आद्योपांत का शाब्दिक अर्थ है, आरंभ से अंत यानी शुरू से आखिर तक।
‘महायज्ञ का पुरस्कार’ कहानी में सेठ जी को आद्योपांत यानि शुरू से आखिर तक कहानी इसलिए सुनानी पड़ गई क्योंकि सेठ जी के वापस लौटने पर सेठानी ने उन्हें खाली हाथ वापस आते देखा तो उनके मन में अनेक तरह की शंकाएं उत्पन्न हुई।
सेठ जी जिस कार्य हेतु गए थे, वह कार्य ना करके खाली हाथ वापस आए थे। इसी कारण सेठानी ने उनसे खाली हाथ वापस आने का कारण पूछा। तब सेठ जी ने आद्योपांत शुरू से आखिर तक सारी कहानी सुनाई।
सेठजी ने कहा कि किस तरह जब वह धन्ना सेठ के यहाँ पहुंचे और उन्हें अपने आने का कारण बताया। तब धन्ना सेठ की पत्नी ने उनसे कहा कि हम यज्ञ खरीदने के लिए तैयार हैं, लेकिन आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा। उनके यह कहने पर मैं आश्चर्य में पड़ गया कि मैंने तो वर्षों से कोई भी यज्ञ नहीं किया है और यह लोग महायज्ञ की बात कर रहे हैं। मेरी मन में उत्पन्न हुए संशय को जानकर धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा, कि आप जब हमसे मिलने आ रह थे तो रास्ते में एक भूखे कुत्ते को अपनी वह चारों रोटियां खिला दी जो आप स्वयं के लिए लेकर आए थे। अर्थात आपने स्वयं भूखे रहकर एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियां खिला दीं। इससे बड़ा महायज्ञ और क्या हो सकता है। यदि आप इसे बेचने को तैयार हैं तो हम आपका महायज्ञ को खरीदने के लिए तैयार हैं। सेठ जी यह सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि किसी भी भूखे को अन्न दान देना, मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। यह कोई महायज्ञ नहीं, यह मेरा कर्तव्य पालन था और अपने कर्तव्य को यूंही बेच कर मैं उसके महत्व को कम नहीं करना चाहता। इसमें बेचने वाली कोई बात नहीं। यह कहकर वहाँ से वापस आ गया।
ये सारी कहानी सुनकार सेठानी को अपने सेठ पति पर बहुत गर्व हुआ कि उन्होंने इतनी कठिन परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य पालन से मुख नही मोड़ा।
‘महायज्ञ का पुरस्कार’ कहानी ‘यशपाल’ द्वारा लिखित एक कहानी है। जिसमें एक धनी एवं उदार प्रवृत्ति के सेठ की कहानी का वर्णन किया गया है। सेठ बेहद दान-धर्म और यज्ञ करने वाले सेठ थे। उनके द्वार से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता था।
समय के फेर के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो चुकी थी। इसी कारण उनकी पत्नी सेठानी ने उनके द्वारा किए गए अनेक यज्ञों में से एक यज्ञ को नगर के धन्ना सेठ के पास बेचने का सुझाव दिया था ताकि बदले में कुछ धन प्राप्त हो सके। उस समय वह मनुष्य द्वारा किए गए यज्ञ का क्रय विक्रय हुआ करता था और उसका यज्ञ के अनुसार मूल्य मिल जाता था। इसी सिलसिले में सेठ जी धन्ना सेठ के यहाँ अपना यज्ञ बेचने गए थे। धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में यह मान्यता प्रचलित थी कि वह कोई दैवीय शक्ति से युक्त हैं, जिस कारण वह कोई भी बात जान लेती हैं। इसी कारण उन्हें सेठजी के साथ रास्ते में हुई घटना का पता चल गया था।
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