अनुच्छेद लेखन
मनुष्यता क्या है?
मनुष्यता से तात्पर्य उस आचरण और व्यवहार से है, जो मानव में ही पाया जाता है, पशुओं में नहीं। कुछ संवेदनात्मक व्यवहार प्रकृति ने केवल मनुष्य के लिए ही प्रदान किए हैं। यह संवेदनात्मक व्यवहार एवं आचरण जो कि मनुष्य के अंदर ही पाए जाते हैं, वही मनुष्यता कहलाती है। यह संवेदनात्मक आचरण और व्यवहार हैं, दया, प्रेम, करुणा, विचारशीलता, बुद्धिमत्ता, संस्कार और सभ्यता आदि। यह सभी मानवीय संवेदनाएं और मानवीय आचरण कहलाते है, जो मनुष्य में पाई जाती है। इन्हीं सभी गुणों और व्यवहारों का समूह ही मनुष्यता है। जो व्यक्ति इन सभी गुणों से रहित होता है, वह मनुष्य होकर भी पशु के समान है।
संसार के सभी प्राणियों में केवल मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है, जो अपने भोजन-पानी इतर भी बहुत कुछ कार्य करता है। संसार के अन्य संभी प्राणी केवल अपने भोजन की तलाश करने और अपने भोजन को करने में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते है। भोजन के अतिरिक्त उनका अन्य कोई कार्य नहीं होता। जबकि मनुष्य के अंदर संवेदनाएं, बुद्धि और विचारशीलता भी होती है, जिनके आधार पर अपने भोजन के प्रबंध करने के अतिरिक्त भी अनेक कार्य करता है। इसीलिये मनुष्य इस संसार के सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, जिसमें अनेक विशिष्ट गुण पाए जातें है। यही गुण उसे मनुष्यता की पहचान देते हैं।
इसीलिए जिस व्यक्ति के अंदर ऐसे गुणों का अभाव पाया जाता है उसे अक्सर कह देते हैं, कि उसके अंदर मनुष्यता नहीं बची।
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