NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
बड़े भाई साहब : प्रेमचंद (कक्षा-10 पाठ-8 हिंदी स्पर्श 2)
BADE BHAISAHAB : Premchand (Class-10 Chapter-8 Hindi Sparsh 2)
बड़े भाई साहब : प्रेमचंद
पाठ के बारे में…
‘बड़े भाई साहब’ नामक पाठ मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक रोचक कहानी है, जिसमें एक बड़े भाई साहब हैं, जो हमेशा अपने छोटे भाई की पढ़ाई के विषय में सोचते रहते हैं। हालाँकि बड़े भाई साहब खुद स्वयं पढ़ाई में इतने अच्छे नहीं थे, लेकिन छोटे भाई के प्रति उनकी चिंता बड़े भाई होने के नाते उनके कर्तव्य का बोध कराती है। छोटे भाई से उम्र में केवल 5 साल बड़ा होने के कारण उनसे बड़ी-बड़ी अपेक्षा की जाती हैं। इसी कारण बड़ा होने के नाते वे खुद भी छोटे भाई के सामने अपना बड़प्पन बनाए रखते हैं और छोटे भाई को किसी गलत राह पर चलने से रोकते-टोकते रहते हैं। बड़े भाई बने रहने के चक्कर में उनका उनका बचपन भी तिरोहित हो गया है, इस पाठ के माध्यम से लेखक ने यही बताने का प्रयत्न किया है।
लेखक के बारे में…
मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का गौरव माने जाते हैं। उनका असली नाम धनपतराय था। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बनारस के लमही गाँव में हुआ था। वे हिंदी में मुंशी प्रेमचंद के नाम से और उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। ब्रिटिश शासन के समय उनका उर्दू में रचित कहानी संग्रह ‘सोज़े वतन’ अंग्रेजों की आँखों की किरकिरी बन गया था। उन्होंने ‘हंस’ नामक उन्होंने पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया और हंस के साथ-साथ ‘माधुरी’ नामक प्रमुख पत्रिका का संपादन किया।
उनके प्रसिद्ध उपन्यास गोदान, सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, मंगलसूत्र, कर्मभूमि, सेवाश्रम, गबन आदि के नाम प्रमुख हैं। बड़े भाई साहब उनके द्वारा रचित कहानियों में से एक है। इसके अलावा उन्होंने सैकड़ों कहानियों की रचना की जो एक से बढ़कर एक हैं। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ।
हल प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए।
प्रश्न-1 : कथा नायक की रूचि किन कार्यों में थी ?
उत्तर : कथा नायक की रुचि मुख्यतः खेलकूद का कार्य करने, कंकरिया उछालने, मैदानों की हरियाली का आनंद लेने, कनकौवे उड़ने यानी पतंगबाजी करने , दोस्तों से गपबाजी करने, दोस्तों के साथ कागज की तितलियां बनाकर उड़ाने, फाटक या चारदीवारी पर चढ़कर उछलने कूदने तथा फाटक को गाड़ी जैसा बनाकर उस पर झूला झूलने, सदा दोस्तों के साथ कई तरह की धमाचौकड़ी और मस्ती करने में होती थी। कथावाचक का मन पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं लगता था।
प्रश्न-2 : बड़े भाई छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई से हमेशा यही सवाल पूछते थे, कहाँ थे? जब भी छोटा भाई बाहर से घूम-फिर कर, दोस्तों के साथ गपबाजी, मस्ती करके, धमाचौकड़ी मचा कर घर वापस लौटा तो बड़े भाई साहब का छोटे भाई से सबसे पहला सवाल यही होता था, कहाँ थे?
प्रश्न-3 : दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर : दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के विवाह में यह परिवर्तन आया कि अब अधिक स्वतंत्र और स्वच्छंद हो गया था, क्योंकि दूसरी बार पास होने पर बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को डांटना, रोकना-टोकना कम कर दिया था। बड़े भाई साहब ने सहनशील रवैया अपना लिया था और वह छोटे भाई से हर घड़ी, कहाँ थे? नहीं पूछते थे और ना ही उसे बात-बात पर रोकते-टोकते थे। इस कारण छोटा भाई आजाद सा हो गया। अब छोटा भाई अधिक मनमानी करने लगा था और उसे कनकौवे उड़ाने यानि पतंगबाजी करने का नया शौक पैदा हो गया था। अब वह खेलने कूदने में अधिक समय बिताने लगा था।
प्रश्न-4 : बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में पाँच साल बड़े थे और बड़े भाई साहब नवीं कक्षा में पढ़ते थे।बड़े साहब छोटे भाई यानी कथा वाचक से मात्र पाँच साल बड़े होने के बावजूद उसे केवल तीन कक्षा तक का ही आगे थे। जब छोटा भाई पाँचवी कक्षा में पढ़ता था तो बड़े भाई साहब के उस वक्त नवीं कक्षा में पढ़ते थे। बाद में बड़े भाई साहब फेल होते गए और छोटे भाई और बड़े भाई के बीच का अंतर मात्र एक कक्षा का रह गया था।
प्रश्न-5 : बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर : बड़े भाई साहब अपने दिमाग को आराम देने के लिए अनेक तरह के यतन-जतन करते रहते थे, कभी वह किताब के हाशियों पर चिड़ियों, बिल्लियों, कुत्तों आदि के चित्र आदि बनाते रहते थे। इसके अलावा वे कापी में एक ही शब्द को कई बार लिखने लगते थे और कभी-कभी तो वे बेमेल शब्द को लिखते रहते थे। कभी-कभी वह सुंदर शायरी भी लिखा करते थे। इस तरह बड़े भाई साहब अपने दिमाग को आराम देने के लिए तरह-तरह के प्रयोजन अपनाते थे।
लिखित
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए।
प्रश्न-1 : छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर : छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम टेबल बनाते समय यह सोचा था कि वह अब खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगा और अपने बड़े भाई साहब को शिकायत का एक भी मौका नहीं देगा। इसी कारण छोटे भाई ने टाइम टेबल बनाते समय रात ग्यारह बजे तक का टाइम टेबल बना लिया था और हर विषय के लिए अलग समय निर्धारित कर लिया था। लेकिन छोटे भाई ने टाइम टेबल में खेल के लिए कोई समय नहीं दिया था, इसी कारण उसका ध्यान हर समय खेल के मैदान बाहर की धमाचौकड़ी, हवा के हल्के-हल्के झोंके, फुटबॉल आदि खेलना, कबड्डी, वॉलीबाल जैसे खेल खेलना आदि गतिविधियों में ही लगा रहता था, इसी कारण वह अपने पढ़ाई के टाइम टेबल का पालन नहीं कर पाया।
प्रश्न-2 : एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर : एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई वापस घर आया तो बड़े भाई के सामने पड़ने पर बड़े भाई उस पर बेहद के क्रोधित हुए। उन्होंने यह जानकर कि छोटा भाई गुल्ली-डंडा खेल कर आया है, उसे बहुत डांटा। उन्होंने छोटे भाई से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा और गुल्ली-डंडा खेल की बहुत आलोचना की। उन्होंने गुल्ली-डंडा खेल की बुराइयां बताते हुए कहा कि यह खेल खेलने से तुम्हारा भविष्य चौपट हो जाएगा। उन्होंने छोटे भाई को यह भी ताना दिया कि वो कक्षा में अव्वल आ गया है, इसी कारण से अहंकार हो गया है और अहंकार तो रावण का भी नहीं रहता और सब के अहंकार का एक न एक दिन अंत होता ही है। इसीलिए उसे अपने अव्वल आने पर अहंकार नहीं करना चाहिए और अपनी पढ़ाई पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न-3 : बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर : बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएं इसलिए दबानी पड़ती थीं, क्योंकि वह छोटे भाई से पाँच साल उम्र में बड़े थे। दोनों भाई एक हॉस्टल में रहते थे, इस कारण बड़े भाई होने के नाते वह छोटे भाई के अभिभावक के रूप में के। अभिभावक की भूमिका निभाने के कारण उन्होंने छोटे भाई के सामने अपना बड़प्पन प्रदर्शित करना होता था। वे ऐसा कोई भी गलत कार्य करना चाहते थे, कि जिसे देखकर छोटा भाई उनका अनुकरण करें और अपनी पढ़ाई से अपना ध्यान हटा ले। इसीलिए अपने स्वभाव का वैसा ही प्रदर्शन करते थे, जैसे बड़े लोग अपनी छोटो के सामने करते है। उनका सोचना कि यदि गलत रास्ते पर चलेंगे, तो छोटा की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। बड़े भाई साहब का भी मन बाल सुलभ हरकतों को करने का करता था। उनका मन भी मौज मस्ती करने पतंग उड़ाने का करता था, लेकिन छोटे भाई के प्रति अपने नैतिक कर्तव्य बोध के कारण वह अपने मन की इच्छाओं को दबा लेते थे।
प्रश्न-4 : बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
उत्तर : बड़े भाई साहब छोटे भाई को हमेशा पढ़ाई में अधिक से अधिक ध्यान देने की सलाह देते रहते थे। वे चाहते थे कि छोटा भाई हर समय पढ़ाई करें और अच्छे अंको से पास हो। वे यह नहीं चाहते थे कि छोटा भाई खेलकूद में अधिक समय बिताये और उसका ध्यान पढ़ाई हटे। छोटे भाई को अंग्रेजी विषय पर अधिक ध्यान देने के लिए भी सलाह देते रहते थे, वह कहते थे कि अंग्रेजी विषय को पढ़ने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है और यदि मेहनत नहीं करोगे तो तुम उसी दर्जे में रह जाओगे, पास नहीं हो पाओगे। इस तरह छोटे भाई को हमेशा पढ़ाई पर अधिक से अधिक ध्यान देने की सलाह और खेलकूद में से दूर रहने की सलाह देते रहते थे।
प्रश्न-5 : छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर : छोटे भाई ने बड़े भाई के नरम व्यवहार का अनुचित फायदा उठाया। जब छोटा भाई दूसरी बार अपनी कक्षा में अव्वल आ गया तो बड़े भाई ने उसे रोकना-टोकना कम कर दिया था। बड़े भाई ने छोटे भाई के प्रति अब अधिक सहनशील रवैया अपना लिया था और वो ज्यादा रोक-टोक नही पाते थे। छोटे भाई के अव्वल आने के कारण छोटे भाई का आत्मविश्वास बढ़ गया था और बड़े भाई का रौब छोटे भाई पर पहले जैसा नहीं रहा था। इसी कारण छोटे भाई ने उसका अनुचित लाभ उठाना शुरू कर दिया। अब वह अधिक स्वतंत्र और स्वच्छंद हो गया था। वो अधिक मनमानी करने लगा था और खेलकूद में अधिक ध्यान देने लगा था। अब उसे पतंग उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया था। छोटे भाई को मन में यह सोच आ गई थी कि जिस तरह अपनी कक्षा में अव्वल आ गया है, वैसे ही अगली कक्षा में आ जायेगा।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए।
प्रश्न-1 : बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए ।
उत्तर : बड़े भाई साहब की डांट-फटकार अगर छोटे भाई को ना मिली होती तो छोटा भाई कक्षा में अव्वल आ ही नहीं आ पाता। क्योंकि छोटा भाई पढ़ने के साथ-साथ खेलकूद पर भी बहुत ध्यान देता था और उसका मन पढ़ाई से अधिक खेलकूद में लगता था। हालांकि यह बात अलग थी कि वह पढ़ाई में होशियार था, लेकिन खेलकूद की तरफ उसका आकर्षण निरंतर बढ़ते रहने के कारण यदि बड़े भाई साहब उसे रोकते-टोकते नहीं तो वह खेलकूद की ओर अधिक आकर्षित होता जाता और पढ़ाई की तरफ से उसका ध्यान कम हो सकता था।
बड़े भाई साहब की डांट फटकार और नसीहत के कारण छोटा भाई थोड़ा सचेत हो गया था। उसे बड़े भाई साहब का भय लगा रहता था, इसी कारण वह ध्यान पूर्वक पढ़ाई करने लगा था। यदि बड़े भाई साहब उसे इस तरह डांटते-फटकारते पर करते नहीं, तो हो सकता है कि वह पढ़ाई से अधिक खेलकूद की तरफ ध्यान देता और तब वह परीक्षा में अव्वल आ ही नहीं पाता।
प्रश्न-2 : बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभवों से आती है, केवल किताबी ज्ञान से नहीं आती है। बड़े भाई साहब जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार किताबी ज्ञान प्राप्त कर डिग्रियां हासिल करने से आदमी विद्वान नहीं बन जाता। जब तक उसे जीवन के वास्तविक एवं व्यवहारिक रूप का अनुभव नहीं होगा, तब तक वह जीवन में सफल नहीं हो सकता। किताबी ज्ञान द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के अलावा जीवन के व्यवहारिक रूप को भी समझना आवश्यक होता है। दोनों के मिले-जुले रूप से ही जीवन की समझ आती है। इसीलिए बड़े भाई साहब के अनुसार किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यहारिक ज्ञान भी प्राप्त करते रहना चाहिए। तब ही शिक्षा का सही अर्थ सार्थक होगा। किताबी ज्ञान के अलावा जीवन में सदगुणों का विकास भी जरूरी है, जो मनुष्य के चरित्र का निर्माण करते हैं।
प्रश्न-3 : छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर : छोटे भाई के मन में बड़े भाई के प्रति श्रद्धा इसलिए उत्पन्न हुई, क्योंकि जब वह अपनी परीक्षा में दूसरी बार भी अव्वल आया तो उसे यह एहसास हो गया था कि उसकी सफलता के पीछे बड़े भाई साहब का ही हाथ है। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को बेहद समझाया था कि पढ़ाई में भले ही अच्छा हो गया हो और उस उनसे अधिक अंक लाता हो, लेकिन जीवन के अनुभवों में वह अभी भी कच्चा है क्योंकि वह उनसे छोटा है। बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को जीवन संबंधित अनेक नसीहतें देते हुए समझाया कि जीवन में अपने से बड़ों का अलग महत्व होता है। वह छोटों का विशेष ध्यान रखते हैं और किसी भी तरह की विपत्ति आने पर उसको संभाल लेते हैं, जिससे उनके छोटे बेफिक्र रहते हैं।
बड़े भाई साहब ने समझाया कि उनका काम भी यही है कि वह अपने छोटे भाई का ध्यान रखें और उसे किसी भी तरह की परेशानी ना पैदा होने दें। बड़े भाई साहब ने उसे आने वाली कक्षा की पढ़ाई की कठिनाइयों के बारे में भी बताया और कहा कि उसकी भलाई के कारण ही वह अपनी इच्छाओं का दमन करते हैं और उस पर विशेष ध्यान देते हैं। बड़े भाई की ये सारी नसीहत और बातें सुनकर छोटे भाई की आँखें खुल गई और उसे एहसास हो गया कि यदि परीक्षा में अव्वल आ रहा है, तो इसमें उसके बड़े भाई साहब का भी योगदान है, क्योंकि उन्होंने डांटते-फटकारते हुए उसे गलत राह पर चलने से हमेशा रोका। इन्हीं सब कारणों से छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।
प्रश्न-4 : बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
उत्तर : बड़े भाई साहब की स्वभावगत विशेषताएं इस प्रकार हैं…
आदर्श भाई : बड़े भाई साहब का सबसे प्रमुख स्वभाव यह है कि वह एक आदर्श भाई थे, और उसी तरह का व्यवहार भी करते हैं। उन्हें अपने छोटे भाई के हित की चिंता हमेशा लगी रहती थी। इसी कारण वे अपने छोटे भाई को किसी भी तरह के गलत राह पर भटकने से रोकते रहते थे। एक बड़े भाई का जो कर्तव्य होता है वह सभी कर्तव्य निभाते थे।
संस्कारी : बड़े भाई साहब बड़ों का आदर करने वाले एक संस्कार व्यक्ति थे। वह अपने बड़ों, अपने माता-पिता तथा गुरुजनों सभी का सम्मान करते थे। इसी कारण वह अपने छोटे भाई को भी बड़ों का सम्मान करने की सीख दिया करते हैं।
संयमी और कर्तव्य परायण : बड़े भाई साहब बेहद संयमित स्वभाव के व्यक्ति थे। छोटे भाई को मौज मस्ती करते देखकर और घूमते देखकर उनका मन भी वैसा ही सब करने का करता था, लेकिन वह स्वयं पर संयम स्थापित करके रखते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि यदि वह भी अपने छोटे भाई की तरह आचरण करने लंगेगे हो जाएंगे तो फिर छोटे भाई को कौन संभालेगा। यह उनका अपने छोटे भाई के प्रति कर्तव्य को भी प्रकट करता है।
परिश्रमी : बड़े भाई साहब खासे परिश्रमी थे और वे हमेशा परिश्रम को महत्व देते थे। हालाँकि वे पढ़ाई में कमजोर थे, लेकिन वह पढ़ाई में परिश्रम पूरा करते थे। उन्हें चित्रकारी करने का बेहद शौक था। वे आराम के क्षणों में जानवरों के चित्र बनाते थे।
अनुभवी एवं समझदार : बड़े भाई साहब छोटे भाई से केवल 5 वर्ष अधिक थे, लेकिन उन्हें जीवन के अनुभवों की अधिक समझ थी। अपने छोटे भाई के सामने ऐसी बातें करते थे और ऐसा आचरण प्रदर्शित करते थे जैसे कोई घर का बड़ी उम्र का व्यक्ति करता है। उन्हें जीवन के अनुभवों की समझ अपनी उम्र से अधिक और छोटे भाई को भी जीवन के व्यहारिक अनुभवों के बारे में नसीहतें देते रहते थे।
प्रश्न-5 : बड़े भाई साहब ने ज़िंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है?
उत्तर : बड़े भाईसाहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्वपूर्ण कहा है। बड़े भाई साहब जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्व देते थे। उनका मानना था कि ज्यों-ज्यों मनुष्य की उम्र बीत जाती है, उसे जिंदगी के अधिक अनुभव प्राप्त होने लगते हैं। वह अच्छे और बुरे के भेद को समझने लगता है। उनका कहना था कि बड़ों के पास भले ही बड़ी-बड़ी डिग्रियां ना हो लेकिन उनके पास जिंदगी के अनुभवों की कोई कमी नहीं होती है। बड़े भाई साहब का मानना था जिंदगी जीने के लिए जिंदगी के व्यावहारिक अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं। भले ही हम एम. ए. की डिग्री हासिल कर ले, लेकिन घर जाने के लिए जिंदगी का व्यावहारिक अनुभव होना आवश्यक होता है। उनके अनुसार जिंदगी के अनुभव को पुस्तक किताबी ज्ञान से प्राप्त नहीं किया जा सकता। उसके लिए जीवन के व्यवहारिक रूप को समझना आवश्यक होता है। केवल किताबों में सिर खपाने की जगह जिंदगी के व्यावहारिक कार्यों को भी करते रहना चाहिए ताकि जिंदगी व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो सके।
प्रश्न-6 : बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि −
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
उत्तर :
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
पाठ के अंश : फिर भी मैं भाई साहब का आदर करता था और उनकी नजर बचाकर कनकौए उड़ाता था। मांझा देना, कन्ने बांधने, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियां आदि समस्याएं सब गुप्त रूप से हल की जाती थी। मैं भाई साहब को यह संदेह ना करने देना चाहता था कि उनका सम्मान और लिहाज मेरी नजरों में कम हो गया है।
(ख) भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।
पाठ के अंश : मैं तुमसे 5 साल बड़ा हूं और हमेशा रहूंगा। मुझे दुनिया का और जिंदगी का जो तजुर्बा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम. ए., एम. फिल् और डी. लिट् ही क्यों ना हो जाओ। समझ किताबें पढ़ने से नही आती–दुनिया देखने से आती है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
पाठ के अंश : संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौवा हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब लंबे है। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा हॉस्टल की तरफ दौड़ लगे, मैं पीछे पीछे दौड़ रहा था।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
पाठ के अंश : तो भाईजान, यह गरूर दिल से निकाल डालो कि तुम मेरे समीप आ गए हो और अब स्वतंत्र हो। मेरे रहते तुम बेराह ना चलने पाओगे। अगर तुम जो ना मानोगे तो मैं थप्पड़ देखा कर इसका प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ, तुम्हें मेरी बातें जहर लग रही है।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न-1 : इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार केवल इम्तिहान पास कर लेना ही बुद्धि का विकास नहीं होता महत्वपूर्ण नहीं होता यानी केवल परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाने से ही जीवन में सफलता नहीं मिल जाती। जीवन में व्यवहारिक ज्ञान का भी अलग महत्व होता है। जीवन के अलग-अलग पहलुओं को व्यावहारिक रूप से समझने से भी बुद्धि का विकास होता है। जीवन व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर ही जिया जाता है। अनपढ़ लोग भी अपना जीवन किसी ना किसी तरह जीते ही हैं। इसलिए केवल इम्तिहान पास कर लेना कोई बड़ी बात नहीं बल्कि इम्तिहान पास करने के साथ-साथ जीवन के व्यवहारिक अनुभव को हासिल करने से ही बुद्धि का विकास होता है।
प्रश्न-2 : फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुडकियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
लेखक के अनुसार जिस तरह जीवन में अनेक तरह की संकट, दुख, कष्ट आदि आने के बावजूद मनुष्य जीवन के मोह-माया और सांसारिक भोग विलास के आकर्षण में उलझा ही रहता है। वह उनके प्रति महू छोड़ नहीं पाता, उसी तरह छोटा भाई भी अपने बड़े भाई से रोज डाँट-डपर सुनकर, तरह-तरह के ताने-उलाहने सुनकर भी खेलकूद के प्रति अपने मोह का त्याग नहीं कर पाता था। यही लेखक ने स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।
प्रश्न-3 : बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने?
उत्तर : बड़े भाई साहब के अनुसार जब तक मकान की नींव मजबूत नहीं होगी उस पर ऊँचा मकान कैसे बन सकता है। अर्थात एक मजबूत भवन के निर्माण के लिए उसकी नींव को उतना ही अधिक मजबूत होना आवश्यक है। यहाँ पर बड़े भाई साहब ने मनुष्य के जीवन के विकास के संदर्भ में यह बात कही है । अच्छी शिक्षा और जीवन का व्यावहारिक अनुभव एक बुनियाद की तरह काम करता है। सुनहरे भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार और जीवन का व्यावहारिक अनुभव आवश्यक है।
प्रश्न-4 : आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर : इस पंक्ति में लेखक ने छोटे भाई द्वारा पतंग लूटे जाने के प्रसंग का वर्णन किया है। लेखक जब पतंग लूट रहा था तो उसकी आँखें आसमान की तरफ थी और उसका मन पतंग में ही उलझा हुआ था। उसे पतंग एक दिव्य आत्मा की तरह दिखाई दे रही थी और आसमान से धीरे धीरे लहराकर मंद-मंद गति से धरती की और आती हुई पतंग ऐसे लग रही थी कि जैसे कोई आत्मा एकदम विरक्त भाव से पृथ्वी पर दूसरा जन्म लेने हेतु आ रही हो।
भाषा अध्ययन
प्रश्न-1 : निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
नसीहत, रोष, आज़ादी, राजा, ताज्जुब
उत्तर : दिए गए शब्दों के पर्यायवाची इस प्रकार होंगे…
नसीहत : सीख, सलाह
रोष : क्रोध, गुस्सा
आज़ादी : स्वतंत्रता, मुक्त
राजा : नृप, नरेश
ताज्जुब : आश्चर्य, हैरानी
प्रश्न-2 : प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसीलिए इनकी कहानियाँ रोचक और प्रभावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है। उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सिर पर नंगी तलवार लटकना, आड़े हाथों लेना, अंधे के हाथ बटेर लगना, लोहे के चने चबाना, दाँतों पसीना आना, ऐरागैरा नत्थू-खैरा।
उत्तर : मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग इस प्रकार होगा…
1. सिर पर नंगी तलवार लटकना
वाक्य प्रयोग : उसका प्रमोशन रोक दिया गया है और अब उसके सिर पर नंगी तलवार लटक रही है, क्योंकि कंपनी उसे निकालने का सोच रही है।
2. आड़े हाथों लेना
वाक्य प्रयोग : शिक्षक ने देर से आने वाले छात्रों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त चेतावनी दी।
3. अंधे के हाथ बटेर लगना
वाक्य प्रयोग : उसकी लॉटरी में इतनी बड़ी रकम निकल आई, यह तो अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा ही है।
4. लोहे के चने चबाना
वाक्य प्रयोग : नए खिलाड़ी को टीम में अपनी जगह बनाने के लिए वाकई लोहे के चने चबाने पड़े।
5. दाँतों पसीना आना
वाक्य प्रयोग : इस कठिन गणित के सवाल को हल करते हुए मेरे दाँतों पसीना आ गया।
6. ऐरागैरा नत्थू-खैरा
वाक्य प्रयोग : इस महत्वपूर्ण बैठक में ऐरागैरा नत्थू-खैरा को बुलाना सही नहीं होगा, केवल संबंधित विशेषज्ञ ही शामिल हों।
प्रश्न-3 : निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।

तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ़, सूक्ति-बाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशी, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रात:काल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल
उत्तर : सभी शब्दों की छंटनी नीचे टेबल में दी गई है।
तत्सम | तद्भव | देशज | आगत |
चेष्टा | जानलेवा | घुड़कियाँ | तालीम (उर्दू) |
सूक्ति-बाण | आँखफोड़ | फटकार | जल्दबाज़ी (उर्दू) |
अधिपत्य | पन्ना | पुख्ता (उर्दू) | |
मेला | भाई साहब | हाशिया (उर्दू) | |
प्रातःकाल | हर्फ़ (उर्दू) | ||
विद्वान | जमात (उर्दू) | ||
निपुण | स्कीम (अंग्रेजी) | ||
अवहेलना | स्पेशल (अंग्रेजी) | ||
टाइम-टेबिल (अंग्रेजी) |
प्रश्न-4 : क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक
सकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला ने सेब खाया।
मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया- वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला हँसती है।
बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्यों में कौन-सी क्रिया है- सकर्मक या अकर्मक? लिखिए-
- उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया।
- फिर चोरों-सी जीवन कटने लगा।
- शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा।
- मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।
- समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।
- मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।
उत्तर : क्रियाएं इस प्रकार होंगी..
- उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया। — सकर्मक क्रिया
- फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा। — सकर्मक क्रिया
- शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। — सकर्मक क्रिया
- मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। — सकर्मक क्रिया
- समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो। — सकर्मक क्रिया
- मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था। — अकर्मक क्रिया
प्रश्न-5 : ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-
विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार
उत्तर : इस प्रत्यय लगाकर शब्द..
प्रमाण + इक — प्रमाणिक
तमस + इक — तामसिक
विचार + इक — वैचारिक
साहस + इक — साहसिक
मूल + इक — मौलिक
योग्यता विस्तार
प्रश्न-1 : प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर : ये एक प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी अपनी कक्षा में इस करने का प्रयास करें। वे प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ें और अपनी कक्षा में सुनाएं। कहानियों का मंचन भी करें।
प्रश्न-2 : शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर : शिक्षा का उद्देश्य केवल रटंत विद्या तक सीमित नहीं होना चाहिए। शिक्षा का मूल उद्देश्य छात्रों को जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए तैयार करना है, जिसमें ज्ञान, समझ, और व्यावहारिक कौशल शामिल हैं। रटंत विद्या से छात्र केवल परीक्षा पास करने के लिए सामग्री याद कर लेते हैं, बिना उसकी गहरी समझ के। यह ज्ञान जल्दी ही भूल जाता है और छात्रों में सृजनात्मकता और समस्या समाधान कौशल का विकास नहीं हो पाता। सच्ची शिक्षा वह है जो छात्रों को सोचने, समझने और ज्ञान को व्यावहारिक जीवन में लागू करने की क्षमता देती है।
शिक्षा का लक्ष्य छात्रों को समग्र रूप से विकसित करना है, न कि केवल रटंत विद्या तक सीमित रखना। शिक्षण विधियों में परिवर्तन की आवश्यकता है, जिससे छात्रों में गहन समझ, सृजनात्मकता, और व्यावहारिक कौशल का विकास हो सके। यह सुनिश्चित करेगा कि वे केवल जानकारी को याद न करें, बल्कि उसे समझें और जीवन में उपयोग कर सकें।
प्रश्न 3. क्या पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं-कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर : वाद-विवाद : क्या पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं?
पक्ष में
हाँ, पढ़ाई और खेलकूद साथ-साथ चल सकते हैं। दोनों का संतुलन छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। खेलकूद से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। इससे छात्र अधिक सक्रिय और ऊर्जावान महसूस करते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई में भी सुधार होता है। कई अध्ययन बताते हैं कि खेलकूद में भाग लेने वाले छात्रों की एकाग्रता और स्मरण शक्ति बेहतर होती है। इसलिए, खेलकूद और पढ़ाई का मेल छात्रों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है।
विपक्ष में
नहीं, पढ़ाई और खेलकूद का साथ-साथ चलना मुश्किल है। दोनों में संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि समय का उचित बंटवारा नहीं हो पाता। खेलकूद में अधिक समय देने से पढ़ाई का समय कम हो जाता है, जिससे अकादमिक प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। छात्रों को अच्छे अंक पाने के लिए अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अलावा, खेलकूद में लगी चोटें भी पढ़ाई में बाधा बन सकती हैं।
प्रश्न 4. क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर : परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है इस विषय पर चर्चा इस प्रकार होगी..
पहला मत
परीक्षा पास करना एक महत्वपूर्ण योग्यता का मापदंड है क्योंकि यह छात्रों की ज्ञान और समझ को मापता है। परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से यह साबित होता है कि छात्र ने विषय को अच्छी तरह से समझा और सीखा है। यह नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए प्राथमिक मानदंड भी है।
दूसरा मत
परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का संपूर्ण आधार नहीं हो सकता। योग्यता का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्य, और सृजनात्मकता भी है। कुछ छात्र परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते लेकिन वे अन्य क्षेत्रों में अत्यधिक सक्षम हो सकते हैं।
परियोजना कार्य
प्रश्न-1 : कहानी में जिंदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता बड़े भाई-बहिनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई?
उत्तर : कहानियों और जिंदगी के अनुभवों में हमें अक्सर यह सिखाया जाता है कि वास्तविक जीवन के अनुभव किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इस विषय पर, मैंने अपने माता-पिता और बड़े भाई-बहनों से बातचीत की और उनके जीवन के अनुभवों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सीखीं।
मेरे पिता ने बताया कि उनके जीवन में कई ऐसी परिस्थितियाँ आईं जहाँ किताबी ज्ञान से ज्यादा समझदारी और पुराने अनुभव काम आए। जब उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया, तो कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन समस्याओं को हल करने में उनके जीवन के अनुभव और समझदारी ने अधिक मदद की। उन्होंने यह भी कहा कि किताबी ज्ञान आवश्यक है, लेकिन समझदारी और अनुभव के बिना वह अधूरा है।
मेरी माँ ने भी अपने जीवन से कुछ उदाहरण साझा किए। उन्होंने बताया कि परिवार का प्रबंधन और बच्चों की परवरिश में किताबी ज्ञान से ज्यादा समझदारी और अनुभव ने मदद की। उन्होंने कई बार पुरानी पीढ़ियों के अनुभवों से सीखा और उन्हें अपने जीवन में लागू किया।
मेरे बड़े भाई ने यह बताया कि उनके करियर में किताबी ज्ञान के साथ-साथ अनुभवी लोगों से मिली सलाह और उनके स्वयं के अनुभवों ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की। उन्होंने कई बार किताबी ज्ञान का उपयोग किया, लेकिन उसे व्यावहारिक जीवन में लागू करने के लिए समझदारी और अनुभव की जरूरत पड़ी।
बातचीत से यह स्पष्ट हुआ कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए समझदारी और पुराने अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। किताबी पढ़ाई महत्वपूर्ण है और हमें मूलभूत ज्ञान प्रदान करती है, लेकिन जिंदगी की वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए अनुभव और समझदारी की आवश्यकता होती है।
इसलिए, हमें दोनों का संतुलन बनाए रखना चाहिए और जीवन के अनुभवों से सीखना चाहिए ताकि हम जिंदगी को बेहतर ढंग से जी सकें।
प्रश्न-2 : आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती/रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए।
उत्तर : छोटी बहन को पत्र
प्रिय छोटी बहिन रजनी
खुश रहो,
आशा है तुम स्वस्थ और प्रसन्न हो। यहाँ सब कुशल हैं। तुम छात्रावास में अच्छे से रह रही हो और अपनी पढ़ाई में ध्यान दे रही हो, यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई।
पढ़ाई के इस महत्वपूर्ण समय में कुछ बातें तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ। सबसे पहले, अपने दिनचर्या को सही तरीके से व्यवस्थित करो। समय पर उठो, नियमित रूप से कक्षाओं में भाग लो, और जो भी काम मिले उसे समय पर पूरा करो। खुद पर विश्वास रखो और मेहनत से पढ़ाई करो। कोई भी विषय कठिन लगे तो तुरंत अपने शिक्षक से पूछो या अपने मित्रों की सहायता लो।
अपनी सेहत का भी ध्यान रखो। नियमित रूप से भोजन करो और पर्याप्त नींद लो। पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ी बहुत खेलकूद भी जरूरी है, इससे मन ताज़ा रहता है और पढ़ाई में भी मन लगता है।
याद रखो कि हम सब तुम्हारे साथ हैं और तुम्हें हर कदम पर सपोर्ट करेंगे। अगर तुम्हें कभी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो या किसी समस्या का सामना करना पड़े, तो बिना हिचकिचाए हमें लिखो या फोन करो।
तुम्हारे उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए,
तुम्हारा भाई
रमन
बड़े भाई साहब, लेखक – प्रेमचंद (कक्षा-10, पाठ-8 हिंदी, स्पर्श भाग 2) (NCERT Solutions)
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साखी : कबीर (कक्षा-10 पाठ-1 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर)
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