युधिष्ठिर के अनुसार ‘धैर्य’ ही मनुष्य का साथ देता है।
युधिष्ठिर के अनुसार धैर्य वह गुण है, जो हर घड़ी में मनुष्य का साथ देता है। धैर्य से तात्पर्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करके संयम धारण करना ही धैर्य है। जो लोग बिना सोचे समझे बोल देते हैं, बिना सोचे समझे कुछ भी व्यवहार करते हैं, हर बात में उतावली दिखाते हैं, वह धैर्यवान नहीं होते। ऐसे लोग हमेशा जीवन में कुछ ना कुछ नुकसान उठाते ही रहते हैं। यदि मनुष्य धैर्यवान होता है, तो वह हर विपत्ति संकट का सामना करने में सक्षम होता है और उस पर कोई भी विपत्ति संकट हावी नहीं हो पाता।
जब वनवास के समय पाँचो पांडव वन में भटक रहे थे तो एक जगह प्यास लगने पर पानी की तलाश में एक-एक करके सभी पांडव एक तालाब के किनारे गए और तालाब के यक्ष द्वारा प्रश्न पूछे जाने और उसका उत्तर ना दे पाने के कारण दंड का शिकार होते गए। अंत में जब युधिष्ठिर पहुंचे तो अपने चारों भाइयों को वहां निर्जीव देखकर व्याकुल हो उठे। तब यक्ष ने प्रकट होकर उनसे कहा कि यदि तुम मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर दे दोगे तो तुम्हारे सभी भाई जीवित हो जाएंगे। तब यक्ष ने युधिष्ठिर से ज्ञान संबंधित प्रश्न पूछे थे, उन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न यह था कि मनुष्य का साथ कौन देता है। तब युधिष्ठिर ने कहा था कि मनुष्य का साथ का धैर्य देता है। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का सही उत्तर देकर यक्ष को प्रसन्न कर दिया और यक्ष ने प्रसन्न होकर यक्ष ने चारों पांडवों को जीवित कर दिया।
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