अनुच्छेद
जीने की कला
जीवन एक अनमोल उपहार है, जिसे सार्थक बनाना हमारे हाथों में है। जीने की कला का मूल मंत्र है – स्वयं के साथ-साथ दूसरों के लिए भी जीना। जो व्यक्ति केवल अपने सुख की चिंता करता है, वह वास्तव में जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित रह जाता है। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढना ही जीवन का सच्चा सुख है। सहयोगपूर्ण जीवन शैली अपनाकर हम न केवल अपने जीवन को सरल बनाते हैं, बल्कि समाज में सद्भावना का वातावरण भी निर्मित करते हैं। परस्पर सहयोग से जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान संभव हो जाता है। अंततः, जीने की कला का सार है – स्वार्थ से ऊपर उठकर परोपकार की भावना से जीवन जीना, जिससे हमारा जीवन सार्थक और संतुष्टिपूर्ण बन सके।
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