कवयित्री ने समभावी उन लोगों के लिए कहा है, जो समान भाव रखते हैं यानी योग और भोग के बीच का रास्ता अपनाते है, यानि दोनों के प्रति समान भाव रखते हैं। कवयित्री का कहना है कि समभावी बनकर रहना चाहिए। हमको भोग और योग के बीच के मार्ग को अपनाना चाहिए। कवयित्री का कहना है कि केवल योग को अपनाने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती और हमेशा भोग करते रहने से भी मन सदैव वासनाओं में लिप्त रहता है और ईश्वर से ध्यान हट जाता है। इसलिए हमें समान वाक्य भोग और योग दोनों के प्रति समान भाव रखना चाहिए। कवयित्री के कहने का भाव है कि इंद्रियों का भरण पोषण नियंत्रित और संयमित होकर करना चाहिए। इंद्रियों को केवल इतनी छूट देनी चाहिए जिससे हमारा मन ईश्वर से नहीं भटके। हमें भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाकर बीच का मार्ग अपनाना चाहिए यानि दोनों के प्रति समभावी रहना चाहिए तभी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। न तो हमेें बहुत अधिक त्याग करना चाहिए और ना ही बहुत अधिक भोग करना चाहिए।
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