साहब तें सेवक बड़ो जो निज धरम सुजान ।
राम बाँधि उतरे उदधि, लाँघि गए हनुमान ।।
संदर्भ : ये दोहा तुलसीदास कृत ‘दोहावली’ से लिया गया है। इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास भक्त को भगवान से भी अधिक बड़ा बता रहे हैं। उनके कहने का तात्पर्य भक्ति की शक्ति की व्याख्या करना है, ये भक्ति की शक्ति ही भक्त को भगवान से बड़ा बना देती है।
अर्थ : तुलसीदास कहते हैं कि जो सेवक अर्थात भक्त अपने धर्म अर्थात कर्तव्य को अच्छी तरह जानता है, वह अपने स्वामी से भी बड़ा हो जाता है। श्री राम ने समुद्र पार करने के लिए पुल बनवाया था, जबकि हनुमान जी ने उसे एक छलांग में ही पार कर लिया।”
इस दोहे में भक्त और स्वामी के संबंध का सुंदर वर्णन किया गया है। यह बताता है कि जब कोई भक्त या सेवक अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित होता है और अपने धर्म (कर्तव्य) को अच्छी तरह से समझता है, तो वह अपने स्वामी से भी महान कार्य कर सकता है।
रामायण के अनुसार, श्री राम ने लंका जाने के लिए समुद्र पर सेतु (पुल) बनवाया था। वह भगवान के अवतार थे ओर शक्ति से परिपूर्ण थे। वे चाहते तो एक वाण से ही समुद्र को सुखा सकते थे लेकिन उन्होंने अपनी शक्ति की मर्यादा रखी। जबकि हनुमान जी ने अपनी शक्ति और भक्ति के बल पर समुद्र को एक छलांग में पार कर लिया था क्योंकि वह भक्त थे।
व्याख्या : इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास जी ने यह समझाने का प्रयत्न किया है कि भगवान भले ही अपनी शक्ति की मर्यादा रखें, लेकिन वह अपने भक्त को असीमित शक्ति प्रदान करते हैं। भगवान राम ने अपनी मर्यादा रखते हुए अपनी शक्ति का अधिक प्रयोग नहीं किया लेकिन उनके भक्त हनुमान ने अपनी शक्तियों का भरपूर प्रयोग किया क्योंकि वे भक्त थे। भगवान अपने भक्त को असीमित शक्ति प्रदान करते हैं। यही भक्ति की महिमा है। सच्चा भक्त अपने भगवान से अधिक महिमावान हो जाता है।
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