धृतराष्ट्र ने संजय को युधिष्ठिर के पास दूत बनाकर भेजा। संजय धृतराष्ट्र के राजदूत बनकर युधिष्ठिर के पास गए और संजय ने युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र का संदेश सुनाया। संजय ने युधिष्ठिर को कहा कि महाराज ने कुशल से पूछा है। वह आपसे मित्रता करना चाहते हैं, लेकिन उनके पुत्र अपने पिता या पितामह भीष्म की बात पर ध्यान नहीं दे रहे। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप युद्ध को टालने का प्रयास करें।
युधिष्ठिर ने जब संजय के द्वारा धृतराष्ट्र का यह संदेश सुना तो युधिष्ठिर को यह बात बेहद अच्छी लगी। लेकिन वह असमंजस में पड़ गए। वह संजय से बोले कि हमें अपना हिस्सा तो मिलना चाहिए लेकिन हम अभी कुछ निर्णय नहीं ले सकते। हम अभी श्रीकृष्ण की सलाह लेंगे। वह जो सलाह देंगे, हमें वैसा ही करना होगा। उसी समय श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मैं स्वयं हस्तिनापुर जाऊंगा और आपकी तरफ से कौरवों से संधि की बात करूंगा।
युधिष्ठिर ने संजय से कहा, आप महाराज से विनय पूर्वक मेरा इतना संदेश का दो कि मैं हमें कम से कम पांच गाँव ही दे दे ताकि हम पांचो भाई संतोष पूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें। हम पाँच गाँव के आधार पर संधि के लिए तैयार हैं।
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