कविता से तात्पर्य साहित्य की उस विधा से है, जिसमें लय एवं छंदों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में रचना को प्रस्तुत किया जाता है। कविता में भाव तत्व की प्रधानता होती है और इसमें चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती अर्थात कविता के द्वारा किसी बात को भावात्मक रूप में स्पष्ट करने के साथ-साथ बिंब-विधान भी किया जाता है जो पाठक के मन में स्थायित्व पैदा करता है।
बिंब-विधान एक तरह का शब्द चित्र है जो केवल कविता के माध्यम से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
सरल शब्दों में कविता की परिभाषा कहें तो ‘मन के भावों को शब्दों के माध्यम से गत्यात्मक रूप में प्रस्तुत करने की कला को कविता कहते हैं।’
विभिन्न विद्वानों द्वारा कविता की परिभाषाएं इस प्रकार हैं…
आचार्य रामचंद्र शुक्ल कविता की परिभाषा करते हुए कहते हैं कि “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।”
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि “कविता का लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है, जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, पद-लालित्य हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हों।”
इस तरह अलग विद्वानों ने कविता की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं, कविता के प्रमुख अवयवों में भाव -पक्ष, कला-पक्ष, भाषा-शैली, छंद, अलंकार तथा रस आदि प्रमुख होते हैं।
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