‘ओहदे को पीर की मजार कहने में’ ये व्यंग्य निहित है कि ओहदा अर्थात पद ऐसा होना चाहिए, जहाँ पर अधिक से अधिक ऊपरी कमाई का रास्ता बने।
‘नमक का दरोगा’ पाठ में मुंशी जी अपने पुत्र दरोगा बंशीधर को समझाते हुए कहते हैं कि नौकरी ढूंढते समय ऐसा ओहदा अर्थात पद ढूंढना जहाँ पर ऊपरी कमाई की अधिक संभावना हो। पद बड़ा छोटा नहीं होता। पद की ओर ध्यान नहीं देना बल्कि इस बात का ध्यान देना कि वहाँ ऊपरी कमाई की कितनी अधिक संभावना है। इसलिए छोटा पद हो और वहां पर ऊपरी कमाई अधिक हो तो उसको भी स्वीकार कर लेना। यह बात भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने की ओर इंगित करती है। मुंशी जी अपने पुत्र बंशीधर को रिश्वतखोरी के लिए उकसा रहे हैं।
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