‘जो किसी में हो बड़प्पन की कसर’ |
संदर्भ : ये पंक्तियाँ कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘फूल और काँटा’ से गई हैं। पूरा पद्यांश इस प्रकार है:
है खटकता एक सब की आँख में,
दूसरा है सोहता सुर सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर॥
भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और कांटे की तुलना की है। कवि के अनुसार कांटा सबकी आंखों में खटकता है और वह किसी को भी नहीं सुहाता, जबकि फुल सभी को अच्छा लगता है। वह देवताओं के सिर की शोभा पाता है। कवि के अनुसार फूल और कांटे दोनों एक ही पौधे पर लगाते हैं, लेकिन जहाँ एक ओर फूल सबका प्रिय होता है, वहीं कांटा सबके तिरस्कार का पात्र बनता है। उसे सब बुरा समझते हैं, क्योंकि उसके अंदर बड़प्पन नहीं होता। बड़प्पन से तात्पर्य निर्मल और मधुर तथा अहंकार रहित स्वभाव से होता है।
फूल का स्वभाव निर्मल होता है, वो किसी कष्ट नही पहुँचाता बल्कि सबको प्रसन्न रखता है, इसलिए उसका स्वभाव निर्मल होता है, जबकि कांटा अपनी चुभन से सबको कष्ट देता है, इसलिए उसे सब नापंसद करते हैं। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति कितने भी ऊंचे कुल में जन्म लेने लेकिन वह महान ऊंचे कुल में जन्म लेने के कारण नहीं बनता बल्कि अपने गुण और कर्मों के कारण बनता है।
जिस प्रकार कांटा और फूल दोनों एक ही पौधे पर लगने के बावजूद कांटा सबके तिरस्कार का पात्र बनता है, जबकि फूल सबके द्वारा प्रिय होता है। इसका मुख्य कारण गुण और बड़प्पन है, कांटे में न तो गुण होता है और न ही बड़प्पन होता है, जबकि फूल में बड़प्पन होता है, इसलिए वह सबका प्रिय होता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति को महान बनने के लिए केवल किसी ऊँचे कुल में जन्म लेना ही पर्याप्त नही होता बल्कि ऊँचे कर्म करने पड़ते हैं, गुणों को अपनाना पड़ता है, बड़प्पन का भाव लाना पड़ता है, तभी वह महान बनता है।
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