‘ईदगाह’ पाठ के आधार पर अगर हम कहें तो मेलों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है। मेले हमारी भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा है। यह सामाजिक समरसता और उत्सव की प्रासंगिकता को प्रकट करते हैं। मेले भारत ग्रामीण संस्कृति और शहरी संस्कृति में न केवल समुदायिकता की भावना को पोषित करते हैं बल्कि यह लोगों को अपनी जरूरत की सभी चीजों को एक जगह पाने के अलावा मनोरंजन और अपनी कला के प्रदर्शन करने का भी माध्यम रहे हैं।
मेले भारत की लोक संस्कृति के प्रदर्शन का सशक्त जरिया रहे हैं। मेलों की संस्कृति भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलति रही है। भारत के हर क्षेत्र में कोई ना कोई मेला अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। मेरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने का उचित माध्यम रहे हैं। मेलों के माध्यम से भारत की लोक कला, शिल्प कला, रंगमंच और लोक संस्कृति को भी प्रचारित-प्रसारित किया जाता रहा है।
मेले भारत के पर्व-त्योहार को मनाने का भी केंद्र बिंदु रहे हैं। जैसा कि ईदगाह कहानी स्पष्ट है कि यह ईद त्योहार को मनाने पर केंद्र मेला था। उसी तरह भारत के अनेक व्रत-त्योहार से संबंधित मेले हर वर्ष लगते हैं। चाहे वह दिवाली हो अथवा होली अथवा रक्षाबंधन अथवा जन्माष्टमी या नवरात्रि या दशहरा मेला। सभी त्योहारों पर किसी न किसी क्षेत्र में उस त्योहार पर केंद्रित मेला लगता रहता है।
रामलीला का मंचन भारत में सदियों से प्रचलित है। सितंबर अक्टूबर माह में भारत में भारत में विशेषकर उत्तर भारत में रामलीला पर मेला लगा काफी समय से प्रचलित रहा है और यह आकर्षण का केंद्र बिंदु भी रहा है। इस तरह अलग-अलग त्योहार पर केंद्रित होकर मेले लगते रहे हैं। मेले भारत की संस्कृति का परिचायक है। यह भारतीय संस्कृति को आगे ले जाने का कार्य करते हैं।
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प्रेमचंद की कहानियों का विषय समयानुकूल बदलता रहा, कैसे ? स्पष्ट कीजिए।