कहानी
कर्म की प्रधानता
एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में राजाराम नाम का एक मेहनती किसान रहता था। राजाराम बहुत गरीब था, लेकिन वह अपने परिश्रम से कभी हार नहीं मानता था। वह रोज सुबह जल्दी उठकर खेतों में काम करता और देर शाम तक मेहनत करता रहता।
गाँव में एक और व्यक्ति था, किसनलाल, जो राजाराम का पड़ोसी था। किसनलाल एक आलसी और कायर व्यक्ति था, जो हमेशा भाग्य और किस्मत के भरोसे रहता था। वह हमेशा कहता था कि उसकी किस्मत खराब है, इसलिए वह कभी सफल नहीं हो पाता।
एक दिन गाँव में एक साधू बाबा आए। गाँव वाले साधू बाबा के पास अपनी समस्याओं का समाधान पूछने गए। राजाराम और किसनलाल भी साधू बाबा के पास गए। राजाराम ने अपनी मेहनत की बात बताई और कहा कि वह और भी मेहनत करना चाहता है ताकि वह अपनी गरीबी से बाहर निकल सके। वहीं, किसनलाल ने अपनी किस्मत की दुहाई दी और कहा कि उसकी किस्मत खराब है इसलिए वह कुछ भी नहीं कर पाता।
साधू बाबा ने दोनों की बातें सुनीं और फिर मुस्कराते हुए कहा, “अच्छा, मुझे तुम्हारे खेत दिखाओ।” राजाराम और किसनलाल दोनों अपने-अपने खेत लेकर गए। साधू बाबा ने राजाराम के खेत में हरी-भरी फसल देखी और किसनलाल के खेत में जंगली घास उगी हुई देखी।
साधू बाबा ने कहा, “राजाराम, तुम्हारे खेत में हरी-भरी फसल इसलिए है क्योंकि तुम मेहनत करते हो और अपने खेत का ख्याल रखते हो। वहीं, किसनलाल, तुम्हारे खेत में जंगली घास इसलिए है क्योंकि तुम मेहनत नहीं करते और अपने खेत का ख्याल नहीं रखते। किस्मत नहीं, बल्कि मेहनत और कर्म ही जीवन में सफलता दिलाते हैं।”
राजाराम की मेहनत की प्रशंसा करते हुए साधू बाबा ने कहा, “कर्म ही प्रधान है। यदि तुम मेहनत करोगे, तो तुम्हारी किस्मत भी तुम्हारा साथ देगी।” किसनलाल ने यह सुनकर अपनी गलती मानी और राजाराम से प्रेरणा लेकर उसने भी मेहनत करनी शुरू कर दी।
कुछ महीनों बाद, किसनलाल का खेत भी हरी-भरी फसलों से लहलहा उठा। उसने समझ लिया कि किस्मत का खेल केवल मेहनत और कर्म पर निर्भर करता है। इस तरह, गाँव में कर्म की प्रधानता की एक अनमोल शिक्षा फैल गई और सभी गाँव वाले मेहनत करने लगे, जिससे गाँव समृद्ध और खुशहाल बन गया।