संवाद
वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के बीच संवाद
वर्षा ⦂ ग्रीष्म बहन, मैं आने वाली हूँ और तुम्हारे जाने का समय आ गया है। धरती वाले मुझे पुकार रहे हैं। वह कह रहे हैं कि तुम ने उन्हें त्रस्त कर दिया है। तुमने अपने प्रकोप से उनका हाल बेहाल कर दिया है। अब तो वह बस मेरे ही इंतजार में हैं कि कब मैं आऊं और कब उन्हें तुम से राहत मिले।
ग्रीष्म ⦂ स्वागत है तुम्हारा वर्षा बहन। तुम आओगी तो मैं खुद ही चली जाऊंगी।
वर्षा ⦂ बहन, मैंने तुमसे अभी जो कहा उस बात का बुरा मत मानना। धरती वाले मुझसे शिकायत करते हुए मुझे पुकारते रहते हैं वही बात मैंने तुमको बता दी।
ग्रीष्म ⦂ नहीं बहन मैंने तुम्हारी बात का कुछ बुरा नहीं माना। प्रकृति ने हम लोगों के लिए अलग-अलग कार्य निर्धारित किए हैं। मेरा काम ही है गर्म वातावरण पैदा करना। अब इसके कारण धरती वासियों को तकलीफ हो जाती है तो मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकती। उस तकलीफ से निजात दिलाने के लिए फिर तुम आती हो। फिर तुम जब अधिक बरसने लगती हो तो तुम से भी लोग परेशान हो जाते हैं चारों तरफ कीचड़ कीचड़ और बीमारियों के फैलने की प्रकोप होने पर लोग दूसरी रितु का इंतजार करते हैं तब शरद ऋतु आती है। शरद ऋतु में भी अत्याधिक ठंड पड़ने पर जब लोग परेशान हो जाते हैं जब वह चाहते हैं कि मैं आऊं।
वर्षा ⦂ तुम बिल्कुल सही कह रही हो बहन। हम अपने लिए दिए गए कार्य को ही पूरा करते हैं। दरअसल एक कहावत है कि अति हर चीज की बुरी होती है। हम अपने सामान्य रूप में रहते हैं, तो सबको ठीक लगते हैं लेकिन जब हम अपना प्रचंड रूप धारण कर लेते हैं, जो लोगों को तकलीफ होने लगती है। तब सब हमारे जाने की कामना करते हैं। हम सभी ऋतुओं के साथ यही बात है।
ग्रीष्म ⦂ यही बात मैं तुमसे कहना चाह रही थी। तुम मेरी बात मतलब अच्छी तरह समझ गईं। ठीक है अब तुम जल्दी से आओ और इस धरती वासियों को अपनी शीतल बूंदों से राहत दो। तुम किसानों की प्रिय ऋतु हो। उनके मन को बरसाओ। तुम आओगी तो मुझे छुट्टी मिलेगी। फिर मैं आराम करूंगी और अगले साल आने की तैयारी करूंगी।
वर्षा ⦂ हाँ, बहन मैं जल्दी ही आने वाली हूँ।
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