अपने गुरु के प्रति घीसा के व्यवहार से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु का सम्मान करना चाहिए। गुरु हमारे लिए श्रद्धा के पात्र होते हैं, उनके प्रति सम्मान और उनके प्रति समर्पण का भाव शिष्य के मन में सदैव होना चाहिए।
अपने गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बहुत अधिक सुविधा संपन्न होना आवश्यक नहीं है, मन में केवल भाव होना चाहिए, गुरु कैसे भी हों, उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का भाव होना चाहिए। घीसा एक साधारण गड़रिया का बालक था। वह बेहद गरीब था, लेकिन लेखिका के प्रति अपार सम्मान की भावना थी। लेखिका ने ही उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उसे पढ़ाने का उपक्रम आरंभ किया। इसी कारण घीसा लेखिका को अपना गुरु मानकर बेहद सम्मान करता था।
घीसा एक गरीब बालक था, इसी कारण लेखिका को गुरु दक्षिणा के रूप में कुछ धन आदि नहीं दे सकता था, इसी कारण जब गुरु दक्षिणा देने का समय आया तो उसने अपने कुर्ते को बेचकर एक तरबूज ले लिया और वह तरबूज अपने गुरु साहब यानि लेखिका को गुरु दक्षिणा के रूप में भेंट किया। उसकी यह गुरु दक्षिणा लेखिका के अंतरात्मा को छू गई। लेखिका स्वयं कहती है कि ऐसी अनमोल गुरु दक्षिणा आज तक कभी नहीं मिली।
इस तरह घीसा के स्वभाव से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए तथा पढ़ाई के प्रति भी लगन होनी चाहिए। घीसा में भी अपनी पढ़ाई के प्रति लगन थी और वह अपनी गुरु लेखिका महादेवी वर्मा का बेहद सम्मान करता था।
‘घीसा’ पाठ के विषय में कुछ
‘घीसा’ पाठ लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनके जीवन में घटित वास्तविक घटनाओं पर आधारित रेखाचित्र है। यह कहानी उन्होंने एक गड़रिया के गरीब बालक घीसा को आधार बनाकर लिखी है। लेखिका के ग्रामीण प्रवास के दौरान उनकी मुलाकात गाँव के अनेक बच्चों से हुई। उनमें घीसा नामक एक गरीब बालक था। उसे पढ़ाने का दायित्व लेखिका ने लिया। गुरु एवं शिष्य के बीच जो प्रसंग घटे, उसी को आधार बनाकर उन्होंने यह कहानी लिखी है।
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