कर्नल ने घाव भरने के लिए गेंदे का रस पिलाने के लिए कहा था. ऐसे ही कई घरेलू इलाज हमारे बड़े बुजुर्गों की जानकारी में भी होते रहे हैं।
हमारी दादी-नानी और माँ आदि सभी इस तरह के कई घरेलू इलाज करते रहे हैं। बचपन में जब भी मेरे कान में दर्द होता था तो मेरी माँ सरसों के तेल में लहसुन को भूनकर वह तेल कान में डाल देती थी, जिससे कान का दर्द मिट जाता था। सर्दी जुकाम होने पर हमारी दादी हमें लौंग, काली मिर्च, अदरक, तुलसी के पत्ते वाली चाय पीने की सलाह देती थी अथवा वह दालचीनी, लौंग, काली मिर्च आदि का काढ़ा बनाकर पीने की सलाह देती थी।
हमारे दादा जी सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर दाँतों पर घिसा करते थे। उनका कहना था, इससे दाँत सफेद रहते हैं। हमने भी उसको आजमाया और उपाय सही था। हमारे दादा जी नीम की दातुन से भी दाँत घिसा करते थे और उनके दाँत 70 साल की उम्र तक मजबूत रहे।
हमारे शरीर पर कोई गुम चोट लग जाती थी, तो हमारी माँ हल्दी का लेप लगाती थी, जिससे दर्द से राहत मिलती थी और सूजन भी जल्दी खत्म हो जाती थी। इस तरह के घरेलू उपाय जो हमारे बड़े बुजुर्ग करते थे और इनसे भी फायदा होता था।
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