सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है।
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
संदर्भ : यह पंक्तियां ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा रचित कविता की पंक्तियां हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने मनुष्य के सहनशीलता वाले गुण का वास्तविक अर्थ बताया है कि सहनशीलता का गुण किस व्यक्ति पर शोभा देता है।
भावार्थ : कवि कहता है कि अभी रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि क्षमाशीलता एक महत्वपूर्ण गुण है यानी क्षमा करना मानव का सबसे सुंदर गुण है। लेकिन क्षमा करने का यह गुण केवल बलवान और वीरों को ही शोभा देता है। क्योंकि जिसके अंदर बल है, शक्ति है, सामर्थ्य है, वही क्षमा कर सकता है। क्षमा करने का गुण उसके दूसरें गुणों के निखार देता है। कायर व्यक्ति के लिए क्षमा करने का गुण उसकी कमजोरी का प्रतीक है, क्योंकि ऐसा करके वह केवल अपनी कमजोरी को ही छुपा सकता है।