नेताजी की मूर्ति से क्षमा मांगने के पीछे कैप्टन का यह भाव छुपा होता था कि वह नेताजी के प्रति बेहद सम्मान का भाव रखता था।
कैप्टन चश्मे वाला एक दुकानदार था। वह चश्मे की फेरी लगाने का व्यवसाय करता था। बेचने के लिए लाए गए उन्हीं चश्मों में से कोई चश्मा उतार कर नेता जी की मूर्ति पर लगा देता था। जब कोई ग्राहक आकर वैसे ही फ्रेम वाला चश्मा मांगने लगता तो कैप्टन चश्मे वाले को नेताजी की मूर्ति पर से वह चश्मा उतार कर देना पड़ता था। फिर वह कोई दूसरा चश्मा नेताजी की मूर्ति पर लगा देता था। इन्हीं कारणों से वह चश्मा उतारते समय नेता जी की मूर्ति के सामने क्षमा मांगता था, क्योंकि वह नेताजी के प्रति बेहद सम्मान का भाव रखता था। बार-बार चश्मा उतारना और चढ़ाना से उसे लगता था कि यह नेताजी के प्रति असम्मान है। इसी कारण है नेता जी की मूर्ति से क्षमा मांगता था।
संदर्भ पाठ
नेताजी का चश्मा, लेखक – स्वतंत्र प्रकाश