बिल्कुल, हमें यही लगता है कि हम यदि बहुत अधिक सुख सुविधाओं में रहेंगे तो हमारी काम करने की तथा कष्ट सहने की शक्ति भी कम हो जाएगी। जिंदगी में आने वाले तरह-तरह के कष्ट, आपत्ति-विपत्ति हमारे अंदर जूझने की शक्ति पर पैदा करते हैं। इन सब विषमताओं का जब हम सामना करते हैं, तो हमारे अंदर एक मारक क्षमता विकसित होती है, जिसके कारण हमारा इच्छा शक्ति मजबूत होती है, हमारे संकल्प बल में बढ़ोत्तरी होती है।
यदि हम जीवन में आने वाले कष्टों का से संघर्ष करते हुए उनका सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं, तो फिर आगे जीवन में हमें जो भी कष्ट आते हैं, उनका सामना आसानी से कर लेते हैं और उन कष्टों पर, उन संकटों पर विजय पा लेते हैं। लेकिन यदि हम बहुत अधिक सुख सुविधा में रहेंगे तो हमारी इच्छा शक्ति कमजोर पड़ जाती है। जब हमें कष्ट सहने को नही मिलेंगे तो उसका सामना करना कैसे सीखेंगे। अधिक सुख-सुविधाओं का जीवन जीते हुए यदि कोई संकट आ जाए तो मनुष्य सहन नहीं कर पाता और उन संकटों के आगे हार मान लेता है।
पिंजरे में बंद पक्षी की हालत भी ऐसी ही हो जाती है। पिंजरे में बंद रहकर वह उड़ना तक भूल जाता है, क्योंकि उसका मूल स्वभाव उड़ना है। जब उसे पिंजरे में बंद कर दिया जाता है तो उसे स्वच्छ एवं मुक्त भाव से उड़ने को नहीं मिलता और धीरे-धीरे वह अपने मूल स्वभाव को भूल जाता है। इसीलिए मनुष्य हो या पशु पक्षी किसी को भी उसके मूल स्वभाव से वंचित नहीं रहना चाहिए। बहुत अधिक सुख-सुविधा वाला जीवन जीना भी सही नहीं है। जीवन में संघर्षों से सामना करने की प्रवृत्ति भी बनी रहनी चाहिए तभी जीवन का आनंद है।