निबंध
दया धर्म का मूल है।
दया मानव जाति के सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक है। यह वह आधारशिला है जिस पर सभी धर्मों और नैतिक मूल्यों का निर्माण होता है। दया का अर्थ है दूसरों के दुख को समझना और उनकी मदद करने की इच्छा रखना। यह एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को मानवता से जोड़ता है और समाज में सद्भावना का संचार करता है।
जब हम दया दिखाते हैं, तो हम न केवल दूसरों की मदद करते हैं, बल्कि अपने आंतरिक व्यक्तित्व को भी समृद्ध करते हैं। दया से हमारे मन में करुणा, प्रेम और सहानुभूति जैसे भाव जागृत होते हैं, जो हमें एक बेहतर इंसान बनाते हैं। यह हमें स्वार्थ से ऊपर उठकर परोपकार की ओर ले जाती है।
सभी धर्मों में दया को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। हिंदू धर्म में अहिंसा और करुणा, बौद्ध धर्म में करुणा, ईसाई धर्म में प्रेम और क्षमा, इस्लाम में रहम – ये सभी दया के ही विभिन्न रूप हैं। दया धार्मिक सिद्धांतों का केंद्र बिंदु है, जो मनुष्य को नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।
समाज में दया का प्रसार शांति, सौहार्द और विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। यह हमें एक ऐसे विश्व की ओर ले जाता है जहाँ सभी प्राणी एक-दूसरे के सुख-दुख में भागीदार हों। इसलिए, दया को धर्म का मूल मानना न केवल उचित है, बल्कि आवश्यक भी है।
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