औंधाई सीसी सु लखि बिरह-बरनि बिललात ।
बिचहीं सूखि गुलाब गौ छींटौ छुई न गात ।।
अर्थ : कवि बिहारी कहते हैं कि नायिका के विरह में जल रही नायिका के विरह को शांत करने के लिए उसकी सखियों ने नायिका के शरीर पर गुलाब जल की पूरी शीशी उलट दी, लेकिन नायिका के विरह की आँच इतनी तीव्र थी कि उसकी आँच से गुलाब जल नायिका के शरीर को स्पर्श करने से पहले ही बीच में सूख गया और गुलाब जल का एक छोटा सा छींटा भी विरहिणी यानी नायिका के शरीर को स्पर्श नहीं कर सका।
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