गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।। (भावार्थ बताएं)

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष।।

भावार्थ : कबीरदास कहते हैं कि गुरु के बिना किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त होना बिल्कुल ही असंभव है। गुरु के बिना ना तो ज्ञान प्राप्त हो सकता है और ना ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है। बिना गुरु के मनुष्य इस माया रुपी संसार के बंधनों में फंसा रहता है और संसार की मोह माया में उलझा रहता है।

जब तक गुरु की कृपा नहीं होती। गुरु की कृपा के कारण गुरु से ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक मनुष्य का उद्धार नहीं होता। गुरु ही है जो मनुष्य को सत्य का मार्ग दिखाते हैं। वह ही सत्य और असत्य का भेद करना सिखाते हैं। वह अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझना सिखाते हैं। जब व्यक्ति गुरु से ज्ञान प्राप्त कर लेता है तो उसकी मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है। उसके भीतर के सारे दोष मिट जाते हैं। उसके अंदर अज्ञानता का अंधकार मिटकर ज्ञान का प्रकाश जल उठता है। इसलिए हमें सदैव अपने गुरु की शरण में ही जाना चाहिए, वह ही हमें सत्य की राह दिखा सकते हैं।


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