लघु निबंध
‘भारतीय किसान’
भारत मूलतः का एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय किसान भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। उसके बावजूद भारतीय किसानों की स्थिति शुरु से लेकर अभी तक जस की तस बनी है। भारतीय किसान अपने जीवन स्तर को अभी तक नहीं सुधार पाये। वह जिंदगी भर अनेक तरह की समस्याओं से जूझते रहते हैं।
जी-तोड़ मेहनत करने के बावजूद भारतीय किसान की व्यथा यही है कि वह जीवन भर संघर्ष करते रह जाते हैं। कुछ सरकारी नीतियां कुछ आधुनिकता और विकास की होड़ तथा कुछ पारंपरिक प्राचीन खेती पर अधिक निर्भरता भारतीय किसानों को आज भी पीछे किए हुए हैं। इन सब विषमताओं के बावजूद भारतीय किसान की जीवटता सराहनीय है कि वह इन सभी कष्टों से जूझता हुआ भी निरंतर खेती करता रहता है और लोगों के लिए अन्न उपजाता रहता है, जिससे सब का पेट भर सके।
हमें अक्सर समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिलती है कि किसान ने आत्महत्या कर ली। समाचारों में ये घटनाएं सामान्य हो गई है, क्योंकि अक्सर सुनने को मिलती है। इससे भारतीय किसान की दुर्दशा का पता चलता है। आज समय की आवश्यकता है कि भारतीय किसान की स्थिति सुधारने के लिए ऐसे सार्थक एवं ठोस प्रयास किए जाएं कि वह भी एक सम्मानित जीवन जी सके। उसे ना तो महाजनों के कर्ज के जाल में उलझना पड़े और ना कभी भी बीज और खाद के लिए भटकना पडे। ना उसे अपनी फसल के बेमौसम या प्राकृतिक आपदा के कारण हुए नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़े।
भारतीय किसान भी सम्मानित जीवन जी सके, उसे अपनी मेहनत का फल मिले और निर्भीक होकर खेती कर सके, इसके लिए एक युद्ध स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को पूरी तरह नहीं मिल पाता। सरकारी योजनाएं पूरी तरह किसानों तक नही पहुंच पाती है और भी उसका बिचौलिए उठा लेते हैं।
किसानों की अशिक्षा और अज्ञानता के कारण किसान की अधिकतर मेहनत का लाभ बीच के बिचौलिए उठा लेते हैं, और किसान वहीं का वही रह जाता है। किसानों को महाजनों और बिचौलिओं के चंगुल से मुक्त करने के लिए उन्हे जागरुक करना होगा और उन्हे पर्याप्त सहायता उपलब्ध करानी होगी। सरकार ही इस काम को कर सकती है।
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