गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।। (भावार्थ बताएं)

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।

भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि गुरु पारस पत्थर के समान होता है। गुरु और पारस पत्थर के बीच अंतर तो केवल ज्ञानी पुरुष ही समझ सकते हैं। पारस पत्थर वह पत्थर होता है जो लोहे को भी सोना बना देता है। जिसके स्पर्श से कोई भी लोहा सोना बन जाता है। गुरु भी लोहे रूपी शिष्य को सोना रूपी शिष्य बना देता है।

शिष्य जब गुरु के पास आता है तो वह लोहे के समान होता है और गुरु पारस पत्थर है। गुरु के स्पर्श से वह शिष्य सोना बन जाता है अर्थात यहाँ पर गुरु के स्पर्श से तात्पर्य गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान से है। जब अज्ञानी शिष्य गुरु के पास आता है तो गुरु से ज्ञान ग्रहण करके उसके अंदर का अज्ञान मिट जाता है और ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित हो उठता है। तब वह शिष्य सोने के समान बन जाता है। इसीलिए गुरु महान है क्योंकि वह शिष्य को अपने जैसा बना देते हैं।


Other questions

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।। (भावार्थ बताएं)

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।। कबीर के इस दोहे का भावार्थ बताएं। (गुरु पूर्णिमा पर विशेष)

Related Questions

Comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Questions