सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सवद जु बाह्य एक। लागत ही मैं मिल गया,पड़ता कलेजे छेक।। |
संदर्भ और प्रसंग : यह दोहा कबीर की सखियां है, जो कबीर की द्वारा रचित सखियां से लिया गया है। इस साखी के माध्यम से कबीर ने गुरु के महत्व को बताया है। इस सखी का भावार्थ इस प्रकार है।
व्याख्या : कबीर दास कहते हैं कि मेरे सतगुरु ही सच्चे वीर पुरुष हैं। उनके शब्द रूपी वचन से मेरे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके ज्ञान रूपी वचनों ने मेरे हृदय को झकझोर दिया है। उनके ज्ञान भरे शब्दों से मेरा अंतर्मन उद्वेलित हुआ है और मैं आत्म चिंतन करने के लिए प्रेरित हुआ हूँ। सतगुरु के शब्द रूपी शब्दों से ही मेरे अंदर ज्ञान का उदय हुआ है। मेरे अंदर जो भी अज्ञानता का अंधकार व्याप्त था, सतगुरु के शब्द रूपी तीर ने उस अंधकार को सदैव के लिए मिटा दिया है, इसलिए मेरे सतगुरु ही सच्चे वीर हैं।