‘बस की यात्रा’ पाठ में लेखक ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन की बात की है।
जब लेखक बस में बैठा तो तो बस के स्टार्ट होने के बाद बस चल पड़ी। तब लेखक बस के कलपुर्जे देखकर लेखक को ऐसा लग रहा था कि बस में गांधीजी का असहयोग आंदोलन चल रहा हो। बस के सारे कलपुर्जे एक दूसरे से असहयोग कर रहे थे। सीट कभी बॉडी छोड़कर आगे निकल जाती तो लेखक को लगता कि वे सीट पर नही बल्कि सीट उन पर बैठी है। इस तरह बस से सारे हिस्से एक-दूसरे से असहयोग कर रहे थे। ये सब देखकर ही लेखक को गांधीजी के असहयोग आंदोलन की याद आ गई। आगे थोड़ी दूर चलने के बाद जब बस एक जगह अचानक रूक गई और ड्राइवर की लाख कोशिशो के बाद भी बस स्टार्ट नही हुई तो लेखक को ये देखकर गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की याद आ गई। बस भी सविनन अवज्ञा के मूड में आ गई थी। इस तरह बस में यात्रा करते समय लेखक ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन और सवियन अवज्ञा आंदोलन की बात की है।
‘बस की यात्रा’ पाठ हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ द्वारा लिखा गया एक व्यंगात्मक निबंध है। इस पाठ में उन्होंने अपने मित्रों के साथ की गई अनोखी बस यात्रा के बारे में व्यंगात्मक वर्णन किया है।
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