औपचारिक पत्र
सामाजिक जीवन में बढ़ रही हिंसा पर हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक को पत्र
दिनाँक – 20 जून 2024
सेवा में,
श्रीमान संपादक,
हिंदुस्तान टाइम्स,
नई दिल्ली
संपादक महोदय,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार पत्र का एक सुधि पाठक हूँ। जब से मैं देश समाज के प्रति जागरूक हुआ हूँ, तब से हिन्दुस्तान की पत्रकारिता से प्रभावित होता रहा हूँ। मैं सामाजिक जीवन में निरंतर बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार आपके समाचार पत्र के माध्यम से जनता के समक्ष लाना चाहता हूँ।
दरअसल सामाजिक हिंसा के कई रूप हैं, जिनमें से कुछ घरेलू हिंसा, नस्लवादी और होमोफोबिक हमले, आतंकवादी हमले, अपहरण, हत्याएं या हत्याएं, यौन हमले, बर्बरता, स्कूल या काम उत्पीड़न या किसी अन्य प्रकार की हिंसा हैं। दुनिया हिंसा की लपटों से झुलस रही है। कई तरह की लैंगिक हिंसा भी हमारे आस-पास घटित होती है । यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक महिला अपने जन्म से लेकर उम्र के हर पड़ाव में अलग-अलग प्रकार से लैंगिक हिंसा का सामना करती है । जैसे कन्या भ्रूण हत्या, यौन शोषण, एसिड अटैक आदि ।
महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा में किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे- मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना, महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिये विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना आदि । बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा । हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है । इन स्थितियों में संवेदन हीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है। विभिन्न तरह की ये सामाजिक हिंसायें हमारे समाज में बढ़ती ही जा रही है।
आपके समाचार पत्र के माध्यम से सामाजिक हिंसा के बारे में विचार पाठकों तो पहुँचेंगे तो अवश्य वह इसका चिंतन करेंगे। आशा है हम सभी जागरूक नागरिक इस विषय में कुछ सोचेंगे।
धन्यवाद सहित
एक पाठक
वेणु राजगोपाल