NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2)
PATJHAR ME TUTI PATTIYAN (I) GINNI KA SONA (II) JHEN KI DEN : Ravindra Kelekar (Class-10 Chapter-13 Hindi Sparsh 2)
पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर
पाठ के बारे में…
प्रस्तुत पाठ ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ रविंद्र केलेकर द्वारा रचित एक निबंध है, उसमें उन्होंने दो प्रसंगों का वर्णन किया है। पहला प्रसंग उन लोगों से परिचित कराता है, जो अपने लिए जीवन में सुख सुविधा नहीं जुटाते बल्कि इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।
दूसरा प्रसंग जापान के लोगों के बारे में बताता है, जो अपने व्यस्ततम दिनचर्या के बीच टी-सेरेमनी जैसे कुछ आयोजनों द्वारा अपने जीवन में कुछ चैन भरे पल जुटा लेते हैं। पाठ में दोनों प्रसंगों के माध्यम से लेखक ने थोड़े शब्दों में ही बहुत बड़ी और गूढ़ बातें कह दी हैं।
लेखक के बारे में…
रविंद्र केलेकर हिंदी मराठी और कोंकणी भाषा के लेखक और पत्रकार रहे हैं। उनका जन्म 7 मार्च 1925 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हुआ था। वह गोवा मुक्ति आंदोलन के सेनानी भी थे। वह गांधीवादी चिंतक विचारक के रूप में प्रसिद्ध रहे । उन्होंने कोंकणी भाषा में 25, मराठी भाषा में 3 तथा हिंदी और गुजराती भाषा में भी कुछ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें गोवा कला अकादमी का साहित्य पुरस्कार भी मिल चुका है।
उनकी प्रमुख कृतियों में हिंदी भाषा में ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ प्रसिद्ध है, जबकि कोंकणी भाषा में उजबाढ़ाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे तथा मराठी भाषा में कोंकणीचे राजकरण, जापान जैसा दिसला आदि के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 2010 में हुआ।
हल प्रश्नोत्तर
मौखिक
प्रश्न 1 : शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर : शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग-अलग इसलिए होता है, क्योंकि शुद्ध सोना पूरी तरह शुद्ध खरा सोना होता है। लेकिन शुद्ध सोने में अधिक चमक नहीं होती। जबकि गिन्नी के सोने में ताँबा मिलाया जाता है और यह अधिक चमकीला होता है। चमकीला होने के साथ-साथ गिन्नी का सोना शुद्ध सोने की तुलना में अधिक मजबूत होता है।
प्रश्न 2 : प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर : प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन लोगों को कहते हैं, जो अपने जीवन में आदर्श और व्यवहार का घालमेल कर देते हैं। वे अपने आदर्शों में व्यवहारिकता को भी मिला देते हैं। लेकिन जब व्यवहारिकता का बखान अधिक होने लगता है, तो वह अपने आदर्शों को भूलकर व्यवहारिकता पर अधिक जोर देते हैं यानी वे आदर्शों पर टिके नही रहते है। ऐसे लोगों को प्रैक्टिकल आयडियालिस्ट कहते हैं।
प्रश्न 3 : पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर : ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे आदर्श हैं जिनमें व्यवहारिकता का कोई भी मिश्रण ना हो। शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने की तरह है, जिनमें व्यवहारिकता नही मिलाई जा सकती है। शुद्ध सोने में ताँबा मिलाने से भले भी वह अधिक चमकदार और टिकाऊ हो जाता हो लेकिन उसकी शुद्धता जाती रहती है। उसी तरह शुद्ध आदर्शों में व्यवहारिकता का मेल नहीं किया जा सकता, वह हमेशा शुद्ध आदर्श ही रहते हैं।
प्रश्न 4 : लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर : लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ इंजन लगने की बात इसलिए कही है, क्योंकि जापानी लोग हर कार्य को बेहद तेज गति से करते हैं। जापानी लोग हमेशा अमेरिका के साथ होड़ में रहते हैं और वह अमेरिका से हर हालत में आगे निकलना चाहते हैं। जापानी लोग एक महीने का काम एक दिन में ही पूरा करना चाहते हैं और उनका दिमाग हमेशा तेज रफ्तार से कुछ ना कुछ सोचता रहता है, इसीलिए लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ इंजन लगा होने की बात कही है।
प्रश्न 5 : जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर : जापान में चाय पीने की विधि यानी टी सेरेमनी को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। जापान में चाय पिलाने की एक विशेष विधि होती है। यह विधि चा-नो-यू’ के नाम से जानी जाती है, जो जापानी लोगों में मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए एक विशिष्ट पारंपरिक विधि है। चाय पिलाने वाले व्यक्ति को ‘चाजीन’ कहा जाता है।
प्रश्न 6 : जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर : जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की विशेषता यह होती है कि ये स्थान अत्यंत शांतिपूर्ण होता है। यह स्थान शालीन तरीके से सजाई हुई कुटी होती है। इस स्थान पर बेहद गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाता है। इस स्थान में शांति बनाए रखने का बेहद ध्यान रखा जाता है।
इस स्थान पर चाय पीने आने वाले लोगों के लिए शांति मानसिक शांति प्राप्त करना महत्वपूर्ण होता है। इसी कारण यहां पर अधिकतम एक बार में तीन लोग ही आकर चाय पी सकते हैं। चाय बनाकर पिलाने वाले व्यक्ति को चाजीन कहते हैं। और वह बेहद कलात्मक तरीके से चाय बनाकर खिलाता है। एक डेढ़ घंटे तक चलने वाली ये टी-सेरेमनी जापान के लोगों में मानसिक शांति प्राप्त करने का एक पारंपरिक उपाय है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1 : शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर : शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से एवं व्यवहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है, क्योंकि शुद्ध आदर्श हमेशा शुद्ध सोने के समान होते हैं। जिस तरह शुद्ध सोने में किसी तरह की मिलावट नहीं की जा सकती, उसी कारण वो शुद्ध कहलाता है, उसी तरह शुद्ध आदर्शों में भी किसी तरह की मिलावट नहीं की जाती, इसी कारण वह शुद्ध आदर्श कहे जाते हैं।
तांबे की तुलना व्यवहारिकता से इसलिए की गई है, क्योंकि शुद्ध सोने में यदि ताँबे की कुछ मात्रा मिला दी जाए तो सोना अधिक उपयोगी बन जाता है यानी वह अधिक चमकीला एवं अधिक मजबूत हो जाता है। हमारा जीवन भी इसी तरह का होता है। जीवन केवल आदर्शों से नहीं चलता बल्कि उसमें व्यवहारिकता का भी मेल होना चाहिए। यदि आदर्शों में थोड़ा व्यवहारिकता का मेल कर दिया जाए तो उन आदर्शों का अच्छी तरह पालन किया जा सकता है।
आदर्शों का एकदम शुद्ध रूप में पालन करना हर समय संभव नहीं हो पाता। आवश्यकता पड़ने पर उसमें थोड़ा बहुत व्यवहारिकता का मेल कर देने से आदर्श अधिक उपयोगी और सार्थक बन जाते हैं।
प्रश्न 2 : चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर : चाजीन ने शुरू से लेकर आखिर तक सभी क्रियाएं बेहद गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न की थीं। जब अतिथियों ने प्रवेश किया तो चाजीन ने सिर झुका कर उनका स्वागत किया और कहा ‘दो झो’ यानी आइए तस्वीर लाइए। चाजीन ने अतिथियों को बैठने की जगह दिखाई। फिर उसने अंगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी और चाय बनाने लगा। फिर वह बगल के कमरे से जाकर कुछ बर्तन ले आया। उसने तौलिये से बर्तन साफ करके रखें। उसने यह सारी क्रियाएं शांतिपूर्ण ढंग से की थी।
सारी क्रियायें करने में उसने जरा भी आवाज नहीं की और वातावरण इतना शांत था कि चाय बनाने को रखी केतली के खदबदाने की आवाज भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी। उसने सलीके से चाय को केतली से प्यालों में डाला और प्याले अतिथियों के सामने रख दिए। इस तरह उसने शुरू से लेकर आखिर सारी क्रियायें गरिमापूर्म ढंग से की।
प्रश्न 3 : टी-सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर : टी-सेरेमनी में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। केवल तीन आदमियों को प्रवेश देने का मुख्य उद्देश्य शांति बनाए रखना था। जापान में ‘टी सेरेमनी ‘चा-नो-यू’ मानसिक शांति प्राप्त करने की एक पारंपरिक विधि थी। इसके अंतर्गत लोग विशेष रूप जो टी सेरेमनी के लिए विशेष रूप से बनाया गया होता था। वहां पर जाकर कुछ समय तक तक चाय पीते हैं।
इस स्थान पर शांति और गरिमापूर्ण व्यवहार का विशेष ध्यान रखा जाता । अधिक लोगों के होने से शांति भंग होने की संभावना होती थी, इसलिए केवल 3 लोगों को एक बार में प्रवेश किया जाता था, जो एक या डेढ़ घंटे तक धीरे-धीरे चाय पी कर अपने मन की मानसिक शांति प्राप्त करते थे।
प्रश्न 4 : चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर : चाय पीने के बाद लेखक से दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती गई। लेखक को ऐसा लगा कि उसका दिमाग सुन्न पड़ गया हो। लेखक को ऐसा महसूस होने लगा कि जैसे वह अनंतकाल में जी रहा हो। लेखक को चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा महसूस होने लगा। और लेखक भूत एवं भविष्य के बारे में नहीं सोच रहा था। उसे केवल वर्तमान ही दिखाई दे रहा था। भूत और भविष्य के काल अब हवा में उड़ गए थे। लेखक को जो नजर आ रहा था वह उसका वर्तमान है , वही सच है। जो सच होता है, वह ही लेखक वह ही सामने नजर आ रहा था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1 : गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर : गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी, इस बात में कोई भी संशय नहीं था। उनके अद्भुत नेतृत्व के कारण ही भारत स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन को इतने विशाल स्तर पर सफल बना पाया। उनके सफल नेतृत्व के गुण के कारण ही भारत का स्वाधीनता संग्राम एक विशाल आंदोलन में एकजुट हो गया था। उनकी लोकप्रियता पूरे भारत में एक समान थी और लोग उनकी एक आवाज पर उनके पीछे चल पड़ते थे।
उन्होंने अनेक सफल आंदोलनों का नेतृत्व किया जिसमें असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन आदि प्रमुख थे। गांधीजी आदर्शवादी नेता थे। उनके जीवन में आदर्शों का बेहद महत्व था। वह आदर्श में व्यवहारिकता का नहीं बल्कि व्यवहारिकता में आदर्शों को मिला देते थे। यानि वह में सोने में तांबे को मिलाकर नहीं बल्कि तांबे में सोना मिलाकर तांबे के मूल्य को बढ़ा देते थे। इसी कारण वह अपने आदर्शों को इतना अधिक लोकप्रिय बना पाये कि उनके आदर्श आज भी पालन किए जाते है।
प्रश्न 2 : आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : हमारे विचार में सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, दया, करुणा, प्रेम एवं भाईचारा यह जीवन के शाश्वत मूल्य हैं, जो प्राचीन काल से व्यवहार में लाए जाते रहे हैं और हर समय प्रासंगिक रहेंगे। मानव जीवन को इन मूल्यों की हमेशा आवश्यकता रही है। सत्य एवं अहिंसा का मूल्य गांधी जी द्वारा प्रतिपादित किया गया था लेकिन यह भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही रहा है। ईमानदारी, दया, सब के प्रति करुणा, आपसी प्रेम एवं आपसी भाईचारा यह सभी मूल जीवन के शाश्वत मूल्य हैं, जिनका निरंतर पालन किए जाने की आवश्यकता है।
इन मूल्यों के पालन से ही समाज की अवधारणा बनी रह सकती है। यदि इन शाश्वत मूल्यों का पूरी तरह से तैयार कर दिया तो समाज भी बिखर जाएगा और यह सभ्य समाज आदिम समाज में बढ़कर रह जाएगा। ऐसा संभव नहीं है क्योंकि प्राचीन काल से यह मूल्य किसी न किसी रूप में पालन किए जाते रहे हैं और आगे पालन किए जाते हैं, भले ही आज किसी भी तरह की नकारात्मकता क्यों ना हो, लेकिन इन मूल्यों ने ही समाज की अवधारणा को कायम रखा है।
प्रश्न 3 : अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब
शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर : ऐसी दो घटनाएं इस प्रकार हैं…
(1) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
हमने एक नई मिठाई की दुकान खोली। हमने यह निश्चित किया था कि हम मिठाई में किसी भी तरह की मिलावट नहीं करेंगे। हम शुद्ध खोये की मिठाई बनाएंगे। चाहे किसी भी त्यौहार का सीजन क्यों ना हो। हम लाभ कमाने के चक्कर में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करेंगे। हमने इस आदर्श को सख्ती से दृढ़ता से अपनाया। हमारे आसपास के कई प्रतिद्वंदी भी दुकानदार मिठाई में मिलावट करते थे और त्योहारों के समय अधिक मिठाई का उत्पादन कर खूब लाभ कमाते थे, लेकिन हमने मिलावट ना करने का आदर्श अपनाया। धीरे-धीरे हमारी दुकान की साख बढ़ती गई। आज हमारी दुकान अन्य मिलावटी दुकानदारों से अधिक चलती है और हमारी दुकान की एक ब्रांड वैल्यू बन चुकी है। यह हमारे द्वारा मिलावट ना करने के आदर्श के कारण ही संभव हो पाया।
(2) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
मैंने यह निश्चित किया था कि रोज सुबह 5 बजे उठ जाना है और रात 11 बजे से पहले सो जाना है। यह आदर्श का मैं हमेशा पालन करता था लेकिन कभी-कभी इस आदत में ढील भी दे देता था क्योंकि कभी-कभी किसी काम के लिए देर रात तक जगना पड़ता था। इससे मैं अपने जल्दी सोने और जल्दी उठने के आदर्श का आसानी से पालन कर पाता हूँ और मुझे यह आदर्श बोझ नहीं लगता। यदि मैं इसमें व्यावहारिकता का पुट नहीं देता तो एक समय आदर्श बोझ लगने लगता।
प्रश्न 4 : ‘शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : गाँधी जी पक्के आदर्शवादी थे। वह अपने आदर्शों के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते थे। लेकिन जीवन में व्यवहारिकता भी जरूरी थी। वह सोने में ताँबा नहीं मिला सकते थे, इसलिए उन्होंने ताँबे में ही सोना मिला दिया, इससे ताँबे की कीमत बढ़ गई।
उन्होंने अपने आदर्शों के साथ किसी भी तरह का समझौता तो नहीं किया और व्यवहारिकता को भी अपनायें उन्होंने व्यावहारिकता में अपने आदर्शों को भी थोड़ा बहुत मिला दिया । इससे व्यवहारिकता का अच्छे से पालन भी कर पाए और उनके आदर्श भी शुद्ध रहे। इस तरह उन्होंने व्यावहारिकता का मूल्य भी बढ़ा दिया और अपने आदर्शों को अशुद्ध भी नहीं होने दिया।
प्रश्न 5 : ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर : गिरगिट कहानी का पुलिस इंस्पेक्टर आदर्शवादी नहीं था बल्कि वह पल पल रंग बदलने वाला व्यक्ति था, जो जीवन में जरूरत से ज्यादा व्यवहारिक था। उसके जीवन में आदर्श का कोई महत्व नहीं था। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए बिल्कुल भी जरूरी नहीं और समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। जीवन में आदर्श और व्यवहारिकता दोनों जरूरी है, लेकिन आदर्श अधिक जरूरी है।
हर समय व्यावहारिकता अपनाना स्वार्थी प्रवृत्ति को जन्म देता है। जो लोग जरूरत से अधिक व्यवहारिक होते हैं, वह किसी एक बात पर टिके नहीं रहते और जहां उन्हें लाभ दिखाई दे रहा है, वहाँ खिंचे चले जाते हैं। आदर्शवादी होना बेहद आवश्यक गुण है। आदर्शों से ही समाज की संरचना होती है और सांस्कृतिक मूल्य विकसिती होते हैं।
यह अलग बात है कि थोड़े बहुत आदर्शों के साथ समझौता करके व्यवहारिकता का पुट दिया जा सकता है, लेकिन जीवन में आदर्शों का अधिक महत्व है। आदर्शों और थोड़ी बहुत व्यवहारिकता के मेल ही सबसे उपयुक्त संयोजन है।
प्रश्न 6 : लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर : लेखक के मित्र ने इस पाठ में मानसिक रोग के अनेक कारण बताए हैं। लेखक ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के यह कारण बताए हैं कि जापानी लोग बहुत तेज गति से कार्य करना पसंद करते हैं। उनके अंदर हर समय अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने की भावना बनी रहती है। वे हर हालत में अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं।
जापानी लोगों की मनोवृति ऐसी है कि वह 1 महीने का काम 1 दिन में ही कर देना चाहते हैं जो कि व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है। जापानी लोगों ने स्वयं के ऊपर काम का अत्याधिक बोझ ग्रहण कर लिया है जापानी लोग यह नहीं समझते कि वह एक मानव है, मशीन नहीं। क्षमता से अधिक कार्य करने और जिम्मेदारी लेने से उनके शारीरिक और मानसिक स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है और अनेक तरह के मानसिक रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं।
मनुष्य की तरह ही काम कर सकता है। वह मशीन की तरह काम नहीं कर सकता। इसलिए जापानी लोगों ने जिस तरह की मशीन की तरह काम करने की प्रवृत्ति अपनाई, वही उनके मानसिक रोगों का कारण बनी। लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के जो कारण बताए हम सभी कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।
प्रश्न 7 : लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वर्तमान ही प्रत्यक्ष प्रमाण का रूप होता है। वर्तमान हमें सामने स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। भूतकाल समय बीत गया, वह बदलना हमारे हाथ में नहीं है। जो हो गया वह हो गया उसमें अब हम कुछ नहीं कर सकते।
हम भूतकाल की गलतियों पर पछता कर कुछ हासिल नहीं कर सकते। उसी तरह भविष्य बदलना भी हमारे हाथ में पूरी तरह नहीं है। हम अपने वर्तमान को ही बदल सकते हैं, क्योंकि वह हमारे सामने है । वही सत्य के प्रमाण के रूप में हमारे सामने प्रत्यक्ष है। इसीलिए हमें एवं भविष्य की चिंता करते हुए वर्तमान में ही जीना चाहिए तभी जीवन का सच्चा आनंद मिल सकता है, लेखक ने यही समझाने का प्रयत्न किया है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. I. : समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
आशय : यह पंक्ति आदर्श के महत्व को स्पष्ट करती है। वास्तव में समाज में जो भी आदर्श व्याप्त हैं, वह आदर्शवादी लोगों के कारण ही व्याप्त हैं। शाश्वत मूल्य समाज के वह मूल्य हैं जो प्राचीन काल से अभी तक निरंतर चले आ रहे हैं। सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, बंधुत्व, ईमानदारी, दया, करुणा यह सभी शाश्वत मूल्य हैं, जो किसी भी आदर्श समाज के मूल्य होते हैं। इन मूल्यों का पालन करने वाले लोग ही आदर्शवादी लोग कहलाते हैं। यदि यह मूल्य अभी तक हैं, तो इसका मुख्य कारण ऐसे आदर्शवादी व्यक्ति महान व्यक्ति हैं जो इन मूल्यों को निरंतर आगे बढ़ाते रहे और कभी भी इन मूल्यों के स्तर को गिरने नहीं दिया। आगे भी ऐसे आदर्शवादी व्यक्ति उत्पन्न होते रहेंगे जो इन मूल्यों को आगे बढ़ाते रहेंगे।
II : जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
आशय : इस पंक्ति का आशय यह है कि जब-जब व्यावहारिकता आदर्शों पर हावी होने लगती है, तो आदर्श पीछे छूट जाते हैं और व्यक्ति की स्वार्थी प्रवृत्ति आगे आ जाती है। पूरी तरह व्यवहारिक होने का तात्पर्य है कि व्यक्ति पूरी तरह यदि स्वार्थ केंद्रित हो गया है। व्यवहारिकता होनी जरूरी है लेकिन आवश्यकता से अधिक व्यावहारिक होना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं। आदर्शों का अपना अलग महत्व होता है उसमें थोड़ा बहुत व्यवहारिकता का पुट दिया जा सकता है, लेकिन जो लोग व्यवहारिकता को अधिक महत्व देने लगते हैं, तो वह अपने आदर्शों को भूल जाते हैं और आदर्शों के महत्व को नहीं समझते। लेखक ने यही बताने का प्रयत्न किया है।
2. I : हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से जापानी लोगों की अत्याधिक तेज गति से काम करने की प्रवृत्ति को रेखांकित किया गया है। जापानी इतनी तेज गति से काम करना पसंद करते हैं कि वह हर काम को मिनटों में समाप्त कर देना चाहते हैं। वे एक दिन के काम को एक मिनट में और एक महीने के काम को एक दिन में खत्म कर लेना चाहते हैं। उनमें अमेरिकियों से आगे निकलने की होड़ मची हुई है। वे बोलते नहीं, बकते हैं, चलते नहीं दौड़ते हैं। वे मशीन की तरह कार्य करना चाहते हैं, जबकि वह मानव हैं। वे अपने ऊपर अत्याधिक बोझ डालने के कारण वह मानसिक एवं शारीरिक रोगों से सारे लोगों से ग्रस्त होने लगे हैं और तनाव के शिकार हो रहे हैं।
2. II : अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।
आशय : इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने चाजीन के द्वारा की जाने वाली शालीनतापूर्ण गतिविधियों को बताया है। लेखक जब अपने मित्र के साथ टी सेरेमनी में शामिल होने गया तो चार्जिंग ने बेहद शालीनतापूर्वक उन लोगों का स्वागत किया। चाजीन ने बेहद सलीके से सारे कार्य संपन्न किए। उसके हर क्रियाकलाप से शालीनता और सलीकेपन और शिष्टता झलक रही थी। चाजीन ने बेहद शालीनता से अंगीठी सुलगाई, चाय बनाई, बर्तनों को साफ किया, चाय को प्यालों में डाला और मेहमानों के सामने चाय परोसी। चाजीन की ये सारी क्रियायें बेहद शांत, गरिमामय और शालीन थीं, इसलिए लेखक ने ये पंक्तियां कहीं।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1 : नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उतर : दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…
1. व्यावहारिकता
जीवन में सफलता पाने के लिए सिर्फ ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यावहारिकता का होना भी बहुत जरूरी है।
2. आदर्श
महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के आदर्श आज भी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करते हैं।
3. सूझबूझ
कठिन परिस्थितियों में सूझबूझ से काम लेने वाला व्यक्ति हमेशा सफल होता है।
4. विलक्षण
आइंस्टीन की विलक्षण प्रतिभा ने विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए।
5. शाश्वत
प्रेम और करुणा जैसे मूल्य शाश्वत हैं, जो हर युग और संस्कृति में महत्वपूर्ण रहे हैं।
प्रश्न 2 : लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए-
माता-पिता = ……..
पाप-पुण्य = …….
सुख-दुख = ………
रात-दिन = ……….
अन्न-जल = ……….
घर-बाहर = ………..
देश-विदेश = ………..
उत्तर : दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह इस प्रकार होगा…
- माता-पिता : माता और पिता
- पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
- सुख-दुख : सुख और दुख
- रात-दिन : रात और दिन
- अन्न-जल : अन्न और जल
- घर-बाहर : घर और बाहर
- देश-विदेश : देश और विदेश
प्रश्न 3 : नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-
सफल = ………
विलक्षण = ………….
व्यावहारिक = ……………
सजग = ………..
आदर्शवादी = ……….
शुद्ध = ………
उत्तर : दिए गए शब्दों की भाववाचक संंज्ञा इस प्रकार होगी…
- सफल = सफलता
- विलक्षण = विलक्षणता
- व्यावहारिक = व्यावहारिकता
- सजग = सजगता
- आदर्शवादी = आदर्शवादिता
- शुद्ध = शुद्धता
प्रश्न 4 : नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर :
उत्तर : सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।
प्रश्न 5 : नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर : संयुक्त वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।
प्रश्न 6 : नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर : दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य इस प्रकार होंगे।
(क) चाय पीने की यह एक विधि है, जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था, जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई, तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1 : गांधी जी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर : यह एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी दोनों पुस्तकों के पढ़ें। वह इन पुस्तकों को पाने के लिए अपने गाँव-शहर की निकटतम लाइब्रेरी में जा सकते हैं अथवा किसी बुक स्टॉल के पुस्तक को खरीदें अथवा ऑनलाइन पुस्तक को मंगाएं। ये पुस्तकें अत्यन्त महत्वपूर्ण और संग्रह करने लायक पुस्तकें है। इसलिए यदि विद्यार्थियों को पुस्तकों को खरीदने की आवश्यकता पड़े तो संकोच न करें।
प्रश्न 2 : पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर : टी-सेरेमनी का शब्द चित्र
‘टी-सेरेमनी’ का दृश्य एक छह मंजिला इमारत की छत पर स्थित एक सादे झोपड़ीनुमा कक्ष में उभरता है। कमरे की दीवारें दफ़्ती से निर्मित हैं और फर्श पर एक सरल चटाई बिछी हुई है। परिवेश अत्यंत शांत और सुकून भरा है। प्रवेश द्वार के बाहर एक विशाल, अनगढ़ मिट्टी का बर्तन रखा है, जिसमें आगंतुक अपने हाथ-पैर धोते हैं।
अंदर, चाजीन विनम्रतापूर्वक झुककर अभिवादन करता है। वह मेहमानों को बैठने का संकेत देता है और चाय तैयार करने के लिए अँगीठी प्रज्वलित करता है। उसके उपकरण अत्यंत स्वच्छ और सुंदर हैं। वातावरण इतना निस्तब्ध है कि चायदानी में उबलते जल की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है।
चाजीन धैर्यपूर्वक, बिना किसी शीघ्रता के चाय तैयार करता है। वह प्रत्येक कप में केवल दो-तीन घूँट चाय परोसता है, जिसे अतिथि धीरे-धीरे, छोटी-छोटी चुस्कियों में लेते हुए, लगभग डेढ़ घंटे में आस्वादित करते हैं। यह प्रक्रिया चाय पीने को एक ध्यानपूर्ण, आध्यात्मिक अनुभव में परिवर्तित कर देती है।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1 : भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियों और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है, जिसमें विद्यार्थियों को नक्शे पर वह स्थान अंकित कर सकते हैं। विद्यार्थियों की सहायता के लिए भारत के उन महत्वपूर्ण स्थान दिए जा रहे हैं…
1. असम
भौगोलिक स्थिति: पूर्वोत्तर भारत, ब्रह्मपुत्र नदी घाटी
विशेषताएँ: मजबूत, मालदार स्वाद, तांबई रंग
जलवायु: गर्म, आर्द्र
2. दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल)
भौगोलिक स्थिति: पूर्वी हिमालय की तलहटी
विशेषताएँ: हल्का, फूलों जैसी सुगंध, मस्कैटल फ्लेवर
जलवायु: ठंडी, पहाड़ी
3. नीलगिरि (तमिलनाडु)
भौगोलिक स्थिति: दक्षिणी भारत की नीलगिरि पहाड़ियाँ
विशेषताएँ: हल्का, सुगंधित, फलों का स्वाद
जलवायु: उष्णकटिबंधीय पहाड़ी
4. कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
भौगोलिक स्थिति: उत्तर-पश्चिमी हिमालय
विशेषताएँ: हल्का, फूलों की सुगंध
जलवायु: शीतोष्ण
5. मुन्नार (केरल)
भौगोलिक स्थिति: पश्चिमी घाट
विशेषताएँ: गहरा रंग, मजबूत स्वाद
जलवायु: उष्णकटिबंधीय
6. सिक्किम
भौगोलिक स्थिति: पूर्वी हिमालय
विशेषताएँ: हल्का, फूलों की सुगंध
जलवायु: उप-उष्णकटिबंधीय
पतझर में टूटी पत्तियाँ (I) गिन्नी का सोना (II) झेन की देन : रवींद्र केलेकर (कक्षा-10 पाठ-13 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)
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