घीसा की माँ ने पुनर्विवाह के प्रस्ताव को यह कहकर मना कर दिया कि वह शेर की विधवा है, अब भल सियार के साथ विवाह नहीं करेगी।
घीसा का पिता कोरी जाति का युवक था। जब दोनों का विवाह हुआ तो विवाह के कुछ महीनों बाद ही हैजा की बीमारी के कारण घीसा के पिता की मृत्यु हो गई। उस समय घीसा की माँ की आयु बहुत अधिक नही थी। उसके समाज और गाँव के कई विधुर और अविवाहित व्यक्तियों ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो घीसा की माँ ने पुनर्विवाह के प्रस्ताव को न केवल ठुकरा दिया बल्कि स्पष्ट शब्दों में अपने गर्व को प्रकट करते हुए ये कहा…
‘हम सिंघ कै मेहरारू होइके का सियारन के जाब।’
इन उत्तर के द्वारा घीसा की माँ ने कहा कि वह एक शेर समान व्यक्ति की विधवा है, वह भला तुम सियार जैसे लोगों के साथ व्यक्ति क्यों करेगी।
इस तरह घीसा की माँ ने पुनर्विवाह के प्रस्ताव को गर्व भले अंदाज में ठुकरा दिया।
टिप्पणी
“घीसा” हिंदी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा लिखा गया एक रेखाचित्र है। इसमें उन्होंने घीसा नामक एक अनाथ बालक के साथ बिताए गए अपने संस्मरणों का वर्णन किया है। घीसा एक अनाथ बालक था लेकिन उसकी पढ़ने में बेहद रूचि थी। वह एक गरीब घर का बालक था क्योंकि उसकी मां एक विधवा स्त्री थी और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण घीसा को पढ़ा पाने में सक्षम नहीं थी। महादेवी वर्मा ने घीसा को शिक्षा प्रदान करने का दायित्व उठाया था। घीसा ने भी महादेवी वर्मा को अपना गुरु मानकर उनसे पूरी लगन से शिक्षा ग्रहण की। घीसा के साथ महादेवी वर्मा के जो भी संस्करण थे, इस पाठ में उन्होंने उन्हीं संस्करणों का वर्णन किया है।
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