12 वर्ष पहले बैजू ने उस घटना को दोहराया, जिसमें उसके पिता की जान को तानसेन ने बक्श दिया था। 12 वर्ष बाद बैजू ने भी तानसेन की जान बख्श कर 12 वर्ष पूर्व की घटना को दोहराया।
‘सुदर्शन’ द्वारा लिखित ‘आदर्श बदला’ नामक पाठ में बैजू बावरा के जीवन का घटना का वर्णन किया गया है। पाठ में बताया गया है कि आगरा शहर में साधुओं की एक मंडली भजन गाते गाते हुए शहर में घूम रही थी। उन साधुओं के साथ एक छोटा बच्चा भी था।
आगरा शहर में उस समय अकबर का शासन था और अकबर के दरबार में तानसेन नवरत्नों में से एक था, जो एक महान संगीतकार था। तानसेन अपनी संगीत विद्या पर अभिमान था। इसी कारण उसने पूरे नगर में यह नियम बना रखा था कि जो व्यक्ति उसे राग विद्या में हरा नहीं पाएगा, वह आगरा की सीमा में कोई भी गीत नहीं गाएगा। यदि कोई व्यक्ति ऐसा गीत गाते पाया गया तो उसे मौत की सजा मिलेगी।
आगरा में प्रवेश करने वाले साधुओं की मंडली को यह नियम पता नहीं था। इसी कारण उन्हें पकड़ लिया गया और मौत की सजा दी गई, लेकिन बच्चे को छोड़ दिया गया। तानसेन ने बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया और उसकी जान बख्श दी। साधुओं में बच्चे का पिता भी था। वह बच्चा बैजू था, जो फिर आगरा शहर में करता रहा और फिर जंगल में बाबा हरिदास नामक एक साधु ने उसे शरण दी और उसे एक महान संगीतकार बनाया। बाद में बड़ा होकर बैजू ने संगीत विद्या में तानसेन को परास्त किया, लेकिन उसने तानसेन पर जान लेने का नियम नहीं लगाया और उसकी जान बख्श दी। इस तरह उसने 12 वर्ष पहले की गई घटना को दोहराया और अपने पिता की मौत का आदर्श बदला लिया।
Other questions
प्रेमचंद’ की कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ में आनंदी ने विवाद होने पर घर टूटने से कैसे बचाया?