NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श भाग 2)
SAKHI : Kabir (Class-10 Chapter-1 Hindi Sparsh 2)
साखी : कबीर
पाठ के बारे में…
इस पाठ में कबीर की साखी के माध्यम से अनेक नीति वचन कहे गए हैं। साखी शब्द का अर्थ होता है, साक्षी। साखी शब्द का तद्भव रूप है, जो किसी बात का साक्ष्य यानि प्रमाण है। साक्षी शब्द का प्रत्यक्ष सार्थक अर्थ होता है, प्रत्यक्ष ज्ञान। वह प्रत्यक्ष ज्ञान जो गुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है। साखी एक दोहा छंद है और कबीर के अधिकांश दोहे साखी के नाम से ही प्रसिद्ध है। साखी एक प्रकार का दोहा छंद है। यह 13 और 11 के विश्राम वाला कुल 24 मात्राओं छंद होता है।
रचनाकार के बारे में…
कबीर भक्तिकालीन युग निर्गुण विचारधारा के प्रसिद्ध संत कवि रहे हैं, जो चौदहवीं शताब्दी में जन्मे थे। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर जोर दिया है, और समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म 1398 ईस्वी में काशी नगर में हुआ था। उनके गुरु का नाम रामानंद था। कबीर एक अनाथ बालक थे, जिन्हें नीरू-नीमा के जुलाहा दंपति ने पाला था।
जब कबीर का जन्म हुआ तो उस समय का समाज अनेक तरह की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों से घिरा हुआ था और इस तरह की कुरीतियाँ भी अपने चरम पर थीं। कबीर स्वयं एक क्रांति कवि रहे। उन्होंने अपने दोहों कविता आदि के माध्यम से तत्कालीन समाज की कुरीतियों पर गहरी चोट की है और सामाजिक चेतना का संदेश दिया है। उन्होंने धर्म के बाहरी आडंबरों पर तीखा प्रहार किया तथा ईश्वर के निर्गुण रूप को समझने पर जोर दिया है।
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी भाषा थी, जो मुख्यता पूर्वी जनपद की भाषा रही है। उनके भाषा में अनेक तरह के भाषाओं के शब्दों का मिश्रण भी मिलता है। इसी कारण उनके पदों में उनकी भाषा को सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता है। कबीर का निधन 120 की आयु में मगहर में 1518 ईस्वी में हुआ।
हल प्रश्नोत्तर
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1 : मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर : मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता ऐसे प्राप्त होती है, क्योंकि जब हम मीठी वाणी बोलते हैं, तो सुनने वाले के ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मीठी वाणी का असर हमेशा सुखद एवं सकारात्मक होता है। सुनने वाला प्रसन्न हो जाता है और वह उसी प्रसन्नता के भाव से अपना उत्तर भी देता है।
इससे हम पर भी उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और दोनों का मन प्रसन्न होता है। मीठी वाणी बोलने से हमारे अंदर के क्रोध और घृणा तथा सारी नकारात्मकता मिट जाती है। मीठी वाणी बोलने से हमें बदले में प्रेम भरा उत्तर ही प्राप्त होता है, जिससे ना केवल सुनने वाले का भी बल्कि हमारा हृदय भी प्रसन्न रहता है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से बोलने वाले और सुनने वाले दोनों के तन और मन प्रसन्न और आनंदित रहते हैं।
प्रश्न 2 : दीपक दिखाई देने पर अंधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : दीपक दिखाई देने पर अंधियारा उस प्रकार मिट जाता है, क्योंकि कवि ने दीपक और अज्ञान दोनों की तुलना की है। जिस प्रकार दीपक प्रज्वलित होने पर चारों तरफ का अंधकार मिट जाता है। उसी तरह मनुष्य के अंदर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होने पर उसके अंदर अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है।
अज्ञानता से तात्पर्य है हमारे अंदर के अंह से है, जब तक हमारे अंदर अहं है, अहंकार है, तब तक हम ईश्वर को नहीं समझ सकते और ना ही ईश्वर को पा सकते हैं। जब हमारे अंदर आत्मज्ञान का प्रकाश होता है और हमारे अंदर का अहं रूपी अंधकार मिट जाता है, तब हमारे अंदर के सारे विकार, भ्रम और संशय रूपी अवगुण नष्ट हो जाते हैं और हमारे अंदर ज्ञान का प्रकाश जल उठता है। तब हम ईश्वर की प्राप्ति की राह पर चल पड़ते हैं।
प्रश्न 3 : ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर : ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि ईश्वर देखने की नहीं समझने की चीज होती है। ईश्वर चारों तरफ कण-कण में व्याप्त है लेकिन हमारे अंदर अहंकार, क्रोध, अज्ञानता, घृणा, ईर्ष्या जैसे विकार समाए हुए हैं। इन विकारों के कारण हमारा मन दूषित रहता है और इन अवगुणों के कारण ना ही हम ईश्वर को देख सकते हैं ना ही उसे समझ सकते हैं।
ईश्वर को समझने के लिए हमें अपने अंदर के अहं को मिटाना पड़ेगा, अपने मन के अंधकार को खत्म करना पड़ेगा, तभी हमारे अंदर आत्मज्ञान होगा, तभी हमारा मन, हृदय निर्मल होगा और हम ईश्वर को देखना समझने की कोशिश करेंगे। हम अपने अंदर के अवगुणों दूर करने की कोशिश नहीं करते और इन्हीं अवगुणों के साथ ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर जैसे धार्मिक स्थलों में ढूंढते हैं, जबकि हम नहीं जानते कि ईश्वर हमारे अंदर ही है। जब तक हमारे अंदर का अज्ञानता का अंधकार नहीं मिटेगा, ईश्वर हमें किसी भी धार्मिक स्थल में नहीं मिलेगा।
प्रश्न 4 : संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कबीर के अनुसार संसार में दुखी वे लोग हैं, जो सांसारिक भोग-विलास में मगन हैं। जो सांसारिक सुख-सुविधाओं का भरपूर भोग कर रहे हैं। जिन्हें भोग-विलास करने से ही फुर्सत नहीं है। वह उस तथाकथित सुख के भ्रम जी रहे सुखी लोग है। कबीर के अनुसार दुखी लोग वे लोग हैं जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, जिनके सामने सांसारिक सुख-सुविधा और भोग-विलास कुछ नहीं है और उन्होंने इन सब को त्याग कर ईश्वर को पाने का मार्ग समझ लिया है।
कबीर के अनुसार ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है, क्योंकि जो लोग सांसारिक सुखों में लिप्त हैं, जो जीवन के भोगों को भोगने में डूबे हुए हैं, वह वास्तव में सोये हुए हैं। इसके विपरीत ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है, और वे लोग जो सांसारिक सुखों को तुच्छ समझते हैं। जिनके सामने भोग-विलास कुछ नहीं है, जो ईश्वर को पाने के मार्ग पर चल पड़े हैं, वह जगे हुए हैं, क्योंकि उनके अंदर आत्मज्ञान हो गया है। कबीर इस सांसारिक दुर्दशा को लेकर चिंतित भी हैं।
प्रश्न 5 : अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर : अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कवि ने कहा है कि मनुष्य को निरंतर अपनी आत्मशुद्धि करते रहने चाहिए। उसे अपने अंदर के दुर्गुणों का पता लगते रहना चाहिए। इसका सीधा और सरल उपाय यह है कि मनुष्य अपने पास अपने निंदकों को रखे, क्योंकि निंदक ही उसकी बुराई को उसके सामने बता सकते हैं। चाटुकार तो समय हमेशा उसकी तारीफ ही करेंगे और इससे उसे अपने अंदर के दुर्गुणों का पता नहीं चलेगा।
निंदक लोग व्यक्ति की त्रुटियों को व्यक्ति के सामने बोल सकते हैं, इसलिए व्यक्ति को अपने अंदर के दुर्गुणों का पता चलेगा और वह अपने दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास कर सकता है। कबीर के अनुसार निंदक ही मनुष्य के सबसे अच्छे हितेषी होते हैं, क्योंकि वह उसकी दुर्गुणों को बताते जिससे मनुष्य अपने दुर्गुणों को दूर कर सकता है, तभी उसका स्वभाव निर्मल बनेगा।
प्रश्न 6 : ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर : इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने प्रेम का महत्व समझाया है। कबीर के अनुसार लोग ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं। वह तरह-तरह के उपाय आदि करते हैं और न जाने क्या-क्या यतन-जतन करते रहते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए बहुत बड़े-बड़े कार्य करने की जरूरत नहीं है, बल्कि एक छोटा सा अक्षर प्रेम ही ईश्वर को पा लेने के लिए पर्याप्त है।
जिसके अंदर प्रेम है, जिसने प्रेम को समझ लिया वह ज्ञानी हो गया। जो ज्ञानी हो गया, उसे समझो ईश्वर मिल गए। बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं बन जाता। सही मायनों में विद्वान वही व्यक्ति बनता है, जो प्रेम के सच्चे, शुद्ध, निर्मल, प्रेम को समझ लेता है। इसके अंदर प्रेम का भाव जग गया, वह ईश्वर को बेहद सरलता से पा सकता है, वही सच्चा ज्ञानी बन सकता है।
(ख)
प्रश्न 1 : निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये।
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर : दी गईं पंक्तियों के भाव इस प्रकार हैं…
1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम को ही अपना सर्वस्व मानने लगता है, जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रूपी विरह का सर्प वास करने लगता है, ऐसे व्यक्ति पर अन्य कोई भी मंत्र असर नहीं करता। उस पर किसी अन्य बात का असर नहीं होता। उसे केवल ईश्वर के प्रेम की धुन सुनाई देती है। वह व्यक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम में इतना ऊँचा उठ जाता है कि वह सामान्य जीव नहीं रह जाता।
2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।
भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि मनुष्य अपनी अज्ञानता के कारण ईश्वर को इधर-उधर ढूंढता रहता है। वह ईश्वर को मंदिर, मस्जिद या अन्य धार्मिक स्थलों में ढूंढता रहता है, जबकि उसे पता नहीं होता कि ईश्वर तो उसके अंदर ही निवास कर रहा है। बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह कस्तूरी हिरण की नाभि में कस्तूरी छुपी होती है। लेकिन हिरण कस्तूरी की सुगंध के कारण उसे अन्य जगह ढूंढता रहता है। उसे यह नहीं पता होता कि यह कस्तूरी की सुगंध उसकी नाभि से ही आ रही है।
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि जब तक मनुष्य के अंदर मैं यानि अहं है, अज्ञान रूपी अंधकार है, तब तक वो ईश्वर को नहीं पा सकता। जब मनुष्य के अंदर से मैं यानी उसके अहं का भाव मिट जाएगा तो वो ईश्वर को समझ लेगा और ईश्वर को पा लेगा। कबीर कहना चाहते हैं कि अहंकार और ईश्वर दोनों साथ साथ नहीं रह सकते।
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि बड़े-बड़े ग्रंथ, किताब में पढ़ लेने से कोई पंडित ज्ञानी नहीं हो जाता। विद्वान बनने के लिए प्रेम के मात्र ढाई अक्षर पढ़ना ही काफी है। जिसने प्रेम के ढाई अक्षर को पढ़ लिया, वही सबसे बड़ा ज्ञानी है। जब वह ज्ञानी बन जाएगा तो ईश्वर को पाने से कोई नहीं रोक सकता। ईश्वर को पाने के लिए अपने हृदय में प्रेम को बसाना होगा, प्रेम को समझना होगा। प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ने का तात्पर्य यही है कि विद्वान बनने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ने से ही ज्ञान नहीं आता बल्कि अपने मन में प्रेम को धारण करने से, सबके प्रति प्रेमभाव रखने से ज्ञान आता है।
प्रश्न 2 : पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर : पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास। निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप इस प्रकार होंगे : जीवा : जीना औरन : औरों को माँहि : के अंदर देख्या : देखा भुवंगम : साँप नेड़ा : पास आँगणि : आँगन साबण : साबुन मुवा : मुआ, नालायक पीव : प्रेम जालौं : जलना तास : उसका
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1 : ‘साधु में निंदा सहन करने से विनय शीलता आती है’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में उपरोक्त विषयों पर चर्चा आयोजित करें।
प्रश्न 2 : कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर : कस्तूरी एक पदार्थ होता है जो एक पशु हिरण की नाभि में पाया जाता है। ये अत्यन्त सुगंधित पदार्थ होता है।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1 : मीठी वाणी/बोली संबंधी, ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर : ये अलग-अलग स्रोतों से मीठी वाणी/बोली संबंधी, ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन करें और उन्हे चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर चिपकाए।
प्रश्न 2 : कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।
उत्तर : विद्यार्थी कबीर के दोहों का संकलन करे और उन्हे अपनी कक्षा मे अत्याक्षरी खेलते समय प्रयोग करें। इससे न केवल उन्हे कबीर के दोहे याद होगे बल्कि उन दोहों के प्रति नैतिक शिक्षा रूपी संदेश को भी समझ सकेंगे।
कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श — Class-10 Chapter-1 Hindi Sparsh (NCERT Solutions)
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