पंडित अलोपदीन कौन थे? पंडित अलोपदीन की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए। (नमक का दरोगा)

‘नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपदीन शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित और  धनी व्यवसायी थे। पूरे शहर में उनका रसूख था। वह शहर के एक प्रसिद्ध और अमीर व्यक्ति थे। शहर में उनका प्रभाव इतना था कि कोर्ट कचहरी से लेकर सरकारी विभाग तक उनकी पहुंच थी।

कोर्ट कचहरी के न्यायाधीश से लेकर किसी भी विभाग के कर्मचारी-अधिकारी तक उनके धनबल और रसूख के प्रभाव में रहते थे। वह भ्रष्टा व्यवसायी भी थे क्योंकि वह कर की चोरी किया करते थे। वह अवैध रूप से नमक का व्यवसाय करते थे और उस पर कर नहीं चुकाया करते थे। इसी कारण दरोगा वंशीधर ने उनके अवैध नमक से भरी हुई गाड़ियोंंको पकड़ लिया था।

पंडित अलाउद्दीन की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार है…

  • पंडित अलोपदीन एक बेहद अमीर, धनबली और बाहुबली व्यक्ति थे। पूरे शहर में उनकी प्रतिष्ठा और रसूख था।
  • वह अपने धनबल के करण किसी भी मुकदमे को अपने पक्ष में कर लेते थे, चाहे उसे मुकदमे में उनकी गलती क्यों ना हो। दरोगा मुंशी वंशीधर का केस भी उन्होंने इसी तरह अपने पक्ष में कराया  था।
  • वह पूरी तरह गलत व्यक्ति नहीं थे क्योंकि उन्हें अपने गलत कार्यों का पछतावा भी हुआ था। जब उनके कारण दरोगा वंशीधर की नौकरी चली गई तो उन्होंने अपनी गलती का प्रायश्चित करते हुए वशीधर के पास जाकर न केवल माफी मांगी बल्कि उसे अपने यहां मैनेजर की नौकरी का प्रस्ताव भी दिया।
  • इस तरह वह वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित भी हुए।
  • यहां पर पंडित अलोपदीन के चरित्र के दो पहलू उभरकर सामने आते हैं।
  • एक पहलू एक भ्रष्ट व्यवसायी का था जो जो अपने धनबल के आधार पर अपनी गलत कार्यों से भी बच निकलते थे।
  • वहीं दूसरी तरफ उनके मन में ईमानदारी के प्रति सम्मान भी था। इसी कारण उन्होंने दरोगा वंशीधर की नौकरी जाने पर उसे अपने यहाँ काम पर रख लिया क्योंकि वह दरोगा बंशीधर की ईमानदारी के कायल हो गए थे।

‘नमक का दरोगा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसमें पंडित अलाउद्दीन कहानी के दो प्रमुख पात्रों में से एक पात्र हैं। दूसरा प्रमुख पात्र दरोगा बंशीधर था। दरोगा वंशीधर ईमानदार दरोगा था। पंडित अलोपदी एक भ्रष्ट व्यवसायी थे जिनके अवैध नमक से भरी बोरियों को दरोगा ने पकड़ लिया था। पंडित अलोपदीन में उसे रिश्वत देने की कोशिश की, लेकिन ईमानदार दरोगा अपने कर्तव्य से डिगा नहीं और उसने अलोपदीन को गिरफ्तार करके अदालत में पेश कर दिया। लेकिन पंडित अलोपदीन अपने धनबल के कारण पर छूट गए। मुंशी प्रेमचंद ने इसी पूरे घटनाक्रम को कहानी के ताने-बाने में प्रस्तुत किया है।


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