पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भया उजास। मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।।​ भावार्थ बताएं।

पिंजर प्रेम प्रकासिया, अंतरि भयाभया उजास।
मुख कस्तूरी महमहीं, बाँणी फूटी बास।।​

संदर्भ : ये दोहे की कबीर की साखियां है। इस दोहे के माध्यम से कबीर ने मन में प्रेम के उत्पन्न होने और ज्ञान के जाग्रत होने की अवस्था और उसके अनुभव का वर्णन किया है। उन्होंने प्रेम और ज्ञान के महत्व को समझाया है।

भावार्थ : कबीर कहते हैं कि जैसे ही इस मन और शरीर में प्रेम उत्पन्न हुआ वैसे ही प्रेम की चमक से पूरा अन्तर्मन उजला हो गया। मन का अंधकार मिट गया और ज्ञान का प्रकाश फैल गया। ज्ञानोदय होने पर मुँह कस्तूरी जैसी सुंगध से महक उठा और वाणी से भी अद्भुत सुगंध फूटने लगी।

व्याख्या : यहाँ पर कबीर ने प्रेम और ज्ञान के महत्व को बताया है। कबीर का कहना है कि जब मनुष्य प्रेम का महत्व समझ लेता है, तो उसके ज्ञान चक्षु खुल जाते है। ज्ञान चक्षु अर्थात ज्ञान रूपी आँखें खुल जाने पर मन ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो उठता है। जब मनुष्य प्रेममय और ज्ञानमय हो जाता है तो न केवल उसके मुख से बल्कि उसकी आवाज से भी सुगंध बिखरने लगती है। प्रेम और ज्ञान के प्रभाव से मनुष्य का पूरा शरीर ही सुगंधमय हो जाता है।

कठिन शब्दों के अर्थ

पिंजर : शरीर
उजास : उजाला, प्रकाश
बाँणी : आवाज, बोली
बास : गंध, सुगंध
अंतरि : ह़दय, मन
प्रकासिया : प्रकाश से आलोकित होना


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