‘उषा की दीपावली’ और ‘मुस्कुराती चोट’ यह दोनों कहानी अलग-अलग संदेश देती हुई बेहद भावपूर्ण कथाएं हैं। यह दोनों लघु कथाएं शिक्षाप्रद लघु कथाएं हैं जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण संदेश को देती हैं।
‘उषा की दीपावली’ लघुकथा के माध्यम से हमें खाने की बर्बादी न करने तथा गरीब लोगों के प्रति संवेदनशीलता अपनाने का संदेश दिया गया है। इस कहानी में ही मुख्य पात्र उषा नाम की एक बालिका और बवन नाम का एक बालक है। बवन बेहद गरीब है जो दूसरों के घर पर की बेकार की चीजों को एकत्रित करके अपने खाने का जुगाड़ करता है। उसे दो वक्त की भोजन ढंग से नहीं मिल पाता था। उषा एक संपन्न परिवार की बालिका है, जिसे अक्सर बाजारू खाने में अधिक रुचि है। उसके घर में खाने की कोई कमी नहीं लेकिन वह बाजार के खानों के प्रति अधिक रुचि रखती है।
बबन उसके घर पर सफाई करने आता है। एक दिन वह बबन को दीपावली के आटे के बने बुझे दीपक को इकट्ठा करते हुए देखती है, जिन्हें वह कचरे में ना डालकर अपनी अपने जेब में रख रहा था। उससे पूछने पर पता चला कि वह आटे के दीपकों को सेंककर खाएगऔर अपनी भूख को मिटाएगा। उषा इस बात से द्रवित हो उठती है। उसने सोचा एक तरफ उसके जैसे लोग हैं, जिनके पास खाने की कोई कमी नहीं और वह खाने की बर्बादी करते हैं, दूसरी तरफ बबन जैसे लोग हैं जो खाने के लिए इस तरह की संघर्ष करते हैं।
उषा बबन को ढेर सारा खान का सामान देती है और भविष्य में खान की बर्बादी न करने तथा गरीबों के प्रति संवेदनशीलता रखने की प्रतिज्ञा लेती है।
यह कहानी हमें खाने की बर्बादी न करने की सीख देती है। इस दुनिया में ऐसे अनेक लोग हैं जिन्हें दो वक्त का खाना ढंग से नहीं मिल पाता और कुछ लोग खाने की बर्बादी करते हैं। थोड़ा सा खाना खाकर बाकी खाना फेंक देते हैं, बिल्कुल भी सही प्रवृत्ति नहीं है।
‘मुस्कुराती चोट’ लघुकथा बबलू नामक एक ऐसे संघर्षशील की कहानी है, जो पिता की बीमारी के कारण अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहा। वह घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठी करके अपने जीवन यापन की व्यवस्था करता है। उसकी माँ भी छोटी सी नौकरी करती है।
बबलू को पढ़ने का बेहद शौक है लेकिन पर्याप्त पैसे ना होने के कारण वह पढ़ाई नहीं कर पाता। वह रद्दी में मिली किताबें को ही अपने पढ़ने का जरिया बना लेता है और अपनी उपयोगी किताबों को छांटकर अपने पढ़ने के लिए रख लेता है।
एक घर की मालकिन को उसकी इस बात का पता चलता है तो वह उसकी पढ़ाई के खर्चे का जिम्मा उठाती है। इससे उसके दुखी जीवन में मुस्कुराहट भर उठती है।
यह कहानी भी जीवन के संघर्षों को उठाती हुई कहानी है, जो हमें बताती है कि यदि किसी कार्य के प्रति लगन हो तो कहीं ना कहीं रास्ता अवश्य मिलता है। बबलू गरीबी के कारण वह भले ही पढ़ाई नहीं कर पा रहा था लेकिन उसने अपनी पढ़ाई की लगन को जारी रखा और उसे पढ़ाई का सहारा भी मिला।
‘उषा की दीपावली’ और ‘मुस्कुराती चोट’ ये दोनो लघुकथाएं हमें जीवन के संघर्ष से जूझने के प्रेरणा देने के साथ हमें असहायों और जरूरतमंदों के प्रति संवेदनशीलता अपनाने का भी सीख देती हैं। ये दोनों लघुकथाएं हमें दया, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ाती हैं।