NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2)
Manushyata : Maithilisharan Gupta (Class-10 Chapter-3 Hindi Sparsh 2)
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त
पाठ के बारे में…
इस पाठ में मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ कविता को प्रस्तुत किया गया है। ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। कवि मनुष्य को मनुष्यता का भाव अपनाने की प्रेरणा देते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य ऐसा जीवन जिए, ऐसे अच्छे कार्य करके जाए कि लोग मरने के बाद भी उसे याद रखें। अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं वही महान कहलाते हैं। उन्हें ही लोग याद रखते हैं।
कवि का मानना है कि अपने लिए जीने-मरने वाले मनुष्य तो हैं, लेकिन उनमें मनुष्यता के पूरे लक्षण नहीं है। सही अर्थों में मनुष्यता के पूरे लक्षण उन लोगों में होते हैं, जो केवल अपने हित के लिए ही नहीं जीते बल्कि जो दूसरों के हित के लिए भी जीते हैं। जिनका चिंतन स्वयं हित चिंतन से अधिक परहित चिंतन होता है। ऐसे लोगों की मृत्यु ही सुमृत्यु हो जाती है। मनुष्य की यही विशेषता ही उसे संसार के प्राणियों से अलग करती है।
रचनाकार के बारे में…
‘मैथिलीशरण गुप्त’ हिंदी के बेहद विख्यात साहित्यकार रहे हैं। उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से भी जाना जाता है। उनका जन्म झांसी के निकट चिरगांव नामक स्थान पर सन 1886 ईस्वी में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा दीक्षा उनके घर पर ही हुई थी। उन्हें हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं का पूर्ण ज्ञान था। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी कवियों वाली रही है और उनके पिता सेठ रामचरण दास भी प्रसिद्ध कवि थे तथा उनके छोटे भाई सियाशरण गुप्त भी प्रसिद्ध कवि रहे।
मैथिलीशरण गुप्त जी को राम भक्त कवि के तौर पर जाना जाता है और भगवान श्रीराम की कीर्ति का बखान उन्होंने अपनी कई रचनाओं में किया है। उनकी रचनाओं की भाषा मुख्य रूप से खड़ी बोली रही है। इस पर संस्कृत का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
मैथिली शरण जी की प्रसिद्ध कृतियों में साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध आदि के नाम प्रमुख हैं। मैथिलीशरण गुप्त का निधन सन 1964 में हुआ था
हल प्रश्नोत्तर
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1 : कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर : कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है, जिस मृत्यु के बाद भी लोग उस व्यक्ति को याद रखें। कवि के अनुसार दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं, जो कुछ ऐसा अच्छा कार्य कर जाते हैं कि लोग उसकी मृत्यु के बाद भी उसे हमेशा याद करते हैं।
अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों के लिए जीते हैं, जो इस अपने स्वार्थ को त्याग करके परमार्थ के लिए अपना जीवन अर्पण कर देते हैं, ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भी लोग उनको हमेशा याद रखते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु ही सुमृत्यु है। इसलिए जीवन में सदैव अच्छे कार्य करो, जिससे मरने के बाद भी लोग याद रखें।
प्रश्न 2 : उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर : उदार व्यक्ति की पहचान ऐसे होती है कि वह व्यक्ति हर किसी के प्रति आत्मीयता का भाव रखता है, वह हर किसी से प्रेम करता है, जिसका पूरा जीवन दूसरों की सहायता करने और परोपकार के कार्य करने में व्यतीत हो जाता है।
जो व्यक्ति हर किसी से प्रेम, स्नेह भावना रखता हो, जो स्वभाव से विनम्र हो, जिसके अंदर मनुष्यता हो, जो स्वार्थ की जगह परमार्थ में यकीन रखता हो, जो दूसरों के हित के लिए अपना जीवन बिता देता हो, जो किसी से भेदभाव नहीं करता हो, सबके साथ आत्मीयता से पेश आता हो वही उदार व्यक्ति होता है।
प्रश्न 3 : कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर : कवि ने दधीचि, कर्ण आदि जैसे महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह संदेश दिया है कि मनुष्यता को अपनाने के लिए मनुष्य को उदार तथा परोपकारी होना आवश्यक होता है। जो मनुष्य परोपकार के लिए सदैव तत्पर रहता है, जो दूसरों के हित के लिए कुछ भी करने से संकोच नहीं करता, जो अपने स्वार्थ को त्याग कर परमार्थ को अपनाता है, वह व्यक्ति ही मनुष्यता का सही अधिकारी होता है।
जिस प्रकार दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपने अस्थियों का दान कर दिया, कर्ण ने परोपकार के लिए अपने खाल तक दान कर दी। इनके माध्यम से कवि ने यही संदेश दिया कि यह शरीर नश्वर है अतः इसका मोह त्यागकर मानवता के कल्याण के लिए मनुष्य को कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
यदि कभी मानवता के कल्याण के लिए शरीर का बलिदान करने की आवश्यकता पड़े तो संकोच नही करना चाहिए। कवि ने दधीचि और कर्ण जैसे महान व्यक्तियों के माध्यम से मनुष्यता के लिए यही संदेश देने का प्रयत्न किया है।
प्रश्न 4 : कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर : कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए :
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने मनुष्य को गर्व रहित यानी अभिमान रहित जीवन व्यतीत करने की सीख दी है। कवि के अनुसार मनुष्य के पास कितनी भी धन-संपत्ति क्यों ना आ जाए, उसे अपने आप पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। धन-संपत्ति केवल आपने ही अर्जित नहीं की। आप जैसे इस संसार में हजारों-लाखों हैं, जिनके पास धन संपत्ति है।
इसलिए हमें ऐसी किसी वस्तु के पास पर गर्व करने की क्या आवश्यकता जो हमारे जैसे ही अन्य लोगों के पास भी है। जिस धन-संपत्ति पर हमें गर्व अभिमान हो जाता है। वह ईश्वर द्वारा अन्य लोगों को भी दी गई है। ईश्वर की कृपा दृष्टि आप पर ही नहीं उन पर भी पड़ती है, इसलिए हमें कभी भी धन-संपत्ति पर नहीं करना चाहिए और अभिमान रहित जीवन जीना चाहिए।
प्रश्न 5 : ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं।
उत्तर : ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ इन पंक्तियों के माध्यम से हम यह जान पाते हैं कि इस संसार में सभी मनुष्य आपस में भाई है, क्योंकि सभी एक ही परमपिता ईश्वर की संतान है। कवि ने मनुष्य को भाईचारे की भावना से रहें। संसार के सभी मनुष्यों को प्रेम एवं भाईचारे की भावना से रहने के लिए प्रेरित किया है।
इस संसार में कोई पराया नहीं है, सभी एक दूसरे के भाई हैं। मनुष्य का स्वभाव ही बंधुत्व वाला है, इसलिए मनुष्य मात्र बंधु है। कवि ने यह कहा है सभी मनुष्य एक दूसरे के काम आए एवं प्रेम सद्भाव और भाईचारे से रहे यही कवि का संदेश है।
प्रश्न 6 : कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर : कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए भी है, क्योंकि कवि के अनुसार सभी मनुष्य एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान है और मिल-जुलकर करने से कोई भी कठिन कार्य बेहद सरलता से संपन्न हो जाता है।
यदि सभी मनुष्य एक होकर चलेंगे, सद्भाव से रहेंगे तथा मिलजुल कर एक दूसरे की सहायता करते हुए अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर आगे बढ़ेंगे तो ना केवल अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लेंगे, बल्कि वह मनुष्यता का सर्वश्रेष्ठ गुण भी प्रदर्शित करेंगे, क्योंकि एक-दूसरे से मिलजुल कर रहना ही सच्ची मनुष्यता है, इसी में प्रत्येक मनुष्य की उन्नति निहित है।
प्रश्न 7 : व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर : कविता के आधार पर अगर हम कहे तो कवि मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करने के लिए कह रहे हैं, जो परोपकार से परिपूर्ण जीवन हो यानी मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए, जिसमें वो हमेशा दूसरों के काम आए। उसे दूसरों की मदद करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
वह सबसे मिल-जुल कर रहे प्रेम एवं भाईचारे से रहे तथा सबके साथ मिलजुल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने वाले मार्ग पर चले। वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर सभी के हित का चिंतन करें। उसे अपनी धन संपत्ति आदि पर कभी अहंकार ना हो। संकट की घड़ी में वह सदैव दूसरों के काम आए। इस तरह व्यक्ति को मनुष्यता से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए।
प्रश्न 8 : ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर : ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि व्यक्ति को मनुष्यता से भरा हुआ जीवन जीना चाहिए यानी उसे अपना जीवन पूरा जीवन परोपकार के कार्य करते हुए बिताना चाहिए। मनुष्य को मनुष्यता वाले वे सभी गुण अपनाना चाहिए जो उसे मनुष्यता की कसौटी पर खरा बनाएं यानी उसके अंदर प्रेम, दया, करुणा, सद्भाव, संवेदना, उदारता के सभी गुण होना चाहिए।
मनुष्य को निस्वार्थ भाव से अपना जीवन जीना चाहिए और उसे अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ के विषय में सोचना चाहिए। वो सदैव दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहे। मनुष्य और मनुष्य के बीच कोई अंतर ना समझे। उसका ह्रदय उदार हो।
उसे अपनी धन-संपत्ति या अन्य किसी उपलब्धि पर घमंड ना हो, ऐसा मनुष्य बनना चाहिए मृत्यु तो हर मनुष्य की निश्चित है, लेकिन उसे अपने जीवन में ऐसे अच्छे कार्य करना चाहिए कि उसके मरने के बाद भी लोग उसे याद रखें तभी उसकी मृत्यु सुमृत्यु में बदल जाएगी।
कवि ने दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, उशीनर, क्षितिश जैसे अनेक महान व्यक्तियों के उदाहरण देकर दूसरों के हित के लिए अपना बलिदान करने की प्रेरणा दी है, और मनुष्यता का यही संदेश दिया है।
(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा, विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में। अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए। घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी, अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर :
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही; वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा, विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
भाव : मैथिलीशरण गुप्त की ‘मनुष्यता’ नामक कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने मनुष्य को एक दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना रखने के लिए कहा है।
कवि के अनुसार सहानुभूति, दया एवं करुणा से बढ़कर कोई भी धन नहीं होता। कवि मनुष्य के अंदर दूसरों के प्रति प्रेम है, सहानुभूति है, करुणा है, दया है, तो वह इस पूरे संसार को अपने वश में कर सकता है। जो व्यक्ति उदार होता है, विनम्र होता है, दया, प्रेम एवं करुणा से भरा होता है, वह इस संसार में सबके सम्मान का पात्र बनता है। इस संसार में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने इन सभी गुणों को अपनाया और महान बने, जिन्हें आज भी संसार याद करता है।
महात्मा बुद्ध के विचारों का आरंभ में बेहद विरोध हुआ था, लेकिन महात्मा बुद्ध ने अपनी प्रेम दया एवं करुणा से सबके हृदय को बदल दिया और सब उनके आगे झुक गए। उसी प्रकार अन्य महापुरुषों ने भी अपने अपने सामाजिक कार्यों से इस संसार में सबके हृदय को जीता और नए-नए आदर्श स्थापित किए।
कवि कहते हैं कि मनुष्य मनुष्यता से भरा हुआ रहेगा, वह विनम्र रहेगा, सबके प्रति उधार रहेगा तो सारा संसार उसके सामने झुकेगा। सदैव दूसरों का हित सोचने वाले परोपकारी मनुष्य को सब सम्मान करते हैं।
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
भाव : मैथिली शरण गुप्त द्वारा रची गई ‘मनुष्यता’ नामक कविता की इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि कहते हैं कि मनुष्य को भूल कर भी अपनी धन-संपत्ति पर अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो धन-संपत्ति उसके पास है, वही धन-संपत्ति उसके जैसे लाखों अन्य लोगों के पास भी है।
ईश्वर सभी पर अपनी कृपा बरसाता है। इसलिए मनुष्य को ऐसी किसी भी वस्तु पर अहंकार नहीं करना चाहिए। जो केवल उसके पास ही नहीं अन्य लोगों के पास भी है। इस संसार का स्वामी ईश्वर सबके लिए दयालु है। वह सब को एक साथ समान व्यवहार करता है। वह केवल आप पर ही कृपा नहीं करता। वह सब पर कृपा करता है।
कवि के अनुसार सच्चा मनुष्य तो वही है, जो अपनी संपत्ति पर अहंकार ना करते हुए केवल मनुष्यता के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है और दूसरों के हित के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देता है।
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी, अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
भाव : मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘मनुष्यता’ नामक कविता इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि कहते हैं कि अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के जिस मार्ग पर चलो, उस मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हँसते-खेलते हुए सबके साथ मिलजुल कर चलो, ताकि यदि रास्ते में अगर कोई कठिनाई आए तो मिल-जुल कर उस कठिनाई को दूर कर लिया जाए।
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय मिलजुल पर चलते समय हमें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि हमारा भाईचारा सद्भाव कभी भी कम ना होने पाए। हमारे बीच मनमुटाव ना हो। ना ही हमारे रास्ते में किसी तरह के भेदभाव अथवा नाराजगी हो। हम सब एक-दूसरे से मिलजुल कर रहते हुए जीवन मार्ग के पथ पर चलते-चलते रहें, तभी हमारे जीवन की सार्थकता सिद्ध होगी।
यदि हम अपने इस जीवन को दूसरों के काम आते हुए मिलजुल कर एक दूसरे की सहायता करते हुए बितायें तो हमारा यह जीवन सही अर्थों में सफल जीवन माना जाएगा। हम किसी भी पंथ अथवा संप्रदाय से संबंध रखते हों, लेकिन हम किसी में भेदभाव न करते हुए सभी के हित की बात करें और सभी लोग मिलजुलकर साथ रहे साथ चलें तो यह जीवन सहज सुगम है।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1 : अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, करण और पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर : विद्यार्थी अपने अध्यापक से कक्षा में इस विषय में जानकारी प्राप्त करें।विद्यार्थियों की सहायता के लिए तीनों महान पुरुषों के बारे में बताया जा रहा है।
रंतिदेव : रंतिदेव प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध राजा थे, जो अपने दानधर्म और दयालु स्वभाव के लिए बेहद प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में एक बात भयंकर अकाल पड़ा और लोग अकाल के कारण त्राहि-त्राहि कर उठे। पूरे राज्य में अनाज का भंडार समाप्त हो गया था।
राजकोष भी लगभग खाली हो गया था। दयालु स्वभाव के रंतिदेव ने को अपनी प्रजा का दुख देखा ना गया और उन्होंने अपनी प्रजा को राजकोष से अनाज देना आरंभ कर दिया। बाद में वह अनाज भी कम पड़ गया। तब उनके राज परिवार के सदस्यों को भी आधा पेट खा कर गुजारा करना पड़ता था। ऐसी विकट स्थिति में रंतिदेव को भी कई दिनों तक भूखे रहना पड़ा।
एक दिन जब राजा को कई दिनों बाद खाने के लिए कुछ रोटियां मिली तो राजा जैसे ही खाने बैठे तभी एक भूखा व्यक्ति दरवाजे पर आ गया। राजा ने अपनी भूख की परवाह ना करते हुए उस व्यक्ति को खाना खिला दिया। ऐसी मान्यता है कि ईश्वर उनकी परीक्षा ले रहा था और उनकी इस दयालुता से प्रभावित होकर ईश्वर ने उनके राज्य में धन-धान्य का भंडार भर दिया।
दधीचि : दधीचि प्राचीन भारत के एक बेहद ही दानी-ज्ञानी ऋषि थे। वे स्वभाव से अत्यंत परोपकारी थे। वह हर समय में तपस्या में लीन रहते थे। उनके पास अद्भुत शक्तियां की और उनकी तपस्या का महत्व देवता तक मानते थे। एक बार देवराज इंद्र को उनसे कुछ कार्य पड़ा और वह उनसे मिलने आए।
दधीचि ने जब उनसे उनके आने का प्रयोजन पूछा तो देवराज इंद्र ने कहा कि देवता और दानवों में युद्ध छिड़ा हुआ है और दानव हम देवताओं पर भारी साबित हो रहे हैं। यदि फिर भी कुछ उपाय ना किया गया तो सब जगह दानवों का कब्जा हो जाएगा। दधीचि ऋषि ने कहा, देवराज! बताइए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ। तब देवराज इंद्र ने कहा कि एक उपाय है, यदि आपकी हड्डियों से वज्र बनाया जाए और उससे असुरराज वृत्तासुर को पराजित किया जा सकता है। वृत्तासुर के मारे जाने पर देवता युद्ध जीत सकते हैं।
यह मानवता की भलाई के लिए बेहद आवश्यक है। इंद्र की बात सुनकर दधीचि ने बिना किसी संकोच के अपने प्राण त्याग दिए और फिर उनके शरीर की हड्डियों से बनाए गए वज्र से देवताओं ने असुरों को मारकर विजय प्राप्त की। दधीचि का यह त्याग प्राचीन भारत के इतिहास में अमर हो गया।
कर्ण : महाभारत काल के एक बेहद पराक्रमी वीर और स्वभाव से दानी योद्धा था। पांडवों का सबसे बड़ा भाई और कुंती का जेष्ठ पुत्र था, जो सूर्यदेव के आशीर्वाद से जन्मा था। सूर्यदेव ने उसे जन्म से ही कवच-कुंडल प्रदान किया था, जिस कारण उसे पराजित करना किसी के लिए भी संभव नहीं था। वो स्वभाव से बेहद दानी व्यक्ति खा और अपने दरवाजे से किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटने देता था।
महाभारत के युद्ध में वह कौरवों की तरफ से लड़ रहा था और उसे पराजित करना आवश्यक था। सूर्य देव द्वारा दिए गए दिव्य कवच कुंडल के कारण उसे पराजित करना असंभव था। तब श्रीकृष्ण और इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके कवच और कुंडल दान में मांग लाए। कर्ण सब कुछ जानता था, लेकिन वह अपनी दानी स्वभाव से पीछे नहीं हट सकता था। इसलिए उसने दान में मांगे गए कवच-कुंडल दे दिए और अपना वचन निभाया।
प्र्श्न 2 : परोपकार विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर : विद्यार्थी परोपकार विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन करें और उन्हें अपनी कक्षा में पढ़कर सुनाएं। विद्यार्थियों की सुविधा के लिए दो कविताएं और दो दोहे दिए जा रहे हैं…
कविता 1
जीवन में परोपकार करो, तुम सब का उद्धार करो।
जीवन में परोपकार करो, लोगों का बेड़ा-पार करो।
लोगों के सदैव काम आओ, दूसरों को दुख में हाथ बंटाओं
मत करो केवल अपना हित-चिंतन करो सदैव सर्वहित चिंतन
कविता 2
जो दूसरो के हरदम का आया उसी का जीवन सफल है,
जो केवल अपने लिए जीत रहा, उसका जीवन विफल है,
दूसरों के दर्द को समझना, यही मानव स्वभाव सकल है,
दूसरों के हित में जीना उसी में मानव बल है
कबीर का दोहा
स्वारथ सूका लाकड़ा, छांह बिहना सूल।
पीपल परमारथ भजो, सुख सागर को मूल।।
रहीम का दोहा
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1 : ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर : विद्यार्थियों की सहायता के लिए अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध की ‘कर्मवीर’ नीचे दी जा रही है। वे इस कविता को अपनी कक्षा में पढ़कर सुनाएं।
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं,
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं,
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं,
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये
एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
आज करना है जिसे करते उसे हैं, आज ही सोचते कहते हैं
जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जी की हैं,
सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं
अपनी इस जगत में आप ही भूल कर वे
दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं
नहीं काम करने की जगह बातें बनाते हैं
नहीं आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं
नहीं यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं
नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं
उनके लिए वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
प्रश्न 2 : भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही है, प्राणी’ कविता पढिए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर : ‘भवानी प्रसाद मिश्र’ की कविता ‘प्राणी वही प्राणी है’ को पढ़कर तथा ‘मनुष्यता’ कविता को पढ़कर दोनों कविताओं के भाव में यह समानता दिखी कि दोनों कविताएं मनुष्यता पर ही केंद्रित हैं। दोनों कविताओं में मानव के उस मूल स्वभाव को मुख्य रूप से रेखांकित किया गया है, जिसके कारण वह संसार में अन्य सभी प्राणियों से अलग माना जाता है। मानव का सबसे मूल स्वभाव उसके अंदर बसी मानवीयता यानी मनुष्यता होती है। सच्चा मनुष्य वही होता है जो अपने दुखों की परवाह ना कर दूसरों के दुखों को भी अनुभव करें और सबके दुख में हमेशा काम आए। किसी भी तरह के संकट आने पर वह घबराए नहीं तथा सच्चे मन से परोपकार का कार्य करे। दोनों कविताओं में मनुष्यता और परोपकार जैसे गुणों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यही दोनों कविता का मूल भाव है।
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त (कक्षा-10 पाठ-4, हिंदी, स्पर्श 2) (NCERT Solutions)
कक्षा-10 हिंदी स्पर्श 2 पाठ्य पुस्तक के अन्य पाठ के साल्यूशन
साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
पद : मीरा (कक्षा-10 पाठ-2 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
पर्वत प्रदेश में पावस : सुमित्रानंदन पंत (कक्षा-10 पाठ-4 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
तोप : वीरेन डंगवाल (कक्षा-10 पाठ-5 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
Other questions
एक उदार मनुष्य की क्या-क्या उपलब्धियाँ होती हैं? ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर स्पष्ट करे।
पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए “गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर-शर से, हुई पक्ष की हानी।” “हुई पक्ष की हानी। करुणा भरी कहानी।”