जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
संदर्भ : यह दोहा रहीमदास द्वारा रचित है। इस दोहे के माध्यम से रहीमदास ने अच्छी संगत का प्रभाव बताया है।
भावार्थ : रहीमदास कहते हैं कि जो व्यक्ति सज्जन होते हैं, जिनका स्वभाव अच्छा होता है, उन पर किसी भी तरह की कुसंगति यानी बुरी संगत असर नहीं डाल सकती। सज्जन व्यक्ति किसी भी तरह की कुसंगति से अप्रभावित रहते हैं, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह चंदन का वृक्ष पर अनेकों जहरीले सांप लिपटे रहते हैं, लेकिन उसके बावजूद भी चंदन के वृक्ष पर उन सांपों के जहर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वह अपनी सुगंध बिखेरता रहता है।
व्याख्या : इस दोहे के माध्यम से रहीमदास जी ने सज्जन व्यक्ति को स्वभाव के महत्व को बताया है। उनके अनुसार अच्छी संगत में रहने वाले सज्जन व्यक्ति बेहद दृढ़ निश्चायी होते हैं। उन पर किसी भी तरह की कुसंगति का असर नहीं होता। वह अपने संकल्प के बल पर हर तरह की कुसंगति से अप्रभावित रहते हैं।
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने उन्होंने चंदन के वृक्ष का उदाहरण दिया है। हम सभी जानते हैं कि चंदन का वृक्ष बेहद सुगंध बिखेरता है और वह अपनी सुगंधित लकड़ियों के लिए जाना जाता है। उसकी इसी सुगंध के कारण चंदन के वृक्ष पर अनेक तरह के जहरीले सांप भी लिपटे रहते हैं, लेकिन उन जहरीले सांप के जहर का प्रभाव चंदन के वृक्ष पर नहीं पड़ता और वह अपनी मधुर सुगंध निरंतर बिखेरता रहता है। वह अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ता। उस पर जहरीले सांपों की कुसंगति का कोई असर नहीं होता।
इसी तरह अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति पर भी किसी तरह की कुसंगति का असर नहीं होता। वह हर तरह की संगति में रहने पर भी अपनी सज्जनता को नहीं छोड़ता।
अन्य दोहे…
लैकै सुघरु खुरुपिया, पिय के साथ। छइबैं एक छतरिया, बरखत पाथ ।। रहीम के इस दोहे का भावार्थ लिखिए।