‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में कैप्टन इस कहानी के मुख्य पात्रों में से एक है। वह एक साधारण सा, दुबला-पतला व्यक्ति है, जो चश्मे की फेरी लगाकर अपना गुजारा करता है। एक ऐसा चरित्र है जो अपनी देशभक्ति के लिए ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी में अद्वितीय रूप से उभरता है। हालांकि वह एक साधारण चश्मा विक्रेता है, लेकिन उनकी देशभक्ति किसी भी तरह से कम नहीं है।
कैप्टन की देशभक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के प्रति उनका समर्पण है। वह हर दिन मूर्ति के चश्मे को साफ करता हैं और उसकी देखभाल करता है। यह छोटा सा कार्य उनकी अगाध देशभक्ति और नेताजी के प्रति सम्मान को दर्शाता है। जब मूर्ति बनी थी तो मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था। चश्मा नेता सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व की एक पहचान थी। ये बात वह जानता था, इसलिए वह रोज अपने फेरी के चश्मों में से कोई न कोई चश्मा मूर्ति पर लगा देता था।
कैप्टन को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से गहरा लगाव था। वह उनके विचारों और देशभक्ति से प्रभावित था और अपने छोटे से कार्य के माध्यम से उनकी विरासत को जीवित रखना चाहते था। कैप्टन के लिए, नेताजी की मूर्ति महज एक पत्थर का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनके आदर्शों और बलिदानों का प्रतीक थी।
नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति को वह देख नहीं सकता था। यह त्याग उसकी देशभक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है। कैप्टन का यह छोटा सा कार्य दर्शाता है कि देशभक्ति सिर्फ बड़े-बड़े कार्यों या त्यागों में ही नहीं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन के छोटे-छोटे कार्यों में भी झलकती है। उनकी देशभक्ति शोर-शराबे और प्रदर्शन से दूर, शांत और निस्वार्थ है।
कैप्टन हमें सिखाता है कि देशभक्ति का अर्थ है अपने देश के महान नेताओं और उनके आदर्शों का सम्मान करना और उनकी विरासत को जीवित रखना। उनकी देशभक्ति हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने छोटे-छोटे प्रयासों से देश के प्रति अपना कर्तव्य निभा सकते हैं।
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