‘महायज्ञ का पुरुस्कार’ कहानी में जब सेठजी धन्ना सेठ से मिलने नगर की ओर चले तो सेठ जी ने सोचा कि सूरज निकलने से पहले जितना ज्यादा रास्ता तय कर लेंगे, उतना ही अच्छा होगा।
ऐसा उन्होंने भरी गर्मी के दिनों में यात्रा करने से होने वाली परेशानी से बचने के लिए सोचा। आधा रास्ता तय करते-करते सेठ जी को थकान महसूस होने लगी। यह उनके लिए एक परेशानी थी क्योंकि वे अभी पूरा रास्ता तय नहीं कर पाए थे।थकान और गर्मी के कारण, सेठ जी ने जब सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा, तो उन्होंने थोड़ा विश्राम करने और भोजन करने का निर्णय लिया। उन्होंने एक वृक्ष के नीचे शरण ली और वहाँ पर भोजन करने बैठ गए।
‘महायज्ञ का पुरुस्कार’ कहानी मानवीय करुणा और नि:स्वार्थ सेवा के महत्व को दर्शाती है। सेठजी जो बेहद धनी और उदार थे, व्यापार में घाटे कारण संकट में फंस जाते हैं। उन्होने अपने पुण्य कर्मों से संचित यज्ञ फल को बेचने का प्रावधान था। सेठजी भी धन्ना सेठ को अपना यज्ञ बेचने जाते हैं। रास्ते में भूख लगने पर जब अपने साथ लाया भोजन करने बैठे तोरास्ते में एक भूखे कुत्ते को अपना भोजन खिला देते हैं। यह छोटा सा पुण्या कार्य उनके जीवन को बदल देता है, और उन्हें अपने महायज्ञ का फल मिलता है। ये कहानी बताती है कि सच्चा धर्म दिखावे में नहीं, बल्कि निःस्वार्थ कर्म में है।
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सेठ जी ने कितनी रोटियां कुत्ते को खिला दी व क्यों ? (महायज्ञ का पुरुस्कार)