आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2)

ATMATRAN : Ravindranath Thakur (Class 10 Chapter 7 Hindi Sparsh 2)


आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर

पाठ के बारे में…

इस पाठ में रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित कविता ‘आत्मत्राण’ को प्रस्तुत किया गया है। यह कविता मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई थी, जिसका अनुवाद हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी में किया है। इस कविता के माध्यम से कवि गुरु रविंद्र टैगोर मानते हैं कि ईश्वर ने सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ होती है, फिर भी ईश्वर नहीं चाहते कि वह वही सब कुछ करें। क्योंकि ईश्वर चाहते हैं कि मनुष्य अपने जीवन में आपदा विपदा, कष्ट से आदि की स्थिति में स्वयं संघर्ष करना सीखें । कविता में कवि ने कहा है कि तैरना चाहने वालों को पानी में कोई उतार तो सकता है, लेकिन तैरना सीखने के लिए तैरने वाले को ही स्वयं हाथ पैर चलाने पड़ते हैं। तभी वह तैराक बनाता है।

परीक्षा देने जाने वाला छात्र अपने बड़ों से और गुरुजनों से आशीर्वाद लेता है और उसके बड़े उसे सफल होने का आशीर्वाद तो देते हैं, लेकिन आशीर्वाद देने से ही सफल नही हुआ जा सकता है, उसे स्वयं परीक्षा देनी होगी, तभी आशीर्वाद फलीभूत होगा। कविता में कवि के कहने का मूलभाव यही है कि मनुष्य को जीवन में स्वयं संघर्ष करना सीखना चाहिए तो ईश्वर उसके संघर्ष को आसान बना सकते हैं। हाथ-पर हाथ रखरकर बैठने वाले की ईश्वर सहायता नहीं करतेष ईश्वर केवल कर्मशील मनुष्य की सहायता करते हैं।

रचनाकार के बारे में…

रवींद्रनाथ ठाकुर बंगाली भाषा के महान कवि एवं लेखक थे। उनका जन्म 6 मई 1818 को कोलकाता के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। वह साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय भी हैं। उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार उनकी काव्य कृति ‘गीतांजलि’ के लिए मिला था। उनके उनके द्वारा रची गई अन्य काव्य कृतियों के नाम इस प्रकार हैं, पूरबी, काबुलीवाला,  नैवेद्य, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत। इनके अलावा उन्होंने अनेकों कहानियां लिखी थीं। उनका निधन 1941 में हुआ था।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न-1 : कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?

उत्तर : कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा है कि ईश्वर उसे हर विपत्ति से सामना करने की सामर्थ्य प्रदान करें। ईश्वर उसे निर्भय होने का वरदान प्राप्त करें ताकि वह जीवन के संघर्षों से भयमुक्त होकर सामना कर सके। कवि ईश्वर से प्रार्थना कर के स्वंय के लिए आत्मबल और पुरुषार्थ पाने की कामना कर रहा है। कवि स्वयं को मजबूत बनाना चाहता है ताकि वह किसी भी तरह की आपदा, विपदा, निराशा, दुख, कष्ट, संकट आदि से सामना करने के लिए आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो सके ।

प्रश्न-2 : ‘विपदाओं से मुझे बचाओं, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ − कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

उत्तर : विपदाओं से मुझे बचाओ यह प्रार्थना नहीं’ इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर उन्हें जीवन में आने वाले दुख, कष्ट, आपदा, विपदा, संकट आदि से सीधे तौर पर नहीं बचाया बल्कि वह इन सबको सहने और इनसे संघर्ष करने का साहस और बल प्रदान करें। कवि के कहने का भाव यह है कि वह खुद कर्म करना चाहता है और आपदा-विपाद से घबराकर हार मानकर नहीं बैठना चाहता। वह ईश्वर से यह कामना नहीं करता कि ईश्वर उसकी हर विपदा को चुटकियों  में सुलझा दे। इससे तो वह कर्महीन हो जाएगा और उसके अंदर संघर्ष करने की सामर्थ्य खत्म हो जाएगी । कवि केवल यह चाहता है कि ईश्वर उसे आत्मबल और शक्ति प्रदान करें ताकि वह संघर्ष करके अपने ऊपर आने वाली आपदाओं और विपदाओं पर विजय पा सके।

प्रश्न-3 : कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?

उत्तर : कवि सहायक के न मिलने पर यह प्रार्थना करता है कि भले ही उसे जीवन में कोई सहायक ना मिले, भले ही पूरा संसार उसके विरुद्ध हो जाए, लेकिन आपदा-विपदा की स्थिति में उसका साहस और आत्मबल कभी कम ना हो। विपत्ति में उसका आत्मबल और उसका पौरुष कभी न डिगे। किसी भी तरह की आपदा-विपदा में भले ही संसार उसका सहयोग ना करें, उसे कोई भी सहायक ना मिले लेकिन उसका आत्मविश्वास, उसका आत्मबल, उसका साहस, उसक पौरुष कभी कम न हो, क्योंकि ये ही उसके सबसे बड़े सहायक है। कवि ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहा है कि उसके ये गुण उसके साथ बने रहें।

प्रश्न-4 : अंत में कवि क्या अनुनय करता है?

उत्तर : अंत में कवि यहीं अनुनय करता है कि चाहें उसके जीवन में सुख के पल हों अथवा उसके जीवन में दुख के पल हों, वह हर समय ईश्वर को निरंतर याद करता रहे। उसके मन से ईश्वर के प्रति आस्था-विश्वास कभी भी कम ना हो। चाहे पूरे संसार के लोगों उसे धोखा दे दें, चाहे चारों तरफ उसे दुख घेर लें, लेकिन ईश्वर के प्रति उसकी आस्था उसका विश्वास कभी कम ना हो। ईश्वर के प्रति उसकी आस्था विश्वास ही उसे हर संकट से सामना करने की सामर्थ्य प्रदान करेगा और सुख के पलों में ईश्वर के प्रति उसकी आस्था उसका विश्वास से वह कोई भी गलत कार्य करने से बचेगा।

प्रश्न-5 : ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ‘आत्मत्राण’ कविता का शीर्षक कविता के मूल भाव को स्पष्ट करता है, इसीलिए कविता का शीर्षक पूरी तरह सार्थक शीर्षक है। ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात स्वयं के मन के भय का निवारण करना और भय से मुक्ति पाना। कवि स्वयं यही चाहता है कि उसके मन में व्याप्त उसका भय पूरी तरह दूर हो जाए और वह निर्भय होकर अपना जीवन जिए।

‘आत्मत्राण’ शीर्षक में ‘आत्म’ शब्द का प्रयोग कवि ने स्वयं के लिए तथा प्राण शब्द का प्रयोग बचाव के लिए किया है, अर्थात कवि स्वयं के बचाव की प्रार्थना ईश्वर से कर रहा है। कवि ईश्वर से यह नहीं चाहता कि उसे जीवन में कोई दुख तकलीफ ना हो, उस पर कोई आपदा विपदा ना आए। यह जीवन के अहम चरण हैं, जो आने ही हैं। कवि ईश्वर से यह भी नहीं चाहता कि ईश्वर उसकी हर आपदा-विपदा, परेशानी को चुटकियों में हल कर दें। बल्कि कवि ईश्वर से यह चाहता है कि उसके जीवन में जो भी आपदा आये, ईश्वर उसे इन सब से संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करें। ईश्वर उसे आत्मविश्वास, आत्मबल, साहस प्रदान करें ताकि वह इन सभी  से संघर्ष कर इन पर विजय पा सके और भय मुक्त होकर रह सके।

प्रश्न-6 : अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।

उत्तर : अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम ईश्वर की प्रार्थना करने के अलावा कई अन्य प्रयास भी करते हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम सबसे पहले कर्म को महत्व देते हैं। ईश्वर की प्रार्थना हमेशा साहस और बल प्रदान करती है, लेकिन आखिर में कर्म तो हमें ही करना है, यह बात हम हमें पता है। इसीलिए हमारे लिए पहले कर्म करना महत्वपूर्ण है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम एक लक्ष्य बनाकर और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक योजना बनाते हैं और उसी योजना के अनुसार कार्य करने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं।

हमें अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए धैर्य और परिश्रम के समन्वय की आवश्यकता होती है। धैर्य धारण करते हुए निरंतर परिश्रम करते रहेंगे तो हमारी कोई भी इच्छा पूरी हो सकती है। ईश्वर से प्रार्थना करने से हमारे जो संघर्ष है, हमारा जो परिश्रम है, वह आसान हो जाता है। इसलिये ईश्वर से प्रार्थन के अतिरिक्त हमें परिश्रम, धैर्य, आत्मविश्वास, आत्मबल की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न-7 क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?

उत्तर : कवि की यह प्रार्थना हमें अन्य प्रार्थना से अलग लगती है, क्योंकि अन्य प्रार्थना में लोग स्वयं के लिए धन-वैभव, सुख-संपत्ति, संतान, समृद्धि, भौतिक वस्तुएं आदि यह सभी मांगते हैं। वह अपने जीवन को सुख वैभव सुख से परिपूर्ण करने के लिए ही प्रार्थना करते हैं। जबकि इस प्रार्थना में कवि ऐसा कुछ नहीं मांग रहा। वह ईश्वर से सीधे तौर पर धन-वैभव, संपत्ति, सुख आदि की कामना नहीं कर रहा।

कवि इस प्रार्थना के माध्यम से स्वयं के लिए संघर्ष करने की शक्ति मांग रहा है, आत्मबल मांग रहा है, वह आत्मविश्वास मांग रहा है और इस प्रार्थना में वह केवल स्वयं के लिए ही नही बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए ही इन गुणों की मांग रहा है। कवि इस प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर से सीधे तौर पर सुख-वैभव नहीं मांग कर अपने लिए जीवन में संघर्ष करने की सामर्थ्य मांग रहा है। इस तरह इस प्रार्थना में कर्महीन न बनकर कर्मशील बनने की प्रार्थना कर रहा है, इसलिए ये प्रार्थना उसे दूसरी प्रार्थनाओं से अलग करती है।



(ख) निम्नलिखित अंशो का भाव स्पष्ट कीजिए।

1. नत शिर होकर सुख के दिन में तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

भाव : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहता है कि हमें ईश्वर को हर पल, हर क्षण, हर घड़ी याद करते रहना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि हम मनुष्य लोग ईश्वर को दुख की घड़ी में तो खूब याद करते हैं, लेकिन जब हम सुख के पलों में होते हैं तो ईश्वर तो भूल जाते हैं। तब हमें स्वयं पर अहंकार हो जाता है कि हमने जो भी सुख अर्जित किया है वह अपने कर्मों से अर्जित किया है और उसमें ईश्वर का कोई योगदान नहीं। इसलिए हम ईश्वर को याद करना भूल जाते हैं। लेकिन जब दुख की घड़ी आती है तो हमें ऐसा लगता है कि हमें जो दुख मिले हैं वह हमें ईश्वर ने दिए हैं और फिर हम ईश्वर से उन दुखों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। तब हमें ईश्वर ही याद आते हैं।

कवि कहना चाहता है कि भले ही हमारे कर्म उत्तरदायी होते हैं, लेकिन सब हमें ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद के फलस्वरुप ही मिलता है, इसीलिए हमें सुख-दुख दोनों घड़ियों में ईश्वर को समान भाव से स्मरण करते रहना चाहिए और सुख की घड़ी में कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।

2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

भाव : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है जीवन में ऐसे अनेक पल आएंगे, जब हमें दूसरों के कारण हानि उठानी पड़ सकती है, हमें संसार के लोगों से छल कपट का सामना करना पड़ सकता है। हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जब हमारा कोई साथ ना दे रहा हो और सब हमारे विरुद्ध हो गए हों। लेकिन इन सब बातों के लिए हमें कभी भी ईश्वर को दोष नहीं देना चाहिए और ईश्वर के प्रति आस्था एवं विश्वास बनाए रखना चाहिए।

हमें अपने मन में निराशा और दुख हो का भाव कभी भी उत्पन्न नहीं होने देना है। हमारा आत्मबल, हमारा मनोबल सदैव बना रहे, चाहे कैसी भी स्थिति क्यों ना हो। कवि के कहने का भाव यह है कि चाहे कितनी भी दुख की स्थिति क्यों न हो, कितनी भी हानि क्यों ना हो, लेकिन ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास कभी भी डगमगाना नहीं चाहिए और हमारा आत्मबल कमजोर नहीं पड़ना चाहिए।

3. तरने की हो शक्ति अनामय मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

भाव : कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में किसी भी तरह की विपरीत परिस्थितियों से घिरा होने पर भी यदि उसे ईश्वर से अन्य किसी से कोई सांत्वना, सहायता आदि ना मिले तो भी कोई बात नहीं। जीवन की विपरीत परिस्थितियों में उसे लोगों से सहयोग ना मिले तो भी कोई बात नहीं। वह ये नही चाहता कि ईश्वर उसके दुखों का भार एकदम से कम कर दे बल्कि वह यह चाहता है कि उसे इन दुखों से लड़ने की सामर्थ्य, शक्ति ईश्वर से सदैव मिलती रहे ताकि वह अपनी साहस और आत्मबल से इन सभी दुखों पर विजय पा सके।

कवि सांत्वना अथवा सहायता की अपेक्षा की जगह जीवन के संघर्षों से सामना करने की सामर्थ्य चाहता है, ताकि वह निर्भय होकर और विपरीत परिस्थिति से लड़ सके और उन पर विजय पा सके।



योग्यता विस्तार

1. रविंद्र नाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत संग्रह में से दो गीत छांटे और कक्षा में कविता पाठ कीजिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने जीवनकाल में कई अद्भुत गीतों की रचना की है। यहाँ उनके गीत संग्रह में से दो प्रसिद्ध गीत दिए जा रहे हैं जिन्हें विद्यार्थी अपनी कक्षा में कविता पाठ के लिए चुन सकते हैं। विद्यार्थिोयों की सहायता के लिए दो गीत यहाँ पर दिए जा रहे हैं।

गीत 1: एकला चलो रे

यह गीत आत्मविश्वास और साहस का प्रतीक है। इसमें संदेश दिया गया है कि अगर कोई आपका साथ नहीं देता है, तो भी अपने रास्ते पर अकेले चलना चाहिए।

गीत

जोदि तोर डाक शुने केउ ना आशे
तोबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

जोदि केउ काथा ना कोए,
ओ रे ओ रे ओ अबाक ओरे,
तोबे पोथेर काँटा डुराए मोंथा,
एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

जोदि आलो ना धोरे,
ओ रे ओ रे ओ अबाक ओरे,
तोबे जोलाए निजेर पाँजर लाल,
एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।

गीत 2 : आमार शोनार बांग्ला

यह गीत रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित और बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। इस गीत में बांग्ला भूमि की सुंदरता और उसकी महानता का वर्णन किया गया है।

गीत

आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।
चिर दिन तोमार आकाश, तोमार बाताश, आमा प्राणे बाजाए बाशी।
आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।

ओ माँ, फागुनेर आमेर बने, घेरो आछे तुमि,
ओ माँ, ओ माँ, हेमन्ते फुलो भरे, ओ माँ, तुमारो दलारी छुमि।
ओ माँ, ओ माँ।
आमार शोनार बांग्ला, आमी तोमाय भालोबाशी।“`

इन दोनों गीतों का पाठ कक्षा में करने से विद्यार्थियों को रवींद्रनाथ ठाकुर की काव्य प्रतिभा और उनके गीतों में छिपे संदेश को समझने का अवसर मिलेगा।

2. अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए जैसे…
(क) महादेवी वर्मा – ‘क्या पूजा क्या अर्चना रे’
(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – दलित जन पर करो करुणा
(ग) इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चले नेक रस्ते पर हमसे
भूलकर भी कोई भूल हो ना
इस प्रार्थना को ढूंढ कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है। क्या आपको दोनों प्रार्थनाओं में कोई भी अंतर प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।

उत्तर : हमने महादेवी वर्मा द्वारा लिखित प्रार्थना ‘क्या पूजा क्या अर्चना रे’ पढ़ी। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित प्रार्थना ‘दलित जन पर करो करुणा’ पढ़ी और उसके अतिरिक्त ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ जैसी प्रसिद्ध प्रार्थना भी पढ़ी। इन तीनों प्रार्थनाओं की तुलना जब रविंद्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित ‘आत्मत्राण’ नामक कविता से की तो सभी में हमें यही समानता दिखाई थी कि सब में मानवता की बात की गई है। हर प्रार्थना में ईश्वर से प्रार्थना करते हुए मानव के हित के लिए प्रार्थना की गई है और सभी प्रार्थनाओं में करुणा और संवेदना प्रकट होती है, जो समाज के असहाय और निर्बल वर्गों के लिए ही हैं।



परियोजना कार्य

1. रवींद्र नाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर के बारे मे जानकारी

परिचय
रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय कवि, संगीतकार, और दार्शनिक थे। उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। ठाकुर भारतीय साहित्य, कला और संगीत में अद्वितीय योगदान के लिए जाने जाते हैं। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म एक समृद्ध और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ ठाकुर और माता का नाम शारदा देवी था। ठाकुर ने औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा घर पर ही शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विदेशों में भी शिक्षा ग्रहण की, लेकिन उनकी रुचि भारतीय साहित्य और संगीत में अधिक थी।

साहित्यिक योगदान
रवींद्रनाथ ठाकुर ने विभिन्न साहित्यिक रचनाओं की रचना की, जिनमें कविताएं, कहानियां, उपन्यास, नाटक और निबंध शामिल हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:
1. गीतांजलि – यह कविताओं का संग्रह है जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला।
2. गोरा – यह एक सामाजिक उपन्यास है जो भारतीय समाज की जटिलताओं को उजागर करता है।
3. घरे-बाइरे (घर और बाहर) – यह उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
4. चित्रांगदा – यह एक नाटक है जो महाभारत की एक कहानी पर आधारित है।

संगीत और कला
रवींद्रनाथ ठाकुर ने ‘रवींद्र संगीत’ नामक एक अनूठी संगीत शैली की रचना की, जो आज भी बंगाल और पूरे भारत में लोकप्रिय है। उन्होंने कई प्रसिद्ध गीतों की रचना की जिनमें ‘एकला चलो रे’ और ‘आमार शोनार बांग्ला’ शामिल हैं। ‘आमार शोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।

नोबेल पुरस्कार 
रवींद्रनाथ ठाकुर को 1913 में उनके कविता संग्रह “गीतांजलि” के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार पाने वाले वे पहले गैर-यूरोपीय और पहले भारतीय थे। उनके इस सम्मान ने भारतीय साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।

शांति निकेतन
रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की, जो एक अद्वितीय शिक्षण संस्थान है। इसका उद्देश्य था भारतीय और पश्चिमी शिक्षा का समन्वय करना और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली प्रदान करना जो प्रकृति के करीब हो। शांति निकेतन आज भी एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है, जिसे विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

निधन
रवींद्रनाथ ठाकुर का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता में हुआ। उनकी मृत्यु भारतीय साहित्य और कला के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी रचनाएं और विचार आज भी जीवित हैं और लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष
रवींद्रनाथ ठाकुर भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रतीक थे। उनके अद्वितीय योगदान ने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और विचारधारा का प्रचार-प्रसार भी किया। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय होने के नाते, उन्होंने भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर गौरवान्वित किया। उनकी रचनाएं और उनके द्वारा स्थापित संस्थान शांति निकेतन उनकी विरासत को हमेशा जीवित रखेंगे।

सन्दर्भ
1. रवींद्रनाथ ठाकुर की जीवनी और रचनाएं।
2. गीतांजलि और अन्य प्रमुख रचनाएं।
3. शांति निकेतन और उसके उद्देश्य।
4. नोबेल पुरस्कार और उसकी महत्ता।

इस प्रकार की परियोजना पुस्तिका के माध्यम से रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन और उनके महान कार्यों को समझा और प्रस्तुत किया जा सकता है।

2. रविंद्र नाथ ठाकुर की गीतांजलि को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।

उत्तर :  विद्यार्थी अपने गाँव-शहर के नजदीक पुस्तकालय जाएं और वहाँ से रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ पुस्तक को लेकर पढ़ें। यदि पुस्तक उपलब्ध नहीं हो तो पुस्तकालय के संचालकों से पुस्तक मंगाने का अनुरोध करें।

3. रविंद्र नाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।

उत्तर : रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1901 में पश्चिम बंगाल के बोलपुर, बीरभूम जिले के पास एक छोटे से गांव में ‘शांति निकेतन’ की स्थापना की थी। इस संस्थान का उद्देश्य भारतीय और पश्चिमी शिक्षा का समन्वय करना और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली प्रदान करना था जो प्रकृति के करीब हो और सृजनात्मकता को बढ़ावा दे। बाद में, 1921 में शांति निकेतन को ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ का दर्जा प्राप्त हुआ।

रवींद्रनाथ ठाकुर का मानना था कि शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा को जीवन का एक अभिन्न हिस्सा मानते हुए उसे व्यापक दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने विद्यार्थियों में स्वतंत्र सोच और नवाचार को बढ़ावा देने पर बल दिया।

1921 में शांति निकेतन को ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ का दर्जा प्राप्त हुआ। यह विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र बना। विश्वविद्यालय का उद्देश्य था ‘यत्र विश्वम भवत्येक नीडम’ अर्थात ‘जहां पूरी दुनिया एक परिवार बन जाती है’।

शांति निकेतन और विश्वभारती विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर के दृष्टिकोण और उनके प्रयासों ने इस संस्थान को विशिष्ट और अद्वितीय बनाया है। यहां की शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों में स्वतंत्रता, सृजनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देती है। शांति निकेतन और विश्वभारती विश्वविद्यालय आज भी ठाकुर की शिक्षाओं और विचारधाराओं को जीवित रखे हुए हैं, और विश्वभर में शिक्षा के एक अनूठे मॉडल के रूप में जाने जाते हैं।

4. रविंद्र नाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सीडी लेकर सुनिए।

उत्तर : आजकल कैसेट और सीडी का प्रचलन खत्म हो गया है। विद्यार्थी चाहें तो रवींद्र संगीत के गीत किसी पेनड्राइव में भरवा कर अपने कम्प्यूटर के माध्यम से सुन सकते हैं। अथवा इंटरनेट से रवींद्र संगीत डाउनलोड कर सकते हैं।


आत्मत्राण : रवींद्रनाथ ठाकुर (कक्षा-10 पाठ-7 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)


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