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विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

औपचारिक पत्र

विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण पत्र देने का अनुरोध करते हुए पत्र का प्रारूप

 

दिनांक : 24 जून 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
डीएवी विद्यालय,
चंडीगढ़ ।

विषय : चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने के लिए का अनुरोध।

आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय,
निवेदन इस प्रकार है कि मेरा नाम आशीष कुमार मौर्य है। मैं कक्षा 9-ब में पढ़ता हूँ। मेरे पिता श्री अवधेश कुमार मौर्य सरकारी सेवा में कार्यरत हैं और वह आयकर विभाग में अधिकारी हैं। उनके विभाग में उनका स्थानांतरण चंडीगढ़ से फरीदाबाद हो गया है, इस कारण हमें यह शहर छोड़कर दूसरे शहर में स्थानांतरित होना पड़ेगा। मैंने विद्यालय त्याग प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया है। मुझे चरित्र प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मुझे चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने की कृपा करें ताकि नए शहर में नए विद्यालय में प्रवेश लेते समय, मैं वहाँ पर चरित्र प्रमाण पत्र पेश कर सकूं। आपकी अति कृपा होगी।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
आशीष कुमार मौर्य,

कक्षा – 9-ब
जवाहर नवोदय विद्यालय,
दिल्ली


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विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

वह उछली और छलाँगें लगाती निकल गई। in present tense (वर्तमान काल) में बदलिए।

वह उछली और छलाँगें लगाती निकल गई। ये वाक्य भूतकाल में है, जो वर्तमान काल में परिवर्तन करना है, तो हम इस वाक्य को वर्तमान के अलग-अलग उपभेद में परिवर्तित करते हैं।

मूल वाक्य : वह उछली और छलाँगें लगाती निकल गई।

वह उछली और छलाँगें लगाती निकलती है। (सामान्य वर्तमान काल)
वह उछल रही है और छलाँगे लगा रही है। (अपूर्ण वर्तमान काल)
वह उछली है और छलाँगे लगाती निकल गई है। (पूर्ण वर्तमान काल)
क्या वह उछली है और छलांगे लगाती निकल गई है। (संदिग्ध वर्तमान काल)
वह अभी उछली है, छलांगे लगाती निकली है। (तात्कालिक वर्तमान काल)
शायद वह उछली है और छलांगे लगाते निकली है। (संभाव्य वर्तमान काल)

वर्तमान काल क्या है?

काल के जिस रुप से क्रिया के वर्तमान समय में होने का बोध प्रकट होता है, वह वर्तमान काल कहलाता है। वर्तमान काल के 6 उपभेद होते हैं।

  • सामान्य वर्तमान काल
  • पूर्ण वर्तमान काल
  • अपूर्ण वर्तमान काल
  • संदिग्ध वर्तमान काल
  • तत्कालिक वर्तमान काल
  • संभाव्य वर्तमान काल

काल क्या है?

काल से तात्पर्य किसी क्रिया के संपन्न होने के समय से होता है। कोई भी क्रिया जिस समय में संपन्न हुई होती है, उसे काल कहते हैं। काल के तीन भेद होते हैं।
• भूतकाल
• वर्तमान काल
• भविष्य काल


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निम्नलिखित वाक्यों से संज्ञा छाँटिए और उसके भेद लिखिए- वाक्य 1. अध्यापिका पढ़ाती हैं। 2. सच्चाई एक अच्छा गुण है। 3. हिमालय विशाल पर्वत है। 4. हीरा बहुमूल्य रत्न है। 5. भारतीय सेना बेहद कुशल सेना है। 6. जल ही जीवन है।

‘वे सुंदर मकानों में रहते हैं।’ इस वाक्य को ‘अपूर्ण वर्तमानकाल’ में बदले।

वर्षा के बाद निकले इंद्रधनुष को देख कर बच्चों का संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

वर्षा  के बाद निकले इंद्रधनुष को देखकर बच्चों के बीच संवाद

 

राजू ⦂ सोनू,  वो देखो, आसमान में। कितना रंग बिरंगा आसमान लग रहा है!

सोनू ⦂ वह इंद्रधनुष है, जो बरसात के बाद आसमान में दिखता है।

गोलू ⦂ इंद्रधनुष कैसे बनता है? क्या तुम्हें पता है?

सोनू ⦂ इंद्रधनुष प्रकाश की किरणों के कारण बनता है। सूरज की किरणों में ही अनेक रंग छुपे होते हैं, जो वर्षा के बाद परावर्तन के कारण हमें इंद्रधनुष के रूप में दिखाई देने लगते हैं।

गोलू ⦂ अच्छा। इंद्रधनुष कितना सुंदर दिखता है!

राजू ⦂ हाँ, पहले के जमाने में जब इंद्रधनुष बनने का वैज्ञानिक कारण लोगों को नहीं पता था तो वह इसे जादू समझते थे।

राजू ⦂ अच्छा ऐसी बात है। लेकिन  इंद्रधनुष केवल वर्षा के बाद ही क्यों दिखाई देता है? हमेशा क्यों नहीं दिखाई देता?

सोनू ⦂ वह इसलिए,  इंद्रधनुष पानी की बूंदों पर सूरज की किरणों के परावर्तन के कारण ही दिखता  है। वर्षा के मौसम में आसमान में नमी रहती है और पानी के कण के आसमान में रह जाते हैं और इन्हीं बूंदों पर जब सूरज की किरणें पड़ती है तो वह एक प्रिज़्म बन जाती हैं। फिर सूरज की किरणें सात रंगों में बंट जाती हैं, जिससे इंद्रधनुष दिखाई देता है।

सभी बच्चे (एक साथ) ⦂ सोनू, तुमने बहुत अच्छी जानकारी दी।


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आप जिस कंपनी में काम करते है या जिस कंपनी के मालिक है और यदि आप अपनी कंपनी को काम करने के लिए एक बेहतर स्थान बनाने के लिए कोई एक बदलाव लाना चाहें तो वह क्या होगा?

यदि मुझे अपनी कंपनी को एक बेहतर स्थान बनाना है तो मैं सबसे पहला नियम बनाऊँगा कि कभी भी आलोचनाओं को व्यक्तिगत न लें । अपनी आलोचनाओं को सकारात्मक रूप में लें और दूसरों को आपके बारे में उनकी राय बताने का मौका दें । उनकी इस राय को आलोचना के बजाय फीडबैक के रूप में लें और खुद में सुधार करने की कोशिश करें। हो सकता है कि आपकी आलोचना के दौरान आपको किसी ऐसे पॉइंट का पता चले, जिस पर आपका ध्यान न गया हो लेकिन आपको वाकई उस पर काम करने की जरूरत हो ताकि आप अपने कंपनी के बिजनस को आगे बढ़ा सकें।

बिजनेस को सफलता दिलाने और खुद को एक कामयाब एंटरप्रेन्योर के रूप में स्थापित करने के लिए आपको अपने व्यक्तित्व में कुछ बदलाव लाने होंगे । इन बदलावों के साथ ही आप अपने बिजनेस को नई ऊंचाइयाँ दिलवा सकेंगे और खुद भी ऊंची उड़ान भर सकेंगे । इनके साथ अपनी टीम, कस्टमर्स और बिजनेस की बेहतरी के लिए भी काम कर पाएंगे। बिजनेस को बेहतर बनाने के लिए आपको खुद को भी बेहतर बनाना होगा ।


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हमारे देश में अगर अलग-अलग भाषाओं के लोग रहते हैं, तो यह हमारी देश की विविध संस्कृति का प्रतीक है। हमारे देश भारत में भाषा-भिन्नता बहुत अधिक है क्योंकि यहाँ पर अधिकतर राज्यों की अपनी अलग राज्य भाषा है। हर भाषा सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध है। चाहे वह हिंदी हो, पंजाबी, बंगाली, मराठी, गुजराती हो या तमिल, तेलुगु, कन्नड़  या मलयालम जैसे भाषाएं है। हर भाषा की एक सांस्कृतिक समृद्धता है।

विभिन्न भाषाओं वाले हमारे देश में सब लोग मिलजुल कर रहते है। अपनी मातृभाषा से प्यार करने के साथ-साथ हमें भाषा दूसरे राज्यों की भाषा का भी सम्मान करना चाहिए।  इसी कारण  और भाषा भिन्नता के आधार पर हमें भेदभाव नहीं करना चाहिए बल्कि सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए।


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“बूँद टपकी एक नभ से; किसी ने झुककर झरोखे से; कि जैसे हँस दिया हो।’ नभ से एक बूँद टपकने से कवि के मन में कौन-सी अनुभूति उदित होती है?

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बूँद टपकी एक नभ से;
किसी ने झुककर झरोखे से;
कि जैसे हँस दिया हो।’

नभ से एक बूँद टपकने से कवि के मन में यह अनुभूति उदित होती है कि जैसे किसी सुंदरी ने उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया हो।

भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘बूंद टपकी एक नभ’ से इन पंक्तियों से कवि को ऐसी अनुभूति होती है, जैसे आसमान में कोई टपकी और कवि को ऐसा लग रहा है जैसे किसी सुंदरी ने उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया हो।

‘बूंद टपकी एक नभ से’ यह कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने रचित की है, जिसमें उन्होंने आकाश में बूंद के टपकने का सौंदर्यात्मक वर्णन किया है और उसे श्रंगार रूप देकर मानवीय संवेदना को उकेरा है। यहाँ पर उन्होंने बूंद के माध्यम से मानवीय चेष्टाओं को प्रकट कर मानवीकरण अलंकार प्रकट किया है।


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बड़ा भाई किस कारण लेखक पर निगरानी का अधिकार समझता था?

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बड़ा भाई बड़े होने के नाते लेखक पर निगरानी का अधिकार समझता था। वह लेखक से 5 वर्ष बड़ा था। इसी कारण अपने छोटे भाई की सारी जिम्मेदारी उसी पर थी। वह छोटे भाई के लिए एक अभिभावक की तरह था। एक अभिभावक की भूमिका निभाने के कारण वह अपने छोटे भाई पर निगरानी का अधिकार रखता था।

बड़ा भाई अपने छोटे भाई के साथ एक हॉस्टल में रहता था। अपने परिवार से दूर हॉस्टल में रहने के कारण बड़े भाई को अपने छोटे भाई की चिंता लगी रहती थी और उसे यह चिंता रहती थी कि यदि छोटा भाई किसी गलत संगत में पड़ गया तो उसकी पढ़ाई प्रभावित होगी। इसीलिए वह अपने छोटे भाई की निगरानी करता रहता था और इसे अपना अधिकार समझता था।

संदर्भ पाठ :
बड़े भाई साहब, लेखक – मुंशी प्रेमचंद (कक्षा-10, पाठ-10, हिंदी, स्पर्श)


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आपका एक जरूरी पार्सल जो आपको इसी हफ्ते मिलना था, नही मिला। छानबीन हेतु आपके क्षेत्र के डाकघर के डाकपाल को पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

पार्सल न मिलने की शिकायत करते हुए डाकपाल को पत्र

 

दिनांक – 24 जून 2024

सेवा में,
डाकपाल महोदय,
डाक केंद्र कार्यालय,
नई दिल्ली, दरियागंज,

विषय – पार्सल ना मिलने के संबंध में

महोदय,
निवेदन है कि मैं नई दिल्ली के दरियागंज क्षेत्र का निवासी हूँ। मैं आपको ये पत्र मेरे एक पार्सल के संंबंध में लिख रहा हूँ। मेरे भाई ने 15 दिनों पहले एक पार्सल भोपाल से दिल्ली मेरे पास भेजा था। आमतौर पर मुझे वह पार्सल 3 से 5 दिनों के बीच मिल जाना चाहिए था, मुझे वो पार्सल 15 दिन बीत जाने  तक नहीं मिला है। मेरा यह पार्सल बहुत ही जरूरी है क्योंकि इसमें मेरे कार्यालय के कुछ आवश्यक दस्तावेज़ हैं।

मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप कृपा करके इस मामले की छानबीन करवाएं। ताकि मुझे मेरा पार्सल मिल सके। पत्र के साथ मैं पार्सल भेजे जाने की रसीद का फोटो भेज रहा हूँ, जो मेरे भाई ने मुझे आनलाइन भेजी है। कृपया इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर देखें।
धन्यवाद,

भवदीय,
मोहनलाल,
C-1586, अंसारी रोड,
दरियागंज ।


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परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।” आशय स्पष्ट करें

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परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।”

आशय इस प्रकार है…

इन पंक्तियों का आशय यह है कि इस बाग में जो फूल बिखरे पड़े हैं, वह सुगंधहीन हैं, क्योंकि उनकी सुगंध को नष्ट कर दिया गया है। यहाँ पर फूल से तात्पर्य जलियांवाला बाग में मारे गए उन तमाम भारतीयों के शवों से हैं, जिन पर जनरल डायर ने गोलियां चलवाकर मार दिया था। अब उनमें प्राण शेष नहीं रह गए हैं, इसलिए अब यह उनके शव सुगंध रहित फूल के समान है, जो बाग में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। यह पंक्तियां कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित ‘जलियांवाले बाग में बसंत’ नामक कविता से ली गई हैं।

पूरी पंक्तियां इस प्रकार है…

परिमल-हीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है।
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
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व्याख्या : कवयित्री ऋतुराज बसंत का आह्वान करते हुए कहती है कि इस बाग में चारों तरफ जो फूल बिखरे पड़े हैं, उनमें सुगंध समाप्त हो चुकी है अर्थात जलियांवाला बाग में हजारों भारतीयों की हत्या कर उनके प्राणों को का हरण कर लिया गया है। अब यह प्यारा बाग उनके खून से सना पड़ा है। चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा है। इसलिए बसंत ऋतु यदि तुम आना तो यहाँ आते समय शांति से आना। तुम अगर कोई उपहार लाओ तो उपहारों को लाते समय उपहार का भाव प्रदर्शित ना करना बल्कि पूजा का भाव प्रदर्शित करना, क्योंकि यहाँ पर अब उन लोगों के शव हैं और उनके प्रति अब श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय है। अपने साथ जो पुष्प लेकर आओगे भड़कीले और गहरे रंग के ना हो बल्कि उन्हें हल्की सी खुशबू हो और ओस उसे भीगे हुए हों।


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पंखि उड़ानी गगन कौं, पिण्ड रहा परदेस । पानी पीया चंचु बिनु, भूलि या यहु देस ।। व्याख्या कीजिए।

पंखि उड़ानी गगन कौं, पिण्ड रहा परदेस । पानी पीया चंचु बिनु, भूलि या यहु देस ।।
व्याख्या : कबीर दास कहते हैं कि जब जीवात्मा ने परम तत्व का ज्ञान कर लिया तो वह सहस्रार अर्थात ब्रह्मलोक उड़ गया और उसका यह भौतिक शरीर उसी जगह पर पड़ा रहा। इसलिए अब यह शरीर उसके लिए परदेश हो गया है तथा परमतत्व स्वदेश हो गया है। जब तक उसे परमतत्व का ज्ञान नहीं था, तब तक यह शरीर जीवात्मा के लिए स्वदेश था और परमतत्व रूपी परमात्मा परदेश के समान था।
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सभी प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार होंगे…

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संदर्भ पाठ : स्वर्ण मरीचिका, लेखक-विजयदान देथा (कक्षा-7, पाठ-8, हिंदी संचयन)


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निम्नलिखित वाक्यों को एकवचन रूप में परिवर्तित कर दोबारा लिखिए (क) कल मेरी सहेलियाँ आई थीं। (ख) नेतागण पधार रहे हैं। (ग) तुम मुझे दोहे सुनाओ। (घ) रास्ते में गहरे गड्ढे हैं। (ङ) ये वस्तुएँ ले आइए। (च) बच्चों ने प्रश्नों के उत्तर लिखे। (छ) बिल्लियाँ, कुत्तों से डर कर भाग गईं। (ज) थालियाँ यहाँ पर मत रखो। (झ) बच्चे खेल रहे हैं। (ञ) घोड़े तेज़ी से दौड़ रहे हैं।

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जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे, दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है? मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकतीं, आनंद पथ जहांँ है, वह देश कौन सा है? जिसके अनंत धन से, धरती भरी पड़ी है, संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है? भावार्थ बताएं।

लाए कौन संदेश नए घन! दिशि का चंचल, परिमल-अंचल, छिन्न हार से बिखर पड़े सखि! जुगनू के लघु हीरक के कण! लाए कौन संदेश नए घन! सुख दुख से भर, आया लघु उर, मोती से उजले जलकण से छाए मेरे विस्मित लोचन! लाए कौन संदेश नए घन! भावार्थ बताएं।

“तेज गति से उफनते समुद्र” ने अपनी ही लहरों में चलते जहाज़ों को उठा फेंका। (i) संज्ञा पदबंध (iii) विशेषण पदबंध (ii) सर्वनाम पदबंध (iv) क्रिया पदबंध

इसका सही विकल्प होगा..
(i) संज्ञा पदबंध

स्पष्टीकरण :

“तेज गति से उफनते समुद्र” ने अपनी ही लहरों में चलते जहाज़ों को उठा फेंका। में ‘संज्ञा पदबंध’ है, क्योंकि पदबंध ‘तेज गति से उपस्थित समुद्र’ ये पूरा पद एक संज्ञा पद के रूप में कार्य कर रहा है।

संज्ञा पदबंध वो पदबंध  होता है, जिसमें पूरा शब्द समूह संंज्ञा का बोध कराता है और उसमें किसी न किसी संज्ञा शब्द का प्रयोग अवश्य किया गया हो।

“तेज गति से उफनते समुद्र” इस पदसमूह  में ‘समुद्र’ संज्ञा शब्द का प्रयोग किया गया है । यदि इस पद में से समुद्र शब्द को हटा दिया जाए तो यह एक पद एक विशेषण पदबंध बन जाएगा, क्योंकि फिर यह पदसमूह एक विशेषण की तरह कार्य करेगा।

इसलिए ‘तेज गति से उठता समुद्र’ एक संज्ञा पदबंध है।

पदबंध से तात्पर्य शब्दों के उस समूह से होता है, जो मिलकर संज्ञा अथवा सर्वनाम अथवा विशेषण अथवा क्रिया विशेषण अथवा क्रिया का बोध कराते हैं।

पदबंध पाँच प्रकार के होते हैं।

  • संज्ञा पदबंध
  • सर्वनाम पदबंध
  • विशेषण पदबंध
  • क्रिया पदबंध
  • क्रिया विशेषण पदबंध

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‘वे सुंदर मकानों में रहते हैं।’ इस वाक्य को ‘अपूर्ण वर्तमानकाल’ में बदले।

‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’ इस वाक्य में से विशेषण और विशेष्य छांटकर लिखें।

कैदी को जेल में किन-किन यातनाओं को सहना पड़ा? (कैदी और कोकिला)

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‘कैदी और कोकिला’ पाठ मैं कैदी के रूप में कवि को अनेक तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता था।

जैसे…

  • कैदी को अंधेरी कोठरी में जंजीर से बांधकर रखा जाता था। कोठरी बहुत छोटी होती थी, जहाँ पर
  • कैदी आराम से अपने हाथ पैर तक नहीं फैला पाता था।
  • उस कोठरी में अनेक कैदियों को एक साथ भर दिया जाता था।
  • कैदी और अन्य साथी कैदी यदि रोते भी थे तो उनका रोना भी गुनाह माना जाता था। कैदी के रोने पर उसकी पिटाई की जाती थी।
  • कैदी को कोल्हू में बैल की तरह चलाया जाता था और उससे अथक परिश्रम करवाया जाता था। कैदी को काम करने की स्थिति में कोड़ों से भी मारा जाता था।
  • कैदी को भरपेट भोजन भी नही दिया जाता था।
  • इस तरह अंग्रेज सरकार द्वारा कैदी (कवि) को अनेक तरह की भीषण यातनाओं का सामना करना पड़ा था।
संदर्भ पाठ : कैदी और कोकिला’ कवि- माखनलाल चतुर्वेदी (कक्षा – 9 पाठ – 12, हिंदी, क्षितिज)

क्या आपको नहीं लगता कि यदि हम बहुत सुख-सुविधाओं में रहेंगे तो हमारी काम करने की तथा कष्ट सहने की शक्ति भी कम होती जाएगी, जैसे पिंजरे के पक्षी की हो जाती है?

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बिल्कुल, हमें यही लगता है कि हम यदि बहुत अधिक सुख सुविधाओं में रहेंगे तो हमारी काम करने की तथा कष्ट सहने की शक्ति भी कम हो जाएगी। जिंदगी में आने वाले तरह-तरह के कष्ट, आपत्ति-विपत्ति हमारे अंदर जूझने की शक्ति पर पैदा करते हैं। इन सब विषमताओं का जब हम सामना करते हैं, तो हमारे अंदर एक मारक क्षमता विकसित होती है, जिसके कारण हमारा इच्छा शक्ति मजबूत होती है, हमारे संकल्प बल में बढ़ोत्तरी होती है।

यदि हम जीवन में आने वाले कष्टों का से संघर्ष करते हुए उनका सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं, तो फिर आगे जीवन में हमें जो भी कष्ट आते हैं, उनका सामना आसानी से कर लेते हैं और उन कष्टों पर, उन संकटों पर विजय पा लेते हैं। लेकिन यदि हम बहुत अधिक सुख सुविधा में रहेंगे तो हमारी इच्छा शक्ति कमजोर पड़ जाती है। जब हमें कष्ट सहने को नही मिलेंगे तो उसका सामना करना कैसे सीखेंगे। अधिक सुख-सुविधाओं का जीवन जीते हुए यदि कोई संकट आ जाए तो मनुष्य सहन नहीं कर पाता और उन संकटों के आगे हार मान लेता है।

पिंजरे में बंद पक्षी की हालत भी ऐसी ही हो जाती है। पिंजरे में बंद रहकर वह उड़ना तक भूल जाता है, क्योंकि उसका मूल स्वभाव उड़ना है। जब उसे पिंजरे में बंद कर दिया जाता है तो उसे स्वच्छ एवं मुक्त भाव से उड़ने को नहीं मिलता और धीरे-धीरे वह अपने मूल स्वभाव को भूल जाता है। इसीलिए मनुष्य हो या पशु पक्षी किसी को भी उसके मूल स्वभाव से वंचित नहीं रहना चाहिए। बहुत अधिक सुख-सुविधा वाला जीवन जीना भी सही नहीं है। जीवन में संघर्षों से सामना करने की प्रवृत्ति भी बनी रहनी चाहिए तभी जीवन का आनंद है।


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किसी भी देश के विकास के लिए उसके नागरिक को स्वस्थ रहना आवश्यक है। जीवन में स्वस्थ रहने का क्या महत्व है? आप अपने स्वास्थ्य के लिए क्या-क्या उपाय करते हैं? अपने विचारों को प्रस्तुत के रूप में लिखिए।

आप वेणु राजगोपाल हैं। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ दिल्ली के संपादक के नाम एक पत्र लिखकर सामाजिक जीवन में बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

किसी भी देश के विकास के लिए उसके नागरिक को स्वस्थ रहना आवश्यक है। जीवन में स्वस्थ रहने का क्या महत्व है? आप अपने स्वास्थ्य के लिए क्या-क्या उपाय करते हैं? अपने विचारों को प्रस्तुत के रूप में लिखिए।

किसी भी देश के विकास के लिए उसके नागरिक को स्वस्थ रहना बेहद आवश्यक होता है। जीवन में स्वस्थ रहने का अपना ही अलग महत्व होता है।

किसी भी देश के विकास के लिए उसके नागरिक को स्वस्थ रहना क्यों आवश्यक है, तो इसका जवाब यह है कि मान लीजिए आप बीमार हैं, आपको आराम की आवश्यकता है, आप बिस्तर पर आराम कर रहे हैं। बीमारी के कारण आपका शरीर कमजोर हो गया है और आप अपना कोई भी सामान्य कार्य आसानी से नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आप अपने सामान्य कार्य को नहीं कर पाएंगे तो देश के विकास में अपना योगदान कैसे दे सकते हैं।

उसी प्रकार देश के नागरिकों की स्थिति होती है। जिस देश के नागरिक अस्वस्थ होंगे वे अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझते रहेंगे और उनका अधिकतर समय अपनी बीमारी के उपचार आदि में ही व्यतीत होगा। ऐसी स्थिति में वह सामान्य कार्य करने में असमर्थ महसूस करेंगे जब अपने सामान्य कार्य नहीं कर पाएंगे तो उनकी उत्पादकता कम होगी।

कोई भी देश देश के नागरिकों द्वारा किए जाने वाले कार्यों से ही चलता है। किसी देश के नागरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से अस्वस्थ रहेंगे तो उनके कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होगी, जो देश की प्रगति में बाधक होगी। इसी कारण किसी देश के नागरिक का स्वस्थ होना बेहद महत्वपूर्ण होता है। तब ही देश की गति तेज विकास के तेज होती है। एक अस्वस्थ व्यक्ति उतनी तत्परता, सजगता एवं लगन से वह कार्य नहीं कर सकता जो कि एक स्वस्थ व्यक्ति कर सकता है।

अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए हम अनेक तरह के उपाय आजमाते हैं।

जैसे..

  • सुबह 5 बजे से 6 बचे के बीच में उठ जाना। एक से डेढ़ घंटे तक टहलना, व्यायाम करना, योग आसन आदि करना।
  • सुबह हल्का-फुल्का पौष्टिक नाश्ता करना, जिसमें अधिक से अधिक फल और फाइबर की मात्रा हो।
  • विद्यालय अथवा कार्यालय जाते समय सीढ़ियां चढ़ना, पैदल चलना ।
  • उसके अलावा दोपहर का भोजन मध्यम स्तर का करना तथा शाम का भोजन हल्का-फुल्का करना।
  • रात को जल्दी सो जाना ।
  • जंक फूड से बिल्कुल भी दूर रहना।
  • तेल-मसाले जैसे पदार्थों का कम प्रयोग करना।
  • चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक जैसे पदार्थों से भी दूर रहना।
  • यह सारे उपाय हैं जो हम अपने जीवन को स्वच्छ बनाए रखने के लिए करते हैं।

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किसी एक खेल को खेले जाने की विधि को अपने शब्दों में लिखिए।

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भारत का एक प्रसिद्ध खेल है, कबड्डी। ये भारतीय खेल है, और भारत अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों के जाना जाता है।

कबड्डी खेलने का तरीका

कबड्डी मैच की शुरुआत एक टीम द्वारा दूसरी टीम के हाफ में रेड करने से होती है । रेड का मतलब जब एक टीम का खिलाड़ी दूसरे खेमे में कबड्डी बोलने यानी हमला करने जाता है, उसे रेडर कहा जाता है । रेडर कबड्डी शब्द बोलते हुए दूसरी टीम के हाफ में प्रवेश करता है, जिसे कैंटिंग भी कहा जाता है ।

रेडर का उद्देश्य जितना संभव हो उतने विपक्षी खिलाड़ियों को टैग करना या छूना होता है, जिन्हें एंटी या डिफेंडर कहा जाता है और एक सांस में अपने कैंट को जारी रखते हुए मध्य रेखा को पार करके रेडर अपने हिस्से में लौट आते हैं । इस बीच डिफेंडर रेडर को कोर्ट से टैकल करके या धक्का देकर अपने ही हाफ में लौटने से रोकने की कोशिश करते हैं ।

टीमें बारी-बारी से एक-दूसरे के खिलाफ रेड करती हैं और जिस टीम को सबसे अधिक अंक मिलते हैं वह मैच की विजेता बनती है। कबड्डी मैच में प्रत्येक टीम में सात खिलाड़ी होते हैं ।टीमों में बेंच पर तीन से पांच सब्स्टीट्यूट खिलाड़ी के तौर पर होते हैं।

कबड्डी टीम में मौजूद सभी सात खिलाड़ी डिफेंस भी करते हैं । इन खिलाड़ियों में रेडर और डिफेंडर खिलाड़ी शामिल होते हैं। इसके अलावा इसमें से कुछ खिलाड़ी ऑलराउंडर भी होते हैं, जो रेडर और डिफेंडर दोनों की भूमिका निभाते हैं। एक कबड्डी मैच आमतौर पर 40 मिनट (प्रत्येक 20 मिनट के दो भाग) तक चलता है। मैच की शुरुआत दो टीमों के बीच सिक्के के टॉस से होती है और विजेता यह तय कर सकता है कि पहले रेड करना है या डिफेंड करना है। प्रत्येक टीम को प्रत्येक हाफ में दो टाइम-आउट की अनुमति होती है ।


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‘काई सा फटे नहीं’ पंक्तियों का आशय स्पष्ट करो।

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यह पंक्तियां भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘असाधारण’ नामक कविता से ली गई हैं। ‘काई सा फटे नहीं’ पंक्तियों का आशय इस प्रकार है…

मनुष्य को किसी भी तरह के संकट से आने पर काई की तरह फटे नही अर्थात संकटों से घबरा कर बिखर नही जाये। मनुष्य को संकटों के आगे हार नहीं मान लेनी चाहिए।

इस कविता की ये पंक्तियां इस प्रकार है…

लहरों के आने पर,
 काई सा फटे नहीं,
रोटी के लालच में, तोते सा रटे नही,

अर्थात प्राणी वही प्राणी है।अर्थात मनुष्य सच्चा मनुष्य वही है जो लहरों के आने पर यानी किसी भी तरह के संकट के आने पर काई की तरह फट नही जाये यानी संकट के आने पर घबरा नहीं जाए। संकटों के आगे हार नहीं माने बल्कि संकटों का डटकर मुकाबला करे। रोटी के लालच में तोते सा रटे नही यानी वो किसी भी तरह के लोभ लालच के कारण अपने आचरण को नहीं भूल जाए और केवल अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार ना हो बल्कि अपने चरित्र को उज्जवल बनाकर रखें। सच्चा मनुष्य वही मनुष्य है जिसमें यह सब गुण हों।


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आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

जल संरक्षण-हमारा कर्तव्य। इस विषय पर अध्यापक और छात्रों के मध्य संवाद लेखन लिखिए।

संवाद

जल संरक्षण-हमारा कर्तव्य (अध्यापक एवं छात्रों के बीच संवाद)

 

अध्यापक ⦂ बच्चों, क्या तुम जानते हो, कि जल का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

सभी छात्र ⦂ हाँ सर, जल हमारे जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। जल ही जीवन है, ऐसा कहा जाता है।

अध्यापक ⦂ बिल्कुल, सही कहा तुमने। आशीष, तुम बताओ कि इस पृथ्वी पर कितना जल पीने योग्य है?

आशीष ⦂ सर, यूँ तो पृथ्वी पर बहुत अधिक जल है, लेकिन पीने योग्य जल सिर्फ 3% है। शेष जल खारे पानी के रूप में समुद्र में जमा है, जो हमारे किसी काम का नहीं है।

अध्यापक ⦂ तुमने भी सही बात कही। मोहन, तुम बताओ कि जल संरक्षण हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

मोहन ⦂ सर, जल संरक्षण हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि जो भी पीने योग्य उपलब्ध है, वह बेहद कम मात्रा में है। जल के संसाधन धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं। पृथ्वी जल की मात्रा कम होती जा रही है और उसके अनुपात में जनसंख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए जल का संरक्षण आवश्यक है।

अध्यापक : बिल्कुल सही कहा तुमने। राजेश, तुम बताओ जल संरक्षण के लिए क्या-क्या उपाय करने चाहिए।

राजेश ⦂ जल संरक्षण के लिए हमें जल को सोच-समझकर प्रयोग में लाना चाहिए। दाढ़ी बनाते समय, टूथब्रश करते समय, हाथ धोते समय टोंटी को व्यर्थ में खुला नहीं रखना चाहिए। एक दो बाल्टी पानी से भी नहाया जा सकता है। फव्वारा के नीचे आधा घंटे तक बैठ कर नहाने में दस बाल्टी बानी खर्च होता है, इससे पानी की बर्बादी होती है। इस तरह हम अनके उपाय करके जल को बचा सकते हैं।

अध्यापक ⦂ मैं तुम्हें बता दूँ कि जल संरक्षण हमारे लिए केवल जरूरी ही नही बल्कि हमारा कर्तव्य भी है। इस पृथ्वी पर ऐसी अनेक जगह है, जहाँ पर लोगों को एक बाल्टी जल के लिए को कोसो मील पैदल चलकर जाना पड़ता है और उनका आधा दिन पानी को जमा करने में ही निकल जाता है। इसलिए हर किसी को पर्याप्त जल मिले, इसके लिए आवश्यक कि हम सब जल का संरक्षण करें ताकि जल की बर्बादी ना हो और भविष्य में जल संकट से न जूझना पड़े।

सभी छात्र ⦂ हाँ, सर, हम बिल्कुल ऐसा ही करेंगे। आज से हम प्रण लेते हैं कि हम जल को बचाने का अधिक से अधिक प्रयत्न करेंगे।

अध्यापक ⦂ शाबाश बच्चों, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।


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समाज में शिक्षा व स्वास्थ्य की भूमिका

 

हमारे समाज में शिक्षा व स्वास्थ्य की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का माध्यम होती है। यह न केवल ज्ञान और कौशल प्रदान करती है, बल्कि सोचने और समझने की क्षमता को भी विकसित करती है। शिक्षा व्यक्ति आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होती है। एक शिक्षित व्यक्ति समाज में अपना सकारात्मक योगदान देता है। शिक्षा के माध्यम से ही सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा मिलता है। यह समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने का सशक्त माध्यम है। इसके अलावा, शिक्षा रोजगार के अवसर बढ़ाती है, जिससे आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है।

स्वास्थ्य समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन कर सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और उनकी गुणवत्ता से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। स्वस्थ समाज ही सशक्त समाज बन सकता है। जो व्यक्ति स्वस्थ होगा वह अपने अपने कार्य को कुशलता से कर सकता है। एक कुशल व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य में सफलता और गुणवत्ता की संभवना अधिक होती है जो एक सफल समाज की नींव रखता है।

इसलिए हम कह सकते हैं कि स्वास्थ्य और शिक्षा का आपस में गहरा संबंध है। स्वस्थ बच्चे ही अच्छी तरह से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं और शिक्षित व्यक्ति स्वास्थ्य के महत्व को बेहतर ढंग से समझते हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य मिलकर समाज के विकास की नींव रखते हैं। दोनों के अभाव में समाज का समुचित विकास संभव नहीं है। इसलिए, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश समाज की समृद्धि और स्थिरता के लिए अनिवार्य है। इन दोनों क्षेत्रों में सुधार से ही हम एक समृद्ध और सशक्त समाज की कल्पना कर सकते हैं।


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शिक्षा रोजगारपरक हो या ज्ञानपरक हो। वाद-विवाद हेतु पक्ष-विपक्ष लिखें।

अपनी विशेष रुचियों के बारे में बताते हुए नानी जी को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

विशेष रुचियों के बारे में बताते हुए नानी जी को पत्र

दिनाँक – 24 जून 2024

आदरणीय नानीजी,
चरण स्पर्श

नानीजी, आप कैसी हो? मैं आशा करता हूँ कि आप स्वस्थ होंगी। यहाँ पर सब घर में कुशलता से हैं। नानीजी पिछले सप्ताह आपका पत्र मिला था। आपने मुझे छुट्टियो का सदुपयोग करने की सलाह

आपने समय का सदुपयोग करने की मुझे जो सलाह दी थी, उसको मैंने तभी से पालन करना शुरू कर दिया था। अपने पत्र में मुझे मेरी विशेष रुचियां के बारे में भी पूछा था और कहा था कि अपनी विशेष रुचि के अनुसार अपनी छुट्टियों का सदुपयोग करो। इससे तुम छुट्टियों का रचनात्मक सदुपयोग कर सकोगे। मैंने तभी से आपके सुझाव का पालन शुरु कर दिया है।

नानीजी, मैं आपको अपनी विशेष रुचियां के बारे में बता रहा हूँ। नानी जी, मैं मुझे तरह-तरह की ज्ञानवर्धक पुस्तक पढ़ने का बहुत अधिक शौक है। पुस्तक मेरा प्रिय शौक रहा है। इसलिए मैं लाइब्रेरी जाकर पुस्तके पढ़ता हूँ। मैंने अपने मोबाइल में भी कई पुस्तकों की ई-बुक कॉपी डाउनलोड कर रखी है। मैंने पिताजी से ई-बुक रीडर दिलाने के लिए भी कहा है। उन्होंने मुझे ई-बुक रीडर जल्दी ही दिलाने का वचन दिया है।

नानी जी, इसके अलावा मेरी खेल में भी बहुत रूचि है। मुझे क्रिकेट का खेल बहुत पसंद है और मैं क्रिकेट के सभी मैच देखना पसंद करता हूं। इसी कारण मैं अपने विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान भी हूँ। पुस्तक पढ़ने और क्रिकेट खेलने और देखने के अलावा मेरी ग्राफिक डिजाइनिंग में बहुत अधिक रुचि है। मुझे तरह-तरह की रचनात्मक डिजाइन बनाने का बहुत अच्छा लगता है। इसी कारण में इन छुट्टियों में ग्राफिक डिजाइनिंग का कोर्स कर रहा हूं ताकि मैं अपनी इस प्रतिभा को और अधिक निखार सकूं। आगे संभव हुआ तो मैं ग्राफिक डिजाइनिंग के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाऊंगा अथवा एक क्रिकेट खिलाड़ी बनूंगा।

नानी मैं आपकी सलाह पर अपनी रुचि के अनुसार ही छुट्टियों का सदुपयोग करना शुरू कर दिया है। मैं ग्राफिक डिजायनिंग जाने का कोर्स कर रहा हूँ और अपनी क्रिकेट प्रैक्टिस भी करता हूँ।

आशा है, मेरी रुचियां को जानकर आपके मन मेरे लिये कोई सुझाव आया होगा। आपका मेरी रुचियों के बारे में क्या सुझाव है। मैं मुझे अगले पत्र में बताना ताकि मैं आपकी सुझाव से लाभ ले सकूं।

शेष बातें अगले पत्र में। आपके पत्र का इंतजार रहेगा।

आपका नाती,
शुभम

 


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अपनी नानी माँ या दादी माँ को पत्र लिखकर सूचित करें कि इन गर्मी की छुट्टियों में आप उनके पास आ रहे हैं​।

नाना की अचानक तबीयत खराब होने पर मामा को पत्र लिखिए​।

अपने दादा-दादी, नाना-नानी, वृद्ध परिजन या किसी पड़ोसी का साक्षात्कार करते हुए उनके विद्यालय की शिक्षा नीति तथा आज की शिक्षा नीति के अंतर को लिखिए​।

दूरदर्शन से समाचार मिला है कि पटना के गांधी मैदान में बम विस्फोट हुआ है। वहाँ आपका ननिहाल है। अपने नाना जी और उनके के परिवार का कुशल-क्षेम पूछते हुए उन्हें पत्र लिखिए।।​

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को रोकने के लिए हर क्षेत्र में महिला थाना स्थापित किए जाने हेतु महिला आयोग की अध्यक्षा की ओर से राज्य के मुख्यमंत्री को ई-मेल लिखिए।

ई-मेल लेखन

महिला थाना की स्थापना हेतु राज्य के मुख्यमंत्री को ई-मेल

 

To: smavad.cmoffice@up.gov.in
From: chairperson.upstatewc@gov.in
Subject: हर क्षेत्र में महिला थाना की स्थापना हेतु अनुरोध

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
सादर नमस्कार,

मैं, मिथिलेश कुमारी, उत्तम प्रदेश राज्य महिला आयोग की तरफ से आपका ध्यान हमारे राज्य में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की ओर आकर्षित करना चाहती हूं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

इस समस्या से निपटने के लिए, मैं प्रस्ताव करती हूं कि राज्य के प्रत्येक जिले में कम से कम एक महिला थाना स्थापित किया जाए। ये विशेष थाने महिलाओं से संबंधित मामलों को संभालने के लिए समर्पित होंगे और निम्नलिखित लाभ प्रदान करेंगे:

1. महिला पीड़ितों के लिए सुरक्षित और संवेदनशील वातावरण
2. महिला अधिकारियों द्वारा मामलों की जांच, जो पीड़ितों को अधिक खुलकर बोलने में सहायता करेगा
3. महिला-केंद्रित अपराधों पर विशेष ध्यान और तेज कार्रवाई
4. महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा

मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करें और इसे लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। महिला थानों की स्थापना से न केवल महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि यह समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता को भी बढ़ावा देगा।

इस विषय पर चर्चा करने के लिए मैं आपसे मिलने का समय चाहूंगी। कृपया अपनी सुविधानुसार एक बैठक की तिथि और समय सुझाएं।

धन्यवाद।

सादर,
मिथिलेश कुमारी,
अध्यक्षा – उत्तम प्रदेश राज्य महिला आयोग,
राजनगर, उत्तम प्रदेश


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आपने ऑनलाइन कुछ खिलौने आर्डर किए थे, जो 5 दिन से अधिक समय बीत जाने के बाद भी आपको प्राप्त नहीं हुए हैं। कंपनी को अपना ऑर्डर रद्द करने के लिए लगभग 80 शब्दों में ईमेल लिखें ।

आपके क्षेत्र में नकली दूध बेचने का धंधा खूब फल-फूल रहा है। इसकी रोकथाम हेतु स्वास्थ्य निरीक्षक को ई-मेल लिखिए।

आप पिकनिक पर गए। दोस्त को ई-मेल करें। ई-मेल में उसे पिकनिक के बारे में बताते हुए लिखें।

मान लीजिए कि आप बहुत दिनों से स्कूल नहीं गए हैं। अपने किसी मित्र से इन दिनों विज्ञान विषय में करवाए गए कार्य की कॉपी स्कैन करके ई-मेल से भेजने का अनुरोध कीजिए।

आपके सामने ऐसा कुछ हुआ हो कि किसी जानवर ने किसी मनुष्य को चोट पहुंचाई हो। ऐसी किसी घटना का वर्णन कीजिए।

प्रसंग लेखन

 

जानवर द्वारा किसी मनुष्य को चोट पहुंचाने की अनेक घटनाएं घटती रहती हैं और हम समाचारों के माध्यम से ऐसी अनके घटनाओं को देखते-सुनते रहते हैं, जिसमें बताया जाता है कि अमुक क्षेत्र में तेंदुए अथवा बाघ आदि का आतंक या आवारा कुत्तों द्वारा निवासियों को काट लेने की घटनाएं आदि। मैं ऐसी ही दो प्रत्यक्ष घटनाओं का उदाहरण हूँ।

ऐसी ही एक घटना ध्यान में आती है, जब हमारे कॉलोनी के एक बच्चे को एक आवारा कुत्ते ने बुरी तरह काट लिया और उसे बच्चों को आवारा कुत्तों ने नोच-नोच कर इतना अधिक काटा कि बाद में उस बच्चे की मौत हो गई। ये हृदयविदारक घटना उस समय की है जब हमारी कॉलोनी में कुछ दिनों से आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ गई थी। वह आते जाते कॉलोनी निवासियों पर भौंकते थे। इस संबंध में हमने नगर पालिका को शिकायत की थी, लेकिन कोई भी उचित कार्रवाई नहीं की गई थी।

एक दिन हमारे कॉलोनी के एक निवासी सुरेद्र गुप्ताजी का 8 वर्षीय बेटा अपनी हमारी गली के बाहर स्थित किराने की दुकान से कुछ खाने का सामान लेने गया। जब वह सामान लेकर लौट रहा था तो उसके हाथ में पैकेट देखकर आवारा कुत्ते उसके पीछे पड़ गए और उसके हाथ का पैकेट झपटने का प्रयास करने लगे। यह देखकर वह बच्चा भागने लगा तो आवारा कुत्ते उसके पीछे पड़ गए और न केवल उस पैकेट को छीन कर उसका सामान खा गए बल्कि बच्चे को भी बुरी तरह काट लिया। जब तक चीख-पुकार सुनकर कॉलोनी के निवासी आते तब तक बच्चा बहुत अधिक लहू-लुहान हो गया था। आनन-फानन में सब लोग उसे अस्पताल लेकर गए। जहाँ एक दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना से हमारी कॉलोनी में शोक की लहर दौड़ गई। गुस्से में हम सभी कॉलोनी के निवासियों ने नगर पालिका दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया, तब जाकर नगर पालिका हरकत में आई और उन आवारा कुत्तों को पकड़ा गया।

ऐसी ही एक दूसरी घटना हमारे पुश्तैनी गाँव में घटी, जब हम लोग अपने गाँव में छुट्टियां बिताने दादी-दादी के घर गए थे। कुछ दिनों से हमारे गाँव में तेंदुए के आतंक के बारे में खबरें सुन रहे थे कि एक तेंदुआ जंगल से भटक कर गाँव में रोज आ जाता है और गाँव के किसी पालतू जानवर को उठाकर ले जाता है। वह अक्सर मनुष्यों पर भी आक्रमण कर देता है। गाँव के सभी लोग आतंकित थे और सावधान रहते थे।

एक दिन मैं अपने दादा के घर के ऊपर वाले बालकोनी में बैठा बाहर का नजारा देख रहा था तो मैंनें एक तेंदुए को आते देखा तभी दूसरी तरफ से एक ग्रामीण किसान अपने खेतों की ओर जा रहा था। तेंदुआ उस ग्रामीण किसान को देखकर उस पर झपटा और किसान भागा लेकिन तेंदुए ने किसान के हाथ में अपने दाँत गड़ा दिए। वह जोर से चीखा। उसकी आवाज सुनकर आसपास के ग्रामीण अपने घरों से हाथ में लाठी-डंडा लेकर बाहर निकले।

यह देखकर तेंदुआ भाग गया लेकिन वो किसान को पूरी तरह घायल कर गया था। उसके हाथ से खून बह रहा था। शुक्र था कि तेंदुए के आक्रमण से किसी की जान को कोई हानि नहीं हुई, लेकिन किसान के हाथ में बहुत चोट आई और वह बहुत दिनों तक अपना काम नहीं कर पाया।

इस तरह जानवरों द्वारा मनुष्य को चोट पहुंचाने के लिए घटनाएं घटती रहती हैं। मैं इन दो प्रत्यक्ष घटनाओं का साक्षी हूँ।


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दुःख की घड़ी में भी जब कुछ लोग संवेदनहीनों जैसा आचरण करते हैं तो उसका परिणाम क्या होता है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। पाठ ‘इस जल प्रलय में’

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‘इस जल प्रलय में’ पाठ के आधार पर कहें तो दुख की घड़ी में भी जब कुछ लोग संवेदनहीनों जैसा आचरण करते हैं तो उसका परिणाम यह होता है कि ऐसे लोगों के जीवन में जब दुख की घड़ी आती है, तब उनका साथ देने वाला कोई नहीं होता। दुख की घड़ी में यह आवश्यक है कि दूसरों के दुख को अपना दुख समझते हुए उसे हर संभव सहयोग प्रदान किया जाए। जो लोग ऐसा नहीं करते और दूसरों के दुखों में अपना दुख ना समझकर संवेदनहीन जैसा आचरण करते हैं तो जब भी उनके जीवन में दुख आता है तो उनका साथ देने वाला भी कोई नहीं होता।

दुख एक ऐसा चरण है जो हर किसी के जीवन में कभी ना कभी आता ही है। दुख से कोई नहीं बच पाया है, ऐसा लोगों को हमेशा ये बात सोचनी चाहिए। यदि वह ऐसा सोचेंगे तो उनके जीवन में दुख की घड़ी में साथ देने वाले अनेक लोग होंगे।

‘इस जल प्रलय में’ पाठ में लेखक फणीश्वरनाथ नाथ रेणु ने पटना शहर में आई भीषण बाढ़ के विषय में वर्णन किया है, जिसके कारण पूरा पटना शहर लगभग डूब गया था और पूरा जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था। लेखक ने बाढ़ के पानी को ‘प्रलय दूत’ की संज्ञा दी है।


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आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी ‘कफन’ में घीसू का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘कफन’ नामक कहानी के मुख्य पात्र घीसू का चरित्र चित्रण इस प्रकार होगा…
  • घीसू बेहद गरीब और अनपढ़ व्यक्ति है, जो दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।
  • घीसू एक कमजोर तथा अकर्मण्य व्यक्ति भी है, जो मेहनत का कोई कार्य नहीं करना चाहता। इस कारण वह अपने कुनबे और गाँव में वह अपने आलस्य के लिए कुख्यात था।
  • घीसू स्वार्थी प्रवृत्ति का व्यक्ति भी है, जब उसके बेटे की पत्नी प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी, तब वह आलू खाने में मगन था। उसने अपने बेटे माधव को सहायता के लिए भेजा तो लेकिन खुद उसकी सहायता के लिए नहीं गया।
  • घीसू एक निर्दयी व्यक्ति है, जिसके मन में ना तो दया, ना सहानुभूति और ना ही संवेदनशीलता है। उसके बेटे की पत्नी बुधिया रात दिन दूसरों के घरों में काम करके किसी तरह सबका पेट पालती थी फिर भी उसके मन में कोई दया नहीं आती थी। जब वह प्रसव पीड़ा से मौत के मुंह में जा रही थी तब भी घीसू का मन नहीं पिघला।
  • घीसू एक नशाखोर व्यक्ति था जो तरह-तरह के नशा करने के लिए कुख्यात थाय़ उसे शराब पीने और पकवान खाने का बेहद शौक था।

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केंद्रीय विद्यालय में स्वच्छता अभियान जुलूस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। स्कूल में नोटिस बोर्ड के लिए सूचना।

केंद्रीय विद्यालय, पुष्प विहार, दिल्ली

सूचना

दिनांक : 10 जनवरी 2024

विद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं को सूचित किया जाता है कि दिनांक 12 जनवरी 2024 को हमारे विद्यालय की तरफ से स्वच्छता अभियान जुलूस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस जुलूस का मुख्य उद्देश्य शहर के नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता पैदा करना है। जुलूस का आरंभ विद्यालय से दोपहर 11 बजे होगा और शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरता हुआ जुलूस श्याम 3 वापस विद्यालय पर आकर समाप्त होगा।

जुलूस में शामिल होने वाले छात्र-छात्राएं जगह-जगह रुककर स्वास्थ्य के प्रति स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे और विद्यालय प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई स्वच्छता अभियान संबंधी सामग्री जैसे टैम्पलेट, पोस्टर, पुस्तिकाएं, ब्रोशर आदि को बाटेंगे। छात्र-छात्राओं से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में इस जुलूस में शामिल होकर स्वच्छता अभियान में सहभागी बनें।

आज्ञा से,
विद्यालय प्रशासन,
केंद्रीय विद्यालय,
पुष्प विहार, दिल्ली ।


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वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए :- “उनके वंशज अपनी भयावह लपटों से अब भी उनका मुख उज्जवल किए हुए हैं |” (पाठ – पानी की कहानी)

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उनके वंशज अपनी भयावह लपटों से अब भी उनका मुख उज्जवल किए हुए हैं |

​’रामचंद्र तिवारी’ द्वारा लिखे गये ‘पानी की कहानी’ नामक पाठ की इन पंक्तियों का आशय इस प्रकार है :

आशय : लेखक से वार्तालाप करते हुए ओस की बूंद जो कि पानी का स्वरूप है, लेखक से कहती है कि उसका निर्माण हाइड्रोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसों के संयोग से हुआ है। इस तरह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों गैसें उसके वंशज हैं, जो सूर्य मंडल में अभी भी सूर्य के घेरे में लपटों के रूप में मौजूद हैं। यानी सृष्टि के निर्माण के समय जब पानी नहीं था तब हाइड्रोजन और ऑक्सीजन नामक दो गैसों से ही पानी का निर्माण हुआ और धरातल यानी पृथ्वी पर जीवन का विकास आरंभ हुआ।

पानी की बूंद कहती है कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों उसके वंशज है, जो अभी भी सूर्यमंडल में अपनी धधकती गैसों के रूप में मौजूद हैं, और सूर्य के मुख्य को आभा प्रदान कर रहे हैं।


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विष भरे कनक घटों की संसार में कमी नहीं है। आशय स्पष्ट कीजिए।

कक्षा में देरी से पहुँचने पर हुए अपने अनुभव को डायरी लेखन के रूप में लिखिए।

डायरी लेखन

12 मार्च 2024 (मंगलवार)

प्रिय डायरी,
आज मैं कक्षा में देरी से पहुंचा। मैं घर से सही समय में निकल गया था। लेकिन जो ऑटो रिक्शा मुझे लेने आता है, वो रास्ते में खराब हो गया। रिक्शे में जो खराबी थी उसे ठीक करने में आधा घंटा लग गया। जब रिक्शा सही हुआ और मैं स्कूल पहुँचा तो आधा घंटे से भी अधिक की देरी हो गई थी। मेरा एक पीरियड निकल चुका था। पहले स्कूल के गेट पर प्यून ने मुझे अंदर एंट्री ही नहीं दी। किसी तरह प्रार्थना करने पर जब उसने मुझे एंट्री दी तो मुझे बहुत डर लग ही रहा था कि आज कक्षा में बहुत डांट पड़ेगी। जैसे ही मैं कक्षा में पहुँचा तो मेरे दूसरे पीरियड के अध्यापक ने ने मुझसे देरी से आने के लिए डांटा और सीधे बाहर निकाल दिया । मुझे बहुत बुरा लगा, एक बार भी अध्यापक ने मुझसे देरी से आने का कारण नहीं पूछा । सारे छात्र मुझे देख रहे थे । मुझे बहुत बुरा लगा। मजबूरन में वापस घर आना पड़ा। मैं पहली बार कक्षा में देरी से गया था । कक्षा में देरी से जाने का अनुभव मेरा बहुत खराब रहा। आज के बाद मैं कभी देरी से नहीं जाऊंगा ।

मंयक,
दिल्ली,
12 मार्च ।


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चंडीगढ़ के रॉक गार्डन का अनुभव डायरी में लिखिए।

आप राकेश गर्ग है। आपके भैया भाभी को पुत्र प्राप्त हुआ है। इस अवसर पर उनके लिए एक बधाई संदेश लिखिए।

बधाई संदेश

भैया-भाभी को बधाई संदेश

 

प्रणाम भैया और भाभी,
प्रणाम,

भैया भाभी आशा करता हूँ, कि आप सब ठीक होंगे। सबसे पहले आपको पुत्र रत्न प्राप्त होने की मेरे तरफ से बहुत-बहुत बधाई। आप दोनों के लिए ये जीवन का बेहद महत्वपूर्ण और खुशी का पल है। ये केवल आप दोनों के लिए ही नहीं बल्कि हमारे पूरे परिवार की खुशी का पल है। इस ने मेहमान के आने से हमारा परिवार पूरा हो गया। मैं भी चाचा बनकर बहुत खुश हूँ। आपको मेरी तरफ़ से एक बार फिर नए सदस्य के आने की बहुत-बहुत बधाई।

आपका छोटा भाई,
राकेश गर्ग ।


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आपका मित्र आई.आई.टी की परीक्षा में चयनित हो गया है उसे बधाई पत्र लिखिए।

अपने मित्र के क्रिकेट टीम में चुने जाने पर मित्र को बधाई देते हुए पत्र लिखें।

आज के संदर्भ में ‘अपना-पराया’ पाठ की प्रासंगिकता पर टिप्पणी लिखिए ।

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आज के संदर्भ में अपना-पराया पाठ की बेहद अधिक प्रासंगिकता है। इस पाठ के माध्यम से शरीर की ज्ञानेंद्रियों के बारे में बताया गया है तथा स्वच्छता से रहने के नियम भी सुझाए गए हैं। आज अक्सर कोरोना महामारी का संकट मंडराने लगता है तथा अन्य कई तरह की बीमारियां फैलती रहती है। ऐसे समय में अपनी स्वच्छता एवं सफाई के विषय में बेहद अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

‘अपना पराया’ पाठ में यही सब बातें बताई गई हैं कि हमें खाने पीने से पहले हाथों को क्यों अच्छी तरह धोना चाहिए तथा अपनी सभी ज्ञानेंद्रियों का उपयोग किस तरह कुशलतापूर्वक करना चाहिए ताकि हमारे शरीर में किसी भी तरह का कोई विकार न उत्पन्न होने पाए। आज महामारी आदि की आशंका में जी रहे मनुष्य के लिए ‘अपना पराया’ पाठ प्रासंगिक है क्योंकि इसके माध्यम से वह अपने स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता को समझ सकता है।


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अस्पताल से घर आकर लेखक कहाँ रहा और उसने क्या महसूस किया? ऐसा करना उनके किस भाव को दर्शाता है? (मेरा छोटा निजी पुस्तकालय)

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अस्पताल से घर आने के बाद लेखक अपने बेडरूम में नहीं बल्कि अपने पुस्तकालय में रहा, क्योंकि लेखक को पुस्तकों से बेहद प्रेम था।

‘मेरा छोटा निजी पुस्तकालय’ में लेखक धर्मवीर भारती का सन 1989 में जबरदस्त हार्ट अटैक के बाद ऑपरेशन हुआ था। डॉक्टरों ने जैसे तैसे उनके हृदय का ऑपरेशन किया था लेकिन उनका इस प्रक्रिया में उनका 60% ह्रदय सदा के लिए नष्ट हो गया था और केवल 40% हृदय ही बचा था। उन्हें सख्त बेड रेस्ट की हिदायत थी। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन के बाद घर को आए और उन्होंने अपने बेडरूम में ना रहकर अपने में रहने की जिद की और फिर वह वहीं पर अपने पुस्तकालय में रहते और पुस्तकों को देखते रहते थे। बायीं ओर की खिड़की से हवा आती रहती थी और हजारों पुस्तकों में उन्होंने अपने जीवन को समेट लिया था।


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अनुच्छेद जब मैंने पिज़्ज़ा बनाया

पहेली बताइए – ‘हाथ से निकला रस, तो शहर गया बस।’

अपने इलाके में पीने का पानी अशुद्ध आता है, इसकी शिकायत करते हुए तथा शुद्ध जल का वितरण करवाने हेतु नगराध्यक्ष को पत्र लिखिए |

औपचारिक पत्र

अशुद्ध पानी की शिकायत करते हुए नगराध्यक्ष को पत्र

 

दिनांक – 22 जून 2024

सेवा में,
श्रीमान नगर अध्यक्ष,
फरीदाबाद नगर निगम,
फरीदाबाद ।

विषय : निर्मल नगर इलाके में पीने के अशुद्ध पानी आने के संबंध में शिकायत एवं शुद्ध पानी के वितरण का अनुरोध

माननीय नगराध्यक्ष महोदय,
निवेदन इस प्रकार है कि हमारे निर्मल नगर इलाके में कई दिनों से पीने का अशुद्ध पानी आ रहा है। पानी का रंग बेहद मटमैला होता है और कभी-कभी उसमें छोटे-छोटे कीड़े भी होते हैं। इस कारण हमें या तो पीने के लिए बाहर से पानी शुद्ध पानी मंगाना पड़ता है अथवा इसी पानी को शुद्ध करने की प्रक्रिया करनी पड़ती है जो कि बेहद लंबी होती है और इसमें हमारा काफी खर्चा होता है।

इस अशुद्ध पानी को पीने के कारण हमारे इलाके के अनेक लोग बीमार भी पड़ गए हैं। पीने की पानी की घोर किल्लत होने के कारण हमारे निर्मल नगर कॉलोनी के सभी निवासियों का जीवन बेहद अस्त-व्यस्त हो गया है। हम इस संबंध में नगर निगम विभाग को कई बार पत्र लिख चुके हैं लेकिन अभी तक कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है।

मेरा अपने सभी कॉलोनी निवासियों की तरफ से आपसे अनुरोध है कि हमारे निर्मल नगर इलाके में पीने का शुद्ध पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने की कार्रवाई शीघ्र से शीघ्र करें ताकि हम सभी निवासियों का जीवन सामान्य हो सके।
आशा है कि आप जनता की इस तकलीफ को आप समझेंगे और शीघ्र से शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद।

भवदीय,
मनोज कुमार एवं निर्मल नगर इलाके के समस्त कॉलोनी निवासी ।


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आपके विद्यालय में पीने का पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता। इसकी शिकायत करते हुए सुधार के लिए प्रार्थना करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए।

सुमित बजाज, सिद्धार्थ नगर गोरे गाँव (पश्चिम) से बरसात के दिनों में सड़कों की दुर्दशा के बारे में शिकायत करते हुए महानगरपालिका के अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिखता है।

अनुच्छेद जब मैंने पिज़्ज़ा बनाया

अनुच्छेद

जब मैंने पिज़्ज़ा बनाया

जब मैंने पिज़्जा बनायाजब मैंने पहली बार पिज़्ज़ा बनाया उसका अनुभव मेरे लिए बहुत खास था । मुझे पिज़्ज़ा बनाना नहीं आता था और जब मैं यू ट्यूब की सहायता से पिज़्ज़ा बनाने का सोचा । मैंने पिज़्ज़ा बनाने वाला एक वीडियो देखा। मैं बाज़ार से पिज़्ज़ा बनाने का सामान लेकर आई, जैसे पिज़्ज़ा बेस, पिज़्ज़ा चीज़, सब्जियां, सोस आदि सब कुछ।

पिज़्ज़ा बनाने के लिए ओवन मेरे घर पहले से ही था। मैंने रसोई में जाकर एक मोबाइल स्टैंड पर अपना मोबाइल रखकर मोबाइल में यूट्यूब चला दिया और मैं वीडियो में पिज़्जा बनाने की विधि देखती गई और साथ-साथ पिज़्जा भी बनाती गई । सच्च में पिज़्ज़ा बहुत स्वाद बना था । मैं और मेरे परिवार ने मिलकर बहुत खुशी से खाया। मुझे खुद पर यकीन नहीं आ रहा था कि मैं इतना अच्छा पिज़्ज़ा बना लेती हूँ। मेरे बनाए पिज़्जा की सबने बहुत तारीख की। इस तरह मैंने पहली बार घर पिज़्ज़ा बनाया।


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अनुच्छेद लिखिए ‘बातें कम, काम ज्यादा’

फौजी की माँ पर अनुच्छेद लिखें।

निम्नलिखित वाक्यों से संज्ञा छाँटिए और उसके भेद लिखिए- वाक्य 1. अध्यापिका पढ़ाती हैं। 2. सच्चाई एक अच्छा गुण है। 3. हिमालय विशाल पर्वत है। 4. हीरा बहुमूल्य रत्न है। 5. भारतीय सेना बेहद कुशल सेना है। 6. जल ही जीवन है।

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दिए गए वाक्यों में संज्ञा शब्द और उनके भेद इस प्रकार होंगे…

1. अध्यापिका पढ़ाती हैं।
संज्ञा : अध्यापिका
संज्ञा के भेद : जातिवाचक संज्ञा

2. सच्चाई एक अच्छा गुण है।
संज्ञा : सच्चाई
संज्ञा के भेद : भाववाचक संज्ञा

3. हिमालय विशाल पर्वत है।
संज्ञा : हिमालय
संज्ञा के भेद : व्यक्तिवाचक संज्ञा

4. हीरा बहुमूल्य रत्न है।
संज्ञा : हीरा
संज्ञा के भेद : द्रव्यवाचक संज्ञा

5. भारतीय सेना बेहद कुशल सेना है।
संज्ञा : सेना
संज्ञा के भेद : समूहवाचक संज्ञा

6. जल ही जीवन है।
संज्ञा : जल
संज्ञा के भेद : द्रव्यवाचक संज्ञा

संज्ञा क्या है?

हिंदी व्याकरण में संज्ञा वह शब्द होते है जो किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव या समूह के नाम को दर्शाते हैं।

संज्ञा के प्रमुख भेद पाँच होते हैं।

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
किसी विशेष व्यक्ति, स्थान या वस्तु का नाम।
उदाहरण: राम, दिल्ली, ताजमहल।

2. जातिवाचक संज्ञा
किसी जाति या वर्ग का सामान्य नाम।
उदाहरण: लड़का, पेड़, कुर्सी।

3. भाववाचक संज्ञा
किसी गुण, अवस्था या भाव का नाम।
उदाहरण: सुंदरता, बचपन, क्रोध।

4. समूहवाचक संज्ञा
किसी समूह या समुदाय का नाम।
उदाहरण: सेना, कक्षा, झुंड।

5. द्रव्यवाचक संज्ञा
किसी पदार्थ या द्रव्य का नाम।
उदाहरण: पानी, दूध, तेल।


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दिए गए वाक्यों में से संज्ञा शब्दों को अलग करके उनके भेद लिखिए। (1) पत्रकार मित्र ने साहसिक किस्से सुनाए। (2) वहाँ पंडित नेहरू उपस्थित थे (3) वीरता पुरस्कार दिए गए। (4) एक पटाखा शामियाने पर गिरा। (5) सिलेंडर से रेगुलेटर बंद किया।

‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’ इस वाक्य में से विशेषण और विशेष्य छांटकर लिखें।

नगाँव सिटी की सुंदरता के विषय में बताते हुए राजस्थान में बसे अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अनौपचारिक पत्र

नगाँव सिटी की सुंदरता बताते हुए मित्र को पत्र

दिनाँक – 22 जून 2024

मोहन गुप्ता,
ए-31, राजा गार्डन,
दिल्ली

शेखर सिंह,
जी-123, सौरभ विहार,
जयपुर (राजस्थान)

प्रिय मित्र शेखर
तुम कैसे हो?

आशा करता हूँ कि तुम स्वस्थ और प्रसन्न होगे। दोस्त, मैं कुछ दिनों पहले अपने चाचा के साथ नगाँव सिटी घूमने गया था। मेरे चाचा नगाँव सिटी में ही एक कंपनी में जॉब करते हैं। इस बार वह हम लोगों से मिलने आए तो उनके वापस जाते समय मैं उनके साथ नगाँव घूमने चला गया। मै नगाँव में पाँच दिन रहा और असम के इस खूबसूरत शहर नगाँव जीभकर कर घूमा। इस शहर की सुंदरता ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। आओ मैं तुम्हें नगाँव शहर के बारे में बताता हूँ।

नगाँव असम का एक महत्वपूर्ण शहर है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ का मौसम बहुत सुहावना है, जो इस शहर को और भी आकर्षक बनाता है। चारों ओर हरियाली का नजारा देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।

शहर के बीचों-बीच बहती कोलोंग नदी इसकी शोभा को और बढ़ा देती है। शाम के समय नदी के किनारे टहलना एक अद्भुत अनुभव है। सूर्यास्त के समय नदी में पड़ने वाला सूरज का प्रतिबिंब एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करता है।

यहाँ के लोग बहुत मिलनसार और स्वागतशील हैं। उनकी संस्कृति और परंपराएँ बहुत समृद्ध हैं। मैंने यहाँ के कई त्योहारों में भाग लिया है, जिनमें बिहू सबसे प्रमुख है। इन त्योहारों में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है।

नगाँव की एक और खूबसूरती है यहाँ का व्यंजन। यहाँ के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद अद्वितीय है। मछली के व्यंजन और चाय के बागानों से आने वाली ताजी चाय का मजा कुछ और ही है।

शहर में कई ऐतिहासिक स्थल भी हैं जो इसकी समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। प्राचीन मंदिर और पुरातन इमारतें शहर की ऐतिहासिक महत्ता को बयान करती हैं।

मुझे लगता है कि तुम्हे भी एक बार नगाँव आकर इसकी सुंदरता का अनुभव करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि तुम भी इस शहर के सौंदर्य और संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। अगली बार जब मेरे चाचा बुलाएंगे तो हम दोनों उनके साथ नगाँव घूमने चलेंगे। आशा है कि जल्द ही हम दोनों यहाँ आएँगे और हम साथ में इस खूबसूरत शहर का आनंद लेंगे।

तुम्हारा मित्र,
मोहन


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आपने नए घर में शिफ्ट किया है। अपने नए घर के विषय में बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

अपने मित्र को पत्र लिखें जिसमें योग एवं व्यायाम का महत्व बताया गया हो।

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आपने अपने मित्र के साथ ग्रीष्मावकाश को कैसे बिताया, इस बात को बताते हुए अपनी माँ को पत्र लिखिए।

पहेली बताइए – ‘हाथ से निकला रस, तो शहर गया बस।’

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इस पहेली का सही जवाब है…

हाथरस

आइए समझते हैं कैसे?

इस पहेली में बताया गया है कि ‘हाथ से निकला एक रस और शहर बन गया बस।’

पहेली से पता चलता है कि इसमें किसी शहर का नाम पूछा जा रहा है। पहेली में हाथ का उल्लेख है और रस का उल्लेख है। साथ ही यह बताया गया है कि हाथ से निकला रस। इससे स्पष्ट होता है कि उस शहर का नाम हाथ से निकले रस से संबंधित है।

पहेली के आधार पर जिस शहर का नाम पता चलता है, उस शहर का नाम है, हाथरस

हाथरस भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बसा हुआ एक शहर है। यह शहर हींग की भूमि के नाम से भी मशहूर है क्योंकि यहां पर हींग का व्यापार बड़ी मात्रा में होता है। हाथरस भारत में हींग के व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र हैय़ इसके अलावा यह शहर कवियों की भूमि भी रहा है।

हिंदी के प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी इसी शहर से संबंध रखते थे। उनके अलावा भी इस शहर से कई कवि निकले हैं।

हाथरस शहर में हिंदी और स्थानीय बोली के रूप में ब्रजभाषा बोली जाती है। यह उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र यानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है।


और पहेलियां…

सब्जियों का राजा आलू को कहा जाता है, तो सब्जियों की रानी किसे कहा जाता है?

दिए गए शब्दों में उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाइए। (क) नाम (ख) देश (ग) पका (घ) हत्था (ङ) गिनत (च) कूल (छ) मरण (ज) दृष्टि

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दिए गए शब्दों में उपसर्ग लगाकर नए शब्द इस प्रकार होंगे…

(क) नाम
बे + नाम = बेनाम
अ + नाम = अनाम
गुम + नाम = गुमनाम
बद + नाम = बदनाम

(ख) देश
पर + देश = परदेश
स्व + देश = स्वदेश
वि + देश = विदेश

(ग) पका
अध + पका = अधपका

(घ) हत्था
नि + हत्था = निहत्था

(ङ) गिनत
अन + गिनत = अनगिनत

(च) कूल
अनु + कूल = अनुकूल
प्रति + कूल = प्रतिकूल

(छ) मरण
आ + मरण = आमरण

(ज) दृष्टि
कु + दृष्टि = कुदृष्टि

उपसर्ग क्या हैं?

उपसर्ग एक या एक से अधिक अक्षरों के वे शब्दांश होते हैं, दो किसी शब्द के आरंभ में लगते है।

उपसर्ग शब्दांश उस शब्द के लिए एक विशेषण का कार्य करते हैं और उस शब्द को विशेषण से युक्त शब्द बना देते है। उपसर्ग लगाने से वह शब्द किसी गुण या दोष से युक्त शब्द होता है।


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उपसर्ग और प्रत्यय की परिभाषाएं। (हिंदी व्याकरण)

दिए गए उपसर्ग से दो-दो शब्द बनाइए- (क) पुनर् (ख) हर (ग) सम् (घ) कु (च) अ (छ) बिन (ज) प (ङ) स्व

‘प्रत्युत्तर’ शब्द में से मूल शब्द व उपसर्ग अलग-अलग करें।

किसी ‘ऐतिहासिक स्थल’ के बारे में दो छात्रों के बीच संवाद लिखिए।

संवाद लेखन

ऐतिहासिक स्थल के बारे दो छात्रों अमन और जतिन के बीच संवाद

अमन ⦂ जतिन, जानते हो कल मैं दिल्ली के लाल किला घूमने गया था।

जतिन ⦂ वह लाल किला! वह तो बहुत प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत है। तुम्हें घूम कर बहुत मजा आ गया होगा।

अमन ⦂ हाँ सच में, मुझे लाल किला घूम कर बहुत मजा आया। लाल किला बहुत बड़ा है। पूरा दिन घूमते रहे।

जतिन ⦂ तुम्हें पता है कि लाल किला किसने बनवाया।

अमन ⦂ हाँ पता है, लाल किला मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था, जिसने आगरा का ताजमहल भी बनवाया था।

जतिन ⦂ सही कह रहे हो तुम। लाल किला बलुआ पत्थरों द्वारा लाल रंग के बलुआ पत्थरों द्वारा निर्मित है इसी कारण इसे लाल किला कहा जाता है क्योंकि यह लाल पत्थरों द्वारा बना हुआ है।

अमन ⦂ ये हमारे देश की ऐतिहासिक इमारत है। हर साल 15 अगस्त को हमारे देश के प्रधानमंत्री किसी लाल किले की प्राचीर से पूरे देश को संबोधित करते हैं। लाल किला दिल्ली की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारत है और और जो दिल्ली घूमने आता है वह लाल किला अवश्य घूमने जाता है।

जतिन ⦂ बिल्कुल सही कह रहे हो। लाल किला बेहद महत्वपूर्ण इमारत है। लाल किला के मैदान में कई तरह के कार्यक्रम होते रहते हैं। दशहरा के दिन यहाँ पर बड़े विशाल स्तर पर रामलीला का मंचन किया जाता है।

अमन ⦂ क्या तुम कभी लाल किला घूमने गए हो?

जतिन ⦂ हाँ मैं लाल किला घूमने जा चुका हूँ। मैं लाल किला के अलावा लाल किला के सामने स्थित चांदनी चौक, शीशगंज गुरुद्वारा, रघुनाथ मंदिर, जैन मंदिर, मोती मस्जिद जैसे अन्य धार्मिक स्थल पर भी घूमने जा चुका हूँ। क्या तुम भी इन सभी जगहों पर घूमे थे?

अमन ⦂ हाँ, मैं यह सभी जगह पर गया था।

जतिन ⦂ फिर तो अच्छी बात है। हम दोनों घूमने जाएंगे और पूरा दिन वहाँ पिकनिक मनाएंगे।

अमन ⦂ ठीक है।


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नवयुवकों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन करें।

परीक्षा में आए कठिन प्रश्न-पत्र के बारे में दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए।

कठिन रास्ते की बात सुनकर भी जवाहरलाल सफ़र के लिए तैयार क्यों हो गए?

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कठिन रास्ते होने की बात सुनकर भी जवाहरलाल सफर के लिए तैयार इसलिए हो गए, क्योंकि वह अमरनाथ की गुफा के को देखने के लिए उत्सुक थे। जोजिला पास से आगे निकल कर जब जवाहरलाल मातायन पहुंचे तो उनके साथ चल रहे नवयुवक कुली ने उन्हें बताया कि आगे अमरनाथ की गुफा है, लेकिन रास्ता बहुत ही कठिन है। तब जवाहरलाल ने अपने चचेरे भाई यो दृष्टि डाली जो कि उनके साथ कश्मीर घूमने के लिए आये थे। वह अमरनाथ की गुफा देखना चाहते थे। उन्हें रास्ते की मुश्किलों के बारे में पता था लेकिन फिर भी वह आगे जाने के लिए तैयार हो गए क्योंकि वे कठिनता से नही घबराते थे। उन्हें अमरनाथ गुफा का दर्शन भी करना था।

‘चुनौती हिमालय की’ नामक पाठ जो कि सुरेखा पणंदीकर द्वारा लिखा गया है, उसमें जवाहरलाल नेहरू की कश्मीर यात्रा के बारे में वर्णन किया गया है, जिसमें वह अपने चचेरे भाई के साथ कश्मीर घूमने निकले थे और अमरनाथ गुफा जाते समय रास्ते में खाई में गिरते गिरते बचे। आगे का रास्ता बेहद कठिन होने के कारण वह अमरनाथ की गुफा नहीं पहुंच पाए और उन्हें आधे रास्ते से ही वापस आना पड़ा।


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जीवन में अंधविश्वास मनुष्य को हानि ही पहुँचाता है। ईश्वर पर विश्वास करना सही है क्योंकि वह मनुष्य को धर्म के प्रति जागरूक करता है तथा सही और गलत की पहचान करने की क्षमता प्रदान करता है। धर्म के ठेकेदार अंधविश्वास का सहारा लेकर मनुष्य की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर अपनी स्वार्थ सिद्धि करते हैं। गाँव में ठाकुरबारी के विकास का कारण बताते हुए ठाकुरबारी की आड़ में महंत के इरादों का पर्दाफाश कीजिए​।

आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

गुड़हल के पुष्प को अम्लीय विलयन में रखने पर विलयन किस रंग में बदल जाएगा (a) हरा (b) गुलाबी (d) पीला (c) रंगहीन?

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सही विकल्प :

(b) गुलाबी

स्पष्टीकरण :

गुड़हल के पुष्प को अम्लीय विलयन में रखने पर विलयन का रंग गहरे गुलाबी रंग का हो जाएगा यानी जब गुड़हल के फूल को किसी अम्लीय विलयन में डालते हैं तो उस विलयन का रंग गुलाबी रंग में बदल जाएगा।

गुड़हल का पुष्प एक प्राकृतिक सूचक होता है जो अम्लीय विलयन का रंग गहरे गुलाबी रंग में कर देता है। यदि गुड़हल के पुष्प को किसी क्षारीय विलयन में डाला जाएगा तो उस विलयन का रंग हरा हो जाएगा। गुड़हल का पुष्प लाल रंग का होता है लेकिन यह अम्लीय विलयन को गहरा गुलाबी तथा क्षारीय विलयन को हरे रंग का कर देता है।

गुड़हल के फूल में प्राकृतिक सूचक (natural indicator) होता है जिसे एंथोसायनिन कहते हैं। एंथोसायनिन एक रंगद्रव्य है जो अम्ल-क्षार सूचक का काम करता है। जब इसे अम्लीय माध्यम में रखा जाता है, तो यह गुलाबी रंग में बदल जाता है।

क्षारीय माध्यम में यह हरे रंग में बदल जाता है। न्यूट्रल यानि उदासीन माध्यम में यह बैंगनी रंग का होता है।

अतः गुड़हल के पुष्प को अम्लीय विलयन में रखने पर विलयन का रंग गुलाबी हो जाएगा।


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भारत का संविधान निर्माता किसे कहा जाता है?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?

जीवन में अंधविश्वास मनुष्य को हानि ही पहुँचाता है। ईश्वर पर विश्वास करना सही है क्योंकि वह मनुष्य को धर्म के प्रति जागरूक करता है तथा सही और गलत की पहचान करने की क्षमता प्रदान करता है। धर्म के ठेकेदार अंधविश्वास का सहारा लेकर मनुष्य की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर अपनी स्वार्थ सिद्धि करते हैं। गाँव में ठाकुरबारी के विकास का कारण बताते हुए ठाकुरबारी की आड़ में महंत के इरादों का पर्दाफाश कीजिए​।

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जी हाँ, यह बिल्कुल सही है। ईश्वर के प्रति विश्वास करना उचित है, क्योंकि ईश्वर के प्रति विश्वास ही मनुष्य को धर्म के प्रति जागरूक करता है और सही तथा गलत की पहचान करना सिखाता है। लेकिन ईश्वर के प्रति विश्वास अंधविश्वास बन जाए और हम बेकार के आडंबर और पाखंड को अपनाने लगते हैं तथा धर्म के ठेकेदारों के जाल में फंस जाते हैं तब उचित नहीं होता।

धर्म के कुछ स्वार्थी ठेकेदार हमारी आस्था का गलत फायदा उठा अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं। इसीलिए हमें अंधविश्वास एवं ईश्वर के प्रति विश्वास में भेद करना सीखना होगा। था। ‘हरिहर काका’ कहानी में ठाकुरबारी के महंत भी इसी प्रकार के धर्म के ठेकेदार थे। जो वास्तव में धर्म का पालन करना नहीं जानते थे। ठाकुरबारी के महंत जरूर बन गए थे, लेकिन वह वास्तव में धर्म के रक्षक नहीं थे बल्कि वह धर्म के भक्षक थे, जो धर्म के नाम पर भोले वाले ग्रामीणों का शोषण कर रहे थे और अपने स्वार्थ की सिद्धि कर रहे थे।

ठाकुरबारी का महंत यदि वास्तव में धर्म का सही पालन करने वाला होता तो वह हरिहर काका की जमीन को हथियाने का सोचता ही नहीं। लेकिन वो वास्तव में धर्म का सही पालन करने वाला व्यक्ति नहीं थी बल्कि धर्म की आड़ में एक सामान्य लालची एवं बेईमान व्यक्ति था जो दूसरों की संपत्ति अधिक से अधिक संपत्ति हथियाने के प्रयास में रहता था। हरिहर काका उसके आचरण को पहचान गए थे, इसीलिए उसके बहकावे में नहीं आए। हमें धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहने की आवश्यकता है।


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ठाकुरबारी के गाँव के लोगों ने मंदिर कैसे बनवाया था? (क) पैसो से (ख) ठाकुर के पैसों से (ग) चंदा इकट्ठा करके (घ) कोई नहीं

आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

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भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता

इन पंक्तियों का आशय इस प्रकार हैं…

आशय : कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘जय-जय भारत माता’ की पंक्तियों का आशय यह है कि भारत के सभी नागरिक भाईचारे की भावना से रहे। यहाँ पर जो भी अलग-अलग धर्मों जातियों से संबंधित लोग हैं, वह भाई-भाई भाई बनकर रहें। भाईचारे की भावना से रहें और भारत की प्रगति में अपना योगदान दें। भाईचारे का ये नाता कभी ना टूटे। कविता की पूरी पंक्तियां इस प्रकार हैं..

कमल खिले तेरे पानी में धरती पर हैं आम फले,
इस धानी आँचल में देखो कितने सुंदर भाव पले,
भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता,
जय-जय भारत माता। जय-जय भारत माता।

भावार्थ : कवि कहते हैं, हे भारत माता! तुम्हारे भूभाग रूप सरोवर जो कमल खेले हैं, अर्थात भारत में रहने वाले जो निवासी सभी कमल के समान है। वे सब मिलजुल कर भाईचारे की भावना से रहें। भारत माता के धानी आंचल में पलने वाले निवासी भाईचारे की भावना से रहें ये भाईचारा कभी न टूटे।


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आप के गाँव मे ग्रामपंचायत द्वारा ‘स्वच्छ ग्राम सुंदर ग्राम’ यह अभियान सफलतापूर्वक पूरा किया गया, इसलिए आप के गाँव के सरपंच जी को धन्यवाद देते हुए पत्र लिखिए।

औपचारिक पत्र

सरपंच जी को धन्यवाद पत्र

मुकेश कुमार एवम् समस्त गांववासी
ग्राम – गुग्लेहड़,
ऊना, हिमाचल प्रदेश,

दिनांक : 12 जून 2024

सेवा में,
ग्राम प्रधान,
गाँव एवं डाक घर गुग्लेहड़,
जिला ऊना, हिमाचल प्रदेश ।

विषय: सरपंच जी को धन्यवाद पत्र

आदरणीय सरपंच जी,
मैं आपके गाँव गुग्लेहड़ का स्थानीय निवासी हूँ और गाँव के विकास के लिए हो रही विभिन्न गतिविधियों पर मेरी सदा नज़र रहती है और मैं इस पत्र के माध्यम से आपके द्वारा पिछले तीन साल में किए गए विकास के कार्यों के लिए आपकी भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ और आपकी कर्तव्य निष्ठा का सम्मान करता हूँ।

पिछले सप्ताह केंद्र सरकार के “स्वच्छ ग्राम सुंदर ग्राम” स्कीम के तहत आपने सफाई अभियान चलाया था और मुझे खुशी है कि हमारे गाँव सभी युवाओं और अन्य नागरिकों ने इस अभियान को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इस कारण गाँव में हर जगह अब साफ सूत्र हो गया है ।
मुझे यह देखकर भी खुशी हुई कि इस अभियान के तहत गाँव की गउशालाओं में भी सफाई की गयी जोकि सच में एक सराहनीय कदम है । हमारे गाँव का पानी का कुआँ भी सालों से घास और कूड़े से भरा था लेकिन आज वह कुआँ भी बिलकुल साफ हो गया है ।

आज तक गाँव में कई सरपंच बनाए गए लेकिन किसी ने भी ऐसी किसी योजना का लाभ गाँव तक नहीं पहुंचाया लेकिन आप के इस कदम ने हमारे गाँव को अलग श्रेणी में ला कर खड़ा कर दिया है । मैं इस पत्र के माध्यम से एक बार फिर सारे गाँव वासियों की तरफ से आपका धन्यवाद करता हूँ और आशा करता हूँ आप अपना कार्य इसी निष्ठा से करते रहेंगे और आगे भी ऐसे कार्यक्रम हमारे गाँव में चलते रहेंगे ।

धन्यवाद सहित !

भवदीय,
मुकेश कुमार एवम् समस्त गांववासी
ग्राम – गुग्लेहड़,
ऊना, हिमाचल प्रदेश ।

 

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विष भरे कनक घटों की संसार में कमी नहीं है।

आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि विषभरे कनक घट अर्थात जहर से भरे सोने के घड़े इस संसार में हर जगह मिल जाएंगे। यहाँ पर कहने का तात्पर्य यह है कि संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो रंग रूप की दृष्टि से तो बेहद सुंदर दिखाई देते हैं लेकिन उनके विचार बेहद मलिन होते हैं।

उनकी सोच बहुत गंदी होती है। वह विचारों से दूषित होते हैं। बाहरी रूप से तो वह देखने में बेहद सुंदर और आकर्षक दिखाई देंगे, लेकिन उनका मन इतना सुंदर नहीं होगा। उनका मन गंदे विचारों से दूषित होगा, उनके मन में छल कपट होगा, ईर्ष्या होगी, बेईमानी होगी, लालच होगा। इसीलिए इस तरह के मनुष्यों की संसार में कमी नहीं है, जो ईश्वर के एक कनक घट के समान है अर्थात ऐसे सोने के घड़े के समान है, जिसके अंदर जहर भरा हुआ है।


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अभिराम और अविराम शब्द में अंतर इस प्रकार है…

अभिराम का अर्थ होता है, सुंदर, दर्शनीय, देखने योग्य जबकि अविराम का अर्थ होता है, बिना रुके चलने वाला, अनवरत, लगातार।

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अविराम : अविराम, निरंतर, लगातार अनवरत अविश्रांत, बिना रुके।

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अभिराम : सुंदर, सुखद, प्रिय, मनोहर, आनंददायक, दर्शनीय, नयनाभिराम आदि।

अविराम और अभिराम श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्दों के अंतर्गत आते हैं।

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पुराने समय की शिक्षा

हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, पड़ोसी आदि बताते हैं कि उनके समय में शिक्षा-नीति बिल्कुल सामान्य थी। उनके समय में शिक्षा प्राप्त करने कि इतनी अनिवार्यता नहीं थी और ना ही शिक्षा के प्रति इतनी अधिक जागरूकता थी।

लड़कियों के लिए तो शिक्षा प्राप्त करना आसान नही था।

दादा-दादी, नाना-नानी बताते हैं कि उनके समय में अधिकतर लड़के ही शिक्षा प्राप्त करते थे। लड़कियां केवल कुछ कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त करती थीं। फिर उन्हें घर बैठा दिया जाता था और उनकी शादी कर दी जाती थी।

शिक्षा के संबंध में इतनी अधिक सुविधाएं नहीं प्राप्त थीं। और ना ही शिक्षा के इतने अधिक विकल्प थे। जो माँ-बाप अपने बच्चों को पढ़ाते थे वह केवल अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाने की ही आकांक्षा पालते थे।

वर्तमान शिक्षा

वर्तमान समय में समाज की शिक्षा नीति देखते हैं तो हम पाते हैं कि आज बालक हो या बालिका दोनों के लिए शिक्षा अनिवार्य है और लड़कों के समान लड़कियां भी भरपूर शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।

यह सब नई शिक्षा नीति के परिणाम स्वरूप हुआ है, जिसमें शिक्षा का समावेशी स्वरूप विकसित किया गया है और सभी के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है।

समाज के सभी वर्ग आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, इसी कारण समाज के वंचित, शोषित व कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राएँ भी शिक्षा प्राप्त कर पा रहे हैं, जबकि पुरानी शिक्षा नीति में ऐसा नहीं हो पा रहा था।


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किसी एक राजकीय नेता का साक्षात्कार लेने के लिए एक प्रश्नावली तैयार कीजिए?

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अनुच्छेद लिखिए ‘बातें कम, काम ज्यादा’

अनुच्छेद

बातें कम काम ज्यादा

 

जीवन में हमें बाते कम करनी चाहिए और काम ज्यादा करना चाहिए । जो मनुष्य जीवन में बड़ी-बड़ी बाते करता है, और काम कुछ भी नहीं करता वह जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है। जो मनुष्य बाते कम करता और अपनी सफलता पाने के लिए चुपचाप मेहनत करता है वह हमेशा जीवन में सफलता प्राप्त करता है।  मनुष्य को सफलता प्राप्त करने के लिए बात कम करनी चाहिए और काम ज्यादा करना चाहिए।

बातें कम करने से हम अपने काम को ज्यादा समय दे पाते है, इसलिए हमें हमेशा काम पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा अक्सर देखने में  आया है, को जो लोग अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाते वह अक्सर बातें बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन उन बातों को वास्तविक कर्म के रूप में नहीं बदल बाते। इसके विपरीत जो वास्तव में कुछ करना चाहते है, वे बोलकर नहीं बल्कि कुछ करके दिखातें है। उनका मुँह नहीं उनका काम बोलता है।


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अधिसूचना किसे कहते हैं? एक अधिसूचना का उचित प्रारूप भी बनाइए।

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अधिसूचना : अधिसूचना से तात्पर्य उन सरकारी राजपत्रित अधिकारी की नियुक्ति संबंधी अथवा पदोन्नति संबंधित. अवकाश प्राप्ति संबंधित. अधिकारियों के त्यागपत्र संबंधित अथवा किसी भी नए सरकारी नियम से संबंधित या नियम परिवर्तन से संबंधित सरकारी आदेशों व आज्ञा से संबंधित घोषणाओं से होता है, जो विभिन्न सरकारी विभागों को सरकार की तरफ से या किसी बड़े सरकारी संस्थान या मंत्रालय की तरफ से जारी की जाती है।

अधिसूचनाएं किसी भी व्यक्ति विशेष या विषय विशेष से संबंधित हो सकती हैं, लेकिन यह सामान्य जनता को सारकारी कार्यकलापों की जानकारी प्रदान करने के लिए जारी की जाती हैं। अधिसूचना को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करना अनिवार्य होता है, ताकि सामान्य जनता को इसके बारे में जानकारी मिल सके। अधिसूचना अन्य पुरुष शैली में लिखी जाती हैं।

एक अधिसूचना का प्रारूप

खेल मंत्रालय भारत सरकार
क्रमांक : 1293/06/2024

दिनांक : 21 जून 2024

सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि वर्तमान समय में अनेक पहलवान खिलाड़ियों द्वारा जारी धरना व अनशन से संबंधित विवाद के कारण खेल मंत्रालय ने त्वरित कदम उठाने का निर्णय लिया है। खिलाड़ियों की मांग को ध्यान में रखते हुए कुश्ती महासंघ के समस्त मुख्य पदाधिकारियों को जांच पूरी होने तक निलंबित रखने का निर्णय लिया है।

जांच पूरी होने के बाद भी महासंघ के पदों के संबंध में आगे की कार्यवाही की जाएगी। खिलाड़ियों ने इस संबंध में आश्वासन मिलने के बाद अपना धरना समाप्त करने का निर्णय लिया है।

खेल मंत्री के आदेशानुसार,
सचिव, खेल मंत्रालय,
भारत सरकार

प्रतिलिपि प्रेषित : 1. अध्यक्ष, कुश्ती महासंघ. दिल्ली। 2. भारतीय ओलंपिक समिति, दिल्ली।


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आपका मोबाइल विद्यालय परिसर में कहीं खो गया है। इस संबंध में विद्यालय के सूचना पट्ट पर मोबाइल की विस्तृत जानकारी देते हुए एक सूचना तैयार कीजिए।

विद्यालय द्वारा आयोजित स्काउट/गाइड कैंप हेतु विद्यार्थियों को प्रधानाचार्य की ओर से निमंत्रित करते हुए सूचना लिखिए l

1. नई नारी निर्भीक क्यों है?​ 2. नई नारी को क्या स्वीकार नहीं है?​ 3. नई नारी किसका अध्ययन करेंगी ?​ 4. नई नारी किसको देवतुल्य बनाना चाहती हैं? 5. कवि सुब्रह्मण्यम भारती ने नई नारी में किन-किन गुणों की कल्पना की है?

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1. नई नारी निर्भीक क्यों है?​

उत्तर : नई नारी निर्भीक इसलिये है क्योंकि उसने विद्या और ज्ञान का अर्जन किया है। विद्या और ज्ञान के अर्जन अर्थात विद्या और ज्ञान को प्राप्त करने के कारण नई नारी निर्भीक है।

2. नई नारी को क्या स्वीकार नहीं है?​

उत्तर : नारी को यह स्वीकार नहीं है कि यह समाज अज्ञानता के अंधकार में भटके और पतन की ओर जाए।

3. नई नारी किसका ध्यान रखेगी?

उत्तर : नई नारी हर उस मानवीय गतिविधि का ध्यान रखेगी जो समाज के हित में हो।

4. नई नारी किसका अध्ययन करेंगी ?​

उत्तर : नई नारी विविध प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन करेगी ताकि वह शिक्षित और ज्ञानी बनकर समाज को एक नई दिशा दे सके।

5. नई नारी किसको देवतुल्य बनाना चाहती हैं?

उत्तर : नई नारी समाज के सभी मनुष्यों को देवतुल्य बनाना चाहती है ताकि एक आदर्श समाज का निर्माण हो सके।

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उत्तर : ‘नई नारी’ कविता में सुब्रह्मण्यम भारती ने नई नारी के अनेक गुणों की कल्पना की है। उन्होंने नई नारी को ज्ञान संपदा से परिपूर्म, सुसंस्कृत, सहनशील और सुसभ्य और जड़वत् परंपराओं का विरोधी बताया है।

कवि कहते हैं कि नई नारी शिक्षित है, वह ज्ञानी है। वह विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करती है और अपने ज्ञान की शक्ति पर पुराने अंधविश्वासों और मिथकों तथा रुढ़ियों को तोड़ती है। वह सभ्य व सुसंस्कृत है। आदर्श समाज का निर्माण करना चाहती है। इसी कारण वह प्रशंसा की पात्र है।


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फौजी की माँ

 

फौजी की माँ दुनिया की सबसे शक्तिशाली माँ होती है । वह अपने बच्चे को बचपन से मजबूत बनाती है। फौजी की माँ का दिल बहुत हिम्मत वाला होता है। वह दुनिया में किसी से नहीं डरती है । वह सब को हिम्मत देती है । उसका दिल बहुत बड़ा होता है, वह अपने पति और अपने बच्चों के बिना अकेली रह लेती है । वह इतनी हिम्मत वाली होती है कि वह अपने देश के प्रति कर्तव्य को समझती है । वह उस हर पल की खबर के लिए हमेशा तैयार रहती है कि उसे कब क्या खबर सुनने मिलेगी।

फौजी की माँ जानती है कि उसका बेटा देश की सेवा के लिए देश की सीमा पर गया है। फौजी माँ देश की रक्षा के लिए अपने बेटे को समर्पित कर देती है, और अपने बेटे के बलिदान के लिए भी तैयार होती है। कोई भी माँ अपने संतान को अपने से दूर नहीं करना चाहती। कोई भी माँ हमेशा चाहती है कि उसकी संतान उसके पास और सुरक्षित रहे। वह देश की सीमा पर देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों से जूझते समय उसके बेटे की जान भी जा सकती है, ये सब जानते हुए भी फौजी की माँ हमेशा इन सारी स्थितियों के लिए तैयार रहती है, वह कभी निराश नहीं होती है । उसे पता होता है, कि उसका बेटा देश के प्रति अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाएगा।

फौजी की माँ सबसे हिम्मत वाली और बड़े दिल वाली होती है। अपने बेटे को देश की सेवा के लिए न्योछावर कर देने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए होता है, जो एक फौजी की माँ के पास होता है।


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‘सरकार को भिखारियों के पुनर्वास के लिए प्रयत्न करना चाहिए’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखिए।

‘पराक्रम’ में कौन सा समास हैं? ‘पराक्रम’ का समास विग्रह कीजिए।

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पराक्रम का समास विग्रह इस प्रकार होगा…

पराक्रम : परम है जो कर्म
समास भेद : कर्मधारण्य समास होता है ।

स्पष्टीकरण

‘पराक्रम’ मे ‘कर्मधारण्य समास’ इसलिए होगा क्योंकि इस समास में पहला पद एक विशेषण की तरह कार्य कर रहा है तथा दूसरा पद पहले पद का विशेष्य है। पहला पद ‘परम’ है जो ‘कर्म’ पद के लिए एक विशेषण का कार्य कर रहा है।

पराक्रम का अर्थ

पराक्रम शब्द वीरता से संबंधित शब्द है। ये शब्द वीरता का गुणगान करने के लिए किया जाता है। केवल वीरता ही नहीं बल्कि जब कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र में अपना विशिष्टता सिद्ध करता है, और अपने कार्य को करने में अभूतपूर्व प्रदर्शन करता है तो उसे पराक्रमी कहा जाता है। अपने कार्य में अपनी सर्वश्रेष्ठता देना ही पराक्रम है।

जैसे
भारतीय सैनिक चीन के सैनिकों के साथ युद्ध में बेहद पराक्रम से लड़े।
महाराणा प्रताप बेहद पराक्रमी राजा थे।

कर्मधारण्य समास

कर्मधारय समास की परिभाषा के अनुसार कर्मधारय समास में पहला पद एक विशेषण का कार्य करता है तथा दूसरा पद उसका विशेष्य होता है। कर्मधारय समास में पहला पद उपमान तथा दूसरा पर विशेष्य का कार्य करता है।

जैसे

  • विश्वव्यापी : विश्व में व्याप्त है जो
  • नीलांबर : नीला है जो अंबर

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खराब जीवन शैली से आपके मित्र का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।संयमित और स्वस्थ जीवनशैली का महत्व बताते हुए मित्र को पत्र लिखिए।​

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संयमित और स्वस्थ जीवनशैली का महत्व बताते हुए मित्र को पत्र

दिनाँक : 21 जून 2024

 

प्रिय मित्र मुकेश,
कैसे ?

मुझे पता चला है कि पिछले कुछ दिनों से तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं है। इस कारण मैं बेहद चिंतित हूँ। मैं ईश्वर से तुम्हारे शीघ्र ही स्वस्थ हो जाने की प्रार्थना करता हूँ। तुम्हारे अस्वस्थ होने का कारण मुझे समझ में आ गया है। मैंने अक्सर तुम्हारी जीवन शैली पर गौर किया है। तुम्हारी जीवन शैली और खानपान अनियमित और असंयमित गए हैं, जिस कारण तुम्हारा स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।

मैं जब भी तुमसे मिलने आता हूँ, तुम अपने कमरे में बंद मोबाइल पर ही बिजी रहते हो और या फिर कंप्यूटर के आगे गेम आदि खेलते हुए पाए जाते हो। तुम लगातार जंक फूड खाते रहती हो। तुम्हारी माँ बता रहीं थीं कि तुम घर के खाने को इग्नोर करने लगे हो। तुम आजकल बाहर का फास्ट फूड बहुत खाने लगे हो। तुम कम्प्यूटर या मोबाइल पर काम करते समय चिप्स जैसी चीज बहुत अधिक खाने लगे हो, यह सारे अपौष्टिक आहार तुम्हारी स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।

दिनभर कंप्यूटर के आगे बैठे रहने अपना मोबाइल से चिपके रहने से तुम्हारी शारीरिक गतिविधि बेहद कम हो गई है, इस कारण तुम अस्वस्थ रहने लगे हो। तुम्हारी ये असयंमित और अव्यवस्थित जीवन शैली तुम्हारे स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रही है।

आज योग दिवस है और मैं चाहता हूँ। तुम योग दिवस पर अपने बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर जीवनशैली को अपनाने का प्रण लो और आज से ही इसमें जुट जाओ। अपने स्वास्थ्य को अच्छा करने के लिए आवश्यक है तुम अपने जीवन शैली को सुधारो अपनी खान-पान की आदतों को सुधारो। तुम बाहर का खाना और फास्ट फूड खाना बिल्कुल ही बंद कर दो और घर पर बने खाने पर ही ध्यान दो। तुम अपने खाने में पौष्टिक आहार को अधिक सम्मिलित करो तथा तेल मसाले जैसे पदार्थों से परहेज करो।

इसके अलावा योग-व्यायाम को अपने जीवन की नियमित दिनचर्या बना लो। यदि तुम रोजसुबह उठकर योग और व्यायाम करोगे तो धीरे-धीरे ये सब प्रयास करने से तुम्हारे स्वास्थ्य में सुधार आता रहेगा। तुम अपने जीवन शैली को व्यवस्थित करके तथा संयम का पालन करके अपने जीवन को संवार सकते हो और अपने स्वास्थ्य को एक नई दिशा दे सकते हो।

आशा है कि स्वास्थ्य संबंधी मेरे सुझावों पर तुम अमल करते हुए इसका लाभ उठाने का प्रयत्न करोगे

तुम्हारा मित्र
शैलेश


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बाढ़ पीड़ितों की मदद के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए​।

आपका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर अपने मित्र को पत्र लिखकर आमंत्रित कीजिए।

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स्वयं को सरदार शहर निवासी ‘दिनकर’ मानते हुए शैक्षिक भ्रमण का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।

सौर ऊर्जा क्या है? सौर ऊर्जा के क्या-क्या उपयोग है? बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो उसके क्या लाभ हैं?

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सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है। यह एक नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है। सूर्य के प्रकाश से जो ऊर्जा प्राप्त होती है, वही सौर ऊर्जा कहलाती है।

सौर ऊर्जा से वास्तविक रूप में ऊर्जा सीधे सूर्य किरणो से नही प्राप्त होती बल्कि सौर ऊर्जा को विशेष प्रकार के सौर पैनलों द्वारा ऊर्जा के रूप में संग्रहित किया जाता है।

सौर ऊर्जा के प्रमुख उपयोग

  • बिजली उत्पादन : सौर ऊर्जा बिजली उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाई जाती है।
  • घरेलू कार्य करना : सौर ऊर्जा की सहायता से अनेक घरेलू कार्य सम्पन्न किए जाते हैं, जैसे गर्म पानी तैयार करना, घरों और भवनों को गर्म रखना आदि।
  • कृषि में सिंचाई : सौर ऊर्जा की सहायता से कृषि सिंचाई की जा सकती है। इसकी सहायता से पंपों को चलाया जाता है जो पानी को जमीन अथवा नदी,  तालाब आदि से खींचते हैं।
  • भोजन तैयार करना : आजकल सौर ऊर्जा द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले की बर्तन प्रचलित है, जैसे सौर कुकर आदि जिनके माध्यम से खाना पकाया जा सकता है। सौर चूल्हा का भी उपयोग भी भोजन पकाने में चूल्हे की तरह किया जाता है।
  • ईधन के रूप में : सौर ऊर्जा से चलने वाले कई वाहन बन चुके है। ऐसे वाहनों में सौर ऊर्जा ईधन के रूप में कार्य करती है।

सौर ऊर्जा कार्य प्रणाली

  • सौर पैनल सूर्य के प्रकाश को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
  • यह प्रक्रिया फोटोवोल्टिक प्रभाव पर आधारित है।
  • सिलिकॉन सेल्स सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करके इलेक्ट्रॉन्स को मुक्त करते हैं, जिससे विद्युत प्रवाह उत्पन्न होता है।

सौर ऊर्जा प्रणालियों के प्रकार

  • ऑन-ग्रिड : घर या व्यवसाय को मुख्य बिजली ग्रिड से जोड़ा जाता है।
  • ऑफ-ग्रिड : बैटरी स्टोरेज के साथ स्वतंत्र प्रणाली।
  • हाइब्रिड : ग्रिड कनेक्शन और बैटरी स्टोरेज दोनों का उपयोग।

पारंपरिक बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लाभ

  • पर्यावरण अनुकूल : सौर ऊर्जा का उपयोग पारंपरिक बिजली की तुलना में कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। सबसे पहले, यह पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल है। सौर ऊर्जा का उत्पादन कार्बन उत्सर्जन, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को काफी कम करता है, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करता है।
  • नवीकरणीय स्रोत : सौर ऊर्जा एक नवीकरणीय स्रोत है, जो कभी समाप्त नहीं होता। यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है, जो सीमित हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। लंबे समय में, सौर ऊर्जा आर्थिक रूप से भी लाभदायक है। हालांकि प्रारंभिक निवेश अधिक हो सकता है, लेकिन समय के साथ बिजली के बिल कम हो जाते हैं, और कुछ मामलों में, अतिरिक्त बिजली बेचकर आय भी अर्जित की जा सकती है।
  • आर्थिक लाभ : यदि दीर्घकालिक अवधि में सौर ऊर्जा के प्लांट लगाकर उनका उपयोग किया जाए तो यह बेहद कम लागत लेती है। इसी कारण आर्थिक रूप से सौर ऊर्जा कम लागत वाली ऊर्जा है, जिससे पैसे की काफी बचत होती है।
  • ऊर्जा स्वतंत्रता : सौर ऊर्जा ऊर्जा स्वतंत्रता प्रदान करती है, जो विदेशी तेल पर निर्भरता को कम करती है और स्थानीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देती है।
  • कम रखरखाव : सौर ऊर्जा के उपयोग करने के लिए सौर प्रणाली जिन उपकरणों का उपयोग किया जाता है, उनके रखरखाव की आवश्यकता कम होती है, क्योंकि इनमें चलते पुर्जों की संख्या कम होती है और उपकरणों की आयु लंबी होती है।
  • ग्रामीण विद्युतीकरण : ग्रामीण क्षेत्रों में, सौर ऊर्जा विद्युतीकरण का एक प्रभावी साधन है। यह दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली पहुंचाने का एक किफायती तरीका प्रदान करता है, जहां पारंपरिक ग्रिड का विस्तार करना मुश्किल या महंगा हो सकता है।
  • रोजगार सृजन : सौर उद्योग नए रोजगार के अवसर पैदा करता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा : सौर ऊर्जा ऊर्जा सुरक्षा में भी योगदान देती है। यह बिजली की कमी से बचाव करती है और मुख्य ग्रिड पर दबाव कम करती है।
    मूल्य स्थिरता: सौर ऊर्जा की कीमतें अधिक स्थिर होती हैं, क्योंकि ये ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होतीं।
  • ध्वनि प्रदूषण में कमी : सौर ऊर्जा संयंत्र शांति से काम करते हैं, जो शोर प्रदूषण को कम करता है। वे पानी का भी संरक्षण करते हैं, क्योंकि पारंपरिक बिजली संयंत्रों की तुलना में उन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है।

ये सभी कारक मिलकर सौर ऊर्जा को एक आकर्षक और टिकाऊ विकल्प बनाते हैं।


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सूचना

 मोबाइल खो जाने के संबंध में

06 फरवरी 2024

विद्यालय के सभी छात्रों को सूचित किया जाता है कि मैं (रोहित कश्यप) कक्षा बारहवीं (ब) का छात्र हूँ । मेरा मोबाइल फोन आज सुबह विद्यालय परिसर में कहीं खो गया है । यदि आप में से किसी को भी यह फोन मिले तो कृपया इसे विद्यालय कार्यालय में जमा करवाने की कृपा करें। मेरे फोन की विस्तृत जानकारी इस प्रकार है।

ब्रांड – सैमसंग
मॉडल का नाम – A53
रंग – Electric Black (6GB RAM)

धन्यवाद,

नाम : रोहित कश्यप,
कक्षा : 12-ब
डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल,
चंडीगढ़


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दिनाँक – 20 जून 2024

प्रणाम मामा जी,
आशा करता हूँ आप ठीक होगे। मामा जी माफ़ी चाहता हूँ कि आपको पत्र लिखने में थोड़ा लेट हो गया। मामाजी, सबसे पहले मैं आपको इतने सुन्दर उपहार के लिए धन्यवाद कहना चाहता हूँ। आपके द्वारा उपहार के रूप में भेजा गया बैग बहुत सुन्दर है। मुझे बहुत पसंद आया। मैं इसे अब स्कूल लेकर जाऊंगा। आप इस बार जन्मदिन में नहीं आ पाए मुझे उस बार दुःख हुआ। आपने पत्र में बताया है कि आपके ऑफिस को आपको छुट्टी नहीं मिल पाई इस कारण आप नहीं आ पाए। चलिए इस बार आप नहीं आ पाए तो कोई बात नहीं लेकिन अगली बार आपको ऐसे उपहार नहीं भेजना है, आपको खुद आना है। आप अपने ऑफिस में पहले से छुट्टी ले लेना।

एक बार फिर आपको हृदय से उपहार के लिए धन्यवाद। आप से जल्दी मिलने आऊंगा। अपना ध्यान रखना। आपको और मामीजी को प्रणाम। छोटी बहन वंशिका को प्यार।

आपका भांजा,
अंकुर


Other questions

अपने मामाजी को पत्र लिखकर पिताजी के स्वास्थ्य में सुधार की सूचना दीजिए l

आप पावनी है। आप छुट्टियों में गुजरात घूमने का कार्यक्रम बना रही हैं। सरदार पटेल की प्रतिमा भी देखना चाहती है। आपने जो कार्यक्रम बनाया है, उसमें क्या सुधार हो सकता है। अपने चचेरे भाई को लगभग 100 शब्दो में पत्र लिखिए।

मई महीने में आपके विद्यालय में हुई परीक्षा, इस बात को बताते हुए अपनी बुआजी को पत्र लिखिए।

आप वेणु राजगोपाल हैं। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ दिल्ली के संपादक के नाम एक पत्र लिखकर सामाजिक जीवन में बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

औपचारिक पत्र

सामाजिक जीवन में बढ़ रही हिंसा पर हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को पत्र

 

दिनाँक – 20 जून 2024

 

सेवा में,
श्रीमान संपादक,
हिंदुस्तान टाइम्स,
नई दिल्ली

संपादक महोदय,

मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार पत्र का एक सुधि पाठक हूँ। जब से मैं देश समाज के प्रति जागरूक हुआ हूँ, तब से हिन्दुस्तान की पत्रकारिता से प्रभावित होता रहा हूँ। मैं सामाजिक जीवन में निरंतर बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार आपके समाचार पत्र के माध्यम से जनता के समक्ष लाना चाहता हूँ।

दरअसल सामाजिक हिंसा के कई रूप हैं, जिनमें से कुछ घरेलू हिंसा, नस्लवादी और होमोफोबिक हमले, आतंकवादी हमले, अपहरण, हत्याएं या हत्याएं, यौन हमले, बर्बरता, स्कूल या काम उत्पीड़न या किसी अन्य प्रकार की हिंसा हैं। दुनिया हिंसा की लपटों से झुलस रही है। कई तरह की लैंगिक हिंसा भी हमारे आस-पास घटित होती है । यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक महिला अपने जन्म से लेकर उम्र के हर पड़ाव में अलग-अलग प्रकार से लैंगिक हिंसा का सामना करती है । जैसे कन्या भ्रूण हत्या, यौन शोषण, एसिड अटैक आदि ।

महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा में किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे- मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना, महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिये विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना आदि । बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा । हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है । इन स्थितियों में संवेदन हीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है। विभिन्न तरह की ये सामाजिक हिंसायें हमारे समाज में बढ़ती ही जा रही है।

आपके समाचार पत्र के माध्यम से सामाजिक हिंसा के बारे में विचार पाठकों तो पहुँचेंगे तो अवश्य वह इसका चिंतन करेंगे। आशा है हम सभी जागरूक नागरिक इस विषय में कुछ सोचेंगे।

धन्यवाद सहित

एक पाठक
वेणु राजगोपाल


Other questions

प्लास्टिक की चीजों से हो रही हानि के बारे में किसी समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखकर अपने सुझाव दीजिए।

नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन की जाँच मशीन पर एक यात्री के भूलवश छूटे एक लाख रुपए के बैग को पुलिस ने उसे लौटा दिया। इस समाचार को पढ़ कर जो विचार आपके मन में आते हैं, उन्हें किसी समाचार पत्र के संपादक को पत्र के रूप में लिखिए।

सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग हो, इस अनुरोध के साथ हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को पत्र लिखें कि वे इस विषय पर संपादकीय लेख प्रकाशित करें।

“कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये। हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।”- इस पंक्ति में अलंकार है?

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इस पंक्ति में अलंकार का भेद इस प्रकार है :

काव्य पंक्ति – कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये। हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।

अलंकार : उत्प्रेक्षा अलंकार

जानें क्यों ?

इस काव्य पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार इसलिए है क्योंकि यहां पर ‘उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों’ जोकि उपमेय हैं, में  ‘हिम जल कण युक्त पंकज’ उपमान की संभावना व्यक्त की गई है और ‘मानो’ वाचक शब्द के रूप में प्रयोग किया गया है।

उत्प्रेक्षा अलंकार उस काव्य में प्रकट होता है, जहाँ पर उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त कर दी जाती है।

उत्प्रेक्षा अलंकार क्या है?

‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जहाँ पर उपमान के ना होने पर उपमेय में ही उपमान की संभावना मान ली जाए और अर्थात जहाँ पर उपमेय को ही उपमान बनाकर प्रस्तुत कर दिया जाए वहां पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार दो प्रकार का होता है, फलोत्प्रेक्षा अलंकार हेतुप्रेक्षा अलंकार

उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण…

ले चला साथ में तुझको कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।

यहाँ पर कनक उपमेय है, जोकि धतूरे के अर्थ के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। ‘ज्यों’ वाचक शब्द के द्वारा कनक (धतूरा) उपमेय को स्वर्ण उपमान रूप में संभावना बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया है, इसीलिए यहाँ पर ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है।


Other questions

‘दीरघ-दाघ निदाघ’ में अलंकार है (क) श्लेष (ख) उपमा (ग) यमक (घ) अनुप्रास।

बड़े-बड़े मोती से आँसू में कौन सा अलंकार है?

‘गरजा मर्कट काल समाना’ में कौन सा अलंकार है?

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2)

Manushyata : Maithilisharan Gupta (Class-10 Chapter-3 Hindi Sparsh 2)


मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त

पाठ के बारे में…

इस पाठ में मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ कविता को प्रस्तुत किया गया है। ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने की प्रेरणा देते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य ऐसा जीवन जिए, ऐसे अच्छे कार्य करके जाए कि लोग मरने के बाद भी उसे याद रखें। अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं वही महान कहलाते हैं। उन्हें ही लोग याद रखते हैं।

कवि का मानना है कि अपने लिए जीने-मरने वाले मनुष्य तो हैं, लेकिन उनमें मनुष्यता के पूरे लक्षण नहीं है। सही अर्थों में मनुष्यता के पूरे लक्षण उन लोगों में होते हैं, जो केवल अपने हित के लिए ही नहीं जीते बल्कि जो दूसरों के हित के लिए भी जीते हैं। जिनका चिंतन स्वयं हित चिंतन से अधिक परहित चिंतन होता है। ऐसे लोगों की मृत्यु ही सुमृत्यु हो जाती है। मनुष्य की यही विशेषता ही उसे संसार के प्राणियों से अलग करती है।



रचनाकार के बारे में…

मैथिलीशरण गुप्त’ हिंदी के बेहद विख्यात साहित्यकार रहे हैं। उन्हें राष्ट्रकवि’ की उपाधि से भी जाना जाता है। उनका जन्म झांसी के निकट चिरगांव नामक स्थान पर सन 1886 ईस्वी में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा उनके घर पर ही हुई थी। उन्हें हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं का पूर्ण ज्ञान था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी कवियों वाली रही है और उनके पिता सेठ रामचरण दास भी प्रसिद्ध कवि थे तथा उनके छोटे भाई सियाशरण गुप्त भी प्रसिद्ध कवि रहे।

मैथिलीशरण गुप्त जी को राम भक्त कवि के तौर पर जाना जाता है और भगवान श्रीराम की कीर्ति का बखान उन्होंने अपनी कई रचनाओं में किया है। उनकी रचनाओं की भाषा मुख्य रूप से खड़ी बोली रही है। इस पर संस्कृत का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।

मैथिली शरण जी की प्रसिद्ध कृतियों में साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध आदि के नाम प्रमुख हैं। मैथिलीशरण गुप्त का निधन सन 1964 में हुआ था



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1 : कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?

उत्तर : कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है, जिस मृत्यु के बाद भी लोग उस व्यक्ति को याद रखें। कवि के अनुसार दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो कुछ ऐसा अच्छा कार्य कर जाते हैं कि लोग उसकी मृत्यु के बाद भी उसे हमेशा याद करते हैं।

अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं, जो इस अपने स्वार्थ को त्याग करके परमार्थ के लिए अपना जीवन अर्पण कर देते हैं, ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भी लोग उनको हमेशा याद रखते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु ही सुमृत्यु है। इसलिए जीवन में सदैव अच्छे कार्य करो, जिससे मरने के बाद भी लोग याद रखें।


 

प्रश्न 2 : उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तर : उदार व्यक्ति की पहचान ऐसे होती है कि वह व्यक्ति हर किसी के प्रति आत्मीयता का भाव रखता है, वह हर किसी से प्रेम करता है, जिसका पूरा जीवन दूसरों की सहायता करने और परोपकार के कार्य करने में व्यतीत हो जाता है।

जो व्यक्ति हर किसी से प्रेम, स्नेह भावना रखता हो, जो स्वभाव से विनम्र हो, जिसके अंदर मनुष्यता हो, जो स्वार्थ की जगह परमार्थ में यकीन रखता हो, जो दूसरों के हित के लिए अपना जीवन बिता देता हो, जो किसी से भेदभाव नहीं करता हो, सबके साथ आत्मीयता से पेश आता हो वही उदार व्यक्ति होता है।


 

प्रश्न 3 : कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?

उत्तर : कवि ने दधीचि, कर्ण आदि जैसे महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह संदेश दिया है कि मनुष्यता को अपनाने के लिए मनुष्य को उदार तथा परोपकारी होना आवश्यक होता है। जो मनुष्य परोपकार के लिए सदैव तत्पर रहता है, जो दूसरों के हित के लिए कुछ भी करने से संकोच नहीं करता, जो अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ को अपनाता है, वह व्यक्ति ही मनुष्यता का सही अधिकारी होता है।

जिस प्रकार दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपने अस्थियों का दान कर दिया, कर्ण ने परोपकार के लिए अपने खाल तक दान कर दी। इनके माध्यम से कवि ने यही संदेश दिया कि यह शरीर नश्वर है अतः इसका मोह त्यागकर मानवता के कल्याण के लिए मनुष्य को कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

यदि कभी मानवता के कल्याण के लिए शरीर का बलिदान करने की आवश्यकता पड़े तो संकोच नही करना चाहिए। कवि ने दधीचि और कर्ण जैसे महान व्यक्तियों के माध्यम से मनुष्यता के लिए यही संदेश देने का प्रयत्न किया है।


 

प्रश्न 4 : कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

उत्तर : कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए :
रहो भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो गर्व चित्त में।

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने मनुष्य को गर्व रहित यानी अभिमान रहित जीवन व्यतीत करने की सीख दी है। कवि के अनुसार मनुष्य के पास कितनी भी धन-संपत्ति क्यों ना आ जाए, उसे अपने आप पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। धन-संपत्ति केवल आपने ही अर्जित नहीं की। आप जैसे इस संसार में हजारों-लाखों हैं, जिनके पास धन संपत्ति है।

इसलिए हमें ऐसी किसी वस्तु के पास पर गर्व करने की क्या आवश्यकता जो हमारे जैसे ही अन्य लोगों के पास भी है। जिस धन-संपत्ति पर हमें गर्व अभिमान हो जाता है। वह ईश्वर द्वारा अन्य लोगों को भी दी गई है। ईश्वर की कृपा दृष्टि आप पर ही नहीं उन पर भी पड़ती है, इसलिए हमें कभी भी धन-संपत्ति पर नहीं करना चाहिए और अभिमान रहित जीवन जीना चाहिए।


 

प्रश्न 5 : मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं।

उत्तर : ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ इन पंक्तियों के माध्यम से हम यह जान पाते हैं कि इस संसार में सभी मनुष्य आपस में भाई है, क्योंकि सभी एक ही परमपिता ईश्वर की संतान है। कवि ने मनुष्य को भाईचारे की भावना से रहें। संसार के सभी मनुष्यों को प्रेम एवं भाईचारे की भावना से रहने के लिए प्रेरित किया है।

इस संसार में कोई पराया नहीं है, सभी एक दूसरे के भाई हैं। मनुष्य का स्वभाव ही बंधुत्व वाला है, इसलिए मनुष्य मात्र बंधु है। कवि ने यह कहा है सभी मनुष्य एक दूसरे के काम आए एवं प्रेम सद्भाव और भाईचारे से रहे यही कवि का संदेश है।


 

प्रश्न 6 : कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

उत्तर : कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए भी है, क्योंकि कवि के अनुसार सभी मनुष्य एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान है और मिल-जुलकर करने से कोई भी कठिन कार्य बेहद सरलता से संपन्न हो जाता है।

यदि सभी मनुष्य एक होकर चलेंगे, सद्भाव से रहेंगे तथा मिलजुल कर एक दूसरे की सहायता करते हुए अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर आगे बढ़ेंगे तो ना केवल अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लेंगे, बल्कि वह मनुष्यता का सर्वश्रेष्ठ गुण भी प्रदर्शित करेंगे, क्योंकि एक-दूसरे से मिलजुल कर रहना ही सच्ची मनुष्यता है, इसी में प्रत्येक मनुष्य की उन्नति निहित है।


 

प्रश्न 7 : व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर : कविता के आधार पर अगर हम कहे तो कवि मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करने के लिए कह रहे हैं, जो परोपकार से परिपूर्ण जीवन हो यानी मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए, जिसमें वो हमेशा दूसरों के काम आए। उसे दूसरों की मदद करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

वह सबसे मिल-जुल कर रहे प्रेम एवं भाईचारे से रहे तथा सबके साथ मिलजुल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाले मार्ग पर चले। वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर सभी के हित का चिंतन करें। उसे अपनी धन संपत्ति आदि पर कभी अहंकार ना हो। संकट की घड़ी में वह सदैव दूसरों के काम आए। इस तरह व्यक्ति को मनुष्यता से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए।


 

प्रश्न 8 : मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर : ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि व्यक्ति को मनुष्यता से भरा हुआ जीवन जीना चाहिए यानी उसे अपना जीवन पूरा जीवन परोपकार के कार्य करते हुए बिताना चाहिए। मनुष्य को मनुष्यता वाले वे सभी गुण अपनाना चाहिए जो उसे मनुष्यता की कसौटी पर खरा बनाएं यानी उसके अंदर प्रेम, दया, करुणा, सद्भाव, संवेदना, उदारता के सभी गुण होना चाहिए।

मनुष्य को निस्वार्थ भाव से अपना जीवन जीना चाहिए और उसे अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ के विषय में सोचना चाहिए। वो सदैव दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहे। मनुष्य और मनुष्य के बीच कोई अंतर ना समझे। उसका ह्रदय उदार हो।

उसे अपनी धन-संपत्ति या अन्य किसी उपलब्धि पर घमंड ना हो, ऐसा मनुष्य बनना चाहिए मृत्यु तो हर मनुष्य की निश्चित है, लेकिन उसे अपने जीवन में ऐसे अच्छे कार्य करना चाहिए कि उसके मरने के बाद भी लोग उसे याद रखें तभी उसकी मृत्यु सुमृत्यु में बदल जाएगी।

कवि ने दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, उशीनर, क्षितिश जैसे अनेक महान व्यक्तियों के उदाहरण देकर दूसरों के हित के लिए अपना बलिदान करने की प्रेरणा दी है, और मनुष्यता का यही संदेश दिया है।



(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

  1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा, विनीत लोकवर्ग क्या सामने झुका रहा?
  2. रहो भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो गर्व चित्त में। अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
  3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए। घटे हेलमेल हाँ, बढ़े भिन्नता कभी, अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर :

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा, विनीत लोकवर्ग क्या सामने झुका रहा?

भाव : मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ नामक कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने मनुष्य को एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना रखने के लिए कहा है।

कवि के अनुसार सहानुभूति, दया एवं करुणा से बढ़कर कोई भी धन नहीं होता। कवि मनुष्य के अंदर दूसरों के प्रति प्रेम है, सहानुभूति है, करुणा है, दया है, तो वह इस पूरे संसार को अपने वश में कर सकता है। जो व्यक्ति उदार होता है, विनम्र होता है, दया, प्रेम एवं करुणा से भरा होता है, वह इस संसार में सबके सम्मान का पात्र बनता है। इस संसार में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने इन सभी गुणों को अपनाया और महान बने, जिन्हें आज भी संसार याद करता है।

महात्मा बुद्ध के विचारों का आरंभ में बेहद विरोध हुआ था, लेकिन महात्मा बुद्ध ने अपनी प्रेम दया एवं करुणा से सबके हृदय को बदल दिया और सब उनके आगे झुक गए। उसी प्रकार अन्य महापुरुषों ने भी अपने अपने सामाजिक कार्यों से इस संसार में सबके हृदय को जीता और नए-नए आदर्श स्थापित किए।

कवि कहते हैं कि मनुष्य मनुष्यता से भरा हुआ रहेगा, वह विनम्र रहेगा, सबके प्रति उधार रहेगा तो सारा संसार उसके सामने झुकेगा। सदैव दूसरों का हित सोचने वाले परोपकारी मनुष्य को सब सम्मान करते हैं।

रहो भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

भाव : मैथिली शरण गुप्त द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता की इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि कहते हैं कि मनुष्य को भूल कर भी अपनी धन-संपत्ति पर अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो धन-संपत्ति उसके पास है, वही धन-संपत्ति उसके जैसे लाखों अन्य लोगों के पास भी है।

ईश्वर सभी पर अपनी कृपा बरसाता है। इसलिए मनुष्य को ऐसी किसी भी वस्तु पर अहंकार नहीं करना चाहिए। जो केवल उसके पास ही नहीं अन्य लोगों के पास भी है। इस संसार का स्वामी ईश्वर सबके लिए दयालु है। वह सब को एक साथ समान व्यवहार करता है। वह केवल आप पर ही कृपा नहीं करता। वह सब पर कृपा करता है।

कवि के अनुसार सच्चा मनुष्य तो वही है, जो अपनी संपत्ति पर अहंकार ना करते हुए केवल मनुष्यता के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है और दूसरों के हित के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देता है।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे हेलमेल हाँ, बढ़े भिन्नता कभी, अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

भाव : मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘मनुष्यता’ नामक कविता इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि कहते हैं कि अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के जिस मार्ग पर चलो, उस मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हँसते-खेलते हुए सबके साथ मिलजुल कर चलो, ताकि यदि रास्ते में अगर कोई कठिनाई आए तो मिल-जुल कर उस कठिनाई को दूर कर लिया जाए।

अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय मिलजुल पर चलते समय हमें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि हमारा भाईचारा सद्भाव कभी भी कम ना होने पाए। हमारे बीच मनमुटाव ना हो। ना ही हमारे रास्ते में किसी तरह के भेदभाव अथवा नाराजगी हो। हम सब एक-दूसरे से मिलजुल कर रहते हुए जीवन मार्ग के पथ पर चलते-चलते रहें, तभी हमारे जीवन की सार्थकता सिद्ध होगी।

यदि हम अपने इस जीवन को दूसरों के काम आते हुए मिलजुल कर एक दूसरे की सहायता करते हुए बितायें तो हमारा यह जीवन सही अर्थों में सफल जीवन माना जाएगा। हम किसी भी पंथ अथवा संप्रदाय से संबंध रखते हों, लेकिन हम किसी में भेदभाव न करते हुए सभी के हित की बात करें और सभी लोग मिलजुलकर साथ रहे साथ चलें तो यह जीवन सहज सुगम है।



योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, करण और पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी अपने अध्यापक से कक्षा में इस विषय में जानकारी प्राप्त करें।विद्यार्थियों की सहायता के लिए तीनों महान पुरुषों के बारे में बताया जा रहा है।

रंतिदेव : रंतिदेव प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध राजा थे, जो अपने दानधर्म और दयालु स्वभाव के लिए बेहद प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में एक बात भयंकर अकाल पड़ा और लोग अकाल के कारण त्राहि-त्राहि कर उठे। पूरे राज्य में अनाज का भंडार समाप्त हो गया था।

राजकोष भी लगभग खाली हो गया था। दयालु स्वभाव के रंतिदेव ने को अपनी प्रजा का दुख देखा ना गया और उन्होंने अपनी प्रजा को राजकोष से अनाज देना आरंभ कर दिया। बाद में वह अनाज भी कम पड़ गया। तब उनके राज परिवार के सदस्यों को भी आधा पेट खा कर गुजारा करना पड़ता था। ऐसी विकट स्थिति में रंतिदेव को भी कई दिनों तक भूखे रहना पड़ा।

एक दिन जब राजा को कई दिनों बाद खाने के लिए कुछ रोटियां मिली तो राजा जैसे ही खाने बैठे तभी एक भूखा व्यक्ति दरवाजे पर आ गया। राजा ने अपनी भूख की परवाह ना करते हुए उस व्यक्ति को खाना खिला दिया। ऐसी मान्यता है कि ईश्वर उनकी परीक्षा ले रहा था और उनकी इस दयालुता से प्रभावित होकर ईश्वर ने उनके राज्य में धन-धान्य का भंडार भर दिया।

दधीचि : दधीचि प्राचीन भारत के एक बेहद ही दानी-ज्ञानी ऋषि थे। वे स्वभाव से अत्यंत परोपकारी थे। वह हर समय में तपस्या में लीन रहते थे। उनके पास अद्भुत शक्तियां की और उनकी तपस्या का महत्व देवता तक मानते थे। एक बार देवराज इंद्र को उनसे कुछ कार्य पड़ा और वह उनसे मिलने आए।

दधीचि ने जब उनसे उनके आने का प्रयोजन पूछा तो देवराज इंद्र ने कहा कि देवता और दानवों में युद्ध छिड़ा हुआ है और दानव हम देवताओं पर भारी साबित हो रहे हैं। यदि फिर भी कुछ उपाय ना किया गया तो सब जगह दानवों का कब्जा हो जाएगा। दधीचि ऋषि ने कहा, देवराज! बताइए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ। तब देवराज इंद्र ने कहा कि एक उपाय है, यदि आपकी हड्डियों से वज्र बनाया जाए और उससे असुरराज वृत्तासुर को पराजित किया जा सकता है। वृत्तासुर के मारे जाने पर देवता युद्ध जीत सकते हैं।

यह मानवता की भलाई के लिए बेहद आवश्यक है। इंद्र की बात सुनकर दधीचि ने बिना किसी संकोच के अपने प्राण त्याग दिए और फिर उनके शरीर की हड्डियों से बनाए गए वज्र से देवताओं ने असुरों को मारकर विजय प्राप्त की। दधीचि का यह त्याग प्राचीन भारत के इतिहास में अमर हो गया।

कर्ण : महाभारत काल के एक बेहद पराक्रमी वीर और स्वभाव से दानी योद्धा था। पांडवों का सबसे बड़ा भाई और कुंती का जेष्ठ पुत्र था, जो सूर्यदेव के आशीर्वाद से जन्मा था। सूर्यदेव ने उसे जन्म से ही कवच-कुंडल प्रदान किया था, जिस कारण उसे पराजित करना किसी के लिए भी संभव नहीं था। वो स्वभाव से बेहद दानी व्यक्ति खा और अपने दरवाजे से किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटने देता था।

महाभारत के युद्ध में वह कौरवों की तरफ से लड़ रहा था और उसे पराजित करना आवश्यक था। सूर्य देव द्वारा दिए गए दिव्य कवच कुंडल के कारण उसे पराजित करना असंभव था। तब श्रीकृष्ण और इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके कवच और कुंडल दान में मांग लाए। कर्ण सब कुछ जानता था, लेकिन वह अपनी दानी स्वभाव से पीछे नहीं हट सकता था। इसलिए उसने दान में मांगे गए कवच-कुंडल दे दिए और अपना वचन निभाया।


प्र्श्न 2 : परोपकार विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थी परोपकार विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन करें और उन्हें अपनी कक्षा में पढ़कर सुनाएं। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए दो कविताएं और दो दोहे दिए जा रहे हैं…

कविता 1

जीवन में परोपकार करो, तुम सब का उद्धार करो।
जीवन में परोपकार करो, लोगों का बेड़ा-पार करो।
लोगों के सदैव काम आओ, दूसरों को दुख में हाथ बंटाओं
मत करो केवल अपना हित-चिंतन करो सदैव सर्वहित चिंतन

कविता 2

जो दूसरो के हरदम का आया उसी का जीवन सफल है,
जो केवल अपने लिए जीत रहा, उसका जीवन विफल है,
दूसरों के दर्द को समझना, यही मानव स्वभाव सकल है,
दूसरों के हित में जीना उसी में मानव बल है

कबीर का दोहा

स्वारथ सूका लाकड़ा, छांह बिहना सूल।
पीपल परमारथ भजो, सुख सागर को मूल।।

रहीम का दोहा

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।


परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : विद्यार्थियों की सहायता के लिए अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध की कर्मवीर’ नीचे दी जा रही है। वे इस कविता को अपनी कक्षा में पढ़कर सुनाएं।

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं,
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं,
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये
एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
आज करना है जिसे करते उसे हैं, आज ही सोचते कहते हैं
जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जी की हैं,
सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं
अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे
दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं
नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं
नहीं आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं
नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं
नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं
उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं


प्रश्न 2 : भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही है, प्राणी’ कविता पढिए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।

उत्तर : ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ की कविता ‘प्राणी वही प्राणी है’ को पढ़कर तथा ‘मनुष्यता’ कविता को पढ़कर दोनों कविताओं के भाव में यह समानता दिखी कि दोनों कविताएं मनुष्यता पर ही केंद्रित हैं। दोनों कविताओं में मानव के उस मूल स्वभाव को मुख्य रूप से रेखांकित किया गया है, जिसके कारण वह संसार में अन्य सभी प्राणियों से अलग माना जाता है। मानव का सबसे मूल स्वभाव उसके अंदर बसी मानवीयता यानी मनुष्यता होती है। सच्चा मनुष्य वही होता है जो अपने दुखों की परवाह ना कर दूसरों के दुखों को भी अनुभव करें और सबके दुख में हमेशा काम आए। किसी भी तरह के संकट आने पर वह घबराए नहीं तथा सच्चे मन से परोपकार का कार्य करे। दोनों कविताओं में मनुष्यता और परोपकार जैसे गुणों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यही दोनों कविता का मूल भाव है।


मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-4, हिंदी, स्पर्श 2) (NCERT Solutions)

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पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर-शर से, हुई पक्ष की हानी।” “हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।”

अपने माता-पिता के साथ बिताए सुखद पलों के अनुभवों को अनुच्छेद के रूप में लिखिए।

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अनुच्छेद

माता-पिता के साथ बिताए सुखद पलों के अनुभवों का वर्णन

माता-पिता के साथ बिताए गए जीवन के हर पल सुखद होते हैं। बचपन में हमारे माता-पिता हमें हमें हर तरह के जो सुख-साधन उपलब्ध कराते हैं। वैसा आनंद हमें बड़े होने पर नहीं प्राप्त हो पाता क्योंकि हम जीवन के संघर्षों में उलझ जाते हैं।

मेरे माता-पिता के साथ बिताए गए अनेक सुखद पल है। ऐसे ही सुखद पलों में एक प्रसंग याद आता है, जब मैं अपने माता-पिता के साथ माउंट आबू घूमने जा रहा था। मेरे माता-पिता मेरी जिद पर ही मुझे घुमाने के लिए ले जा रहे थे। हम लोग दिल्ली से माउंट आबू जाने के लिए ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। रास्ते में एक स्टेशन पड़ा तो मेरे पिता स्टेशन पर से कुछ खाने का सामान लेने के लिए उतरे। उन्हें खाने का सामान लेने में समय का ध्यान नहीं रहा। अचानक ट्रेन चल पड़ी, जब तक पिताजी को ट्रेन चलने पता चलता तब तक ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी और पिताजी ट्रेन में नहीं चढ़ पाए।

मैं और मेरी माँ दोनों ट्रेन में अकेले रह गए। अब हम लोग बड़े परेशान हुए कि अब क्या किया जाए। ये सब देखकर मैं रोने लगा था। मेरी माँ ने मुझे गले से लगाया और समझाया कि चिंता मत करो,  हम लोग पिताजी को ढूंढ लेंगे। आसपास के यात्रियों ने भी हम लोगों को हौसला दिया। पिताजी का मोबाइल भी ट्रेन में ही हमारे पास था इसलिए हम लोग उनसे संपर्क नहीं सकते थे। कुछ देर बाद पिताजी का फोन आया, वो किसी दूसरे व्यक्ति के मोबाइल से कॉल कर रहे थे। उन्होंने बताया कि वह दो घंटे बाद आने वाली एक ट्रेन में बैठ जाएंगे, जो माउंट आबू ही जा रही है। तुम लोग डेस्टिनेशन वाले स्टेशन को उतर जाना, मैं आधे घंटे बाद वहां पर पहुंच जाऊंगा।

जब हमारा स्टेशन आ गया तो हम लोग उतर गए और स्टेशन पर ही बैठकर इंतजार करने लगे। लगभग दो घंटे बाद पिताजी भी हमें आते हुए दिखाई दिए। वह पीछे आने वाली ट्रेन से आ गए थे। उन्हें देखकर हम लोगों ने राहत की सांस ली। फिर हम मैंने अपने माता पिता के साथ माउंट आबू में खूब इंजॉय किया। हम लोग तीन दिन वहाँ रहे। आज भी माउंट आबू में बिताए गए वह सुखद पल और ट्रेन में घटी वह घटना याद आ जाती है।

माता-पिता के साथ बचपन में ऐसे अनेक सुखद अनुभव हुए थे। एक दूसरे में अनुभव में जब मैं अपनी कक्षा में ही नहीं बल्कि पूरे विद्यालय में प्रथम आया तो मेरे माता-पिता में घर पर एक बड़ी पार्टी दी, जिसमें सभी लोगों को बुलाया। मेरे पिताजी ने एक साइकिल उपहार में दी। दो महीनों बाद मेरा जन्मदिन भी आ गया तो मेरे जन्मदिन पर पिताजी ने मुझे एक घड़ी उपहार में दी।

मुझे पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था, तो माँ जब बाजार जातीं तो मैं उनसे अपनी पसंदीदा पत्रिकाएं और पुस्तकें मंगाता था। मैंने अपने अपने माता-पिता से कहकर अपने कमरे मे एक किताबों की अलमारी बनवा रखी थी, जिसमें मैं सारी पत्रिकाएं और पुस्तकें संभाल कर रखता था।

इस तरह माता-पिता के साथ बिताए गए सुखद पलों की एक लंबी सूची है। वह सुखद पल आज भी याद आते हैं।


Other questions…

‘यात्रा जिसे मैं भूल नहीं सकता’ विषय पर अनुच्छेद लिखिए।​

‘आलस करना बुरी आदत है’ इस विषय पर अनुच्छेद लिखें।

‘नारी के बढ़ते कदम​’ पर अनुच्छेद लेखन करिए।

अगर मेरे मामा का घर चाँद पर होता। (अनुच्छेद)

दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर) (पुराना पाठ्यक्रम)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2)

DOHE : Bihari (Class-10 Chapter-3 Hindi Sparsh 2)


दोहे : बिहारी

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि बिहारी के नीतिगत दोहों की व्याख्या की गई है। कवि बिहारी श्रृंगार परक रचना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक श्रृंगार दोहों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने लोक ज्ञान, शास्त्र ज्ञान पर आधारित नीति के दोहे भी रचे हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने नीति संबंधी बातें कहीं हैं। यह दोहे ऐसे ही नीति वचनों पर आधारित दोहे हैं।



रचनाकार के बारे में…

कवि ‘बिहारी’ सोलहवी-सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे। वे श्रृंगार रस के कवि रहे हैं। उनकी अधिकतर रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता मिलती है। उनकी कविताओं में नायक और नायिका की वे सारी चेष्टाएं मिलती है, जिन्हें हाव-भाव कहा जाता है। उनकी रचनाओं की भाषा मुख्यतः ब्रज रही है, जिसमें साहित्यकता का पुट है। उनकी रचनाओं में पूर्वी और बुंदेलखंडी शब्दों का भी मिश्रण मिलता है।

कवि बिहारी का जन्म सन 1595 ईस्वी में ग्वालियर में हुआ था। 7-8 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ ओरक्षा चले गए, जहाँ उन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य में शिक्षा प्राप्त की। यहीं पर वह रहीम के संपर्क में आए। कवि बिहारी एक रसिक कवि थे और उनकी काव्य में रसिकता मिलती है। उनके व्यक्तिगत जीवन में भी रसिकता का समावेश था, उनका स्वभाव मूलतः विनोदी और व्यंगप्रिय था।

कवि बिहारी की केवल एक ही रचना ‘सतसई’ नाम से उपलब्ध है। इसमें लगभग 700 संग्रहित है। सन् 1663 में उनका निधन हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : छाया भी कब छाया ढूंढने लगती है?

उत्तर : कवि बिहारी के अनुसार छाया भी तक छाया ढूंढने लगती है, जब जेठ के महीने में बड़ी तेज धूप होती है। जेठ महीने की यह तेज धूप सर पर इस प्रकार तेजी से पड़ने लगती है कि मनुष्य के शरीर की छाया या अन्य वस्तुओं की छाया भी छोटी होती जाती है। तब जेठ की भीषण गर्मी वाली उस दुपहरी में छाया भी छाया ढूंढने लगती है।


प्रश्न 2 : बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहि है सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ इस पंक्ति से माध्यम से बिहारी की नायिका ये कहना चाहती कि उसके मन की बात और उसके हृदय की वेदना का उसका प्रियतम अपने हृदय की वेदना से ही समझ जायेगा। नायिका कागज के माध्यम से अपने प्रियतम को संदेश देना चाहती है।

जब वह कागज पर अपने प्रियतम के लिए संदेश लिख रही है तो लिखते समय वह कंपकंपाने लगती है उससे संदेश नही लिखा जाता है और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं इसके साथ ही उसे संदेश लिखने मे लाज भी आ रही है। वह जानती है कि जो उसकी अवस्था है वही उसके प्रियतम की अवस्था होगी। इसलिये वो अपने प्रियतम को लिखती है कि ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ अर्थात तुम अपने हृदय की वेदना से ही मेरे हृदय की वेदना का अंदाज लगा लेना।


प्रश्न 3 : सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि बिहारी ने इस दोहे के माध्यम से यह बात स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि ईश्वर को पाने के लिए व्यर्थ के कर्मकांड करने की आवश्यकता नहीं है। व्यर्थ के कर्मकांड करना, माला जपना, तिलक लगाना, छापे लगवाना आदि करने से राम यानि ईश्वर नहीं प्राप्त होते।

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मन में सच्ची भक्ति पैदा करनी पड़ती है। अपने मन को निर्मल बनाकर प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति करने से उनको सच्चे मन से याद करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं। कुछ लोग पूरे जीवन केवल आडंबर रहते रहते हैं, लेकिन उन्हें ईश्वर प्राप्त नहीं हो पाते।

ईश्वर का निवास सच्चे, शुद्ध और सात्विक, निर्मल मन में होता है। कच्चा मन काँच के समान नाजुक होता है जो जरा सा आघात लगने सी ही टूट जाता है। सच्चा मन इतना नाजुक नही होता।


प्रश्न 4 : गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

उत्तर : गोपियां श्रीकृष्ण की बांसुरी इसलिए छुपा लेती है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कराना चाहती हैं, वह श्रीकृष्ण को रिझाना चाहती हैं।

लेकिन श्रीकृष्ण हैं कि अपनी बांसुरी बजाने में ही मगन रहते हैं, गोपियों को ओर ध्यान नही देते। इसलिए वह श्रीकृष्ण की बांसुरी छुपा देती है ताकि श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी को भूलक उनसे बातें करें।

हो सकता है श्रीकृष्ण बांसुरी के विषय में उनसे पूछें। इससे उन्हें श्रीकृष्ण से बात करने का अवसर प्राप्त होगा, उनसे नोकझोंक होगी। इसीलिए गोपियां श्रीकृष्ण को रिझाने के लिए उनकी बांसुरी छुपा देती हैं।


प्रश्न 5 : बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : कवि बिहारी ने बताया है कि सभी की उपस्थिति में भी इशारों ही इशारों में बात की जा सकती है और बिना बोले ही अपने मन की बात कही जा सकती है। कवि के नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में इशारों ही इशारों में अपने मन की बात कर रहे हैं। नायक सभी की उपस्थिति में ही नायका को कुछ इशारे करता है और नायिका इशारे ही इशारे में मना करती है।

इस पर नायक नायिका की इस शैली पर रीझ उठता है। नायक की इस हरकत पर नायिका खीझ उठती है। नायक और नायिका के नेत्र मिले और नायक के मन में प्रसन्नता हुई, वही नायिका लज्जा आँखों में लज्जा के भाव लिए हुए थी। इस तरह सभी की उपस्थिति में ही बिना बोले ही इशारों ही इशारों में बात की जा सकती है, ये कवि बिहारी ने स्पष्ट किया है।



(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
  • मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
  • जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
  • जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
    मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

उत्तर : भाव इस प्रकार होगा :

1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।

भावार्थ : इस पंक्ति के माध्यम से कवि बिहारी श्रीकृष्ण के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण के सौंदर्य की तुलना नीलमणि पर्वत और उस पर पड़ रही सूरज की सुनहरी धूप से की है।

कवि बिहारी कहते हैं कि श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर उनके द्वारा धारण किए गए पीतांबर यानी पीले वस्त्र इस प्रकार शोभायमान दिखाई दे रहे हैं कि जैसे नीलमणि पर्वत पर सुबह के समय सूरज की सुनहरी धूप निकल रही हो। नीलमणि पर्वत पर गिर रही सुनहरी धूप के समान श्रीकृष्ण का सौंदर्य अद्भुत प्रतीत हो रहा है।

2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।

भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु के प्रचंड आवेग के कारण सारा जंगल ही तपोवन के समान हो गया है। जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पशु रहते हैं जिनमें आपसी दुश्मनी होती है, लेकिन इस भीषण गर्मी ने सभी पशुओं को एक साथ ला खड़ा किया है और सभी पशु आपसी बैरभाव बुलाकर एक ही छत के नीचे जमा हो गए हैं।

ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी ने उनके अंदर के बैरभाव को मिटा दिया है और पूरा जंगल तपोवन के समान हो गया है। तपोवन में रहने वाले प्राणी आपस में कोई बैरभाव नहीं रखते और मिलजुल कर रहते हैं। उसी प्रकार भीषण गर्मी के कारण जंगल के पशु भी आपसी बैरभाव भुलाकर एक साथ रहने लगे हैं।

3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै एकौ कामु।
    मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि तरह-तरह के प्रपंच रखने से और बाहरी आडंबर कर्मकांड आदि करने से ईश्वर की राम यानी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। माला फेरने से, हल्दी चंदन का लेप लगाने से, माथे पर तिलक लगाने से भी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही लोगों का मन तो बहुत कच्चा होता है, जो जरा सी बात पर ही डोलने लगता है। इन लोगों का मन काँच के समान कच्चा होता है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए मन को कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। जो सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है, जिससका मन निर्मल है, छल कपट नहीं है। उसको ही राम यानि ईश्वर मिलते हैं।



योग्यता विस्तार

1. सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। देखन के छोटे लगे, घाव करे गंभीर।। अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।

उत्तर : कवि बिहारी द्वारा रचित इस दोहे को पढ़कर कवि बिहारी की इस विशेषता का पता चलता है कि बिहारी ने बहुत कम शब्दों में ही बहुत बड़ी बात कह दी है। कवि बिहारी थोड़ी से शब्दों में बड़ी एवं गूढ़ बात कहने में निपुण थे। वह गागर में सागर भरने की कला में माहिर थे। इस दोहे को पढ़कर भी उनकी इसी विशेषता का पता चलता है। इस दोहे के पड़कर पता चलता है कि उनके दोहे देखने में भले ही छोटे लगते हों लेकिन वह मन बहुत गहरी छाप छोड़ते हैं।



परियोजना कार्य

1. बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए

उत्तर : ये प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी कवि बिहारी के विषय में पाठ्य पुस्तकों से और इंटरनेट से जानकारी एकत्रित करें और अपनी पाठ्य पुस्तिका में चिपकाएं।


दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3, हिंदी, स्पर्श 2) (NCERT Solutions)

कक्षा-10, हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)


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‘डिजीभारतम्’ पाठ का सारांश हिंदी में लिखिए।

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‘डिजीभारतम्’ पाठ का सारांश (हिंदी में)

‘डिजीभारतम्’ पाठ भारत की डिजिटल क्रांति को समर्पित एक पाठ है। जिसमें डिजिटल इंडिया के बारे में बताया गया है। यह पाठ भारत के डिजिटल इंडिया के मूल भाव को लेकर एक खाका प्रस्तुत करता है। इस पाठ में भारत में हुई वैज्ञानिक प्रकृति के उन आयामों को छुआ गया है, जिन्हें भारत ने पिछले समय में हासिल किया है।

इंटरनेट ने हम सभी के जीवन को कितना सरल बना दिया है और इंटरनेट की क्रांति के कारण संसार में सभी लोगों के कितने कार्य आसान हो गए हैं, इस पाठ में यह बताया गया है। भारत ने डिजिटल जगत में एक नया मुकाम हासिल किया है, यह डिजीभारतम् पाठ से पता चलता है।

डिजीभारतम् पाठ में बताया गया है कि समय बदलने के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताएं भी बदलती रही है। पहले शिक्षा और ज्ञान का साधन किताबें और गुरु द्वारा शिष्य को मुँह से बोलकर ज्ञान देने तक सीमित था। प्राचीन काल में ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लेखन कार्य आरंभ होकर पुस्तक तक तक पहुंचा। अब यही पुस्तक डिजिटल रूप में कम्प्यूटर या मोबाइल की स्क्रीन पर आ गई हैं और पुस्तकों से आगे बढकर ज्ञान डिजिटल रूप में बदल गया है।

आज ज्ञान का दायरा बहुत बड़ा हो गया है और तरह की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर और मोबाइल की स्क्रीन पर चंद सेकंड में सहज रूप से और आसानी से उपलब्ध है। समाचार पत्र और पुस्तक आदि सभी अब मोबाइल और कंप्यूटर की स्क्रीन पर आसानी से पढ़े जा रहे हैं। इससे पुस्तकों के लिए कागज का निर्माण में कटने वाले वृक्षों पर भी अधिक जोर नहीं पड़ेगा।

डिजिभारतम् पाठ में भारत की आर्थिक क्रांति को भी बताया गया है कि कैसे भारत ने डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और यूपीआई के माध्यम से एक नई क्रांति खड़ी की है। अब सारे बैंकिंग कार्य और पैसों के लेनदेन के कार्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से होने लगे हैं और भारत कैशलेस ट्रांजैक्शन की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

कहीं पर भी यात्रा करने के लिए टिकट खरीदना, किसी समारोह का टिकट खरीदना हो, किसी को पैसे भेजने हों या कहीं पर खरीदारी करनी हों, सब कुछ घर बैठे मोबाइल या कंप्यूटर के माध्यम से आसानी से होने लगा है। डिजिटल क्रांति ने भारत सहित पूरे विश्व को प्रभावित किया है और लोगों का जीवन बेहद आसान किया है। आने वाले समय में भारत में डिजिटल क्रांति और अधिक होने वाली है, और लोगों की जीवन शैली एकदम बदलने वाली है, यही इस पाठ के माध्यम से बताया गया है।


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नवयुवकों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन करें।

संवाद लेखन

नवयुवकों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर दो मित्रों के बीच संवाद

 

मित्र 1 ⦂ मोहन तुम्हें पता चला वाटिका कॉलोनी में रहने वाला श्याम बहुत नशा करता है।

मित्र 2 ⦂ क्या यह सच्च है? तुम्हें कैसे पता चला कि वो नशा करता है?

मित्र 1 ⦂ हाँ, यह सच है। सब जगह यह बात फ़ैल चुकी है। दरअसल कल उसके घर पुलिस आई थी और उसे गिरफ्तार करके ले गई।

मित्र 2 ⦂ पुलिस क्यों आई थी?

मित्र 1 ⦂ वो जिस नशे के डीलर से नशीले पदार्थ लेता था। वो डीलर कल पकड़ गया था। उस डीलर ने पुलिस पूछताछ में बताया था कि किन-किन लोगों को नशीले पदार्थ बेचता है। उसने श्याम का भी नाम ले दिया।

मित्र 2 ⦂ ओह, रमेश, क्या करें, मुझे तो अपने बच्चों की चिन्ता है कि वह क्या करेंगे। जिस तरह का आज का समय चल रहा है। बच्चे नशे की गिरफ्त में बहुत जल्दी आ जाते हैं।

मित्र 1 ⦂ तुम सही कह रहे हो। आज के समय में नवयुवकों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति देखकर बहुत चिन्ता होती है।

मित्र 2 ⦂ आज के समय में बेरोज़गारी बहुत बढ़ रही है। नवयुवक नशे जैसी बुरी आदतों की बढ़ावा दे रहे है।

मित्र 1 ⦂ आजकल देखने में आ रहा है कि स्कूल से  ही बच्चे नशे जैसे चीजों के चक्कर में पड़ जाते है।

मित्र 2 ⦂ आने वाले नवयुवकों का जो हाल होने वाला है, मुझे बड़ी चिंता होती है।

मित्र 1 ⦂ हमारे समाज को बचाने के लिए जरूरी है कि नवयुवकों को नशे के चंगुल से निकाला जाए नहीं तो हमारा समाज तबाह हो जाएगा।

मित्र 2 ⦂ तुम सही कर रहे हो।


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आपने ट्रैफ़िक सिग्नल पर भीख मांगते हुए छोटे बच्चे को देखा अपने मन के भाव को प्रकट करते हुए अपने नाना को पत्र लिखें

अनौपचारिक पत्र

भीख मांगते बच्चे के बारे में बताते हुए नानाजी को पत्र

दिनांक : 19 जून 2024

प्रणाम नाना जी,
आशा करता हूँ, आप सब ठीक होगे । नानाजी, आप जब से हमारे घर से गए हो मुझे आपकी याद आती है। आज मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ। नानाजी, आज मैंने ट्रैफ़िक सिग्नल पर भीख मांगते हुए एक छोटे बच्चे को देखा। छोटे बच्चे को देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ। मेरा मन रोने लग गया । मुझे ऐसा लगा कि ये कितने मजबूह हैं। इनके पास कुछ नहीं है जो अपने जरूरतों के लिए भीख मांग रहे है। इन बच्चों ने अपना बचपन भी खो दिया है। यह अपना जीवन दूसरों से भीख मांग कर दूसरों उम्मीद लगते है कि कोई उनकी मदद करेगा। मुझे देखकर बहुत दुःख हुआ । नाना जी यह छोटे बच्चे बहुत दुखी जीवन व्यतीत करते है। हम अपने-अपने छोटे-छोटे दुखों से दुखी हो जाते है। इन्हें देखकर मुझे बहुत अजीब लगा। यह दृश्य मेरे आँखों से जा नहीं रहा है।

नाना जी, मैंने सोच लिया है कि मैं बड़े होकर ऐसे बच्चों की मदद जरूर करूंगा। मैं इस तरह इन बच्चों का दुःख नहीं देख सकता। मैं बड़ा होकर समाज के असहाय और कमजोर लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूँ। मेरे इस निर्णय के बारे आपके क्या विचार है, आप पत्र में लिखना। मैं आपके पत्र का इंतजार करूंगा ।

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सचिन


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यदि आज हमारे पास मुद्रा का वर्तमान स्वरूप न होता तो हमें किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता?

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यदि आज हमारे पास मुद्रा का वर्तमान स्वरूप ना होता तो हमें अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। हमें व्यापार विनिमय करने में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। हम व्यापार विनिमय करने के लिए और वस्तु की खरीदारी आदि के लिए एक ही स्थान पर सीमित रह जाते।

यदि मुद्रा का वर्तमान स्वरूप ना होता तो ई-कॉमर्स जैसा कोई भी व्यवसाय का अस्तित्व नहीं होता। यदि मुद्रा का वर्तमान स्वरूप ना होता तो हम घर बैठे किसी भी तरह की खरीदारी नहीं कर पाते। तब हमें वस्तुओं के आदान-प्रदान द्वारा ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता। ऐसी स्थिति में यदि हमें कोई वस्तु चाहिए तो हमें वह वस्तु पाने के लिए हमारे पास जो वस्तु उपलब्ध है उस वस्तु को ले जाकर संबंधित व्यक्ति को देना पड़ता। इस कार्य में हमारा काफी समय एवं श्रम लग जाता।

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मुद्रा का वर्तमान स्वरूप कागज के रूप में होता है, जोकि बेहद हल्के होते है और लाने लेजाने और रखने में सुविधाजनक होते हैं। जबकि मुद्रा न होने अथवा मुद्रा के प्राचीन स्वरूप में मुद्रा धातुओं के सिक्के के रूप में होती थी, जिसे बड़ी मात्रा में लाना ले जाना काफी असुविधाजनक था।


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मुअनजो-दड़ो नगर कितने हजार साल पुराना है?

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मुअनजो-दड़ो नगर लगभग 4 से 5000 साल पुराना है। मुअनजो-दड़ो नगर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे मुख्य और प्राचीनतम शहर है। मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा दोनों नगर दुनिया के सबसे पुराने और नियोजित नगर माने जाते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता 4 से 5000 वर्ष पुरानी मानी जाती है और मुअनजो-दड़ो नगर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्रमुख नगर था, इसलिए यह नगर भी 4 से 5000 वर्ष पुराना है।

अपने समय में यह नगर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्रमुख केंद्र थाय। यह नगर लगभग 200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था और उसकी जनसंख्या लगभग 85,000 के आसपास थी। मुअनजो-दड़ो को टीलों का नगर कहा जाता है क्योंकि ये शहर अधितकर टीलों पर बसा हुआ था, इसीलिए मुअनजो-दड़ो कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है टीलों का नगर। इस नगर का पता लगभग सौ साल पहले ही पता चला है। ये नगर जहाँ स्थित था, वो जगह वर्तमान समय में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है।


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भारत का संविधान निर्माता किसे कहा जाता है?

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भारत का संविधान निर्माता किसे कहा जाता है?

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भारत का संविधान निर्माता डॉक्टर ‘भीमराव अंबेडकर’ को कहा जाता है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को भारत के संविधान का निर्माता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में ही बनी ड्राफ्टिंग कमिटी ने ही संविधान का मसौदा तैयार किया था और उसे अंतिम प्रारूप दिया था। यही संविधान 26 नवंबर 1949 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया तथा 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से भारत में लागू कर दिया गया। फिर भारत एक स्वतंत्र गणराज्य बना। इसी कारण 26 नवंबर को संविधान दिवस तथा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में भारत की ड्राफ्टिंग कमेटी यानी प्रारूप समिति में कुल 7 लोग थे, लेकिन उसके अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर थे और कमेटी में सबसे अधिक कार्य उन्होंने ही किया था। इसी कारण संविधान के प्रारूप का सारा मसौदा तैयार करने का अधिकतर श्रेय उन्हें ही जाता है। यही कारण था उन्हें भारत के संविधान का निर्माता कहा जाता है।

भारत के संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी में जो 7 सदस्य थे उनमें से एक ने त्यागपत्र दे दिया था। दूसरे सदस्य की बाद में मृत्यु हो गई। तीसरे सदस्य अमेरिका चले गए। चौथे सदस्य अन्य कार्यों में व्यस्त होने के कारण अधिक समय नहीं दे पाए। पाँचवें और छठे सदस्य अलग-अलग कारण और सेहत आदि के कारण संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के कार्यों में अधिक समय नहीं दे पाए। अधिकतर कार्य डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को ही करना पड़ा। इसी कारण सारा श्रेय उन्हें जाता है और उन्हें भारत के संविधान का निर्माता कहा जाता है।


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1923 में स्वराज पार्टी बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू के साथ मिलने वाला कांग्रेस का अन्य नेता कौन था? 1. बी. जी. तिलक 2. चित्तरंजन दास 3. एम. के. गाँधी 4. जी. के. गोखले

परंपरागत खाद्य पदार्थों को छोड़कर ‘फास्ट फूड’ संस्कृति के पीछे भागती नई पीढी़ को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने विचार लिखें।

विचार/अभिमत

‘फास्ट फूड’ संस्कृति के पीछे भागती पीढ़ी और हमारा स्वास्थ्य पर विचार

 

परंपरागत खाद्य पदार्थों को छोड़कर नई पीढ़ी फास्ट फूड संस्कृति के पीछे भाग रही है, यह प्रवृत्ति उनके लिए परेशानियां ही पैदा कर रही है। हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। फास्ट फूड के रूप में जो भी खाद्य पदार्थ अपनाए जाते हैं, वह पौष्टिक रूप से स्वास्थ्य वर्धक नहीं होते। लंबे समय तक फास्ट फूड का सेवन करने से उसके दुष्परिणाम सामने आने लगते हैं।

फास्ट फूड खाने में भले ही स्वादिष्ट लगता हो, लेकिन यह पौष्टिक नहीं होता। थोड़ी देर के जीभ का स्वाद की कीमत अपनी खराब सेहत के रूप में चुकानी पड़ती है, यह बात नई पीढ़ी नहीं समझती। उसे केवल अपनी जीभ का स्वाद चाहिए। उसे यह नहीं देखना कि उसकी सेहत के लिए यह फास्ट फूड अच्छा है या नहीं। हमारे जो भी परंपरागत खाद्य पदार्थ रहे हैं वह एक लंबी प्रक्रिया द्वारा विकसित हुए हैं। हमारे परंपरागत खाद्य पदार्थ अपने क्षेत्र के भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार विकसित हुए हैं। इनमें हमारे पूर्वजों का अनुभव छुपा हुआ है। हमारे परंपरागत खाद पदार्थ शुद्ध सात्विक और प्राकृतिक खाद्य शैली पर आधारित है, जिस कारण वह हमारे शरीर के लिए पोषण की दृष्टि से बेहद उपयोगी होते हैं।

हमारे परंपरागत खाद पदार्थ प्रकृति से जुड़े रहे हैं और प्राकृतिक रूप से पकाए जाते हैं। फास्ट फूड ना तो प्राकृतिक रूप से विकसित हैं और वह ना ही प्राकृतिक रूप से पकाए जाते हैं। फास्ट फूड अत्याधिक तेल मसाले तथा तेज आँच पर पकाए जाते हैं। जिस कारण उनके पौष्टिक तत्व लगभग नष्ट हो जाते हैं।

फास्ट फूड में जो भी सामग्री प्रयोग में लाई जाती है, वह भी जंक फूड होती है। इसमें पोषण नाममात्र का होता है, इसी कारण ही फास्ट फूड का सेवन करना हमारी सेहत के लिए नुकसान पहुंचाता है। कभी-कभार फास्ट फूड का सेवन कर लिया जाए, वह बात ठीक है लेकिन इसे अपनी नियमित खाद्य बनाना अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करना है। यह बात समझ नई पीढ़ी की मसझ में आनी चाहिए। आज के समय में उत्पन्न हो रही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इसी फास्ट फूड संस्कृति की देन हैं। इसलिए अगर नई पीढ़ी को स्वास्थ्य की दृष्टि से पूरी तरह स्वस्थ रहना है तो उसे फास्ट फूड़ संस्कृति से बचना होगा।


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स्पष्ट कीजिये हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था​?

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हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था। इस बात का पता यह बात उस प्रसंग से स्पष्ट होती है, जब झूरी का साला गया हीरा मोती दोनों बैलों को अपने घर ले गया और वहां पर उन दोनों बैलों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। वह बैलों को ठीक से चारा-भोजन आदि नहीं देता था और बैल भूखे रह जाते थे। लड़की के मन में बैलों के प्रति दया थी, इसलिए वह बैलों को चुपचाप रोटी दे जाती थी और उस लड़की से बैलों की आत्मीयता हो गई थी।

लड़की की एक सौतेली माँ की जो लड़की पर बहुत मारती थी और उस पर अत्याचार करती थी। यह देख कर मोती ने एक बार मूक भाषा में हीरा से कहा कि अब और नहीं सहा जाता। इस लड़की को उसकी सौतेली माँ इतना मारती है कि मन करता है कि एक सींग को उठा कर फेंक दूं। हीरा बोला जानते थे कि वह लड़की जो हमें रोटियां खिलाती है, यह औरत उसी लड़की की माँ है, वह लड़की बेचारी अनाथ हो जाएगी। मोती बोला तो उसको उठा कर फेंक देता हूँ, जो इस लड़की को मारती है। तब हीरा बोला कि लेकिन औरत पर सींग चलाना मना है, यह तुम भूल जाते हो इससे पता चलता है कि हीरा-मोती के मन में औरत जाति के प्रति सम्मान था।

‘दो बैलों की कथा’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक कथा है, जिसमें उन्होंने हीरा-मोती नाम के दो बैलों के बीच आपसी भाईचारे उनकी स्वामिभक्ति आदि की कथा का वर्णन किया गया है।


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‘दो बैलों की कथा’ पाठ के आधार पर हीरा और मोती के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।’ – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद्र के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए। (दो बैलों की कथा)

‘वे सुंदर मकानों में रहते हैं।’ इस वाक्य को ‘अपूर्ण वर्तमानकाल’ में बदले।

‘वे सुंदर मकानों में रहते हैं।’ इस वाक्य का अपूर्ण वर्तमानकाल में परिवर्तन इस प्रकार होगा…

सामान्य वर्तमान काल : वे सुंदर मकान में रहते हैं।
अपूर्ण वर्तमान काल : वे सुंदर मकान में रह रहे हैं।

विस्तार से…

प्रश्न में जो मूल वाक्य दिया गया है वह ‘सामान्य वर्तमानकाल’ वाला वाक्य है। इसको अपूर्ण वर्तमानकाल में बदला गया है।
अपूर्ण वर्तमान काल की परिभाषा के अनुसार अपूर्ण वर्तमान काल में वर्तमान समय में कोई क्रिया चलते रहने का बोध होता है अर्थात क्रिया अभी तक चल रही है और समाप्त नहीं हुई है यानी अपूर्ण है। काल का वह भेद जिसमें क्रिया के वर्तमान समय में चलते रहने का बोध होता है और यह स्पष्ट होता हो कि क्रिया खत्म नहीं हुई है तो वहां पर ‘अपूर्ण वर्तमान काल’ होता है।

अपूर्ण वर्तमान काल वर्तमान काल के उपभेद में से एक भेद है…

वर्तमान काल के 6 उपभेद होते हैं

  • सामान्य वर्तमान काल
  • पूर्ण वर्तमान काल
  • अपूर्ण वर्तमान काल
  • संदिग्ध वर्तमान काल
  • संभाव्य वर्तमान काल
  • पूर्ण सातत्य वर्तमान काल

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‘मीठे अंगूर खाकर मन खुश हो गया।’ इस वाक्य में से विशेषण और विशेष्य छांटकर लिखें।

मनीषा को आम काटकर खाना चाहिए। – संयुक्त वाक्य में बदलिए।

विप्लव का वीर किसे कहा गया है?

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‘विप्लव का वीर’ क्रांति रूपी बादलों को कहा गया है।

‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ ने अपनी कविता ‘बादल राग’ में बादलों को क्रांति का प्रतीक बनाकर उन्हें विप्लव का वीर कहा है। विप्लव का अर्थ क्रांति से होता है, इसलिए उन्हें क्रांति रूपी बादल कहा गया है, जो समाज में एक क्रांति लाते हैं इसलिए उन्हें विप्लव का वीर कहकर संबोधित किया है।

‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों को समाज में कमजोर एवं वंचित लोगों के प्रतिनिधि के रूप में चिन्हित किया है। किसी भी समाज में कोई भी क्रांति लाने वाले कमजोर एवं वंचित वर्ग के लोग ही होते हैं। जब शोषकों द्वारा किया गया शोषण अपने चरम पर पहुंच जाता है, तब शोषक शोषित किया जाने वाला वर्ग कमजोर वंचित वर्ग उठ खड़ा होता है और एक नई क्रांति का आगमन होता है। यह क्रांति बिल्कुल उसी तरह है, जिस तरह सूर्य की प्रचंड गर्मी से त्रस्त किसानों तथा सामान्य ज्ञान के जीवन में बादल शीतलता भरते हैं और एक नई क्रांति लाते हैं, उसी तरह समाज के कमजोर वर्ग के लोग अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़े होते हैं और बादलों की तरह ही क्रांति लाते हैं इसलिए कवि ने विप्लव का वीर बादलों को कहा है, जो कि समाज के कमोजर-वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं….

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!


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‘पतंग’ कविता इनमें से किसके लिए प्रसिद्ध है (अ) प्रतीकों के लिए (स) बिम्ब विधान के लिए (ब) चित्र विधान के (द) व्यंग्यार्थ के

एक उदार मनुष्य की क्या-क्या उपलब्धियाँ होती हैं? ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर स्पष्ट करे।

‘पतंग’ कविता इनमें से किसके लिए प्रसिद्ध है (अ) प्रतीकों के लिए (स) बिम्ब विधान के लिए (ब) चित्र विधान के (द) व्यंग्यार्थ के

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सही विकल्प होगा :
(स) बिम्ब विधान के लिए

विस्तार से समझें…

‘पतंग’ कविता अपने बिंब विधान के लिए प्रसिद्ध है। इसमें बिंबों के सहारे बाल मनोविज्ञान को प्रस्तुत किया गया है। ‘पतंग’ कविता ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने बिंबों का प्रयोग करके बाल सुलभ इच्छाओं और आकांक्षाओं  तथा उनकी उमंगों का बेहद सुंदर चित्रण किया है।

बालमन तथा प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंध को व्यक्त करने के लिए कवि ने अनेक बिंबों का सहारा लिया है। इस कविता के माध्यम से कवि का कहने का भाव यह है कि बच्चों का एक अपना अलग रंग बिरंगा सपनों का संसार होता है, जिसमें वह निरंतर विचरण करते रहते हैं। बाहरी जगत की गतिविधियों से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता। उनका संसार एक अनोखा रंग बिरंगा सुखद संसार होता है, जहाँ पर रंग-बिरंगी तितलियों की दुनिया है।

शरद ऋतु का सुखद एहसास है। पतंग उड़ाते समय छत के किनारों से गिरने का डर है और उस डर पर विजय पाने का अनुभव भी है। गिरकर संभलने का अनुभव है। इस तरह पतंग कविता के माध्यम से कवि ने प्रकृति के बिंबों को माध्यम बनाकर बाल सुलभ आकांक्षाओं का अत्यंत सुंदर चित्रण किया है।

संदर्भ पाठ
कविता – पतंग, कवि – आलोक धन्वा, (कक्षा-12 हिंदी)


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गद्य की अपेक्षा कविता का अनुवाद कठिन क्यों होता है या कविता की अपेक्षा गद्य का अनुवाद सरल क्यों होता है।

‘हम जब होंगे बड़े’ कविता का भावार्थ लिखें।

बाढ़ पीड़ितों की मदद के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए​।

अनौपचारिक पत्र

बाढ़ पीड़ितों की मदद के दौरान हुए अनुभवों को साझा करते हुए मित्र को पत्र

 

दिनांक : 16 जून 2024

प्रिय मित्र प्रतीक,

तुम जानते हो कि पिछले दिनों हमारे लखनऊ जिले के एक गाँव में भयंकर बाढ़ आई हुई थी। यह गाँव गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। गोमती नदी में भारी बारिश के कारण पिछले दिनों बहुत भयंकर बाढ़ आ गई थी और यह गाँव बाढ़ की चपेट में आ गया।

मैं एक सामाजिक संस्था से जुड़ा हुआ हूं इसलिए उस संस्था की तरफ से बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए राहत अभियान चलाया जा रहा था। मैंने भी उस राहत अभियान में भाग लिया। मैं अपनी संस्था की तरफ से वॉलिंटियर के रूप में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए गया।

हमने गाँव में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए यथासंभव प्रयत्न किए। हमारी संस्था की तरफ से पैकेट बंद खाने का इंतजाम किया गया था, जो हमने बाढ़ पीड़ितों के शिविर में जाकर वितरित किए।

बाढ़ पीड़ितों का शिविर गाँव से थोड़ा दूर एक मैदान में लगाया गया था। जहां पर सरकार द्वारा अस्थाई शिविर लगाए गए हैं। इनमें उन लोगों को पुनर्स्थापित किया जा रहा है, इनके घर बाढ़ में डूब गए हैं। हमने इन शिविरों में जाकर पैकेटबंद खाना वितरित किया। इसके अलावा हमने कुछ जरूरी दवाइयां भी वितरित की ।

हम बाढ़ पीढ़ितों की सहायता के लिए लगभग 3 दिन तक वहाँ पर रहे और अलग-अलग तरह के सहायता कार्य किए। मैंने वहाँ बाढ़ पीड़ितों के परिवारों के बच्चों को पढ़ाया भी था। उनकी स्कूल की कॉपी-किताबें पानी में बुरी तरह भीगकर खराब हो गईं थीं। हमने बच्चों के लिए कॉपी-किताबें भी वितरित की ।

इस बाढ़ पीड़ितों की सहायता करके सच मे बहुत अच्छा लगा। समाज सेवा में एक अलग ही आनंद है। किसी जरूरतमंद और निर्धन की सहायता करने में अनोखा आनंद मिलता है। मेरी तुमको सलाह है कि तुम भी हमारी सामाजिक संस्था से जुड़ जाओ। तुम्हें  भी समाज सेवा में बहुत आनंद आएगा।

तुम्हारा मित्र,
नयन


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साइबर क्राइम की जानकारी देते हुए छोटी बहन को पत्र लिखिए।

आपका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर अपने मित्र को पत्र लिखकर आमंत्रित कीजिए।

मान लीजिए कि आप बहुत दिनों से स्कूल नहीं गए हैं। अपने किसी मित्र से इन दिनों विज्ञान विषय में करवाए गए कार्य की कॉपी स्कैन करके ई-मेल से भेजने का अनुरोध कीजिए।

ई-मेल लेखन

मित्र को कॉपी स्कैन करके भेजने का ई-मेल

दिनांक : 2 फ़रवरी 2024

To : pramod_1331@yahoo.co.in
From : jayesh.srivastav12@gmail.com

Subject : कक्षा कार्य की कॉपी स्कैन करके ई-मेल से भेजने का अनुरोध

प्रिय मित्र प्रमोद,

जैसा कि तुम जानते हो कि किसी कारणवश मैं स्कूल नहीं आ पा रहा हूँ। दरअसल मेरी मम्मी बहुत बीमार है, इस कारण मुझे उनकी देखभाल करनी पड़ रही है और मैं स्कूल नहीं जा पा रहा। मैं जानता हूँ कि मेरी पढ़ाई का बहुत नुकसान हो रहा है। बाकी विषयों की पढ़ाई तो मैंने घर पर काफी कुछ कवर कर ली है, लेकिन मुझे विज्ञान विषय के बारे में विशेष चिंता है।

विज्ञान के प्रैक्टिकल आदि के नोट्स घर पर नहीं बनाये जा सकते। इस कारण में विज्ञान की पढ़ाई में पिछड़ गया हूँ। मेरा तुम से अनुरोध है, कि मेरी अनुपस्थिति में विज्ञान में जो भी पढ़ाई करवाई गई हो, जो कुछ नोट्स लिखवाए गए हों, प्रैक्टिकल आदि के जो नोट्स के हों, उन सब की कॉपी करके मुझे ई-मेल करके भेज सको तो तुम्हारी बड़ा उपकार होगा। मैं उन नोट्स देख कर अपनी पढ़ाई को कवर कर लूंगा। अभी मैं एक हफ्ता और स्कूल नहीं आ पाऊंगा। आशा है तुम मेरी मदद करोगे।

तुम्हारा मित्र,
जयेश ।


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आपके क्षेत्र में नकली दूध बेचने का धंधा खूब फल-फूल रहा है। इसकी रोकथाम हेतु स्वास्थ्य निरीक्षक को ई-मेल लिखिए।

आप पिकनिक पर गए। दोस्त को ई-मेल करें। ई-मेल में उसे पिकनिक के बारे में बताते हुए लिखें।

आपके क्षेत्र में सड़कों पर रोशनी न होने से अंधकार रहता है। नगर निगम के अधिकारी को पत्र लिखकर अपेक्षित प्रबंध करवाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखिए।

हिंदी पत्र लेखन

सड़कों पर पर पर्याप्त रोशनी न रहने की शिकायत करते हुए नगर निगम के अधिकारी को पत्र

 

दिनांक : 23 अप्रेल 2024

 

सेवा में,
श्रीमान नगर निगम अधिकारी,
दिल्ली नगर निगम,
दिल्ली।

विषय : सड़कों पर पर्याप्त रोशनी न होने के संबंध में।

महोदय,
मैं दिल्ली के शास्त्री नगर का निवासी हूँ। मैं आपको हमारे शास्त्री नगर की सड़कों पर रोशनी के उचित प्रबंध ना होने की समस्या के संबंध में ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ।

हमारे शास्त्री नगर की सड़कों पर नगर निगम द्वारा पर्याप्त लाइट नहीं लगाई गई है। जिस कारण सड़कों पर प्रायः अंधेरा रहता है। रात को आते जाते समय अंधेरा होने के कारण न केवल आने जाने वाले राहगीरों और कॉलोनी निवासियों को असुविधा का सामना करना पड़ता है बल्कि असामाजिक तत्वों का भी भय बना रहता है।

महिलाओं का तो ऐसी स्थिति में आना जाना बेहद मुश्किल हो जाता है। कई निवासी अंधेरा होने के कारण गड्ढे आदि में भी गिर जाते हैं। अतः श्रीमानजी से अनुरोध है कि हमारी कॉलोनी की इस समस्या को संज्ञान में लेते हुए हमारी कॉलोनी की सभी गलियों की सड़कों पर नगर निगम द्वारा पर्याप्त रोशनी लगवाने की व्यवस्था करें ताकि कॉलोनी निवासियों को किसी भी तरह की असुविधा का सामना ना करना पड़े। आशा है आप हमारी शिकायत का संज्ञान लेंगे और शीघ्र ही त्वरित कार्रवाई करेंगे।

धन्यवाद,
सुभाष आहूजा,
शास्री नगर, दिल्ली


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विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

आप अपने आपको कक्षा सात की छात्रा मानते हुए विद्यालय में छात्राओं के शौचालय की सफाई करवाने हेतु विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय को प्रार्थना पत्र लिखिए।

निर्बल जन की सेवा कैसे की जा सकती है?

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निर्बल जन की सेवा करने के लिए मन में सेवा भाव होना जरूरी है। किसी भी निर्बल जन सेवा करने के लिए पहले मन में सेवा भाव अपनाना आवश्यक है। बिना सेवा भावना के निर्बल जन की सेवा नहीं की जा सकती। किसी भी निर्बल जैन की सेवा एक औपचारिकता नहीं बल्कि उसके प्रति समर्पण की भावना है। निर्बल जन की सेवा करने के लिए हमें लोगो की पहचना करनी होगी जो वास्तव में निर्बल हैं। हमें उन लोगों की समस्याओं को जानकर उनके लिये उचित समाधान प्रदान करना होगा।

जैसे अनेक बेघर लोग होते हैं, जिनके पास रहने के लिए घर तक नही और वो सड़क किनारे फुटपाथ पर अपना जीवन गुजारने के लिए विवश है। ऐसे लोगों के लिए हम रहने के आवास का प्रबंध कर सकते हैं। इसके लिए हमें ऐसे स्वयंसेवी संस्थाओं से संपर्क करना होगा जो बेघर लोगों के लिए रहने का प्रबंध करती है। हम ऐसे लोगों के रहना का प्रबंध करने के लिए बड़े उद्योगपतियो और समाज के प्रतिष्ठित लोगों से भी संपर्क कर सकते है कि वो लोंग आगे आएं और बेघर लोगों के आवास के प्रबंध के लिए कुछ दान करें।

बहुत से निर्बलजन ऐसे हैं, जिनके पास पहनने  के लिए पर्याप्त कपड़े तक नहीं होते है। ऐसे कड़कती ठंड में कंपकपाते हुए अपना जीवन बिताने के लिए मजबूर होते है। ऐसे लोगों के लिए कंबल और कपड़े आदि बांटकर उनकी सेवा कर सकते हैं। ऐसे असहाय लोगों के लिए जो दो वक्त का खाना मुश्किल से जुटा पाते है उनके लिए खाने का प्रबंध किया जा सकता है।

गरीब बस्ती में रहने वाले गरीब माँ-बाप के बच्चे जो पैसे के अभाव के कारण पढ़ाई से वंचित हैं, ऐसे बच्चों के लिए पढ़ाई का प्रबंध कर सकते हैं ताकि उन्हें शिक्षा मिले और वह अपने जीवन को संभाल सके। इस तरह ऐसे अनेक कार्य हैं जिनके माध्यम से हम निर्बल जन की सेवा कर सकते हैं।


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पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श भाग 2)

PAD : Meera (Class-10 Chapter-2 Hindi Sparsh 2)


पद : मीरा

पाठ के बारे में…

प्रस्तुत पाठ में मीराबाई द्वारा रचित पदों की व्याख्या की गई है। यह पद उन्होंने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को संबोधित करके उन्हें समर्पित किए हैं। मीराबाई अपने आराध्य श्री कृष्ण से मनुहार कर रही है और उनके प्रति लाड़ भी जताती हैं। अवसर आने पर वह उन्हें उलाहना भी देती हैं। एक तरफ वह उनकी क्षमताओं का गुणगान करती हैं, उनका नित्य स्मरण करती है और दूसरे ही क्षण में उन्हें उनके कर्तव्य याद दिलाने की चेष्टा भी करती हैं। पाठ में मीराबाई के दो पद प्रस्तुत किए गए हैं। दोनों पद उनके ग्रंथ मीरा ग्रंथावली भाग 2 से संकलित किए गए हैं।



रचनाकार के बारे में…

मीराबाई भक्तिकाल की एक प्रसिद्ध संत कवयित्री थीं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति सगुण भक्ति धारा का अनुसरण किया। वह मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की आध्यात्मिक प्रेरणा रही हैं और स्त्री कवयित्रियों में उनका स्थान सर्वोच्च है। उन्होंने हिंदी (ब्रज) और गुजराती तथा राजस्थानी मिश्रित भाषाओं के पदों की रचना की।

मीराबाई का जन्म राजस्थान के जोधपुर के चोकड़ी (कुड़की) गाँव में सन 1530 ईस्वी में हुआ माना जाता है। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया था, लेकिन वह बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपना आराध्य बना चुकी थीं और उन्हें अपना पति मानती थीं। विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का देहांत हो गया। फिर उसके बाद उन्होंने पूरी तरह अपना जीवन श्री कृष्ण की आराधना में ही समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना घर परिवार त्यागकर वृंदावन में डेरा डाल लिया और गिरधर गोपाल अर्थात श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव से समर्पित हो गईं।

उनके गुरु प्रसिद्ध संत रविदास (रैदास) थे। मीराबाई की कुल सात-आठ कृतियां ही उपलब्ध हैं, जिनमें उन्होंने अनेक पदों की रचना की है। सभी पद श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव से ओतप्रोत है। मीराबाई के पदों में ब्रज, राजस्थानी, गुजराती भाषा का मिश्रण पाया जाता है। सन 1546 ईस्वी में मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?

उत्तर : मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती उस प्रकार की है, जिस तरह हरि या श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाद की भरी सभा में रक्षा की। उन्होंने द्रौपदी को वस्त्र प्रदान करके उन्हें लज्जित होने से बचाया था। जिस प्रकार उन्होंने नरसिंह का रूप धारण करके भक्त प्रह्लाद को बचाया और हिरणकश्यप का वध किया। जब मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने मुंह में जकड़ लिया था, तब उन्होंने हाथी की मगरमच्छ से रक्षा करके उसके प्राण बचाए। उसी प्रकार आप भी संकट की घड़ी में मेरी रक्षा करो और मुझे पीड़ा से मुक्त करो।


 

प्रश्न 2 : दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : दूसरे पद में मीरा श्याम की चाकरी इसलिए करना चाहती हैं, क्योंकि वह हर समय श्याम के दर्शन करना चाहती हैं, उनके निकट रहना चाहती हैं। मीरा चाहती हैं कि उन्हें श्याम यानी श्रीकृष्ण की सेविका बनने का अवसर प्राप्त हो जाए। जब वह कृष्ण की सेविका बन जाएंगी तो बाग-बगीचे लगाएंगीजिसमें श्रीकृष्ण घूमेंगे।

इस तरह सुबह-सुबह कृष्ण के सुंदर मनोहारी रूप के दर्शन करने को मिला करेंगे। वह श्रीकृष्ण कुंज गलियों मे में श्रीकृष्ण की लीला के गीत गाना चाहती हैं ताकि उसका लाभ उठा सकें। श्रीकृष्ण की भक्ति को वह अपनी जागीर मानती हैं, और इस जागीर को हमेशा अपने पास संभाल कर रखना चाहती हैं। वह हर पल हर समय श्रीकृष्ण के पास रहना चाहती हैं, इसलिए वह श्याम यानी श्रीकृष्ण की चाकरी करना चाहती हैं।


 

प्रश्न 3 : मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रुप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?

उत्तर : मीरा ने श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन बड़े ही सुंदर तरीके से किया है। मीरा कहती हैं कि श्रीकृष्ण के सर पर मोर के पंखों का मुकुट है, जो उनके सुंदर मुखड़े पर बेहद शोभायमान प्रतीत हो रहा है। वह पीतांबर यानी पीले वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके गले में फूलों की वैजयंती माला पड़ी हुई है। इस तरह उनका रूप बेहद दिव्य एवं मनोहारी लग रहा है। वह अपने इस सुंदरतम रूप में जब वे बाँसुरी बजाते हुए जब गाय चराते हैं, तो उनका रूप सौंदर्य और अधिक दिव्य एवं भव्य हो जाता है।


 

प्रश्न 4 : मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर : मीराबाई की भाषा शैली मिश्रित भाषाओं की शैली रही है। उन्होंने अपने पदों में मिश्रित भाषा का प्रयोग किया है। मीराबाई मूलतः राजस्थान की रहने वाली थी, इसलिए उनके पदों में राजस्थानी भाषा का सबसे अधिक प्रभाव दिखाई पड़ता है। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय ब्रज में बिताया था और इसलिए उनके पदों में ब्रजभाषा का भी अच्छा खासा प्रभाव दिखाई देता है। इसलिए उनके पदों में राजस्थानी एवं ब्रजभाषा का मिश्रित प्रभाव दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त मीराबाई के पदों में गुजराती शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

मीराबाई के पदों की भाषा शैली सरल एवं सहज है, जो तत्कालीन समाज की आम बोलचाल की भाषा थी और लोगों को सरल रूप से समझ में आ जाती थी। इसी कारण उनके पद बेहद लोकप्रिय हुए। मीराबाई के पदों में भाव भरा हुआ है और उनके पद प्रवाहमय है। उनके पद में भक्ति रस की प्रधानता है अलंकारों का भी प्रयोग उन्होंने कुशलता से किया है। उनके पदों में अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।


 

प्रश्न 5 : मीरा श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?

उत्तर : मीराबाई श्री कृष्ण को पानी के लिए अनेक तरह के यतन-जतन करने के लिए तैयार हैं। वह  श्रीकृष्ण को पाने के लिए किसी भी तरह का कार्य करने को तैयार हैं। वह श्रीकृष्ण की सेविका बंद कर उनकी हर पल सेवा करना चाहती हैं। वह श्रीकृष्ण को सुबह सुबह घूमने भ्रमण करने के लिए बाग बगीचे लगाना चाहती हैं, ताकि सुबह-सुबह श्रीकृष्ण उन बाग-बगीचों में घूम सकें और वह श्रीकृष्ण के सुंदर रूप का दर्शन कर सकें।

वह वृंदावन की गलियों में श्रीकृष्ण की लीलाओं के गीत गाना चाहती हैं। वह ऊँचे ऊँचे महलों में बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनवाना चाहती हैं, ताकि वह उन खिड़कियों से श्रीकृष्ण के सुंदर मनोहारी रूप का जब चाहे तब दर्शन कर सकें। वह चाहती हैं कि वे कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनकर आधी रात को श्रीकृष्ण से मिलें और उनके दर्शन करें। इस तरह वह श्रीकृष्ण को पाने के लिए अनेक तरह के प्रयास करना चाहती हैं।



(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

1. हरि आप हरो जन री भीर। द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रुप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
2. बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।
3. चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

उत्तर : सभी पंक्तियों का काव्य सौंदर्य इस प्रकार होगा :

1. हरि आप हरो जन री भीर।
   द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
   भगत कारण रुप नरहरि, धर्यो आप सरीर।

काव्य सौंदर्य : इन पंक्तियों के माध्यम से मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण को अपनी रक्षा के लिए पुकार रही हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण को पुकारने के लिए अनेक तरह के उदाहरण दिए हैं। वह कहती हैं कि जिस तरह श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के वस्त्र बढ़ाकर उनकी लाज की रक्षा के लिए, जिस तरह उन्होंने नरसिंह रूप धारण कर प्रह्लाद की रक्षा की, उसी तरह आप मेरी भी संकट की इस घड़ी में मेरी रक्षा करो।

पदों में मीराबाई ने राजस्थानी एवं ब्रज भाषा की मिश्रण भाषा का प्रयोग किया है।  पंक्तियों के अंत में ‘र’ वर्ण की ध्वनि का बार-बार प्रयोग हुआ है। हरि शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग किया है, क्योंकि ‘हरि’ के यहां पर अनेक अर्थ निकलते हैं।

2.  बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
     दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।

काव्य सौंदर्य : इन पंक्तियों में भी मीराबाई श्री कृष्ण को अपनी रक्षा के लिए पुकार रही है। वह कहती हैं कि जिस तरह उन्होंने मगरमच्छ द्वारा गजराज को जकड़ लेने के बाद डूबते हुए गजराज को बचाया और उसके प्राणों की रक्षा करें। वैसे ही आपकी दासी मीराबाई भी आपसे से प्रार्थना करती है कि आप मेरे संकट की घड़ी में मेरी रक्षा करो।

पंक्तियों में मीराबाई ने दास्य भाव से भरी भक्ति का प्रदर्शन किया है। उन्होंने स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी के रूप में प्रस्तुत किया है। पदों की भाषा ब्रज एवं राजस्थानी भाषा का मिश्रण है। ‘काटी कुंजर’ शब्द में अनुप्रास अलंकार की छटा बिखर रही है। पद की भाषाशैली सरल एवं सहज है।

3.  चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
    भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

काव्य सौंदर्य : इन पंक्तियों में मीराबाई श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए, उनका निकटता पाने के लिए उनकी चाकरी करने तक को तैयार हैं। वह किसी भी शर्त पर श्रीकृष्ण की निकटता पाना चाहती हैं, ताकि वह रोज उनके दर्शन कर सकें। रोज उनके नाम का स्मरण कर सकें और उनके भक्ति की जागीर को पा सकें।

इन पंक्तियों में भी मीराबाई ने स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी के रूप में प्रस्तुत किया है। पदों की भाषा ब्रज और राजस्थानी भाषा का मिश्रण है। खरची और सरसी शब्द तुंकात शब्दों का आभास दे रहे हैं। पक्ति में ‘भाव भगती जागीरी’ में अनुप्रास अलंकार और रूपक अलंकार की छटा बिखर रही है।



भाषा अध्ययन

प्रश्न 1 उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप लिखिए-
उदाहरण − भीर − पीड़ा/कष्ट/दुख; री − की
चीर_______ बूढ़ता ________ धर्यो _______ लगास्यूँ _______ कुण्जर ________ घणा ________ बिन्दरावन _______ सरसी ________ रहस्यूँ _______ हिवड़ा _______ राखो _______ कुसुम्बी _______

उत्तर : उदाहरण के आधार पर पाठ में आए शब्दों के प्रचलित रुप इस प्रकार होंगे :
उदाहरण भीर − पीड़ा/कष्ट/दुख; री − की
चीर : वस्त्र
बूढ़ता : डूबता
धर्यो : रखना
लगास्यूँ  : लगाना
कुण्जर : हाथी
घणा : बहुत
बिन्दरावन : वृंदावन
सरसी  : अच्छी
रहस्यूँ  :  रहना
हिवड़ा  : हृदय
राखो  : रखना
कुसुम्बी  : लाल अथवा केसरिया


योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 मीरा के अन्य पदों को याद करके कक्षा में सुनाइए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य हैं, विद्यार्थी मीरा के पदों को अलग-अलग स्रोतों से संकलिक करके उन्हें याद करें और कक्षा में सुनाएं।

प्रश्न 2 यदि आपको मीरा के पदों के कैसेट मिल सके तो अवसर मिलने पर उन्हें सुनिए।

उत्तर : आजकल कैसेट मिलना संभव नही है। इसलिए विद्यार्थी सीडी अथवा पेनड्राइव अथवा इंटरनेट से मीरा के पदों के आडियों डाउनलोड करके उन्हे सुनें।


परियोजना

प्रश्न 1 मीरा के पदों का संकलन करके उन पदों को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

उत्तर : मीरा के अलग-अलग पदों का संकलन करके चार्ट पर लिखें और भित्ति पत्रिका पर लगाएं।

प्रश्न 2 पहले हमारे यहांँ 10 अवतार माने जाते थे। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण प्रमुख हैं। अन्य अवतारों के बारे में जानकारी प्राप्त करके एक चार्ट बनाएं।

उत्तर : भगवान विष्णु के दस अवतार इस प्रकार हैं…

  1. मत्स्य अवतार
  2. वराह अवतार
  3. कच्छप अवतार
  4. नरसिंह अवतार
  5. वामन अवतार
  6. परशुराम अवतार
  7. श्री राम अवतार
  8. श्री कृष्ण अवतार
  9. भगवान बुद्ध अवतार
  10. कल्कि अवतार

पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)

कक्षा-10 हिंदी स्पर्श भाग – 2 के अन्य पाठ

साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2) (हल प्रश्नोत्तर)

पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

विद्यालय द्वारा आयोजित स्काउट/गाइड कैंप हेतु विद्यार्थियों को प्रधानाचार्य की ओर से निमंत्रित करते हुए सूचना लिखिए l

डी. ए. वी. महाविद्यालय,
चंडीगढ़,

सूचना

स्काउट/गाइड शिविर का आयोजन

दिनांक : 12/1/2024

विद्यालय के सभी छात्र व छात्राओं को सूचित किया जाता है कि 18-01-2024 को डी. ए. वी. विद्यालय में स्काउट एंड गाइड शिविर का आयोजन किया जा रहा है । स्काउटिंग गाइडिंग युवाओ के व्यक्तित्व विकास में बेहद सहायक आयोजन है जो एक सैन्य अधिकारी लॉर्ड रॉबर्ट स्टीफेन्सन स्मिथ बेडन पॉवेल द्वारा 1907 में प्रारंभ किया गया था ।

वर्तमान में स्काउट गाइड संगठन विश्व के 216 देशों और उपनिवेशों में संचालित है । लगभग 5 करोड़ सदस्यों के साथ यह विश्व का सबसे बड़ा वर्दीधारी संगठन है । सभी विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वह सब स्काउट/गाइड शिविर में भाग लें ।

द्वारा,
रंजनप्रसाद  (प्रधानाचार्य)
डी. ए. वी महाविद्यालय,
चंडीगढ़ ।


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विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र देने का अनुरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र लिखिए ।

औपचारिक पत्र

चरित्र प्रमाण-पत्र का अनुरोध करते हुए प्रधानाचार्य को पत्र

दिनांक : 12 जून 2024

 

सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
डी.ए.वी महाविद्यालय, रोहतक (हरियाणा) ।

विषय :  चरित्र प्रमाण पत्र का अनुरोध

आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय,
निवेदन इस प्रकार है कि मेरा नाम अखिलेश श्रीवास्तव है।  मैं कक्षा 9 विभाग ‘ब’ में पढ़ता हूँ। मेरे पिताजी एक सरकारी विभाग में अधिकारी हैं और उनका स्थानांतरण निकट के नगर कुरुक्षेत्र में हो गया है। इस कारण हम सभी को सपरिवार कुरुक्षेत्र में स्थानांतरित होना पड़ेगा। इस कारण मुझे यह विद्यालय छोड़ना पड़ेगा और नए शहर में नए विद्यालय में प्रवेश लेना पड़ेगा।

मैंने विद्यालय से लिविंग सर्टिफिकेट प्राप्त कर लिया है। मुझे नए विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए चरित्र प्रमाण पत्र की आवश्यकता है, ताकि मैं नए शहर में मैं विद्यालय में प्रवेश ले सकूं। अतः श्रीमान जी से अनुरोध है कि मुझे विद्यालय से चरित्र प्रमाण पत्र प्रदान करने की कृपा करें, ताकि मैं नए शहर में नए विद्यालय में प्रवेश लेते समय चरित्र प्रमाण पत्र को दिखा सकूं। आपकी अति कृपा होगी।

धन्यवाद,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अखिलेश श्रीवास्तव,
डीएवी महाविद्यालय,
रोहतक,  हरियाणा ।


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रैयतवाड़ी व्यवस्था को किसके द्वारा लागू किया गया था?

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रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत किसानों को भूमि का स्वामी माना जाता था और उनके पास भूमि के स्वामित्व अधिकार होते थे यानी कि वह भूमि को बेच सकते थे, उसे गिरवी रख सकते थे अथवा उसे किसी को उपहार में दे सकते थे। तत्कालीन सरकार सीधे किसानों से ही कर की वसूली करती थी और बीच में कोई बिचौलिया नही होता था, जैसाकि पहले की जमींदारी व्यवस्था में होता था। किसानों से वसूल किए गए कर की दर शुष्क भूमि में 50% और आर्द्र भूमि में 60% होती थी। यदि किसानों का भुगतान करने में जो सरकार किसान को जमीन से बेदखल कर देती थी।

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रैयतवाड़ी व्यवस्था किसान यह जमीदारी व्यवस्था से अलग एक तरह की व्यवस्था थी, जिसमें भूमि का स्वामी सीधे किसानों को बना दिया जाता था। पहले की जमींदारी व्यवस्था की तरह कोई बिचौलिया नहीं होता था, लेकिन जिन किसानों को भूमि का स्वामी बनाया जाता थास उन्हें उच्च दर पर कर का भुगतान करना पड़ता था और यह भुगतान नकद रूप में करना पड़ता था ना कि किसी वस्तु के रूप में। जैसा कि किसान पहले भारत की प्राचीन कृषि व्यवस्था में किसान पहले करते थे और राजा को फसल के अंश के रूप में कर का भुगतान करते थे।


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परीक्षा में आए कठिन प्रश्न-पत्र के बारे में दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए।

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परीक्षा में आए कठिन प्रश्न-पत्र के बारे में दो मित्रों अरुण और विमल के बीच संवाद

 

अरुण ⦂ विमल तुम्हारा आज का प्रश्न पत्र कैसा रहा?

विमल ⦂ मेरा प्रश्न पत्र आज अच्छा नहीं गया। आज के प्रश्न-पत्र में बेहद कठिन प्रश्न थे। मैंने ऐसे प्रश्नों की तैयारी नहीं की थी। मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि प्रश्न पत्र में इतने कठिन प्रश्न आ जाएंगे।

अरुण ⦂ बिल्कुल मेरा भी वही हाल है। मेरा भी पेपर आज अच्छा नहीं गया। सच में बहुत ही कठिन प्रश्न थे। पता नहीं किसने यह प्रश्न पत्र तैयार किया था। हमने जितनी भी गाइड बुक तथा मॉडल प्रश्न पत्र देखे थे उनमें किसी में भी इस तरह के प्रश्न नहीं बताए गए थे।

विमल ⦂ वही तो बात है। मुझे बड़ी चिंता हो रही है कि कहीं इस विषय में फेल ना हो जाऊं।

अरुण ⦂ ऐसा क्यों कह रहे हो? क्या तुम्हारा पेपर बहुत अधिक खराब गया है?

विमल ⦂ हाँ मेरा पेपर सच में बहुत खराब गया है, लेकिन उम्मीद है कि मैं पासिंग मार्क्स ले आऊंगा। हालांकि यह डर है कि शायद ऐसा ना हो पाए।

अरुण ⦂ हौसला रखो। सब ठीक हो जाएगा तुम चिंता मत करो। तुम पास जरूर होगे। मैं भी पेपर लगभग इतना तो कर ही आया हूँ कि मैं पास हो जाऊंगा ऐसी उम्मीद है। हालाँकि बहुत अच्छे अंक शायद नही आएं।

विमल ⦂ चलो देखते हैं। अब इसकी चिंता छोड़कर अगले पेपर की तैयारी करते हैं। जो हो गया सो हो गया।

अरुण ⦂ बिल्कुल सही कह रहे हो।


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पत्र लेखन

साइबर क्राइम की जानकारी देते हुए छोटी बहन को पत्र

 

दिनांक : 15 जून 2024

डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल,
छात्रावास, न्यू शिमला,
शिमला – 171009।

प्रिय बहन दिव्यांशी
स्नेह !

मैं यहाँ पर सपरिवार कुशलता से हूँ और आशा करती हूँ कि तुम भी छात्रावास में कुशलता से होगी और ईश्वर से तुम्हारी कुशलता की मंगल कामना करती हूँ। माता-पिता को तुमसे बहुत उम्मीदें हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरोगी । तुम एक बहुत ही समझदार और होशियार लड़की हो । लेकिन तुम्हारी बड़ी बहन होने के नाते मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूँ। तुमने शायद आजकल साइबर क्राइम के बारे में तो सुना ही होगा । लेकिन यह साइबर क्राइम (cyber crime) क्या है ? तुम्हें इसके बारे में जरूर चाहिये ।

दरअसल किसी भी कंप्यूटर का आपराधिक स्थान पर मिलना या कंप्यूटर से कोई अपराध करना कंप्यूटर अपराध कहलाता है । कंप्यूटर अपराध में किसी की निजी जानकारी को प्राप्त करना और उसका गलत इस्तेमाल करना शामिल है। किसी की भी निजी जानकारी कंप्यूटर से निकाल लेना या चोरी कर लेना भी साइबर अपराध है । साइबर अपराध भी कई प्रकार के है जैसे कि स्पैम ईमेल, हैकिंग, फिशिंग, वायरस को डालना, किसी की जानकारी को ऑनलाइन प्राप्त करना या किसी पर हर वक़्त नजर रखना आदि । मैं तुम्हें साइबर क्राइम से बचने के उपाय बताती हूँ, तुम इस बारे में अपने दोस्तों को ज़रूर बताना ।

अक्सर हर एक इंटरनेट यूजर को ऐसे ईमेल और मैसेज आते रहते हैं जिन पर अनजान लिंक मौजूद होते हैं ऐसे में हमें इन ईमेल और मैसेज में मौजूद अनजान लिंक पर कभी भी क्लिक नहीं करना चाहिये । कभी भी किसी भी वेबसाइट को विज़िट करते वक्त सबसे पहले HTTPS पर ध्यान देना चाहिये ।

अगर वेबसाइट के लिंक मे HTTPS के बजाय HTTP हैं तो हमें ऐसे वेबसाइट पर नहीं जाना चाहिए और अनजान वेबसाइट पर हमें भूलकर लॉगिन नहीं करना चाहिए और अपनी व्यक्तिगत जानकारी को साझा नहीं करना चाहिये । अगर हम फ्री इंटरनेट के चक्कर मे आम वाईफाई का उपयोग करते हैं तो सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि आज के समय में फ्री Public वाई-फाई बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। इससे हमारी डिवाइस चाहे वो मोबाइल या कम्प्यूटर, हैक हो सकती है। अकसर हम अपनी व्यक्तिगत जानकारी को सोशल मीडिया साइट्स पर साझा कर देते हैं। ऐसा हमें कभी भी नहीं करना चाहिये।

यहाँ पर मैंने साइबर क्राइम के बारे संक्षेप में जानकारी देते हुए उससे बचाव के कुछ उपाय समझाएं हैं। जो कुछ भी तुम्हें बताया है, तुम उन बातों का ध्यान रखना। शेष मिलने पर ।

तुम्हारी बड़ी बहन,
आशिमा


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  1. आचरण की सभ्यता,
  2. मजदूरी और प्रेम,
  3. अमेरिका का मस्त योगी वाल्ट व्हिटमैन,
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सरदार पूर्णसिंह के निबंधों की भाषा खड़ी बोली से युक्त भाषा है। उन्होंने अपने निबंधों में जहाँ तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है तो फारसी और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनके निबंधों में व्यंगात्मकता, विचारात्मकता, वर्णनात्मकता, भावात्मकता आदि सभी का मिश्रण मिलता है। यही उनके निबंधों की विशिष्ट शैली है। उनके निबंध सरल और सहज भाषा में लिखे गए हैं, जो कि सरलता से आम पाठक को भी समझ में आ जाते हैं। उनके निबंधों में बड़े-बड़े उपदेश और गूढ़ बातें का समावेश नहीं है।

सरदार पूर्ण सिंह द्विवेदी युग के प्रसिद्ध निबंधकार रहे हैं। उनका जन्म सन 1881 ईस्वी में एबटाबाद नामक स्थान पर हुआ था जो कि वर्तमान समय में पाकिस्तान में पड़ता है। उनके पिता का नाम करतार सिंह था। उनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा रावलपिंडी में हुई।

जहाँ से उत्तीर्ण होने के बाद लाहौर में बस गए और लाहौर से उन्होंने एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। वे अध्ययन के लिए जापान भी गए और जहाँ उनकी भेंट उस समय जाापान आए हुए स्वामी रामतीर्थ से हुई। स्वामी रामतीर्थ के विचारों से इतना प्रेरित हुए कि वहीं पर उन्होंने सन्यास ले लिया। बाद में वह स्वामी जी के साथ ही भारत वापस आ गए। स्वामी जी की मृत्यु के बाद वे देहरादून बस गए और विवाह करके वहीं पर अध्यापन कार्य करने लगे। उनका निधन सन् 1931 में हुआ था।


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दिनांक : 18 जून 2023

 

प्रणाम नाना जी,
आशा करता हूँ आप सब ठीक होंगे । नानाजी, आज मैं आपको एक बहुत जरूरी बात बताने के लिए पत्र लिख रहा हूँ। नानाजी, मुझे पिताजी अगली कक्षा की पढ़ाई के लिए छात्रावास भेजना चाहते है । मैं छात्रावास में पढ़ाई करने नहीं जाना चाहता । मेरा मन नहीं कि मैं छात्रावास में पढ़ाई करूं। नानाजी, मुझे माँ-पिताजी और अपने भाई-बहनों से दूर रहना अच्छा नही लगता। मैं अपने परिवारजनों से दूर नहीं रह सकता। यदि पिताजी मुझे पढ़ाई के लिए जबरदस्ती छात्रावास भेज देंगे तो मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगेगा और मैं पढ़ाई नहीं कर पाऊँगा। इस तरह मैं अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाऊँगा।

नानाजी, मैं जानता हूँ कि पिताजी आपका बहुत सम्मान करते हैं। वह आपकी बात मानते हैं। नानाजी मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप पिताजी को समझाओ कि मुझे छात्रावास न भेजें। वह आपकी बात जरूर मानेंगे। आशा करता हूँ, आप मेरी बात को जरूर समझेंगे और पिताजी को मना लेंगे । आपके पत्र का इंतजार करूंगा । अपना ध्यान रखना

आपका प्यारा नाती,
अंश ।


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  • सरकार को भिखारियों के आवास के लिए उचित प्रबंध करना चाहिए ताकि भिखारी सड़क पर बेघर बनकर ना रहे और किसी सुरक्षित आवास में रह सकें।
  • सरकार को भिखारी के जीवन-यापन हेतु उन्हें कुछ ऐसा रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे वह स्वावलंबी बनकर सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
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वापसी यात्रा में ईश्वरी ने बीर को इसलिए डांटा क्योंकि बीर ने असभ्य व्यवहार किया था। बीर ने ट्रेन में ना केवल एक गरीब यात्री को तमाचे मारे, उसे धक्का दिया उसे भला-बुरा कहा बल्कि उससे पहले ईश्वरी के घर पर ही नौकरों और मुंशी रियासत अली को डांटा फटकारा।

बीर पर जमीदारी के बनावटी रूप का नशा चढ़ चुका था और वह स्वयं को जमीदार का ही पुत्र समझने लगा था, और वह अपने स्वाभाविक विचारों को छोड़कर जमींदारों के पुत्र जैसा आचरण करने लगा। इसी कारण वापसी यात्रा में ईश्वरी ने बीर को डांटा, क्योंकि उस पर झूठी जमींदारी का नशा चढ़ चुका था।

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महिला और दूधवाला के बीच हुए संवाद को लिखें।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर दो शिक्षकों के बीच संवाद लिखो

संवाद लेखन

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर दो शिक्षकों के बीच संवाद

 

पहला शिक्षक ⦂ श्रीमान, क्या आप जानते हो कि भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के प्रतिरूप पर आधारित है, जिसे सन 1835 में लागू किया गया था?
दूसरा शिक्षक ⦂ जी हाँ , बिल्कुल इस शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य भारत में प्रशासन के लिए बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए विशिष्ट लोगों को तैयार करना था।
पहला शिक्षक ⦂ क्या आप वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुणों के बारे में जानते है?
दूसरा शिक्षक ⦂ जीहाँ , श्रीमान जी इसके बहुत से गुण है, जैसे – यह विविध विषयों और प्रौद्योगिकियों के बारे में हमारे ज्ञान के विस्तार को बढ़ाती है। यह हमें हमारी संस्कृति और नैतिकता के बारे में जानने में मदद करती है।
दूसरा शिक्षक ⦂ आपने बिल्कुल सही कहा। लेकिन इस शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा गुण है कि यह हमारे मस्तिष्क के विकास में सहायता प्रदान करती है और हमें शालीन बनाने में मदद करती है।
पहला शिक्षक ⦂ जी हाँ, इसके अलावा यह राजनीति के नियमों को सीखने में मदद करती है और इस शिक्षा प्रणाली से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
दूसरा शिक्षक ⦂ श्रीमान, यह शिक्षा प्रणाली हमें यह समझने में मदद करती है कि अपने अनपढ़ समकक्षों की तुलना में बेहतर व्यवहार कैसे किया जाये ।
पहला शिक्षक ⦂ दरअसल श्रीमान जी वर्तमान शिक्षा प्रणाली छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए प्रचलित की जा रही है। आज इंटरनेट के माध्यम से शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। छात्रों को विश्व के एक छोर से दूसरे छोर पर स्थित पुस्तकालय से जोड़कर किसी भी विषय का ज्ञान प्रदान करवाया जाता है।
दूसरा शिक्षक ⦂ आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । शिक्षा प्रणाली के कुशल संचालन हेतु व शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु केन्द्र व राज्य सरकारों को अपनी मूक दर्शक मुद्रा को छोड़कर शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक सक्रिय पर्यवेक्षक की भूमिका निभानी चाहिए, अन्यथा वर्तमान शिक्षा प्रणाली निजी हाथों में कुछ मुट्ठी भर पूंजीपतियों की तिजोरियों को भरने और देश के नवयुवकों को अंधकार में झोंकने का जरिया बनकर रह जाएगी ।


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दो सैनिकों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।

महिला और दूधवाला के बीच हुए संवाद को लिखें।

ऐसी मूढ़ता या मन की। परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की॥ धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की। नहिं तँह सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की॥ ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तन की। टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की॥ कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि! जानत हौ गति जन की। तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दु:ख, करहु लाज निज पन की॥ प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

ऐसी मूढ़ता या मन की।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की॥
धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की।
नहिं तँह सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की॥
ज्यों गच-काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तन की।
टूटत अति आतुर अहार बस, छति बिसारि आनन की॥
कहँ लौं कहौं कुचाल कृपानिधि! जानत हौ गति जन की।
तुलसिदास प्रभु हरहु दुसह दु:ख, करहु लाज निज पन की॥

संदर्भ : ये पंक्तियां तुलसीदास द्वारा रचित काव्य ‘विनय पत्रिका’ की चौपाईयां है।

प्रसंग : प्रसंग उस समय का है, जब तुलसीदास प्रभु श्रीराम के प्रति अपनी भक्तिभाव का प्रदर्शन करते हुए अपने चंचल मन की दशा को प्रकट कर रहे हैं।

व्याख्या : तुलसीदास की विनय पत्रिका की इन पदों का भावार्थ इस प्रकार है कि तुलसीदास कहते हैं कि हमारे मन की ऐसी दशा होती है कि यह प्रभु श्रीराम की भक्ति रूपी गंगा को छोड़कर ओस की बूंदों से प्राप्त होने के पीछे भागता है। ये बिल्कुल उसी प्रकार है जिस प्रकार कोई प्यासा पपीहा धुएँ को देख कर उसे बादल समझ लेता है और उस धुएँ की तरफ भागता है। धुएँ में उसे ना तो शीतलता मिलती है, ना ही उसे वहाँ पर जल प्राप्त होता है बल्कि धुएँ के कारण उल्टा नुकसान ही होता है और उसकी आँखों को नुकसान पहुंच सकता है, यही दशा हमारे मन की होती है।

तुलसीदास दूसरा उदाहरण देकर कहते हैं कि बिल्कुल उसी तरह जैसे कोई भूखा बाज काँच में अपने ही शरीर की परछाई को देखकर उस पर झपट कर चोंच मारने का प्रयास करता है। इससे उसकी चोंच को ही नुकसान पहुंचता है क्योंकि भ्रम के कारण ऐसा करता है। इसीलिए तुलसीदास कहते हैं कि मन के इस भ्रम का मैं कहां तक वर्णन करूं, यह मन इतना भ्रमित है कि हर समय भटकता ही रहता है।

वे प्रभु श्रीराम से प्रार्थना कर रहे हैं कि आप तो हमारे स्वामी है, हम दासों की दशा जानते हैं। हे प्रभु! आप ही मेरे इस दारुण दुख का हरण कर लीजिए और मुझे अपने प्रेम रूपी वात्सल्य की छांव में ले लीजिए।


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‘कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी।’ इस उक्ति का अर्थ बताकर इसकी व्याख्या करें।

कैलाश गौतम की कविता ‘नौरंगिया’ की व्याख्या कीजिए।

जब पंगत बैठ जाती तो बाबूजी भी धीरे-धीरे से आकर जीमने के लिए बैठ जाते थे। उन्हें देखकर बच्चे बहुत हंसते थे। लेखक के पिता का बच्चों के साथ खेलना उचित है? माता का आँचल के पाठ के आधार पर इस कथन के पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रस्तुत कीजिए।

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जब पंगत बैठ जाती तो बाबूजी भी धीरे-धीरे से आकर जीमने को बैठ जाते। ‘माता के आँचल’ पाठ में लेखक ने जब अपने बचपन की इस घटना का वर्णन किया है तो इस घटना से लेखक के पिता का बच्चों के साथ इस तरह खेलना बिल्कुल उचित था।

हमारा विचार इसके पक्ष मे रहेगा। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए ताकि बच्चे अपने माता पिता के साथ सहज रूप से रहे और उनके साथ अपनी हर तरह की परेशानी को बता सकें। माता और पिता तथा संतान के बीच सरल-सहज आत्मीय संबंध होंगे तो बच्चा अपने मन की कोई भी बात माता को आसनी बता पाएगा और उसका मानसिक और शारीरिक विकास भी सकारात्मक रूप से हो पाएगा।

अक्सर माता-पिता अपने बच्चों के साथ बेहद सख्ती से पेश आते हैं, जिस कारण बच्चे माता-पिता के सामने खुल नहीं पाते और वो अपनी बहुत सी बातें अपने माता-पिता से छुपाते हैं। इससे वे अपने अंदर ही कुंठा पालते रहते हैं जो उनके विकास पर नकारात्मक असर डालती है।

यहाँ पर ‘माता के आँचल’ पाठ में लेखक के पिता का अपने बेटे और उसके दोस्तों के साथ खेलने से लेखक के अंदर एक आत्मीय प्रवृत्ति विकसित हुई और वह अपने माता पिता के साथ अधिक आत्मीय संबंध स्थापित कर पाया। इसलिए हमारी दृष्टि में इस तरह का व्यवहार बिल्कुल उचित था।


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ईमानदारी जीवन में उन्नति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है । इस उक्ति के पक्ष और विपक्ष में लिखिए ।

पक्षियों को पालना उचित है या नहीं? अपने विचार लिखिए।

‘चंद्रघंटा’ में कौन सा समास है? समास विग्रह भी करें।

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चंद्रघंटा का समास विग्रह इस प्रकार होगा…

चंद्रघंटा : चंद्र रूपी घंटा
समास भेद : कर्मधारण्य समास

स्पष्टीकरण :

‘चंद्रघंटा’ में ‘कर्मधारण्य समास’ क्योंकि इसमें प्रथम पद एक विशेषण की तरह कार्य कर रहा है और द्वितीय पद एक विशेष्य है। यहाँ पर पहला पद एक उपमान है, और दूसरा पद उसका विशेष्य है। ‘चंद्र’ ये पद एक विशेषण की तरह कार्य कर रहा है जो द्वितीय पद ‘घंटा’ का विशेषण है। ये द्वितीय पद के लिए उपमान की तरह भी कार्य कर रहा है इसलिए ‘चंद्रघंटा’ में कर्मधारण्य समास’ होगा।

कर्मधारण्य समास

कर्मधारय समास की परिभाषा के अनुसार कर्मधारण्य समास में पहला पद एक विशेषण का कार्य करता है तथा दूसरा पद उसका विशेष्य होता है। कर्मधारय समास में पहला पद उपमान तथा दूसरा पद विशेष्य का कार्य करता है।

जैसे
विश्वव्यापी : विश्व में व्याप्त है जो
नीलांबर : नीला है जो अंबर

समास के संक्षिप्तीकरण की क्रिया समासीकरण कहलाती है। समासीकरण के पश्चात जो नया शब्द बनता है, उसे समस्त पद कहते हैं। समस्त पद को पुनः मूल शब्दों में लाने की प्रक्रिया ‘समास विग्रह’ कहलाती है।


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‘सिंहद्वार’ का समास विग्रह कीजिए।

पुरुषोत्तम का समास विग्रह कीजिए।

‘जागा स्वर्ण-सवेरा’ का क्या अर्थ है ?

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‘जागा स्वर्ण सवेरा’ का अर्थ यह है कि चारों तरफ ज्ञानरूपी सुनहरा सवेरा हो गया अर्थात लोगों में जागरूकता आई, उनका ज्ञानोदय हुआ और यह ज्ञानोदय किसी सुनहरी सुबह के जैसा ही है।

ये पंक्तियां शंभूनाथ ’शेष’ द्वारा लिखित ‘वही देश है मेरा’ नामक कविता की हैं। उपरोक्त पंक्ति कविता के पहले पद्यांश की है, जो कि इस प्रकार है…

वही देश है मेरा वेद गाथाओं से गूंजा है,
जिसका अंबर नीला जहाँ राम घनश्याम
कर गए युग-युग अद्भुत लीला,
जहाँ बांसुरी बजे ज्ञान की,
जागा स्वर्ण-सवेरा,
वही देश है मेरा

अर्थात ये मेरा भारत देश वही देश है, जहाँ पर वेद रूप का ज्ञान का प्रवाह होता है, और वेद के इस ज्ञान की ध्वनि से पूरा वातावरण गूँज उठता है। ये वही भारत देश है, जहाँ राम और कृष्ण ने अपनी अद्भुत लीलायें रचाईं।। ये वही भारत देश है, जहाँ पर ज्ञान के स्वर फूटते हैं तो फिर एक नया सुनहरा सवेरा होता है, जो किसी ज्ञान का सवेरा होता है। ये सवेरा ज्ञान की सुनहरी आभा लिए होता है।


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मेरा प्रिय देश भारत (निबंध)

जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे, दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है? मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकतीं, आनंद पथ जहांँ है, वह देश कौन सा है? जिसके अनंत धन से, धरती भरी पड़ी है, संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है? भावार्थ बताएं।

हालदार साहब के अनुसार देशभक्ति आजकल क्या होती जा रही है। ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर बताइए। (i) प्रेम की भावना (ii) लगाव की भावना (iii) मजाक की भावना (iv) त्याग की भावना

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सही विकल्प होगा :

(iii) मजाक की भावना

 

विस्तृत विवरण

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर अगर कहे तो हालदार साहब की नजर में देशभक्ति आजकल मजाक की भावना बनती जा रही है। लोगों में अब देश के प्रति वैसी प्रेम की भावना नहीं रही जैसी स्वतंत्रता आंदोलन के समय होती थी। लोग केवल दिखावे की देशभक्ति करते हैं। जो व्यक्ति सच्ची देशभक्ति करता है, देश के प्रति अपनी भावना को प्रकट करता है, ऐसे लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। उनकी नजरों में देशभक्ति मजाक की भावना बनती जा रही है।

‘नेताजी का चश्मा’ पाठ स्वतंत्र प्रकाश द्वारा लिखी गई एक कहानी है, जिसमें उन्होंने एक कस्बे का वर्णन किया है। इस कस्बे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा कस्बे के चौराहे पर लगी थी। वह प्रतिमा तो पूरी तरह पत्थर की बनी थी लेकिन उस पर जो चश्मा लगा था वह चश्मा पत्थर का न होकर वास्तविक चश्मा लगा था जो कि अलग से फिट कर दिया गया था। यह काम कैप्टन नाम से प्रसिद्ध एक चश्मा बेचने वाले व्यक्ति ने किया था।


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नेताजी की मूर्ति से क्षमा मांगने के पीछे कैप्टन का क्या भाव छिपा होता था ? (नेताजी का चश्मा)

‘नेताजी का चश्मा’ कहानी के अनुसार देश के निर्माण मे बड़े ही नहीं बच्चे भी शामिल हैं। आप देश के नव निर्माण मे किस प्रकार योगदान देंगे?

हालदार साहब ने जब मूर्ति के नीचे मूर्तिकार ‘मास्टर मोतीलाल’ पढ़ा, तब उन्होंने क्या-क्या सोचा?

कैप्टन की मृत्यु का समाचार देते वक्त पान वाला उदास क्यों हो जाता है?

महादेवी वर्मा के जन्म के समय लड़कियों की दशा कैसी थी? आज उसमे क्या परिवर्तन आया हैं?

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महादेवी वर्मा के समय लड़कियों की दशा अच्छी नहीं थी। जब महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था तब उनके समय समाज में लड़कियों के जन्म को बहुत अधिक अच्छा नहीं माना जाता था। यदि लड़की के जन्म से पहले ही लड़की के माता-पिता और उसके घर वालों को पता चल जाता कि जन्म लेने वाली संतान लड़की है, तो उसका जन्म लेने से पहले ही भ्रूण हत्या कर दी जाती थी।

यदि कोई लड़की जन्म ले भी ली होती तो भी या तो उसे जन्म लेते ही मार दिया जाता था, नहीं तो उसका पालन पोषण भेदभाव पर आधारित होकर किया जाता था। लड़की को बोझ के समान समझा जाता था। उसे पराया धन माना जाता था कि एक दिन उसका विवाह हो जाना है और वह अपने ससुराल चली जाएगी। लड़की की पढ़ाई पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। उसके खानपान और पोषण पर भी उतना अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। यदि संतान लड़की है तो उसके मुकाबले संतान लड़का होने पर लड़के पर अधिक ध्यान दिया जाता था और हर कार्य में भेदभाव किया जाता था।

लड़कियों को पौष्टिक भोजन कम मिलता था। लड़कों के मुकाबले उन्हें कम भोजन दिया जाता था। उनसे घर के सारे काम कराये जाते और उन्हें केवल घर चहारदीवारी और घरेलु कार्यो तक ही सीमित कर दिया जाता था। उनकी शिक्षा पर भी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था।

हालांकि महादेवी वर्मा को इन सब स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि उनके पूरे खानदान में 100 वर्ष बाद किसी लड़की का जन्म हुआ था। इस कारण उनके दादा बेहद खुश हुए थे और उन्होंने इसी खुशी में उनका नाम महादेवी रखा था। महादेवी वर्मा का पालन पोषण भी पूरे लाड़-प्यार से हुआ।

आज के समय की बात की जाए तो आज के समय में लड़कियों की स्थिति और उनकी दशा बदली है। आज लड़कियों की शिक्षा पर भरपूर ध्यान दिया जाता है। उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाता। लड़कियों को भी लड़कों के समान ही भरपूर पोषण युक्त खाना मिलता है।

लड़कियां आज जीवन के हर क्षेत्र में अपनी कला और प्रतिभा से अपनी उपस्थिति को दर्ज करा रही हैं, इसलिए आज लड़कियों की स्थिति सुधरी है। हालांकि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में उतना अधिक बदलाव नहीं आया है लेकिन फिर भी स्थिति उतनी खराब नहीं है और धीरे-धीरे सब जगह बदलाव आ रहा है। शहरों में लड़कियों की स्थिति कहीं अधिक बेहतर है।


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किसके आने से लेखिका के जालीघर का वातावरण क्षुब्ध हो गया?

‘गिल्लू’ पाठ में लेखिका की मानवीय संवेदना अत्यंत प्रेरणादायक है । टिप्पणी लिखिए ।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत के 6 मूल अधिकारों में से एक अधिकार है। यह भारत के संविधान में सभी नागरिकों को भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने की बात सुनिश्चित करता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत के संविधान में अनुच्छेद 19(1)A में उल्लेखित है। इस अधिकार के अंतर्गत भारत के सभी नागरिकों को अपने विचार और राय स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का पूर्ण अधिकार है।

अपने विचार और राय स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने से तात्पर्य केवल बोलने से ही नहीं बल्कि अपने लेखन कार्य द्वारा, किसी फिल्म द्वारा, किसी चित्र द्वारा, किसी बैनर द्वारा, किसी नाटक द्वारा अथवा किसी भाषण के द्वारा भारत का कोई भी नागरिक स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त कर सकता है।

इस अधिकार के अंतर्गत किसी भी नागरिक पर उसके विचारों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने के लिए अंकुश नहीं लगाया जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मीडिया संस्थानों विशेषकर समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनल, विज्ञापन जगत, रंगमंच, फिल्म आदि में बहुत महत्व है, क्योंकि इस अधिकार के अंतर्गत वह स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह किसी भी लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।


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लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धांत यानि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत के बारे में बताएं।

‘भूख से मरने वाले व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ और महत्व नही’, ये किसने कहा था?

आदि + अंत की संधि और संधि का नाम लिखिए।

आदि + अंत की संधि और संधि का नाम इस प्रकार होगा :

आदि + अंत : आद्यांत

संधि भेद : यण संधि

नियम

‘यण संधि’ के इस नियम के अनुसार जब ‘इ’ अथवा ‘ई’ उनके साथ किसी दूसरे विजातीय स्वर का मेल होता है तो वह ‘या’ बन जाता है। यहाँ पर आदि के ‘इ’ और अंत के ‘अ’ मिलकर ‘य’ वर्ण बना रहे हैं। इस कारण यहाँ ‘यण संधि’ है। यण संधि’ स्वर संधि के 5 रूपों में से एक भेद है।

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं,

  • दीर्घ संधि
  • गुण संधि
  • वृद्धि संधि
  • अयादि संधि
  • यण संधि

  संधि के तीन भेद होते हैं।

  • स्वर संधि
  • व्यंजन संधि
  • विसर्ग संधि

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‘निः + आकार’ में संधि बताइए।

‘चक्रमस्ति’ का संधि-विच्छेद क्या होगा? ​

‘नवोत्पल’ संधि विच्छेद और संधि का नाम बताएं।

‘जो जिया न आपके लिए’ “पंक्ति” का भाव क्या है? (क) पर को पीड़ा के लिए (ख) परोपकार के लिए (ग) अपने स्वार्थ के लिए (घ) केवल अपने वाह अपने परिवार के लिए.

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सही विकल्प होगा…

(ख) परोपकार के लिए

 

विस्तार से समझें…

‘जो जिया न आपके लिए’ इस पंक्ति का भाव यही होगा कि जो परोपकार का कार्य नहीं करता। जो दूसरों के लिए नहीं जीता, जिसने परोपकार का कोई कार्य नहीं किया हो। जो कभी दूसरों के काम नहीं आया हो, जिसने दूसरे के दुख को अपना दुख नहीं समझा हो, जिसने पर पीड़ा में अपनी पीड़ा नहीं महसूस की हो, ऐसा व्यक्ति कभी दूसरों के लिए नहीं जीता। वो केवल अपने स्वार्थ के लिए जीता है। उसे केवल अपने स्वार्थ की चिंता होती है, उसे दूसरों के दुख दर्द से कोई मतलब नहीं होता। ऐसा व्यक्ति परोपकार का कोई कार्य भी नहीं करते। वो केवल वही कार्य करते हैं, जहाँ पर उनके स्वार्थ की सिद्धि होती हो। यानि जहाँ पर उनका मतलब पूरा होता हो, उनको फायदा होता हो।


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जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे, दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है? मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकतीं, आनंद पथ जहांँ है, वह देश कौन सा है? जिसके अनंत धन से, धरती भरी पड़ी है, संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है? भावार्थ बताएं।

हम भी सिंह¸ सिंह तुम भी हो¸ पाला भी है आन पड़ा। आओ हम तुम आज देख लें हम दोनों में कौन बड़ा।। निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे, दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है? मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकतीं, आनंद पथ जहांँ है, वह देश कौन सा है? जिसके अनंत धन से, धरती भरी पड़ी है, संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है? भावार्थ बताएं।

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जिसमें सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे,
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन सा है?
मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकतीं,
आनंद पथ जहांँ है, वह देश कौन सा है?
जिसके अनंत धन से, धरती भरी पड़ी है,
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है ?​

भावार्थ : कवि रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित कविता ‘वह देश कौन सा है?’ की इन पंक्तियों का आशय यह है कि कवि कहते हैं कि वह देश कौन सा है?, जहाँ दिन रात सुगंधित फूल दिन रात विहँसते रहते हैं, यानी खिले रहते हैं और अपनी सुगंध से पूरे देश के वातावरण को सुगंध में बना देते हैं। वह देश कौन सा है?, जहाँ के मैदानों में पर्वतों में और वनों में हरियाली उसी प्रकार लहराती है, जिस तरह आग तेजी से अपने चारों तरफ फैलकर पूर पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लेती है। वह देश कौन सा है? जहां अनंत काल से अनेक महामानव जन्म लेते रहे हैं, ये भारत देश सभी देशों की शिरोमणि है।


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चरन चोंच लोचन रंग्यो, चलै मराली चाल। क्षीर-नीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल।। ​भावार्थ बताएं।

सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥ चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥ कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥ सूरदास के इस पद का भावार्थ लिखिए।

जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाए, वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?

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जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बता दिया जाए वहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ होता है। व्यतिरेक अलंकार किसी काव्य में वहाँ पर प्रयुक्त होता है, जहाँ पर उपमेय को उपमान से अधिक श्रेष्ठ बताया जाता है।

‘व्यतिरेक अलंकार’ की परिभाषा के अनुसार जहाँ कोई कारण स्पष्ट करते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से अधिक बताई जाए, वहाँ पर ‘व्यतिरेक अलंकार’ प्रकट होता है।

‘व्यतिरेक शब्द’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आधिक्य’ यानी अधिकता। जहाँ पर उपमेय में उपमान से गुणों की अधिकता दर्शायी गई हो, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।

उदाहरण के लिए…
का सरबरि तेहि देऊँ मयकूँ।
चाँद कलंकी वह निष्कलंकू।।

यहाँ पर नायिका के मुख की सुंदरता चाँद से भी अधिक आंकी गई है। सामान्यतः किसी स्त्री के मुख के सौंदर्य की उपमा चाँद से की जाती है और उसके सुंदर मुखड़े को चाँद के समान सुंदर बताया जाता है, लेकिन यहाँ पर स्त्री के मुख को चाँद से भी अधिक सुंदर बताया गया है। पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि नायिका के सुंदर मुख की तुलना चाँद से भी नहीं की जा सकती क्योंकि चाँद में तो कलंक है जबकि नायिका का मुख तो निष्कलंक है। यहाँ पर नायिका का मुख उपमेय है जबकि चाँद उपमान है और नायिका के मुख यानि उपमेय को चाँद यानि उपमान से श्रेष्ठ बताया गया है। इसलिए इस पंक्ति में व्यातिरेक अलंकार है।

दूसरा उदाहरण समझते हैं…

जिनके जस प्रताप के आगे,
ससि मलिन रवि सीतल लागे।

यहाँ पर यश और प्रताप उपमेय हैं, जबकि उपमान चंद्रमा और सूर्य है। यश एवं प्रताप को चंद्रमा एवं सूरज से श्रेष्ठ कहा गया है। इस तरह इस पंक्ति में भी ‘व्यातिरेक अलंकार’ है।


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“बाल कल्पना के से पाले” में कौन सा अलंकार है?

बड़े-बड़े मोती से आँसू में कौन सा अलंकार है?

ट्यूशन का व्यापार आज शिक्षा का अनिवार्य अंग बनता जा रहा है। उसके कारणों की चर्चा करते हुए विद्यालय की शिक्षा का महत्व स्पष्ट कीजिए।

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ट्यूशन का व्यापार आज शिक्षा का अनिवार्य अंग बनता जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण चिंतनीय विषय है। आज की शिक्षा परीक्षा केंद्रित हो जाने के कारण ही ट्यूशन के व्यापार को फलने-फूलने का भरपूर मौका मिल गया है।

शिक्षा प्राप्त करने की प्रक्रिया में विद्यार्थी का सबसे बड़ा और मुख्य उद्देश्य परीक्षा को किसी भी तरह पास करना होता है। ट्यूशन का व्यापार भी इसी बात पर केंद्रित होता है। जो शिक्षक ट्यूशन देते हैं अथवा जो कोचिंग इंस्टिट्यूट ट्यूशन देने की सर्विस उपलब्ध कराते हैं, वे विद्यार्थी को परीक्षा में अधिक से अधिक अंक दिलवाने का दावा करते हैं।

क्योंकि विद्यार्थी को परीक्षा में सर्वाधिक अंक चाहिए होते हैं ताकि वह परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सके, इसी कारण वो ट्यूशन के मायाजाल में उलझ जाता है। ट्यूशन शिक्षा का व्यापार बनने का मुख्य कार्य हमारी शिक्षा प्रणाली और विद्यालयों की अकर्मण्यता भी है। विद्यालयों में विद्यार्थियों की शिक्षा पर बराबर ध्यान नहीं दिया जाता। विद्यार्थियों को जो शिक्षा विद्यालय में मिलनी चाहिए उन्हें विद्यालय में नहीं मिल पाती जबकि उन पर परीक्षा में सफल होने का दबाव होता है। ऐसी स्थिति में वे अपनी पढ़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ट्यूशन की ओर आकर्षित होते हैं। ये उनकी विवशता होती है। बिना ट्यूशन के उनकी पढ़ाई ठीक तरह से नहीं हो पाती क्योंकि उन्हें विद्यालय में अपेक्षित पढ़ाई नहीं मिल पाती।

आज के समय में ट्यूशन एक व्यापार बन गया है, इसके लिए आवश्यक है कि इस व्यापार पर अंकुश लगाया जाए। ट्यूशन के कारण न केवल गरीब माता-पिता पर आर्थिक दबाव पड़ता है बल्कि विद्यार्थी पर भी मानसिक बोझ पड़ता है। विद्यालय की शिक्षा सबसे उत्तम शिक्षा है यदि विद्यालय सही तरह से शिक्षा देने की व्यवस्था करें तो विद्यार्थी को ट्यूशन लेने की आवश्यकता ही नहीं पढ़े।

इसलिए आवश्यक है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार कर विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था में सुधार किया जाए और विद्यालयों को इस तरह विकसित किया जाए कि इसमें पढ़ने वाले छात्र अपनी शिक्षा की सारी जरूरतों को पूरा कर सकें और उन्हें ट्यूशन अथवा कोचिंग इंस्टिट्यूट न जाना पड़े।


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साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

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पाठ के बारे में…

इस पाठ में कबीर की साखी के माध्यम से अनेक नीति वचन कहे गए हैं। साखी शब्द का अर्थ होता है, साक्षी। साखी शब्द का तद्भव रूप है, जो किसी बात का साक्ष्य यानि प्रमाण है। साक्षी शब्द का प्रत्यक्ष सार्थक अर्थ होता है, प्रत्यक्ष ज्ञान। वह प्रत्यक्ष ज्ञान जो गुरु अपने शिष्य को प्रदान करता है। साखी एक दोहा छंद है और कबीर के अधिकांश दोहे साखी के नाम से ही प्रसिद्ध है। साखी एक प्रकार का दोहा छंद है। यह 13 और 11 के विश्राम वाला कुल 24 मात्राओं छंद होता है।


रचनाकार के बारे में…

कबीर भक्तिकालीन युग निर्गुण विचारधारा के प्रसिद्ध संत कवि रहे हैं, जो चौदहवीं शताब्दी में जन्मे थे। उन्होंने ईश्वर के निराकार रूप की आराधना पर जोर दिया है, और समाज में फैली कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म 1398 ईस्वी में काशी नगर में हुआ था। उनके गुरु का नाम रामानंद था। कबीर एक अनाथ बालक थे, जिन्हें नीरू-नीमा के जुलाहा दंपति ने पाला था।

जब कबीर का जन्म हुआ तो उस समय का समाज अनेक तरह की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों से घिरा हुआ था और इस तरह की कुरीतियाँ भी अपने चरम पर थीं। कबीर स्वयं एक क्रांति कवि रहे। उन्होंने अपने दोहों कविता आदि के माध्यम से तत्कालीन समाज की कुरीतियों पर गहरी चोट की है और सामाजिक चेतना का संदेश दिया है। उन्होंने धर्म के बाहरी आडंबरों पर तीखा प्रहार किया तथा ईश्वर के निर्गुण रूप को समझने पर जोर दिया है।

कबीर की भाषा सधुक्कड़ी भाषा थी, जो मुख्यता पूर्वी जनपद की भाषा रही है। उनके भाषा में अनेक तरह के भाषाओं के शब्दों का मिश्रण भी मिलता है। इसी कारण उनके पदों में उनकी भाषा को सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता है। कबीर का निधन 120 की आयु में मगहर में 1518 ईस्वी में हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

उत्तर : मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता ऐसे प्राप्त होती है, क्योंकि जब हम मीठी वाणी बोलते हैं, तो सुनने वाले के ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मीठी वाणी का असर हमेशा सुखद एवं सकारात्मक होता है। सुनने वाला प्रसन्न हो जाता है और वह उसी प्रसन्नता के भाव से अपना उत्तर भी देता है।

इससे हम पर भी उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और दोनों का मन प्रसन्न होता है। मीठी वाणी बोलने से हमारे अंदर के क्रोध और घृणा तथा सारी नकारात्मकता मिट जाती है। मीठी वाणी बोलने से हमें बदले में प्रेम भरा उत्तर ही प्राप्त होता है, जिससे ना केवल सुनने वाले का भी बल्कि हमारा हृदय भी प्रसन्न रहता है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से बोलने वाले और सुनने वाले दोनों के तन और मन प्रसन्न और आनंदित रहते हैं।


 

प्रश्न 2 : दीपक दिखाई देने पर अंधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : दीपक दिखाई देने पर अंधियारा उस प्रकार मिट जाता है, क्योंकि कवि ने दीपक और अज्ञान दोनों की तुलना की है। जिस प्रकार दीपक प्रज्वलित होने पर चारों तरफ का अंधकार मिट जाता है। उसी तरह मनुष्य के अंदर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होने पर उसके अंदर अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है।

अज्ञानता से तात्पर्य है हमारे अंदर के अंह से है, जब तक हमारे अंदर अहं है, अहंकार है, तब तक हम ईश्वर को नहीं समझ सकते और ना ही ईश्वर को पा सकते हैं। जब हमारे अंदर आत्मज्ञान का प्रकाश होता है और हमारे अंदर का अहं रूपी अंधकार मिट जाता है, तब हमारे अंदर के सारे विकार, भ्रम और संशय रूपी अवगुण नष्ट हो जाते हैं और हमारे अंदर ज्ञान का प्रकाश जल उठता है। तब हम ईश्वर की प्राप्ति की राह पर चल पड़ते हैं।


 

प्रश्न 3 : ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

उत्तर : ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि ईश्वर देखने की नहीं समझने की चीज होती है। ईश्वर चारों तरफ कण-कण में व्याप्त है लेकिन हमारे अंदर अहंकार, क्रोध, अज्ञानता, घृणा, ईर्ष्या जैसे विकार समाए हुए हैं। इन विकारों के कारण हमारा मन दूषित रहता है और इन अवगुणों के कारण ना ही हम ईश्वर को देख सकते हैं ना ही उसे समझ सकते हैं।

ईश्वर को समझने के लिए हमें अपने अंदर के अहं को मिटाना पड़ेगा, अपने मन के अंधकार को खत्म करना पड़ेगा, तभी हमारे अंदर आत्मज्ञान होगा, तभी हमारा मन, हृदय निर्मल होगा और हम ईश्वर को देखना समझने की कोशिश करेंगे। हम अपने अंदर के अवगुणों दूर करने की कोशिश नहीं करते और इन्हीं अवगुणों के साथ ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर जैसे धार्मिक स्थलों में ढूंढते हैं, जबकि हम नहीं जानते कि ईश्वर हमारे अंदर ही है। जब तक हमारे अंदर का अज्ञानता का अंधकार नहीं मिटेगा, ईश्वर हमें किसी भी धार्मिक स्थल में नहीं मिलेगा।


 

प्रश्न 4 : संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कबीर के अनुसार संसार में दुखी वे लोग हैं, जो सांसारिक भोग-विलास में मगन हैं। जो सांसारिक सुख-सुविधाओं का भरपूर भोग कर रहे हैं। जिन्हें भोग-विलास करने से ही फुर्सत नहीं है। वह उस तथाकथित सुख के भ्रम जी रहे सुखी लोग है। कबीर के अनुसार दुखी लोग वे लोग हैं जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, जिनके सामने सांसारिक सुख-सुविधा और भोग-विलास कुछ नहीं है और उन्होंने इन सब को त्याग कर ईश्वर को पाने का मार्ग समझ लिया है।

कबीर के अनुसार ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है, क्योंकि जो लोग सांसारिक सुखों में लिप्त हैं, जो जीवन के भोगों को भोगने में डूबे हुए हैं, वह वास्तव में सोये हुए हैं। इसके विपरीत ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है, और वे लोग जो सांसारिक सुखों को तुच्छ समझते हैं। जिनके सामने भोग-विलास कुछ नहीं है, जो ईश्वर को पाने के मार्ग पर चल पड़े हैं, वह जगे हुए हैं, क्योंकि उनके अंदर आत्मज्ञान हो गया है। कबीर इस सांसारिक दुर्दशा को लेकर चिंतित भी हैं।


 

प्रश्न 5 : अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर : अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कवि ने कहा है कि मनुष्य को निरंतर अपनी आत्मशुद्धि करते रहने चाहिए। उसे अपने अंदर के दुर्गुणों का पता लगते रहना चाहिए। इसका सीधा और सरल उपाय यह है कि मनुष्य अपने पास अपने निंदकों को रखे, क्योंकि निंदक ही उसकी बुराई को उसके सामने बता सकते हैं। चाटुकार तो समय हमेशा उसकी तारीफ ही करेंगे और इससे उसे अपने अंदर के दुर्गुणों का पता नहीं चलेगा।

निंदक लोग व्यक्ति की त्रुटियों को व्यक्ति के सामने बोल सकते हैं, इसलिए व्यक्ति को अपने अंदर के दुर्गुणों का पता चलेगा और वह अपने दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास कर सकता है। कबीर के अनुसार निंदक ही मनुष्य के सबसे अच्छे हितेषी होते हैं, क्योंकि वह उसकी दुर्गुणों को बताते जिससे मनुष्य अपने दुर्गुणों को दूर कर सकता है, तभी उसका स्वभाव निर्मल बनेगा।


 

प्रश्न 6 : ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर : इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने प्रेम का महत्व समझाया है। कबीर के अनुसार लोग ईश्वर को पाने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं। वह तरह-तरह के उपाय आदि करते हैं और न जाने क्या-क्या यतन-जतन करते रहते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए बहुत बड़े-बड़े कार्य करने की जरूरत नहीं है, बल्कि एक छोटा सा अक्षर प्रेम ही ईश्वर को पा लेने के लिए पर्याप्त है।

जिसके अंदर प्रेम है, जिसने प्रेम को समझ लिया वह ज्ञानी हो गया। जो ज्ञानी हो गया, उसे समझो ईश्वर मिल गए। बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं बन जाता। सही मायनों में विद्वान वही व्यक्ति बनता है, जो प्रेम के सच्चे, शुद्ध, निर्मल, प्रेम को समझ लेता है। इसके अंदर प्रेम का भाव जग गया, वह ईश्वर को बेहद सरलता से पा सकता है, वही सच्चा ज्ञानी बन सकता है।



(ख)

प्रश्न 1 : निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये।          

बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र लागै कोइ।
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया कोइ।

उत्तर : दी गईं पंक्तियों के भाव इस प्रकार हैं…

1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र लागै कोइ।

भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम को ही अपना सर्वस्व मानने लगता है, जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रूपी विरह का सर्प वास करने लगता है, ऐसे व्यक्ति पर अन्य कोई भी मंत्र असर नहीं करता। उस पर किसी अन्य बात का असर नहीं होता। उसे केवल ईश्वर के प्रेम की धुन सुनाई देती है। वह व्यक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम में इतना ऊँचा उठ जाता है कि वह सामान्य जीव नहीं रह जाता।

2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।

भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि मनुष्य अपनी अज्ञानता के कारण ईश्वर को इधर-उधर ढूंढता रहता है। वह ईश्वर को मंदिर, मस्जिद या अन्य धार्मिक स्थलों में ढूंढता रहता है, जबकि उसे पता नहीं होता कि ईश्वर तो उसके अंदर ही निवास कर रहा है। बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह कस्तूरी हिरण की नाभि में कस्तूरी छुपी होती है। लेकिन हिरण कस्तूरी की सुगंध के कारण उसे अन्य जगह ढूंढता रहता है। उसे यह नहीं पता होता कि यह कस्तूरी की सुगंध उसकी नाभि से ही आ रही है।

3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि जब तक मनुष्य के अंदर मैं यानि अहं है, अज्ञान रूपी अंधकार है, तब तक वो ईश्वर को नहीं पा सकता। जब मनुष्य के अंदर से मैं यानी उसके अहं का भाव मिट जाएगा तो वो ईश्वर को समझ लेगा और ईश्वर को पा लेगा। कबीर कहना चाहते हैं कि अहंकार और ईश्वर दोनों साथ साथ नहीं रह सकते।

4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया कोइ।

भाव : इस पंक्ति का भाव यह है कि कबीर कहना चाहते हैं कि बड़े-बड़े ग्रंथ, किताब में पढ़ लेने से कोई पंडित ज्ञानी नहीं हो जाता। विद्वान बनने के लिए प्रेम के मात्र ढाई अक्षर पढ़ना ही काफी है। जिसने प्रेम के ढाई अक्षर को पढ़ लिया, वही सबसे बड़ा ज्ञानी है। जब वह ज्ञानी बन जाएगा तो ईश्वर को पाने से कोई नहीं रोक सकता। ईश्वर को पाने के लिए अपने हृदय में प्रेम को बसाना होगा, प्रेम को समझना होगा। प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ने का तात्पर्य यही है कि विद्वान बनने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ने से ही ज्ञान नहीं आता बल्कि अपने मन में प्रेम को धारण करने से, सबके प्रति प्रेमभाव रखने से ज्ञान आता है।



 

प्रश्न 2 : पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

उत्तर : पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास। निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप इस प्रकार होंगे : जीवा : जीना औरन : औरों को माँहि : के अंदर देख्या : देखा भुवंगम : साँप नेड़ा : पास आँगणि : आँगन साबण : साबुन मुवा : मुआ, नालायक पीव : प्रेम जालौं : जलना तास : उसका



योग्यता विस्तार

प्रश्न 1 : साधु में निंदा सहन करने से विनय शीलता आती है’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में उपरोक्त विषयों पर चर्चा आयोजित करें।

प्रश्न 2 : कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर : कस्तूरी एक पदार्थ होता है जो एक पशु हिरण की नाभि में पाया जाता है। ये अत्यन्त सुगंधित पदार्थ होता है।



परियोजना कार्य

प्रश्न 1 : मीठी वाणी/बोली संबंधी, ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

उत्तर : ये अलग-अलग स्रोतों से मीठी वाणी/बोली संबंधी, ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन करें और उन्हे चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर चिपकाए।

प्रश्न 2 : कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।

उत्तर : विद्यार्थी कबीर के दोहों का संकलन करे और उन्हे अपनी कक्षा मे अत्याक्षरी खेलते समय प्रयोग करें। इससे न केवल उन्हे कबीर के दोहे याद होगे बल्कि उन दोहों के प्रति नैतिक शिक्षा रूपी संदेश को भी समझ सकेंगे।


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