“जानता हूँ, युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किंतु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शस्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे समय दो युधिष्ठिर ! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ?”
क) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ?
उत्तर : इस संवाद में वक्ता दुर्योधन है। वह जानता था कि उसने काल रूपी जिस अग्नि को पांडव के प्रति अपने लोभ, ईर्ष्या और षडयंत्र रूपी घी देकर भड़काया था, उसी कालाग्नि में उसी का कुल और उसके साथी, भाई-बंधु सब स्वाहा हो गए, अब उसकी बारी है ।
ख) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ?
उत्तर : वक्ता यानी दुर्योधन इस समय असहाय इसलिए हो गया था, क्योंकि महाभारत के लंबे युद्ध के कारण उसे निरंतर निराशा और अवसाद मिल रहा था और उसकी हार निश्चित थी। उसने अपना सब कुछ खो दिया था।
ग) श्रोता को तेरह वर्ष का समय क्यों दिया गया था ?
उत्तर : श्रोता यानि युधिष्ठिर को दुर्योधन ने 13 वर्ष का वनवास समय इसलिए दिया गया था क्योंकि दुर्योधन ने युधिष्ठिर से शर्त लगाई थी कि यदि युधिष्ठिर द्यूत क्रीड़ा में हार गये तो उन्हें उनको अपने सभी भाइयों सहित 13 वर्ष के वनवास के लिए जाना पड़ेगा। उसके बाद भी उन्हें उनका राज्य वापस मिलेगा।
घ) श्रोता को जो समय दिया गया था, उसके पीछे वक्ता का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर : दुर्योधन ने पांडवों को 13 वर्ष का वनवास इसलिए दिया था क्योंकि उसने सोचा था कि 13 वर्ष के वनवास की अवधि में पांडव कमजोर पड़ जाएंगे और वन के कठिन जीवन का वे सामना नहीं कर पाएंगे। इस तरह से पांडवों की तरफ से उसे कोई चुनौती नहीं मिलेगी।
ङ.) क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो सका ?
उत्तर : दुर्योधन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसने जैसा सोचा था कि पांडव कमजोर पड़ जाएंगे। लेकिन वैसा हुआ नहीं। बल्कि पांडव 13 वर्ष का वनवास बिताकर वापस अपने राज्य को लेने के लिए आ गए थे और वह उतनी ही मजबूती से अपने राज्य को वापस लेने के लिए तत्पर थे
Related questions
युधिष्ठिर के अनुसार मनुष्य का साथ कौन देता है ?