दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श 2) (हल प्रश्नोत्तर) (पुराना पाठ्यक्रम)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3 हिंदी स्पर्श भाग 2)

DOHE : Bihari (Class-10 Chapter-3 Hindi Sparsh 2)


दोहे : बिहारी

पाठ के बारे में…

इस पाठ में कवि बिहारी के नीतिगत दोहों की व्याख्या की गई है। कवि बिहारी श्रृंगार परक रचना के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक श्रृंगार दोहों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने लोक ज्ञान, शास्त्र ज्ञान पर आधारित नीति के दोहे भी रचे हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने नीति संबंधी बातें कहीं हैं। यह दोहे ऐसे ही नीति वचनों पर आधारित दोहे हैं।



रचनाकार के बारे में…

कवि ‘बिहारी’ सोलहवी-सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे। वे श्रृंगार रस के कवि रहे हैं। उनकी अधिकतर रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता मिलती है। उनकी कविताओं में नायक और नायिका की वे सारी चेष्टाएं मिलती है, जिन्हें हाव-भाव कहा जाता है। उनकी रचनाओं की भाषा मुख्यतः ब्रज रही है, जिसमें साहित्यकता का पुट है। उनकी रचनाओं में पूर्वी और बुंदेलखंडी शब्दों का भी मिश्रण मिलता है।

कवि बिहारी का जन्म सन 1595 ईस्वी में ग्वालियर में हुआ था। 7-8 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ ओरक्षा चले गए, जहाँ उन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य में शिक्षा प्राप्त की। यहीं पर वह रहीम के संपर्क में आए। कवि बिहारी एक रसिक कवि थे और उनकी काव्य में रसिकता मिलती है। उनके व्यक्तिगत जीवन में भी रसिकता का समावेश था, उनका स्वभाव मूलतः विनोदी और व्यंगप्रिय था।

कवि बिहारी की केवल एक ही रचना ‘सतसई’ नाम से उपलब्ध है। इसमें लगभग 700 संग्रहित है। सन् 1663 में उनका निधन हुआ।



हल प्रश्नोत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1 : छाया भी कब छाया ढूंढने लगती है?

उत्तर : कवि बिहारी के अनुसार छाया भी तक छाया ढूंढने लगती है, जब जेठ के महीने में बड़ी तेज धूप होती है। जेठ महीने की यह तेज धूप सर पर इस प्रकार तेजी से पड़ने लगती है कि मनुष्य के शरीर की छाया या अन्य वस्तुओं की छाया भी छोटी होती जाती है। तब जेठ की भीषण गर्मी वाली उस दुपहरी में छाया भी छाया ढूंढने लगती है।


प्रश्न 2 : बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहि है सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ इस पंक्ति से माध्यम से बिहारी की नायिका ये कहना चाहती कि उसके मन की बात और उसके हृदय की वेदना का उसका प्रियतम अपने हृदय की वेदना से ही समझ जायेगा। नायिका कागज के माध्यम से अपने प्रियतम को संदेश देना चाहती है।

जब वह कागज पर अपने प्रियतम के लिए संदेश लिख रही है तो लिखते समय वह कंपकंपाने लगती है उससे संदेश नही लिखा जाता है और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं इसके साथ ही उसे संदेश लिखने मे लाज भी आ रही है। वह जानती है कि जो उसकी अवस्था है वही उसके प्रियतम की अवस्था होगी। इसलिये वो अपने प्रियतम को लिखती है कि ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ अर्थात तुम अपने हृदय की वेदना से ही मेरे हृदय की वेदना का अंदाज लगा लेना।


प्रश्न 3 : सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : कवि बिहारी ने इस दोहे के माध्यम से यह बात स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि ईश्वर को पाने के लिए व्यर्थ के कर्मकांड करने की आवश्यकता नहीं है। व्यर्थ के कर्मकांड करना, माला जपना, तिलक लगाना, छापे लगवाना आदि करने से राम यानि ईश्वर नहीं प्राप्त होते।

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए मन में सच्ची भक्ति पैदा करनी पड़ती है। अपने मन को निर्मल बनाकर प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति करने से उनको सच्चे मन से याद करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं। कुछ लोग पूरे जीवन केवल आडंबर रहते रहते हैं, लेकिन उन्हें ईश्वर प्राप्त नहीं हो पाते।

ईश्वर का निवास सच्चे, शुद्ध और सात्विक, निर्मल मन में होता है। कच्चा मन काँच के समान नाजुक होता है जो जरा सा आघात लगने सी ही टूट जाता है। सच्चा मन इतना नाजुक नही होता।


प्रश्न 4 : गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?

उत्तर : गोपियां श्रीकृष्ण की बांसुरी इसलिए छुपा लेती है, क्योंकि वह श्रीकृष्ण का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कराना चाहती हैं, वह श्रीकृष्ण को रिझाना चाहती हैं।

लेकिन श्रीकृष्ण हैं कि अपनी बांसुरी बजाने में ही मगन रहते हैं, गोपियों को ओर ध्यान नही देते। इसलिए वह श्रीकृष्ण की बांसुरी छुपा देती है ताकि श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी को भूलक उनसे बातें करें।

हो सकता है श्रीकृष्ण बांसुरी के विषय में उनसे पूछें। इससे उन्हें श्रीकृष्ण से बात करने का अवसर प्राप्त होगा, उनसे नोकझोंक होगी। इसीलिए गोपियां श्रीकृष्ण को रिझाने के लिए उनकी बांसुरी छुपा देती हैं।


प्रश्न 5 : बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : कवि बिहारी ने बताया है कि सभी की उपस्थिति में भी इशारों ही इशारों में बात की जा सकती है और बिना बोले ही अपने मन की बात कही जा सकती है। कवि के नायक और नायिका सभी की उपस्थिति में इशारों ही इशारों में अपने मन की बात कर रहे हैं। नायक सभी की उपस्थिति में ही नायका को कुछ इशारे करता है और नायिका इशारे ही इशारे में मना करती है।

इस पर नायक नायिका की इस शैली पर रीझ उठता है। नायक की इस हरकत पर नायिका खीझ उठती है। नायक और नायिका के नेत्र मिले और नायक के मन में प्रसन्नता हुई, वही नायिका लज्जा आँखों में लज्जा के भाव लिए हुए थी। इस तरह सभी की उपस्थिति में ही बिना बोले ही इशारों ही इशारों में बात की जा सकती है, ये कवि बिहारी ने स्पष्ट किया है।



(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
  • मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
  • जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
  • जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
    मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

उत्तर : भाव इस प्रकार होगा :

1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।

भावार्थ : इस पंक्ति के माध्यम से कवि बिहारी श्रीकृष्ण के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण के सौंदर्य की तुलना नीलमणि पर्वत और उस पर पड़ रही सूरज की सुनहरी धूप से की है।

कवि बिहारी कहते हैं कि श्रीकृष्ण के नीले शरीर पर उनके द्वारा धारण किए गए पीतांबर यानी पीले वस्त्र इस प्रकार शोभायमान दिखाई दे रहे हैं कि जैसे नीलमणि पर्वत पर सुबह के समय सूरज की सुनहरी धूप निकल रही हो। नीलमणि पर्वत पर गिर रही सुनहरी धूप के समान श्रीकृष्ण का सौंदर्य अद्भुत प्रतीत हो रहा है।

2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।

भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु के प्रचंड आवेग के कारण सारा जंगल ही तपोवन के समान हो गया है। जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पशु रहते हैं जिनमें आपसी दुश्मनी होती है, लेकिन इस भीषण गर्मी ने सभी पशुओं को एक साथ ला खड़ा किया है और सभी पशु आपसी बैरभाव बुलाकर एक ही छत के नीचे जमा हो गए हैं।

ग्रीष्म ऋतु की भीषण गर्मी ने उनके अंदर के बैरभाव को मिटा दिया है और पूरा जंगल तपोवन के समान हो गया है। तपोवन में रहने वाले प्राणी आपस में कोई बैरभाव नहीं रखते और मिलजुल कर रहते हैं। उसी प्रकार भीषण गर्मी के कारण जंगल के पशु भी आपसी बैरभाव भुलाकर एक साथ रहने लगे हैं।

3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै एकौ कामु।
    मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।

भावार्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि तरह-तरह के प्रपंच रखने से और बाहरी आडंबर कर्मकांड आदि करने से ईश्वर की राम यानी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। माला फेरने से, हल्दी चंदन का लेप लगाने से, माथे पर तिलक लगाने से भी ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही लोगों का मन तो बहुत कच्चा होता है, जो जरा सी बात पर ही डोलने लगता है। इन लोगों का मन काँच के समान कच्चा होता है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए मन को कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। जो सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है, जिससका मन निर्मल है, छल कपट नहीं है। उसको ही राम यानि ईश्वर मिलते हैं।



योग्यता विस्तार

1. सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। देखन के छोटे लगे, घाव करे गंभीर।। अध्यापक की मदद से बिहारी विषयक इस दोहे को समझने का प्रयास करें। इस दोहे से बिहारी की भाषा संबंधी किस विशेषता का पता चलता है।

उत्तर : कवि बिहारी द्वारा रचित इस दोहे को पढ़कर कवि बिहारी की इस विशेषता का पता चलता है कि बिहारी ने बहुत कम शब्दों में ही बहुत बड़ी बात कह दी है। कवि बिहारी थोड़ी से शब्दों में बड़ी एवं गूढ़ बात कहने में निपुण थे। वह गागर में सागर भरने की कला में माहिर थे। इस दोहे को पढ़कर भी उनकी इसी विशेषता का पता चलता है। इस दोहे के पड़कर पता चलता है कि उनके दोहे देखने में भले ही छोटे लगते हों लेकिन वह मन बहुत गहरी छाप छोड़ते हैं।



परियोजना कार्य

1. बिहारी कवि के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए

उत्तर : ये प्रायोगिक कार्य है। विद्यार्थी कवि बिहारी के विषय में पाठ्य पुस्तकों से और इंटरनेट से जानकारी एकत्रित करें और अपनी पाठ्य पुस्तिका में चिपकाएं।


दोहे : बिहारी (कक्षा-10 पाठ-3, हिंदी, स्पर्श 2) (NCERT Solutions)

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