सेठ जी ने अपनी चार रोटियां कुत्ते को खिला दी, क्योंकि जब वह अपनी यात्रा के समय रास्ते में विश्राम करके भोजन करने के लिए बैठे तो वहीं पास में एक कुत्ता जमीन पर भूख से बड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण कुत्ता बेहद दुर्बल हो गया था और दुर्बलता के कारण वह अपने सर को भी नहीं उठा पा रहा था। कुत्ते की ऐसी दयनीय हालत देखकर सेठ जी को दया आ गई और उन्होंने अपनी चारों रोटियां धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दी।
‘महायज्ञ का पुरुस्कार’ नामक कहानी जो यशपाल द्वारा लिखी गई कहानी है, उसके मुख्य पात्र सेठजी एक नगर सेठ थे। वह बेहद दयालु प्रवृत्ति के थे। उनके घर से कोई भी खाली हाथ नही जाता था। सेठ के व्यापार में हानि होने के कारण एक बार उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी तो उनकी पत्नी सेठानी ने नगर के एक धन्ना सेठ के पास जाकर सहायता माँगने का सुझाव दिया।
उन दिनों अपने द्वारा किए गए अच्छे कर्मों के यज्ञ के फल की बिक्री हुआ करती थी। इसलिए सेठ जी ने अपना यज्ञ बेचने बेचने सोची और वह धन्ना सेठ के पास कुंदनपुर नगर चल दिए। उनकी पत्नी ने रास्ते में भोजन के लिए चार मोटी-मोटी रोटियां बनाकर पोटली में बांध कर दे दीं। अपनी यात्रा के समय रास्ते में जब वह एक जगह विश्राम करके भोजन करने बैठे तो वहीं पास में एक भूखे कुत्ते की दयनीय हालत देखकर उन्होंने अपनी चारों रोटियां कुत्ते के खिला दीं और स्वयं केवल पानी पीकर आगे चल दिए।
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