NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2)
AB KAHAN DUSRON KE DUKH SE DUKHI HONE WALE : Nida Fazali (Class-10 Chapter-12 Hindi Sparsh 2)
अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली
पाठ के बारे में…
‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखा गया एक विचारोत्तेजक निबंध है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। लेखक के अनुसार इस धरती पर प्रकृति ने सभी प्राणियों के लिए जीने का अधिकार और सुविधा दी है, लेकिन मनुष्य नाम के स्वार्थी प्राणी ने पूरी धरती को केवल अपनी ही जागीर समझ लिया है। उसने अन्य प्राणियों जैसे पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जीव-जंतु आदि को दर-दर भटकने के लिए विवश कर दिया है और उनके जीवन जीने के अधिकार छीन लिए। इसी कारण जीवों की नस्ल खत्म हो चुकी है, यह बहुत तेजी खत्म होने के कगार पर है। मनुष्य को दूसरों के दुख की कोई चिंता नहीं है। वह केवल अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति में ही मग्न रहता है।
लेखक के बारे में…
निदा फ़ाज़ली उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार कवि रहे हैं। जिन्होंने आम बोलचाल की भाषा में शेरो शायरी लिखकर और उर्दू कविता लिखकर पाठकों के मन को छुआ है उनसे उनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। उनकी पहली पुस्तक ‘लफ्जों का पुल’ थी। उन्हें ‘खोया हुआ था कुछ’ नामक रचना के लिए 1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। अपनी गद्य रचनाओं में शेरो शायरी को पिरोकर वे थोड़े में नहीं बहुत बहुत कुछ कह जाते हैं। निदा फ़ाज़ली ने फिल्मों के लिए अनेक गीत-ग़ज़ल और शेरो-शायरी लिखी हैं। वह हिंदी फिल्मों से गहराई जुड़े रहे हैं। निदा फ़ाज़ली का निधन 8 फरवरी 2016 को हुआ।
हल प्रश्नोत्तर
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1 : बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
उत्तर : बड़े बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे इसलिए धकेल रहे थे ताकि वह अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा कर सकें और उस पर बड़ी-बड़ी ऊँची-ऊँची इमारतें खड़ी करके लोगों को से बेच कर ढेर सारा पैसा कमा सकें।
बड़े-बड़े बिल्डरों के लिए इमारतें बनाने के लिए जगह की कमी पड़ गई थी। जगह की कमी होने के कारण अब उन्हें समुद्र के किनारे इमारतें बनाने के लिए समुद्र को पाटने की सूझी। इसीलिए वह समुद्र को पीछे धकेल रहे थे ताकि उस जमीन को पाट कर उस पर ऊँची ऊँची इमारतें खड़ी कर सकें।
प्रश्न 2 : लेखक का घर किस शहर में था?
उत्तर : लेखक का घर मुंबई में था, उससे पहले लेखक मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहते थे।
लेखक निदा फ़ाज़ली का घर मुंबई के अंधेरी उपनगर के वर्सोवा इलाके में था, जो कि समुद्र के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध इलाका है। लेखक मूलतः मध्यप्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले थे, वहीं पर उनका पैतृक घर था।
प्रश्न 3 : जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है?
उत्तर : जीवन अब डब्बे जैसे घरों में सिमटने लगा है और लोग छोटे घरों में रहने को विवश हो गये हैं।
लेखक के अनुसार लोगों का जीवन अब डब्बे जैसे घरों में सिमट कर रह गया है। इसका मूल कारण जनसंख्या का बढ़ना और जगह का कम होना है। पहले जनसंख्या कम थी और जगह ज्यादा, इसलिए लोग बड़े-बड़े घरों में रहते थे, जिसमें दालान-आंगन आदि होते थे। बड़ा परिवार मिलजुल कर रहता था। अब एकल परिवार के दौर में और जगह की कमी के कारण लोग छोटे छोटे डिब्बे जैसे घरों में रहने के लिए विवश हो गए हैं।
प्रश्न 4 : कबूतर परेशानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
उत्तर : कबूतर परेशानी में इधर उधर इसलिए फड़ाफड़ा रहे थे, क्योंकि कबूतर के जोड़े के जो दो अंडे थे, वह दोनों अंडे फूट गए थे।
लेखक के घर के रोशनदान में एक कबूतर का जोड़ा रहता था। कबूतरी ने दो अंडे दिये तो एक अंडे को बिल्ली ने खा लिया था, तो दूसरा अंडा लेखक की माँ के गलती से गिरकर फूट गया। अपने दोनों अंडों के फूट जाने के कारण कबूतरों का जोड़ा बेचैनी में इधर-उधर फड़फड़ा रहा था।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए
प्रश्न 1 : अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं?
उत्तर : अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि नूह को ईश्वर का पैगंबर या दूत माना जाता है। अरब में लश्कर नाम के एक पैगंबर हैं, जिन्हें नूह कहा जाता है। उनका वर्णन बाइबिल जैसों ग्रंथों में भी मिलता है।
नूह के दिल में अपार करुणा और दया थी। वह हमेशा दूसरों के दुख से दुखी होते थे। लेकिन उनसे भी जीवन में एक गलती हो गई। एक बार एक घायल कुत्ता उनके पास आकर खड़ा हो गया तो उन्होंने कुत्ते को दुत्कारते काटते हुए कहा, दूर हो जा गंदे कुत्ते। तब कुत्ते ने उनकी दुत्कार को सुनकर जवाब दिया कि ना तो मैं अपनी मर्जी से कुत्ता हू, ना ही तुम अपनी मर्जी से इंसान। कुत्ते की यह बात नूह के दिल को गहरे गहराई तक चोट कर गई और आगे जिंदगी अपनी इसी गलती के दुख में दुखी होकर रोते रहे।
प्रश्न 2 : लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों?
उत्तर : लेखक की माँ शाम को सूरज डूबते समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने को मना करती थीं। लेखक की माँ कहती थीं कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने से उन्हें कष्ट होता है और पेड़ रोते हैं। इसीलिए वह शाम के समय पेड़ों से पत्ते तोड़ने को मना करती थीं।लेखक की माँ दिया-बत्ती के समय भी पेड़ों से फूलों को तोड़ने को मना करती थी उनका कहना था कि ऐसा करने से फूल बद्दुआ देते हैं। लेखक की माँ लेखक को समझाती थी कि हमेशा दरिया यानी समुद्र को सलाम करो, तो समुद्र खुश होता है। पशु, पक्षियों, कबूतरों को मत सताया करो।
प्रश्न 3 : प्रकृति में आए असंतुलन को क्या परिणाम हुआ?
उत्तर : प्रकृति में आए असंतुलन का यह परिणाम हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप बढ़ने लगा है। प्रकृति के असंतुलन के कारण अब गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगी है तथा सर्दी भी अधिक पड़ने लगी है। बरसात का समय भी अनिश्चित हो गया है और समय-बेसमय बरसात होने लगी है, जिससे जनधन और फसलों को नुकसान पहुंचता है।
प्रकृति में असंतुलन के कारण समुद्री तूफानों की तीव्रता बढ़ने लगी है और जब-तब आँधी तूफान आने लगे हैंं। प्रकृति में आए असंतुलन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है और इसके साथ ही तरह-तरह के नए लोग भी पैदा हो रहे हैं, जो मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।
प्रश्न 4 : लेखक की माँ ने पूरे दिन का रोज़ा क्यों रखा?
उत्तर : लेखक के ग्वालियर स्थित मकान के दालान में दो रोशनदान थे, इनमें से एक रोशनदान में कबूतर का एक जोड़ा घोंसला बनाकर रहता था। कबूतर के जोड़े ने अपने घोंसले में दो अंडे दिए थे।
उन दोनों अंडों में से एक अंडा बिल्ली ने गिरा कर तोड़ दिया तो लेखक की माँ ने जब यह देखा तो उन्होंने दूसरे अंडे को बिल्ली से बचाने के लिए उसे उठाने की कोशिश की। अंडा बचाने के चक्कर में उनके हाथ से गलती से अंडा गिरकर टूट गया। यह देखकर कबूतर बेचैन होकर फड़फड़ाने लगे। उनके आँखों में दुख देखकर लेखक की माँ की आँखों में भी आंसू आ गए।
लेखक की माँ एक संवेदनशील महिला थी और पशु पक्षियों के प्रति संवेदना का भाव रखती थी, इसीलिए उन्होंने अपने कृत्य को गुनाह माना और खुदा से माफी मांगने के लिए पूरा दिन रोज़ा रखा।
प्रश्न 5 : लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक अनेक बदलावों को महसूस किया है। लेखक के अनुसार ग्वालियर से बंबई की दूरी में संसार में काफी कुछ बदल गया है। ग्वालियर का लेखक का घर बेहद बड़ा था, जहाँ पर बड़ा आंगन था। पहले के घर बड़े-बड़े होते थे और परिवार भी बड़े बड़े होते थे और परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर रहते थे। अब बंबई जैसे महानगरों में लोग एकल परिवार में सिमट कर रह गए हैं और डब्बेनुमा घरों में रहते हैं।
लेखक वर्सोवा स्थित जिस जगह पर रहता था, वहाँ पर पहले दूर-दूर तक घना जंगल था। वहां पर पेड़-पौधे, परिंदे और दूसरे जानवर रहते थे। अब वहाँ पर समुंदर के किनारे लंबी-चौड़ी बस्ती बन गई है और इस बस्ती के बसाए जाने के कारण कितनी ही परिंदे और जानवरों का घर छिन गया है। कुछ तो छोड़ शहर कर चले गए और जो रह गए उन्हें अपने घर के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है।
प्रश्न 6 : डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : डेरा डालने का अर्थ है अस्थाई रूप से कहीं पर अपना निवास स्थान बनाना। डेरा अस्थाई घर को कहते हैं। पाठ के आधार पर अगर कहें तो मनुष्य द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के कारण पशु पक्षियों को अपनी रहने की जगह को छोड़कर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। यानि उन्हें अपने रहने के लिए डेरा डालना पड़ता है। पशु पक्षियों को भी रहने के लिए कोई ना कोई जगह चाहिए होती है।
मनुष्य ने हर जगह पर कब्जा बनाना शुरू कर दिया है और उसने पशु पक्षियों की जगह को भी नहीं छोड़ा है। मनुष्य ने जंगल, पेड़-पौधे आदि पर भी कब्जे करने शुरू कर दिए हैं। पहले पेड़ों पक्षी घोंसला बना लेते थे लेकिन मनुष्य में पेड़ों को भी नहीं छोड़ा तो पक्षियों को अपने घोंसले आदि के लिए इमारतों की मचाना आदि पर डेरा डालना पड़ता है, यानी उन्हें अपना अस्थाई घर बनाना पड़ता है।
प्रश्न 7 : शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख भोजन छोड़कर क्यों उठ खड़े हुए?
उत्तर : शेख अयाज़ के पिता अपनी बाजू पर काला च्योंटा रेंगता देख कर भोजन छोड़कर इसलिए उठ खड़े हुए क्योंकि वह पशु-पक्षियों के प्रति बेहद संवेदनशील व्यक्ति थे। उनके हृदय में सभी प्राणियों के लिए दया एवं करुणा थी।
एक दिन जब वे स्नान करने के बाद आकर भोजन करने बैठे तो उन्होंने देखा कि एक काला च्योंटा उनके बाजू पर रेंग रहा है। यह देखकर तुरंत भोजन छोड़ कर उठ खड़े हुए। वह समझ गए यह काला च्योंटा स्नान के समय ही कुएँ से उनके साथ आ गया था। वह किसी भी यही प्राणी को उसके घर से बेघर नहीं कर सकते थे। इसीलिए वह तुरंत भोजन छोड़कर कुछ च्योंटे को उसके घर यानि कुएँ पास पहुंचाने चल पड़े, ताकि वह अपने घर से बेघर ना हो पाए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए
प्रश्न 1 : बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर : बढ़ती आबादी का पर्यावरण पर बेहद बड़ा गहरा दुष्प्रभाव पड़ा है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, पर्यावरण संकट में पड़ता जा रहा है। बढ़ती आबादी के कारण मानव की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं, संसाधन कम होते जा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ने लगा है।
बढ़ती आबादी के कारण अधिक लोगों को बसाने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता पड़ रही है, जिससे मानव ने जंगल पेड़-पौधे काटने शुरू कर दिए हैं और वहाँ पर ऊँची इमारतें खड़ी करनी शुरू कर दी हैं। जंगल, नदी, पर्वत, समुद्र आदि पर मानव के अतिक्रमण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
जंगलों की कमी से स्वच्छ वायु की कमी हो रही है, बारिश में कमी आ रही है, पेड़ पौधों की कमी होने से गर्मी भी बढ़ती जा रही है। अत्यधिक वर्षा, समय-बेसमय वर्षा, आँधी, तूफान, भूकंप, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं पर्यावरण में हो रहे, इस असंतुलन का ही परिणाम है और यह पर्यावरण असंतुलन बढ़ती आबादी के कारण मानव के द्वारा प्राकृतिक जगहों पर किए जाने वाले अतिक्रमण के कारण उत्पन्न हुआ है। इसी कारण बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण दुष्प्रभाव ही पड़ा है।
प्रश्न 2 : लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली क्यों लगवानी पड़ी?
उत्तर : लेखक की पत्नी को खिड़की में जाली इसलिए लगवानी पड़ी, क्योंकि लेखक के फ्लैट के मचान पर कबूतरों के एक जोड़े ने मैंने अपना डेरा जमा रखा था, यानि अपना घोंसला बना रखा था। कबूतरों ने उस घोसले में अंडे दिए और उन अंडों से बच्चे भी निकल आए थे। इसलिए कबूतर उन्हें दाना-पानी देने के लिए बार-बार आते-जाते रहते थे।
कबूतर कभी-कभी फ्लैट के अंदर भी चले आते थे। कबूतरों की आवाजाही से लेखक और उसकी पत्नी को असुविधा होने लगी थी। कबूतर अंदर फ्लैट में लेखक की पुस्तकों को भी गंदा कर देते थे। इन सभी असुविधाओं से बचने के लिए लेखक की पत्नी ने घोंसले को थोड़ा आगे खिसका कर बीच में जाली लगा दी ताकि कबूतर अंदर ना आने पायें।
प्रश्न 3 : समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला?
उत्तर : समुद्र के गुस्से की यह वजह थी कि बिल्डर लगातार उसकी जमीन को हथियाते जा रहे थे। पहले तो बिल्डरों ने लालच में उसकी जमीन को हथियाना शुरू कर दिया और समुद्र को पीछे धकेलना शुरू कर दिया। इस कारण समुद्र को पहले ऊँकड़ू को कर बैठना पड़ा, फिर भी बिल्डर आगे बढ़ते गए और समुद्र को पीछे धकेलते गए। इससे समुद्र को फिर खड़ा होना पड़ा। फिर भी बिल्डर अपनी हरकतों से बाज नहीं आए और उसकी जमीन को और हथियाते जा रहे थे।
समुद्र का आकार घटता जा रहा था, वैसे सिमटता जा रहा था। अंत में समुद्र के सब्र का बांध टूट गया और वह उसे गुस्सा आया। उसने गुस्से में आकर अपने सीने पर दौड़ते तीन जजों को अलग-अलग दिशाओं में गेंद की तरह उठाकर फेंक दिया। एक जहाज वर्ली के समुद्र के किनारे गिरा। दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने समुद्र के किनारे गिरा तथा तीसरा जहाज गेटवे ऑफ इंडिया के सामने आकर गिरा। इस तरह समुद्र ने तीनों जहाजों को फेंककर अपना गुस्सा निकाला।
प्रश्न 4 : ‘मट्टी से मट्टी मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान’
इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का अभिप्राय यह है कि इस संसार में मनुष्य का निर्माण मिट्टी से ही हुआ है और अलग-अलग तरह के मनुष्य अलग-अलग तरह की मिट्टी से बने हैं। लेकिन यह मिट्टी आपस में मिल चुकी हैं। यानी सभी मनुष्य आपस में मिल चुके हैं, और कौन सा मनुष्य कैसा है? वह कहाँ का है? ये सब पहचान करने की कोशिश करना ही व्यर्थ है।
इसलिए मनुष्य में अब भेदभाव करना उचित नहीं और सबको मिलजुलकर ही रहना चाहिए। हर मनुष्य में गुण एवं दोषों का मेल ही होता है। किसी में गुण अधिक होते हैं जो किसी में दुर्गुण अधिक होते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों, देशों, शहरों, गाँव से आए हुए मनुष्य किसी अन्य जगह में इतना भी मिल जाते हैं, अपने मूल पहचान से ही अलग हो जाते हैं और उनमें उनकी पहचान बाकी रह गई है यह निश्चित पाना मुश्किल कार्य है और उसकी जरूरत भी नही है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए
प्रश्न 1 : नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा होती है। नेचर के गुस्से का एक नमूना कुछ साल पहले बंबई में देखने को मिला था।
आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का आशय यह है कि प्रकृति सहनशील होती है, लेकिन उसके सहन करने की भी एक सीमा है। विराम चिन्ह मानव निरंतर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है और वह प्रकृति के तत्वों पर अतिक्रमण करता जा रहा है प्रकृति की सहनसीमा अब टूटने लगी है और वह अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है। प्रकृति गुस्सा होकर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में अपने क्रोध को प्रकट करने लगी है।
ऐसे ही मानव के द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से परिणाम का एक उदाहरण बंबई में तब देखने को मिला जब समुद्र ने गुस्से में आकर समुद्र के किनारे खड़े तीन जहाजों को अपनी लहरों से उछाल कर फेंक दिया और तीनों जहाज अलग-अलग जगह पर गिरे। एक वर्ली के समुद्र तट पर, दूसरा बांद्रा में कार्टर रोड के सामने के समुद्र तट पर तथा तीसरा गेटवे ऑफ इंडिया के सामने जा गिरा।
लेखक द्वारा यहाँ पर यह कहने का आशय यह था कि समुद्र द्वारा प्रकट किए क्रोध के कारण समुद्र के किनारे खड़े ये यह दुर्घटना का शिकार हुए। इसलिए मनुष्य को प्रकृति से बहुत अधिक छेड़छाड़ करने से बचना चाहिए नही तो प्रकृति इसकी इसकी सजा अवश्य देगी।
प्रश्न 2 : जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।
आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक के कहने का आशय यह है कि महान लोगों में हमेशा क्षमा करने तथा क्रोध ना आने का गुण होता है। जो व्यक्ति जितना अधिक बड़ा जितना अधिक महान होता है, उसके अंदर सहनशीलता का भी उतना ही अधिक गुण होता है। पहले तो वह क्रोध करते ही नही और किसी के द्वारा गलती करने पर उसे क्षमा कर देते हैं। क्षमाशीलता का यही गुण ही उन्हें बड़ा और महान बनाता है। ऐसे महान व्यक्ति अपितु क्रोध करते ही नहीं और यदि करते भी हैं, तो उनका क्रोध बेहद विकराल होता है। फिर उसके सामने कोई नहीं टिक पाता।
समुद्र भी महान होता है। वह मनुष्य द्वारा की जानी वाली छेड़छाड़ को चुपचाप सहन करता रहता है और हमेशा माफ कर देता है. लेकिन जब समुद्र के सब्र का बांध टूट जाता है तो वह अपना क्रोध को विकराल रूप में प्रकट करता है। लेखक ने महान व्यक्तियों और समुद्र के इन्हीं गुणों की तुलना की है।
प्रश्न 3 : इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों-चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ-वहाँ डेरा डाल लिया है।
आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने जंगलों पर मानव द्वारा किए जाने वाले अतिक्रमण तथा बढ़ते शहरीकरण पर चिंता प्रकट की है। मानव ने नई-नई बस्तियों बसाने के लिए जंगलों को नष्ट करना शुरू कर दिया है। इन जंगलों में पशु-पक्षी आदि रहते थे, जो उनके मूल घर थे।
अब यहां पर बस्तियां बस चुकी हैं, इसलिए यहां के मूलनिवासी पशु-पक्षी आदि को इस जगह को छोड़कर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। कुछ तो यह शहर छोड़कर ही चले गये हैं और जो कुछ बचे रह गए हैं, उन्हें भी शहर में अपने आश्रय स्थल को ढूंढना पड़ रहा है और इसकी कारण यहाँ-वहाँ इमारतों आदि में अपना डेरा जमा लेते हैं।
प्रश्न 4 : शेख अयाज़ के पिता बोले, ‘नहीं, यह बात नहीं है। मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।’ इन पंक्तियों में छिपी हुई उनकी भावना को स्पष्ट कीजिए।
आशय : शेख अयाज़ के पिता बोले, नहीं यह बात नहीं है कि मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है। उसके घर को वहाँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ। इन पंक्तियों के पीछे शेख अयाज़ के पिता की मानवीयता, प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता, करुणा और दयालुता की भावना प्रकट होती है।
शेख अयाज़ के पिता प्राणीमात्र के प्रति दया एवं करुणा का भाव रखते थे। करुणा का मतलब केवल मनुष्य के प्रति दया-करुणा प्रकट करने से नहीं होता बल्कि संसार के हर प्राणी चाहे वह छोटा सा कीड़ा क्यों ना हो, उसके प्रति भी दया एवं करुणा का भाव अपनाना ही सच्ची दया एवं करुणा है।
हमारी दया एवं करुणा चयनित नहीं हो सकती यानी हम किसी के प्रति अपार दया एवं करुणा का भाव अपनाएं और किसी दूसरे प्राणी के प्रति निर्दयी हो जाए तो वह सच्ची दया-करुणा नहीं है।। हर प्राणी के प्रति दया एवं करुणा का भाव होना चाहिए। शेख अयाज़ के पिता एक छोटे से कीड़े के प्रति दया करुणा का भाव रखते थे। गलती से एक कीड़ा कुएँ से उनके कपड़ों के साथ चिपक उनके घर तक आ गया। अब उसे उसके घर से बेघर नहीं कर सकते थे, इसीलिए जब उन्हें वह अपने कपड़ों पर दिखा वे उसे उसके घर यानि कुएँ तक छोड़ने चले गए।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1 : उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए; जैसे-

उत्तर : कारक चिन्हों के नाम इस प्रकार होेगे..
(क) माँ ने भोजन परोसा — कर्ता कारक
(ख) मैं किसी के लिए मुसीबत नही हूँ। — अधिकरण कारक
(ग) मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया — कर्ता कारक, कर्म कारक
(घ) कबूतर परेशान में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। — अधिकरण कारक
(ङ) दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो। — अधिकरण कारक, कर्म कारक
प्रश्न 2 : नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
चींटी, घोड़ा, आवाज, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा।
उत्तर : बहुवचन रूप इस प्रकार होंगे…
चींटीं — चीटियां
घोड़ा — घोड़े
आवाज — आवाजें
बिल — बिलें
फ़ौज — फ़ौजें
रोटी — रोटियां
बिंदु — बिंदुएं
दीवार — दीवारें
टुकड़ा — टुकड़े
प्रश्न 3 : ध्यान दीजिए नुक्ता लगाने से शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। पाठ में दफा’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है-बार (गणना संबंधी), कानून संबंधी। यदि इस शब्द में नुक्ता लगा दिया जाए तो शब्द बनेगा ‘दफ़ा’ जिसका अर्थ होता है-दूर करना, हटाना। यहाँ नीचे कुछ नुक्तायुक्त और नुक्तारहित शब्द दिए जा रहे हैं उन्हें ध्यान से देखिए और अर्थगत अंतर को समझिए।
सजा – सज़ा
नाज – नाज़
जरा – ज़रा
तेज – तेज
निम्नलिखित वाक्यों में उचित शब्द भरकर वाक्य पूरे कीजिए-
आजकल ……….. बहुत खराब है। (जमाना/जमाना)
पूरे कमरे को ………… दो। (सजा/सजा)
………… चीनी तो देना। (जरा/जरा)
माँ दही ………. भूल गई। (जमाना/जमाना)
दोषी को ……….. दी गई। (सजा/सज़ा)
महात्मा के चेहरे पर …………. था। (तेज/तेज़)
उत्तर : रिक्तस्थान की पूर्ति इस प्रकार होगी…
- आजकल ज़माना बहुत खराब है। (जमाना/ज़माना)
- पूरे कमरे को सजा दो। (सजा/सज़ा)
- जरा चीनी तो देना। (जरा/ज़रा)
- माँ दही जमाना भूल गई। (जमाना/ज़माना)
- दोषी को सज़ा दी गई। (सजा/सज़ा)
- महात्मा के चेहरे पर तेज था। (तेज/तेज़)
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1 : पशु-पक्षी एवं वन्य संरक्षण केंद्रों में जाकर पशु-पक्षियों की सेवा-सुश्रूषा के संबंध में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपने निकट के वन्य संरक्षण केंद्र में जाएं और वहाँ पर केंद्र के कर्ता-धर्ता कैसे कार्य करते हैं, वे पशु-पक्षियों की कैसे सेवा-सुश्रूषा करते हैंं उनसे जानकारी प्राप्त करें और उनकी कार्यविधि को देखकर समझने का प्रयास करें।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1 : अपने आसपास प्रतिवर्ष एक पौधा लगाइए और उसकी समुचित देखभाल कर पर्यावरण में आए असंतुलन को रोकने में अपना योगदान दीजिए।
उत्तर : ये भी एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी नियमित वृक्षारोपण का संकल्प लें।
प्रश्न 2 : किसी ऐसी घटना का वर्णन कीजिए जब अपने मनोरंजन के लिए मानव द्वारा पशु-पक्षियों का उपयोग किया गया हो।
उत्तर : हमारे गाँव में हर साल एक मेला आयोजित होता था, जहाँ पशु-पक्षियों का मनोरंजन के लिए उपयोग किया जाता था। मेले में एक खास आकर्षण था – बंदरों का नाच। कुछ लोग बंदरों को पकड़कर, उन्हें कठोर प्रशिक्षण देते थे और फिर उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर नचाते थे। लोग तालियां बजाते और हंसते, लेकिन वे बंदरों की पीड़ा को अनदेखा करते थे।
इसी तरह गाँव में एक और खेल में मुर्गों की लड़ाई करवाई जाती थी, जिसमें दो मुर्गों को आपस में लड़वाया जाता था। यह खेल देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटती थी। इन गतिविधियों से पशु-पक्षियों को कष्ट होता था, लेकिन मनोरंजन के नाम पर इनकी तकलीफों की परवाह नहीं की जाती थी।
अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले : निदा फ़ाज़ली (कक्षा-10 पाठ-12 हिंदी स्पर्श 2) (NCERT Solutions)
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