ये सभी प्रश्न कवि ‘बलबीर सिंह रंग’ द्वारा रचित कविता ‘न छेड़ो मुझे, मैं सताया गया हूँ’ नामक कविता से संबंधित हैं। सभी प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार है..
क) कवि को किस प्रकार सताया गया है?
उत्तर : कवि को इस तरह सताया गया है कि उसे हसाँते हुए रुलाया गया है। कवि के मन पर भावनात्मक चोट पहुँचाई गई है, उसकी खुशियों पर कुठाराघात किया है। उसे पीड़ा पहुँचाई गई है।
ख) ‘सताए हुए को सताना’ क्यों बुरा है?
उत्तर : ‘सताए हुए को सताना’ इसलिए बुरा है क्योंकि इससे उसके मन को पीड़ा पहुँचती है। जो पहले से ही दुखी है, उसको और दुखी करने से निकृष्ट कर्म कोई नही है। सताए हुए यानि पीड़ित व्यक्ति को और अधिक पीड़ा पहुँचाना पीड़ित व्यक्ति दुख के अथाह सागर धकेल देता है। इसलिए सताए हुए को सताना बुरा है।
ग) कवि ने दान और भीख की बात क्यों की है?
उत्तर : कवि ने दान और भीख की बात इसलिए की है क्योंकि कवि ने अपने जीवन में कुछ भी अर्जित नहीं किया। कवि के पास जो कुछ भी था वह उसने सबको दे दिया या लोगों ने उससे छल-कपट से ले लिया। कवि दान का बात इसलिए करता है क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ है नही जो वह दान दे सके। वह भीख की बात इसलिए करता है क्योंकि भीख मांगना उसके लिए असम्मानजनक है।
घ) कवि को किसका नियन्त्रण स्वीकार नहीं है?
उत्तर : कवि को इस दुनिया को लोगों का स्वयं पर नियंत्रण स्वीकार नहीं है। वह अपने जीवन में स्वतंत्र रहना चाहता है। उसे किसी के बंधन में नहीं बंधना है।
ङ) प्रकृति के पटल पर कवि को किस प्रकार अधूरा बनाकर मिटाया गया है?
उत्तर : प्रकृति के पटल पर कवि को इस प्रकार अधूरा बनाकर मिटाया गया है कि जीवन में उसे अपने कार्यों को पूरा नहीं करने दिया है। वो जीवन में जो कुछ करना चाहता था, उन कार्यों को करने की राह में उसकी किस्मत, दुनिया के लोग और अन्य कई तरह की बाधाएं उत्पन्न हुईं। इसी कारण वह अधूरा रह गया और उसका अस्तित्व भी समाप्त हो गया।
च) कवि ने अपने मिलन के बारे में क्या कहा है?
उत्तर : कवि अपने मिलन के बारे में बताता हुआ कहता है कि उस पर हँसों नहीं। वह यहाँ पर आया नही बल्कि बुलाया गया है। वह अपनी मर्जी से यहाँ पर नहीं आया है, उसे किसी ने बुलाया है, इसलिए उसके मिलन पर मत हँसो।
पूरी कविता इस प्रकार है…
न छेड़ो मुझे, मैं सताया गया हूँ।
हंसाते-हंसाते रुलाया गया हूँ।सताए हुए को सताना बुरा है,
तृषित को तृषा का बढ़ाना बुरा है,
विफल याचना की अकर्मण्यता पर-
अभय-दान का मुस्कराना बुरा है।करूँ बात क्या दान या भीख की मैं,
संजोया नहीं हूँ, लुटाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…न स्वीकार मुझको नियंत्रण किसी का,
अस्वीकार कब है निमंत्रण किसी का,
मुखर प्यार के मौन वातावरण में-
अखरता अनोखा समर्पण किसी का।प्रकृति के पटल पर नियति तूलिका से,
अधूरा बना कर, मिटाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…क्षितिज पर धरा व्योम से नित्य मिलती,
सदा चांदनी में चकोरी निकलती,
तिमिर यदि न आह्वान करता प्रभा का-
कभी रात भर दीप की लौ न जलती।करो व्यंग मत व्यर्थ मेरे मिलन पर,
मैं आया नहीं हूँ, बुलाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे…