का वादे ही करती हैं।

किसी भी राजनीतिक पार्टी का यह इतिहास नहीं रहा है कि उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए सभी बातें शत-प्रतिशत ज्यों-के-त्यों पूरे किए हों। उनके द्वारा किए गए वादे मतदाता को अपनी तरफ वोट करने के लिए आकर्षित करने का एक हथियार होता है।

वर्तमान समय के लोकसभा चुनाव यानी 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में देखा जाए तो अलग-अलग पार्टियों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग हैं। इस समय देश में दो मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों हैं, एक वर्तमान सत्ता में सत्तारुढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी है जो 10 साल से भारत की केंद्रीय सत्ता में काबिज पार्टी है। दूसरी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी है जो 10 साल पहले तक के 10 सालों तक सत्ता में रही और उससे पहले भी 1947 से 1995 तक उसने लगभग 43-44 साल तक भारत की सत्ता पर राज किया है।

वर्तमान समय में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है। संख्या बल की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में है और तो उसे स्पष्ट रूप से बहुमत प्राप्त है जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है, वह कांग्रेस पार्टी जिसने 55 सालों तक देश की सत्ता पर राज किया, वह इस समय अपने न्यूनतम स्तर पर है और उसके खाते में केवल 56 लोकसभा सीटें ही हैं।

चुनावी उद्देश्य

दोनों राजनीतिक दल के चुनावी उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाए तो दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग हैं। भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर का निर्माण, दुश्मन देश को घर में घुसकर जवाब देना, तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य, धारा 370 को हटाना, देश में सड़कों का निर्माण, देश की 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन आदि जैसी चुनावी मुद्दों पर टिकी हुई है।

भारतीय जनता पार्टी की मुख्य विचारधारा धर्म पर आधारित है और वह बहुसंख्यक हिंदू धर्म को केंद्र में रखकर अपनी राजनीति करती है और बहुसंख्यक समाज को अपनी ओर लुभाने का प्रयास करती है। भारतीय जनता पार्टी का चुनावी उद्देश्य यह है कि वह जातियों में बंटे बहुसंख्यक हिंदू समाज को हिंदू धर्म के नाम पर एकजुट करके उन्हें अपने पाले में खींचता चाहती है, ताकि वह तीसरी बार भी लोकसभा चुनाव में सत्ता प्राप्त कर सके।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सेकुलर विचारधारा वाली पार्टी है। वह अल्पसंख्यक समाज, विशेष कर मुस्लिम समाज पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। वह मुस्लिम अल्पसंख्यक को अपने पाले में खींचना चाहती है और अल्पसंख्यक समाज ही उसका मुख्य कोर वोटर है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहम मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई तथा देश में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में बढ़ती वैमनस्यता है। वह इन मुद्दों के लिए सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी को दोषी मानती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इन मुद्दों को केंद्र में रखकर चुनाव में जीत हासिल करना चाहती है। वह उसका चुनावी उद्देश्य है कि वह यदि सत्ता में आई तो अपनी सेकुलर का विचारधारा को आगे बढ़ाएगी। हालांकि उसकी चुनावी उद्देश्यों में मुस्लिम पुष्टिकरण की नीति प्रभावी रही है और वह अक्सर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए जानी जाती है।

इस तरह दोनों मुख्य राष्ट्रीय दलों के चुनावी उद्देश्य अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग हैं। इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा कई अन्य राष्ट्रीय पार्टियां भी हैं, जिनका उतना व्यापक प्रभाव नहीं है, जिनमें आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस आदि के नाम प्रमुख हैं।

इसके अलावा ऐसी कई क्षेत्रीय पार्टियों हैं जो केवल अपने राज्यों तक ही सिमटी हुई है। इनमें कुछ पार्टियों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ है तो कुछ पार्टियों नए बने इंडिया एलायंस के साथ हैं, जिसका नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर रही है।

संक्षेप में कहा जाए तो 2024 के लोकसभा चुनाव ही नहीं कोई भी लोकसभा चुनाव हो, सभी राजनीतिक पार्टियों का मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता को हासिल करना होता है। इसके लिए वह अपने मुख्य विरोधी पर किसी भी तरह के झूठे आरोप लगाने से भी नहीं चूकतीं है।

राजनीतिक पार्टियों सत्ता हासिल करने के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं और बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन यदि उन्हें सत्ता प्राप्त हो जाती है तो वह उन सभी को भूलकर अपना हित साधने में लग जाती हैं।

भारत की राजनीति में यही सबसे बड़ी विडंबना है, जिस कारण देश विकास के पद पर उस तीव्र गति से नहीं चल पा रहा है जैसा कि उसे चलना चाहिए था।


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उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

हिंदी व्याकरण में उपसर्ग’ और प्रत्यय’ वे शब्दांश होते हैं, जो किसी शब्द के आगे अथवा पीछे लग कर उस शब्द का अर्थ परिवर्तित कर देते हैं अथवा उस शब्द के अर्थ को विस्तारित करते हैं। आइए हिंदी व्याकरण के अंतर्गत उपसर्ग और प्रत्यय को समझते हैं।

उपसर्ग और प्रत्यय

हिंदी भाषा में शब्दों की रचना करते समय अनेक तरह की विधियां अपनाई जाती हैं। उपसर्ग एवं प्रत्यय इन्हीं विधियों में से दो विधियां हैं, जिनकी सहायता से शब्दों के आरंभ अथवा अंत में कुछ नए शब्दांश जोड़कर नए शब्द गढ़े जाते हैं अथवा जो मूल शब्द होता है, उसको या तो विशेषण प्रदान किया जाता है अथवा उस शब्द के अर्थ को विस्तारित कर दिया जाता है।

उपसर्ग की परिभाषा

उपसर्ग’ वे शब्दांश होते हैं, जो किसी शब्द के आरंभ में लगाए जाते हैं। यह शब्दांश सार्थक एवं छोटे खंड के रूप में शब्द के आरंभ में लगकर उस शब्द से एक नए शब्द का निर्माण करते हैं और उस शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। यह शब्दांश मूल शब्द के लिए एक विशेषण का भी कार्य करते हैं। अर्थात नया बना शब्द विशेषण युक्त शब्द होता है।

उपसर्ग का अर्थ है, समीप आकर जुड़ना। अर्थात जो शब्दांश किसी शब्द के समीप आरंभ में आकर जुड़ जाता है, वह उपसर्ग’ कहलाता है। हिंदी भाषा में 4 तरह के उपसर्ग प्रयुक्त किए जाते हैं।

  • संस्कृत आधारित उपसर्ग
  • हिंदी आधारित उपसर्ग
  • उर्दू आधारित उपसर्ग
  • अंग्रेजी आधारित उपसर्ग

उपसर्ग के कुछ उदाहरण

अति + क्रमण : अतिक्रमण
अति + श्योक्ति : अतिश्योक्ति
अति + अंत : अत्यन्त
अभि + मान : अभिमान
अभि + योग : अभियोग
अभि + वादन : अभिवादन
अभि + नय : अभिनय
अभि + भाषण : अभिभाषण
अव + गुण : अवगुण
अव + गति : अवगति
अव + शेष : अवशेष
अव + आज्ञा : अवज्ञा
अव + रोहण : अवरोहण
अप + यश : अपयश
अप + कार : अपकार
अप + कीर्ति : अपकीर्ति
अप + शकुन : अपशकुन
उप+ भोग : उपभोग
उप + हार : उपहार
उप + नाम : उपनाम
उप + योग : उपयोग
दुर् + दशा : दुर्दशा
दुर् + आग्रह : दुराग्रह
दुर् + गुण : दुर्गुण
दुर् + आचार : आचार
दुर् + आचार : दुराचार
दुर् + उपयोग : दुरुपयोग
दुर् + अवस्था : दुरावस्था

प्रत्यय की परिभाषा

‘प्रत्यय’ से तात्पर्य किसी शब्द के अंत में लगने वाले उन शब्दांशों से है, जो उस शब्द के अर्थ को विस्तारित करते हैं अथवा उस शब्द के अर्थ को बदल देते हैं। प्रत्यय शब्द के अंत में लगकर उस शब्द के अर्थ में विशेषता ला देते हैं अथवा उसमें परिवर्तन कर देते हैं।

प्रत्यय’ का शाब्दिक अर्थ है, साथ में किंतु बाद में चलने वाला’। प्रत्यय’ शब्द के बाद में लगते हैं और किसी संज्ञा के शब्द के अंत में जातिवाचक को भाववाचक या व्यक्तिवाचक संज्ञा को जातिवाचक या भाववाचक संज्ञा में बदल देते हैं।

प्रत्यय के कुछ उदाहरण

सांस्कृतिक : संस्कृति + इक
सामाजिक : समाज + इक
व्यक्तितव : व्यक्ति + तव
पहननावा : पहन + आवा
दिखावा : दिक + आवा
अच्छाई : अच्छा +
महंगाई : महंगा +
घबराहट : घबरा + आहट
दिखावट : दिखा + आवट
दुकानदार : दुकान + दार
ईमानदार : ईमान + दार
खटास : खट्टा + आस
चतुरता : चतुर + ता
पागलपन : पागल + पन
सुनार : सोना + आर
लडकपन : लड़क + पन
चिकनाहट : चिकना + आहट
ईमानदार : ईमान + दार
धोखेबाज : धोखा + बाज
नकली : नकल +
सरकारी : सरकार +
पढना : पढ़ + ना
लगाव : लग + आव
मेहरबानी : मेहर + बानी
मौलिक : मूल + इक
सामजिक : समाज + इक
जवानी : जवान +
चलना : चल + ना
नौकरी : नौकर +
लोकप्रियता : लोकप्रिय + ता
सफलता : सफल + ता


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दिए गए उपसर्ग से दो-दो शब्द बनाइए- (क) पुनर् (ख) हर (ग) सम् (घ) कु (च) अ (छ) बिन (ज) प (ङ) स्व

‘समाहार’ में कौन सा प्रत्यय होगा?

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।। हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा। त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा। जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी। कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।। आँधी पीछे जो जल बुठा, प्रेम हरि जन भींनाँ। कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं।

संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आँधी पीछे जो जल बुठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।।

कबीर की इन साखियों का भावार्थ इस प्रकार है…

भावार्थ :  कबीरदास कहते हैं कि जब गुरु के माध्यम से ज्ञान का प्रकाश होता है, तब मन में व्याप्त सारे विषय-विकार रूपी अंधेरा मिट जाता है। गुरु के ज्ञान के प्रकाश के तेज से शिष्य के मन में व्याप्त भ्रम, माया का आश्रय सब हवा में उड़ जाता है। गुरु की कृपा से भ्रम और अज्ञानता मन में नहीं रह पाता। तब मोह और लोभ के खंभे गिरने लगते हैं। मोह का बलिण्डा टूटने लगता है, जो माया रुपी खंबे तृष्णा को बांधे रखते हैं, वह भी टूटने लगते हैं और छत भरभरा कर टूट कर नीचे गिरने लगती है। तब मन में व्याप्त कुबुद्धि का सारा भांडा फूट जाता है।

इस सारी आंधी के पश्चात जो ज्ञान की बारिश होती है, उससे मन में जो भी अज्ञानता रूपी कूड़ा-करकट जमा हुआ होता है, वह सब साफ हो जाता है। ज्ञान रूपी इस बारिश में सभी ज्ञानी जन ज्ञान के रस से भीग जाते हैं। ज्ञान के प्रकाश के कारण मोहमाया भ्रम आदि सभी अंधकार दूर हो उठते हैं।

व्याख्या : कबीर ने यहाँ पर गुरु के ज्ञान की महिमा का बखान कर रहे हैं। उनके कहने का आशय यह है कि जो गुरु से सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेता है। वह अपने मन के सारे अंधकारों को दूर कर लेता है। उसके अंदर से लोभ-मोह तृष्णा इच्छा कामनाएं माया सभी विकार समाप्त हो जाते हैं और वह परम तत्व को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो जाता है।


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कबीर घास न निंदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।। अर्थ बताएं।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।। भावार्थ लिखिए।

‘हम जब होंगे बड़े’ कविता का भावार्थ लिखें।

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कविता का भावार्थ

हम जब होंगे बड़े

हम जब होंगे बड़े, देखना
ऐसा नहीं रहेगा देश।
अब भी कुछ लोगों के दिल में
नफरत अधिक, प्यार है कम.
हम जब होंगे बड़े, घृणा का
नाम मतकर लेंगे दम।

हिंसा के विषमय प्रवाह में
कब तक और बहेगा देश
भ्रष्टाचार जमाखोरी की,
आदत बड़ी पुरानी है
यह कुरीतियां मिटा हमें तो
नई चेतना लानी है।
एक घरौंदे जैसा आखिर
कितना और ढहेगा देश?

इसकी बागडोर हाथों में
जरा हमारे आने दो,
थोड़ा सा बस पांव हमारा
जीवन में टिक जाने दो।

हम खाते हैं शपथ, दुर्दशा
कोई नहीं सहेगा देश।
हम भारत का झंडा हिमगिरी
से ऊंचा फहरा देंगे,
रेगिस्तान, बंजरों तक में
हरियाली लहरा देंगे।

घोर अभावों की ज्वाला में
कल तक नहीं दहकेगा देश

संदर्भ : यह कविता कवि बालस्वरूप राही द्वारा रचित कविता है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने आने वाली पीढ़ी यानी बच्चों के मन के भावों को प्रकट किया है।

कविता में बच्चे अपने मन के भावों को प्रकट करते हुए कहते हैं कि जब वह बड़े होंगे तो देश में जो भी नकारात्मकता फैली हुई है, उसे सकारात्मक में बदलकर रख देंगे। कविता के माध्यम से कवि ने भाभी पीढ़ी के मन के विचारों को सकारात्मक रूप में प्रकट करने की चेष्टा की है।

भावार्थ : कवि कहते हैं कि बच्चों का कहना है, जब वह बड़े होंगे तो भारत देश ऐसा नहीं रहेगा, जैसा इस समय है। जहाँ पर लोगों के दिल में घृणा बहुत अधिक है। लोग एक दूसरे से घृणा करते हैं, लोगों के दिल में प्यार की कमी है। लोग घृणा की आग में जलते जा रहे हैं। वह जब बड़े होंगे तो इस घृणा को संसार से मिटा देंगे।

कवि कहते हैं कि बच्चों का कहना है कि वर्तमान समय में चारों तरफ हिंसा और मारकाट मची हुई है। लोग एक दूसरे का गला काटने से नहीं चूकते। चारों तरफ समाज में नकारात्मकता ही फैली हुई है। भ्रष्टाचार का चारों तरफ बोलबाला है। लोगों में जमाखोरी आदत बहुत गहराई तक फैली हुई है। ये आदत भारतवासियों में काफी समय से हैं। यह सारी बुरी आदतें समाज की कुरीति के समान है।

वह जब बड़े होंगे तो वह समाज की इन कुरीतियों को मिटाएंगे। वह समाज में जागृति लाएंगे ताकि भ्रष्टाचार और जमाखोरी का नाम और निशान मिट जाए और देश विकास के पथ पर आगे बढ़े।

बच्चे कहते हैं कि जब वह बड़े होंगे और जैसे ही इस देश की बागडोर यानि देश का संचालन उनके हाथों में आएगा वह अपने देश को उतार-चढ़ाव वाले इस वातावरण से बाहर निकलने में पूरा जोर लगा देंगे और देश को अधोगति में जाने से बचाएंगे। वह देश में पहली अव्यवस्था को मिटा कर देश की दुर्दशा को सुधारेंगे और पूरे संसार में भारत का सम्मान बढ़ाएंगे।

बच्चे कहते हैं कि वह भारत के ध्वज को हिमालय से भी ऊंचा फहराएंगे। वह अपने सार्थक प्रयासों द्वारा रेगिस्तान और बंजर धरती पर भी हरियाली ला देंगे यानी बच्चे कहते हैं कि वह देश के हर हिस्से को विकसित और समृद्ध बनाएंगे। वह देश में फैले हर तरह के अभाव को दूर करेंगे। उनका एकमात्र उद्देश्य यही है कि देश में संपन्नता और समृद्धि आए और हर हर भारतवासी खुश रहे।

कविता का मूल भाव

इस कविता के माध्यम से कवि ने छोटे नन्हे बच्चों के मन के भावों को व्यक्त किया है कि वह बड़े होकर अपने देश के लिए क्या करना चाहते हैं। वह देश में फैली नकारात्मकता और सभी तरह की बुराइयों को दूरकर देश में सकारात्मक लाने चाहते हैं तथा भारत की समृद्धि में अपना पूरा योगदान देना चाहते हैं। ये कविता आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देने का कार्य करती है, और नई पीढ़ी को देश का जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है।


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‘भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।’ इस पंक्ति का सरल भावार्थ बताएं। (कविता – हम जब होंगे बड़े)

समाज में फैली बुराइयों का उल्लेख करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए​।

देशप्रेम दिखावे की वस्तु नही है (निबंध)

‘भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।’ इस पंक्ति का सरल भावार्थ बताएं। (कविता – हम जब होंगे बड़े)

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भ्रष्टाचार जमाखोरी की आदत बड़ी पुरानी है, यह कुरीतियां मिटाने हमें तो नई चेतना लानी है।

संदर्भ : कवि बालस्वरूप राही द्वारा रचित कविता ‘हम जब होंगे बड़े’ की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है…

सरल भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहने का आशय यह है कि हमारे समाज में भ्रष्टाचारी और जमाखोरी की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है। यह प्रवृत्ति हमारे देश और समाज में गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुकी है। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज को जागरूक करना है। समाज को ईमानदार बनाना है। तब ही हम आगे बढ़ सकेंगे।

विशेष व्याख्या : यहाँ पर कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारी विभागों तथा अन्य निजी विभागों में भ्रष्टाचार एक आम समस्या है। अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। कोई भी काम बिना रिश्वत दिए नही होता। भ्रष्टाचार की इस समस्या के अतिरिक्त अधिक मुनाफे के लालच में जमाखोरी करना तथा वस्तु की जमा करके बाद में उसकी काला बाजारी करना यह प्रवृत्ति भी बहुत पुरानी है। यह दोनों प्रवृत्तियां समाज के लिए कुरीति बन गई हैं। हमें इन कुरीतियों को मिटाना है। समाज के लोगों को इन बुराइयों से दूर रहने की लिए जागरूक करना है। ऐसा करने के बाद ही हमारा देश समाज आगे बढ़ सकता है।

हम जब होंगे बड़े’ कविता के माध्यम से कवि बालस्वरूप राही ने बच्चों को प्रेरणा देने का कार्य किया है। कवि बच्चों को संदेश देते हुए कहते हैं कि जब बच्चे बड़े होंगे तो देश की इस समय जो वर्तमान तस्वीर है, वैसे ही तस्वीर नहीं रहनी चाहिए। हमें देश में व्याप्त हर बुराई को मिटा देना चाहिए ताकि जब बच्चे बड़े हों तो उन्हें एक आदर्श देश मिले।


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‘समुद्र में खोया हुआ आदमी’ बेरहम महानगर में धीरे-धीरे टूटते हुए परिवार की करुण गाथा है। सोदाहरण पुष्टि कीजिए ।

‘अवधू गगन-मण्डल घर कीजै’ इस पंंक्ति में ‘अवधू’ का आशय बताइए। इस पंक्ति का भावार्थ भी स्पष्ट कीजिए।

इस संसार की रचना में किसकी चतुराई के दर्शन होते हैं ?

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इस संसार की रचना में ईश्वर की चतुराई के दर्शन होते हैं।

‘प्रकृति की शोभा’ कविता में कवि ‘श्रीधर पाठक’ कहते हैं कि ईश्वर ने कि संसार की रचना करते समय संसार ऐसी चतुराई दिखाई कि प्रकृति के हर तत्व का अपना महत्व और अपनी सुंदरता है। यहां पर भांति भांति के पक्षी, पशु हैं, रंग-बिरंगे फूल हैं। वनों में पेड़ों की लहराती लताए हैं, नव कणिकाएं हैं, नदियां, झील, सरोवर हैं, तो उनमें खिले कमल पर मंडराते भंवरों की गूंज सुनाई दे रही है। चारों तरफ पहाड़ों की सुंदर मनोहर इस चोटियां हैं, निर्मल जल से बहते हुए झरने हैं। अलग-अलग ऋतु का समय समय पर आना और जाना, सूर्य और चंद्र की अद्भुत शोभा, बारी बारी से दिन और रात का आना जाना, आसमान में बिखरे हुए तारे, समुद्र का असीम विस्तार यह सब देखकर इसमें स्पष्ट होता है कि संसार की रचना में ईश्वर की चतुराई के दर्शन होते हैं।


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हाइड्रोजन को क्यों लग रहा था कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मार रहा है?

छुट्टियों में आपने अपने दिन कैसे बिताए, इस बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।

विचार/अभिमत

छुट्टियों में दिन कैसे बिताए (एक विद्यार्थी की कलम से)

 

छुट्टियां किसको प्यारी नहीं होती। विद्यार्थियों को तो गर्मी की छुट्टियों का पूरे साल इंतजार रहता है। जब गर्मी की छुट्टियां आती हैं तो परीक्षा के तनाव से राहत मिलती है। परीक्षा खत्म होते ही गर्मी की छुट्टियां आरंभ हो जाती हैं। परीक्षा के कठिन परिश्रम के बाद छुट्टियां मिलना ऐसा लगता है कि जैसे गरम तपती धूप में अचानक वर्षा की शीतल तो फुहारे पड़ रही हों।

मेरी भी जब गर्मी की छुट्टियां पड़ी तब बड़ी खुशी का अनुभव हुआ। इस बार मैंने सोचा कि सारी छुट्टियां मौज-मस्ती करते बीत जाती हैं, इससे समय का सही उपयोग नहीं हो पाता। क्यों ना इस बार छुट्टियों में कुछ ऐसे उपयोगी काम किए जाएं जो आगे जीवन में काम आए और समय का सही उपयोग हो। यानि छुट्टियों का सही सार्थक उपयोग किया जा सके।

विद्यालय की परीक्षा समाप्त होने के बाद छुट्टियां पड़ते ही मैंने कुछ वोकेशनल कोर्स करने का विचार बना लिया। मैंने ड्राइंग एवं पेंटिंग का कोर्स किया। मैंने कोडिंग सीखी और कुछ एप बनाए। इसके अलावा मैंने तैराकी सीखी। मैंने ग्राफिक डिजाइनिंग से संबंधित कुछ कोर्स भी सीखे। बीच-बीच में चार-पांच दिन के लिए मैं इधर-उधर अपने दोस्तों के साथ घूमने भी चला जाता था।

10 दिन के लिए मैं अपनी नानी के घर भी गया। उनके गाँव में प्राकृतिक वातावरण में आनंद आ गया। चूँकि सारे कोर्स में ऑनलाइन सीख रहा था इसलिए मुझे कहीं आने-जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरे पापा ने मुझे लैपटॉप दिला दिया था। मेरा लैपटॉप मेरे साथ रहता था। इस तरह मैंने खूब मौज मस्ती भी की और कुछ हुनर भी सीखे और अपने भविष्य के लिए कुछ सार्थक ज्ञान भी अर्जित किया। अर्थात मैने छुट्टियों को पूरी तरह नहीं व्यर्थ नही जाने दिया और उनका सदुपयोग किया। सभी विद्यार्थियों छुट्टियों का ऐसा ही सार्थक उपयोग करना चाहिए। छुट्टियों को केवल घूमने-फिरने और मौज मस्ती करने में ही नहीं नष्ट नहीं कर देना चाहिए।


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नौरंगिया कविता की संदर्भ सहित व्याख्या

संदर्भ : ‘नौरंगिया’ कविता कवि कैलाश गौतम द्वारा रचित कविता है। इस कविता में उन्होंने एक ग्रामीण स्त्री ‘नौरंगिया’ की जीवन दशा का वर्णन किया है। नौरंगिया सभी ग्रामीण स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है। वह उस कमजोर वर्ग का भी प्रतिनित्व करती है, जो समाज में सांमती वर्ग के लोगों द्वारा शोषण का शिकार है।

व्याख्या

देवी-देवता नहीं मानती, छक्का-पंजा नहीं जानती
ताकतवर से लोहा लेती, अपने बूते करती खेती,
मरद निखट्टू जनख़ा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला,
उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती, संग-संग पीती
गाँव गली की चर्चा में वह सुर्ख़ी-सी अख़बार की है
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया देवी-देवता अर्थात किसी भी भगवान को नहीं मानती। वह अपने कर्म में विश्वास रखने वाली एक कर्मठ स्त्री है। वह एक निष्कपट स्त्री है और किसी भी तरह के छल-कपट-षड्यंत्र से दूर रहती है। वह एक जुझारू और साहसी स्त्री है, जो ताकतवर सामंतवर्गी लोगों जैसे कि जमींदार, महाजन, ठेकेदार आदि से भी नहीं डरती और उनका डटकर सामना करती है।

नौरंगिया अपने बूते पर खेती करती है यानी वह एक परिश्रमी स्त्री है और अपने दम पर परिश्रम कर कर अपना पेट पालती है। नौरंगिया का पति एकदम कामचोर है। वह कोई कार्य नहीं करताष उसका रंग कोयले की तरह काला है। इस सबके बावजूद नौरंगिया उसके साथ हंसी-खुशी रहती है और उसके साथ अपना जीवन हंसी-खुशी निर्वाह कर रही है। नौरंगिया के कर्मठ, जीवट और परिश्रमी स्वभाव के कारण उसके गाँव की हर गली में उसकी चर्चा रहती है। सब लोग उसके बारे में बातें करते हैं। वह गंगा पार के एक गाँव में रहती है।

कसी देह औ’ भरी जवानी शीशे के साँचे में पानी
सिहरन पहने हुए अमोले काला भँवरा मुँह पर डोले
सौ-सौ पानी रंग धुले हैं, कहने को कुछ होठ खुले हैं
अद्भुत है ईश्वर की रचना, सबसे बड़ी चुनौती बचना
जैसी नीयत लेखपाल की वैसी ठेकेदार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि नौरंगिया के शारीरिक बनावट के बारे में बताते हुए कहते हैं कि नौरंगिया एक जवान स्त्री है। उसका शरीर बेहद गठीला और सुंदर है। अपनी जवानी में उसका शरीर शीशे के सांचे में पानी के जैसा दिखाई देता है। उसकी सुंदर माथे पर उसके काले बालों की लटें ऐसी दिखाई देती है, जैसे काला भंवरा मुँह पर डोल रहा हो। उसके शरीर का रंग एकदम साफ है और ऐसे लग रहा है कि उसके शरीर को 100 बार धोया गया हो, जिसका कारण शरीर एकदम चमकता रहता है। उसको भगवान ने सुंदर शरीर दिया है। उसका यह सुंदर शरीर ही उसके लिए अभिशाप बन गया है। उसकी सुंदरता के कारण लिखा-पढ़ी करने वाला लेखपाल और गाँव का ठेकेदार भी उस पर बुरी नीयत रखते हैं।

जब देखो तब जाँगर पीटे, हार न माने काम घसीटे
जब तक जागे, तब तक भागे, काम के पीछे, काम के आगे
बिच्छू, गोंजर, साँप मारती, सुनती रहती विविध-भारती
बिल्कुल है लाठी सी सीधी, भोला चेहरा बोली मीठी
आँखों में जीवन के सपने तैय्यारी त्यौहार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है ।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया बेहद परिश्रमी स्त्री है और वह जब देखो हमेशा काम में मगन रहती है। वह कभी भी हार नहीं मानती और हर समय अपने काम में लगी रहती है। वह सुबह-सुबह उठते ही अपने खेतों की तरफ भागती है और अपने खेतों में जी-तोड़ मेहनत में लग जाती है। उसके खेतों में बिच्छू, गोंजर, सांप जैसे जीव जंतु अक्सर निकलते रहते हैं। वह उनसे भी नहीं डरती और उनको मार देती है या भगा देती है।

वह अपना काम करते-करते रेडियो पर विविध भारती सुनती रहती है, जिससे उसका काम में मन लगा रहता है। उसका शरीर लाठी के जैसा सीधा है। उसके चेहरे पर भोली-भाली मासूमियत है। उसकी वाणी भी बेहद मधुर है और वह सबसे मीठी बोली में बात करती है। उसकी आँखों में अपने सुंदर भविष्य के लिए सपने तैरते रहते हैं और वह अपने भविष्य और आने वाले तीज-त्योहारों की कल्पनाओं और तैयारियों में डूबी रहती है।

ढहती भीत पुरानी छाजन, पकी फ़सल तो खड़े महाजन
गिरवी गहना छुड़ा न पाती, मन मसोस फिर-फिर रह जाती
कब तक आख़िर कितना जूझे, कौन बताए किससे पूछे
जाने क्या-क्या टूटा-फूटा, लेकिन हँसना कभी न छूटा
पैरों में मंगनी की चप्पल, साड़ी नई उधार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है।

व्याख्या : कवि कहते हैं कि नौरंगिया जिस घर में रहती है, वह घर बेहद कमजोर हो चुका है। उस घर की दीवारें गिर चुकी हैं और पुराने छज्जे की हालत भी जर्जर है। नौरंगिया इस टूटे-फूटे घर में रहती है। वह अपने घर की मरम्मत तक नहीं कर पाती क्योंकि जब भी उसके खेतों की फसल पककर तैयार होती है तो महाजन उसके दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं और अपने पैसों की वसूली के नाम पर उसकी पकी हुई फसल को ले जाते हैं।

नौरंगिया ने संकट के समय अपने कुछ गहने गिरवी महाजनी के पास रख दिए थे, जिन्हें वह अभी तक छुड़वा नहीं पा रही है। वह अपना मन-मसोसकर रह जाती है। वह स्वयं से पूछती है कि वह आखिर कितना संघर्ष करे। वह अपने मन की बात किस से कहे। वह किसी से अपने मन की व्यथा को नहीं कह पाती। उसके वह सारे सपने टूट कर बिखर गए जो उसने अपने सुंदर भविष्य के लिए देखे थे।

इन सब विषम परिस्थितियों और दुखों के बावजूद भी नौरंगिया हमेशा खुश रहने का प्रयत्न है और वह निरंतर हँसती-मुस्कुराती रहती है। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर है कि उसके पास पहनने के लिए ढंग की चप्पलें तक नहीं है। वह मांगी हुई चप्पल को पहन कर अपना गुजारा करती है। उसके पास पहनने के लिए ढंग से कपड़े तक नहीं है। उसने जो साड़ी पहनी हुई है, वह भी उसने किसी से उधार लेकर पहनी है। इस तरह नौरंगिया की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है।

कैलाश गौतम

कैलाश गौतम हिंदी जनवादी कवि के रूप में मशहूर रहे हैं। अपनी कलम से वे भारत के ग्रामीण और आमजन से संबंधित कविताओं को उकेरने का कार्य करते रहे हैं। उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से अनेक सामाजिक व्यथा से भरी कविताओं की रचना की है।

उनका जन्म 1 अगस्त 1944 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी नमक जिले के चंदौली नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने एमए और बीएड तक शिक्षा हासिल की।उन्होंने लंबे समय तक आकाशवाणी, इलाहाबाद में कार्य किया।

उनकी प्रसिद्ध रचना रचनाओं में सीली माचिस की तीलियां, कविता लौट, पड़ी, बिना कान का आदमी, सर पर आग, तीन चौथाई आन्हर, जोड़ा लाल जैसे काव्य संग्रहों के नाम प्रमुख हैं।

उनका निधन 9 अक्टूबर 2006 में हुआ।


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‘नौरंगिया’ नामक कविता जनवादी कवि ‘कैलाश गौतम’ द्वारा लिखी गई कविता है। इस कविता में उन्होंने ‘नौरंगिया’ नाम एक ग्रामीण स्त्री की जीवन दशा का वर्णन किया है।

‘नौरंगिया’ कविता आधार के आधार पर कहें तो नौरंगिया कविता में नौरंगिया की दिनचर्या नियमित है। वह सुबह-सुबह उठकर अपने खेतों पर चली जाती है और अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करती है। वह दिनभर अपने खेतों में परिश्रम में लगी रहती है। वह अपने खेतों से शाम को ही वापस आ पाती है।

नौरंगिया कविता के आधार पर नौरंगिया की विशेषताएं

नौरंगिया कविता के आधार पर नौरंंगिया कविता की विशेषताएं इस प्रकार हैं…

  • नौरंगिया देवी देवताओं अर्थात भगवान में विश्वास नहीं करती। वह किसी भी देवी देवता को नहीं मानती नहीं।
  • नौरंगयि एक कर्मठ स्त्री है। वह केवल कर्म में विश्वास रखती है। कर्म और परिश्रम ही उसके देवी-देवता हैं।
  • नौरंगिया किसी भी तरह के छल-कपट की नहीं जानती है। वह एकदम सीधी-सादी है और किसी भी तरह के छल-कपट-षड्यंत्र से दूर रहती है।
  • नौरंगिया एक परिश्रमी स्त्री है, जो अपने खेतों में जी तोड़ मेहनत करती है। वह दिन भर अपने खेतों में परिश्रम करती रहती है।
  • नौरंगिया एक साहसी और जुझारू स्त्री है। वह किसी भी तरह की मुसीबत से नहीं घबराती और हर संकट का सामना साहस से करती है।
  • नौरंगिया का पति एकदम कामचोर है और वह कोई कार्य नहीं करता, उसके बावजूद नौरंगिया उसके साथ अपना जीवन निर्वाह कर रही है, वह कोई शिकायत नहीं करती।
  • नौरंगिया एक साहसी स्त्री है, जो जमींदार और सामंतों से भिड़ने में भी संकोच नही करती है। अपने हक के लिए लड़ना जानती है।
  • नौरंगिया गंगा पार रहती है। उसके मेहनती और स्वावलंबी स्वभाव के कारण गाँव गली में सब लोग उसकी चर्चा करते हैं।
  • नौरंगिया एक युवती है। शारीरिक दृष्टि से नौरंगिया एक सुंदर स्त्री है और देखने में वह आकर्षक व्यक्तित्व की स्त्री है। उसका रंग साफ है। वह गठीले शहर की सुंदर स्त्री है। जिस कारण उसके सुंदर शरीर पर ठेकेदार और लेखपाल जैसे दबंग लोग अपनी बुरी नीयत रखते हैं।
  • नौरंगिया दिन भर काम के पीछे भागने वाली स्त्री है वह हर समय  अपने काम में लगी रहती है।
  • दिन भर जी-तोड़ परिश्रम के बाद भी नौरंगिया की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इतनी सारी मेहनत करने के बावजूद नौरंगिया अपने लिए पर्याप्त धन नहीं जुटा पाती। जब उसकी खेतों की फसल पक जाती है तो महाजन आदि उसकी फसलों को ब्याज आदि के नाम पर हड़प कर जाते हैं।
  • उसके पास पहनने के लिए ढंग की चप्पल और ढंग के कपड़े तक तक नहीं है। वह मांगी हुई चप्पल पहनती है और साड़ी भी उसने किसी से उधार लेकर पहनी है।
  • वह अपने गिरवी रखे हुए गहने तक नहीं छुड़ा पाती और मन-मसोसकर रह जाती है। अपनी मन की व्यथा को किसी से कह भी नहीं पाती।
  • उसका स्वभाव विनम्र और वाणी मधुर है अर्थात वह सबसे मीठी बोली में बात करती है।
  • तमाम दुःखों और विषम परिस्थितियों के बावजूद वह हर समय हँसती मुस्कुराती रहती है और सकारात्मकता से जीवन को जीने का प्रयास करती है।

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