“बूँद टपकी एक नभ से; किसी ने झुककर झरोखे से; कि जैसे हँस दिया हो।’ नभ से एक बूँद टपकने से कवि के मन में कौन-सी अनुभूति उदित होती है?

बूँद टपकी एक नभ से;
किसी ने झुककर झरोखे से;
कि जैसे हँस दिया हो।’

नभ से एक बूँद टपकने से कवि के मन में यह अनुभूति उदित होती है कि जैसे किसी सुंदरी ने उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया हो।

भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित कविता ‘बूंद टपकी एक नभ’ से इन पंक्तियों से कवि को ऐसी अनुभूति होती है, जैसे आसमान में कोई टपकी और कवि को ऐसा लग रहा है जैसे किसी सुंदरी ने उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया हो।

‘बूंद टपकी एक नभ से’ यह कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने रचित की है, जिसमें उन्होंने आकाश में बूंद के टपकने का सौंदर्यात्मक वर्णन किया है और उसे श्रंगार रूप देकर मानवीय संवेदना को उकेरा है। यहाँ पर उन्होंने बूंद के माध्यम से मानवीय चेष्टाओं को प्रकट कर मानवीकरण अलंकार प्रकट किया है।


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