जब बुढ़िया की गाय चोरी हो गई तो मुंशी जी ने अपनी आदत के अनुसार बातों को बढ़ा-चढ़कर पेश किया। गाय चोरी होने की घटना की खबर सुनने के बाद पहले तो मुंशी जी ने अपनी तरफ से बात को जोड़ते हुए बातें बनाईं। मुंशी जी कहने लगे कि ‘अरे सभी यहीं सोते हैं, मैं खुद यहीं चबूतरे पर सो रहा था।’ फिर उन्होंने अपने अंदाज में बातों को घुमाते हुए कहा कि यह गाय जरूर 2ॉ बजे के करीब खोली गई है। मुझे कुछ आहट उसे वक्त सुनाई दी थी। मैं बहुत चौकन्ना होकर सोता हूँ। आहट सुनकर इधर-उधर देखा पर कुछ नजर नहीं आया। मैंने सोचा कि हवा के कारण आहट हुई होगी। उसके थोड़ी देर बाद मुझे कुछ खुरखुराहट भी सुनाई पड़ी। उस वक्त भी मेरे मन में यह विचार नहीं आया कि कोई गाय को खोलकर ले जा रहा है। उस समय मुझे ऐसा लगा कि जैसे गाय चल रही है, यही ख्याल करके मैं सो गया।
उसके बाद जब इस घटना की सूचना थानेदार को दी गई तो थानेदार के सामने मुंशी जी ने अपने द्वारा कही गई सारी बातों को नकार दिया जो उन्होंने थोड़ी देर पहले सभी लोगों से कहीं थी और कहा कि यह बात मैंने ऐसे ही अपनी तरफ से मनगढ़ंत बात बनाकर बोल दी थीं, मैंने कुछ नहीं देखा। इस तरह मुंशी जी ने बुढ़िया की गाय चोरी होने के बाद अपनी तरफ से मनगढ़ंत बातें मिलकर अपने अंदाज में बात कहीं थी।
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मुंशी जी किसी घटना की जानकारी को विस्तार कैसे देते थे? (पाठ- गाय की चोरी)