‘प्रवाद-पर्व’ काव्य एक खंडकाव्य है जो नरेश मेहता द्वारा लिखा गया खंडकाव्य है। यह खंडकाव्य रामकथा पर आधारित खंडकाव्य है।
इस खंड काव्य की मूल संवेदना राम कथा के उस प्रसंग के लोक पक्ष को प्रस्तुत करने की है, जिसमें सीता के लंका प्रवास के बाद रामराज्य के समय एक धोबी द्वारा दोषारोपण करने पर राम किस तरह का निर्णय लेते हैं। जहाँ लक्ष्मण राम से कहते हैं कि एक धोबी द्वारा सीता पर इस तरह का दोषारोपण करना एक द्वेषपूर्ण कार्य है, वहीं राम का सोचना अलग है। वह एक पति की दृष्टि से नहीं सोचते बल्कि एक राजा की दृष्टि से सोचते हैं, जिनके राज्य में सबको अपनी-अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। चाहे वह व्यक्ति परिवार के सदस्य पर ही क्यों न दोषारोपण करें। उसकी अभिव्यक्ति का भी सम्मान किया जाना चाहिए।
इस खंडकाव्य के माध्यम से कवि ने उसी लोकपक्ष को समझाने का प्रयत्न किया है। इस खंड काव्य की मूल संवेदना यह है कि सत्ताधीश को निरंकुश ना होकर शासक को अपनी जनता के प्रति मधुर संबंध बनाए रखने तथा उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने जैसे सामाजिक मूल्यों पर आधारित है। राम ने अपनी प्रजा में छोटे से धोबी की बातों को भी गंभीरता से लिया और उसकी अभिव्यक्ति का भी पूर्ण सम्मान किया। इसके लिए भले ही उन्हें अपनी पत्नी का त्याग क्यों ना करना पड़ा।
यहाँ पर उन्होंने अपनी निजी हित को त्यागकर, एक राजा के कर्तव्य का पालन किया। कवि ने कविता के माध्यम राम के अपनी प्रजा के प्रति निष्ठावान पक्ष को उभारा है कि राम अपनी प्रजा के हित से बढ़कर कुछ नही सोचते थे।
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