अनुच्छेद
माता-पिता के साथ बिताए सुखद पलों के अनुभवों का वर्णन
माता-पिता के साथ बिताए गए जीवन के हर पल सुखद होते हैं। बचपन में हमारे माता-पिता हमें हमें हर तरह के जो सुख-साधन उपलब्ध कराते हैं। वैसा आनंद हमें बड़े होने पर नहीं प्राप्त हो पाता क्योंकि हम जीवन के संघर्षों में उलझ जाते हैं।
मेरे माता-पिता के साथ बिताए गए अनेक सुखद पल है। ऐसे ही सुखद पलों में एक प्रसंग याद आता है, जब मैं अपने माता-पिता के साथ माउंट आबू घूमने जा रहा था। मेरे माता-पिता मेरी जिद पर ही मुझे घुमाने के लिए ले जा रहे थे। हम लोग दिल्ली से माउंट आबू जाने के लिए ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। रास्ते में एक स्टेशन पड़ा तो मेरे पिता स्टेशन पर से कुछ खाने का सामान लेने के लिए उतरे। उन्हें खाने का सामान लेने में समय का ध्यान नहीं रहा। अचानक ट्रेन चल पड़ी, जब तक पिताजी को ट्रेन चलने पता चलता तब तक ट्रेन स्पीड पकड़ चुकी थी और पिताजी ट्रेन में नहीं चढ़ पाए।
मैं और मेरी माँ दोनों ट्रेन में अकेले रह गए। अब हम लोग बड़े परेशान हुए कि अब क्या किया जाए। ये सब देखकर मैं रोने लगा था। मेरी माँ ने मुझे गले से लगाया और समझाया कि चिंता मत करो, हम लोग पिताजी को ढूंढ लेंगे। आसपास के यात्रियों ने भी हम लोगों को हौसला दिया। पिताजी का मोबाइल भी ट्रेन में ही हमारे पास था इसलिए हम लोग उनसे संपर्क नहीं सकते थे। कुछ देर बाद पिताजी का फोन आया, वो किसी दूसरे व्यक्ति के मोबाइल से कॉल कर रहे थे। उन्होंने बताया कि वह दो घंटे बाद आने वाली एक ट्रेन में बैठ जाएंगे, जो माउंट आबू ही जा रही है। तुम लोग डेस्टिनेशन वाले स्टेशन को उतर जाना, मैं आधे घंटे बाद वहां पर पहुंच जाऊंगा।
जब हमारा स्टेशन आ गया तो हम लोग उतर गए और स्टेशन पर ही बैठकर इंतजार करने लगे। लगभग दो घंटे बाद पिताजी भी हमें आते हुए दिखाई दिए। वह पीछे आने वाली ट्रेन से आ गए थे। उन्हें देखकर हम लोगों ने राहत की सांस ली। फिर हम मैंने अपने माता पिता के साथ माउंट आबू में खूब इंजॉय किया। हम लोग तीन दिन वहाँ रहे। आज भी माउंट आबू में बिताए गए वह सुखद पल और ट्रेन में घटी वह घटना याद आ जाती है।
माता-पिता के साथ बचपन में ऐसे अनेक सुखद अनुभव हुए थे। एक दूसरे में अनुभव में जब मैं अपनी कक्षा में ही नहीं बल्कि पूरे विद्यालय में प्रथम आया तो मेरे माता-पिता में घर पर एक बड़ी पार्टी दी, जिसमें सभी लोगों को बुलाया। मेरे पिताजी ने एक साइकिल उपहार में दी। दो महीनों बाद मेरा जन्मदिन भी आ गया तो मेरे जन्मदिन पर पिताजी ने मुझे एक घड़ी उपहार में दी।
मुझे पत्रिकाएं पढ़ने का शौक था, तो माँ जब बाजार जातीं तो मैं उनसे अपनी पसंदीदा पत्रिकाएं और पुस्तकें मंगाता था। मैंने अपने अपने माता-पिता से कहकर अपने कमरे मे एक किताबों की अलमारी बनवा रखी थी, जिसमें मैं सारी पत्रिकाएं और पुस्तकें संभाल कर रखता था।
इस तरह माता-पिता के साथ बिताए गए सुखद पलों की एक लंबी सूची है। वह सुखद पल आज भी याद आते हैं।
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