‘मुंशी प्रेमचंद’ की कहानी ‘नमक का दरोगा’ में बंशीधर सत्य पर अडिग रहते हुए भी अकेले इसलिए पड़ गए क्योंकि उस समय पूरा तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ था। रिश्वतखोरी को सामान्य बात माना जाता था, इसलिए बंशीधर की ईमानदारी और सत्य पर अडिग रहने की प्रवृत्ति को मूर्खता समझा गया।
बंशीधर के पिता और परिवार उनसे अधिक कमाई की अपेक्षा रखते थे। जबकि बंशीधर रिश्वत नहीं लेना चाहते थे, इससे उनके घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है और उनका परिवार भी उनका साध नहीं देता।
जब बंशीधर पंडित अलोपीदीन जैसे प्रभावशाली व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, तो वह सामाजिक ताकत के खिलाफ खड़ा हो जाता है। इससे उसे अपने ही सहकर्मियों और अधिकारियों का विरोध झेलना पड़ता है। क्योंकि वे सभी पंडित अलोपदीन के धन के प्रभाव में आकर भ्रष्ट हो चुके थे।
अदालत में भी पंडित अलोपीदीन के पैसे और प्रभाव के आगे सच्चाई दब जाती है। और बंशीधर को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। इससे बंशीधर को लगता है कि उसकी ईमानदारी और सत्य पर अडिग रहने की उनकी कर्तव्यनिष्ठा बेकार गई।
निष्कर्ष :
प्रेमचंद जी ‘नमक का दरोगा’ कहानी में यह दिखाया है कि भ्रष्ट समाज में सत्य पर अडिग रहने वाला व्यक्ति अस्थायी रूप से अकेला पड़ सकता है, लेकिन अंततः उसकी ईमानदारी की जीत होती है। कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन स्वयं बंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित होकर उसे अपना मैनेजर बनाते हैं।
यह कहानी यह संदेश देती है कि सच्चाई का रास्ता कठिन होता है, लेकिन जो इस पर दृढ़ रहता है, उसे अंततः सम्मान मिलता है।
‘नमक का दरोगा’ कहानी के पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न
‘दुनिया सोती थी पर दुनिया की जीभ जागती थी।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (नमक का दरोगा)
पंडित अलोपदीन कौन थे? पंडित अलोपदीन की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए। (नमक का दरोगा)
ओहदे को पीर की मजार कहने में क्या व्यंग्य है? ‘नमक के दारोगा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
वंशीधर के पिता वंशीधर को कैसी नौकरी दिलाना चाहते थे?
न्यायालय से बाहर निकलते समय वंशीधर को कौन-सा खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ?
‘नमक का दरोगा’ पाठ की विधा क्या है ? (क) उपन्यास (ग) कहानी (ख) रेखाचित्र (घ) संस्मरण