निबंध
मेरी प्रिय ऋतु – वसंत
मेरी प्रिय ऋतु – वसंत : भारत ऋतुओं का देश है। यहाँ पर सबसे अधिक ऋतुएं पाईं जाती हैं। हर ऋतु का अपना अलग महत्व है। हर किसी को कोई न कोई ऋतु विशेष रूप से प्रिय होती है। मेरी प्रिय ऋतु वसंत है। इसलिए मेरी प्रिय ऋतु वसंत पर निबंध प्रस्तुत है।
प्रस्तावना
भारत भूमि पर विधाता की विशेष कृपा दृष्टि है , क्योंकि यहाँ पर समय की गति के साथ ऋतुओं का चक्र घूमता रहता है । इससे यहाँ प्राकृतिक परिवेश में निरंतर परिवर्तन एवं गतिशीलता दिखाई देती है । सामाजिक चेतना, भौगोलिक सुषमा एवं पर्यावरणीय विकास की दृष्टि से भारत में ऋतु परिवर्तन का अनेक तरह से काफी महत्व माना जाता है। इसमें भी वसंत ऋतु का अपना विशिष्ट सौन्दर्य सभी को आनन्द दायी लगता है। आइए जानते है वसंत ऋतु के बारे में।
भारत में ऋतुएँ
हमारे भारत में एक वर्ष में छः ऋतुएँ होती है वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत । प्रत्येक ऋतु का समय दो माह (महीने ) का होता है। जब सूर्य कर्क रेखा पर होता है, तब ग्रीष्म ऋतु पड़ती है। इस ऋतु में भयानक गर्मी और तपन रहती है । फिर सावन भादों में वर्षा ऋतु आती है और चारों ओर जल वर्षण होता रहता हैं। सूर्य विषुवत रेखा पर रहता है तब शरद् ऋतु आती है, दीपावली के बाद शिशिर ऋतु प्रारम्भ होती है। इसमें कड़ाके की ठंड पड़ती है तथा पर्वतीय स्थलों पर बर्फ व पाला गिरता है। इसके बाद हेमंत ऋतु आती है, इसमें वृक्षों लताओं के पत्ते सूखकर झड़ने लगते है। सूर्य वापिस विषुवत रेखा पर पहुँचते ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। इस प्रकार भारत में वर्ष भर में छः ऋतुएँ बदल जाती हैं।
ऋतुराज कहलाने का कारण
वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं । प्रत्येक ऋतु का अपना अलग महत्व है परन्तु वसंत ऋतु का विशेष महत्व हैं । इस ऋतु में समस्त प्रकृति में सौन्दर्य एवं उन्माद छा जाता हैं । धरती का नया रूप सज जाता है , प्रकृति अपना श्रृंगार सा करती है तथा समस्त प्राणियों के ह्रदय में उमंग , उत्साह एवं मादकता से भर जाते हैं । इस ऋतु का आरम्भ माघ शुक्ल पंचमी से होता है , होली का त्यौहार इसी ऋतु में पड़ता है । नए संवत्सर का आरम्भ भी इसी से माना जाता हैं । इन सब कारणों से वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा जाता हैं । कवियों एवं साहित्यकारों ने इस ऋतु की अनेकश प्रशंसा की हैं ।
प्राकृतिक वातावरण
वसंत ऋतु में सभी पेड़ पौधे नयें पत्तों, कोपलों, कलियों एवं पुष्पों से लद जाते हैं । शीतल, मंद एवं सुगन्धित हवा चलती है । वसंत ऋतु में वातावरण का तापमान सामान्य बना रहता है । न अधिक गर्मी और न अधिक ठंड होती हैं । न गर्मी और न सर्दी रहती है । कोयल कूकने एवं भौरें गुंजार करने लगते है । होली, फाग एवं गणगौर का उत्सव किशोर किशोरियों को उमंगित करता है । सारा ही प्राकृतिक वातावरण अतीव सुंदर , मनमोहक एवं मादक बन जाता हैं | कवियों के कंठ से श्रृंगार रस झरने लगता है। दूर-दूर तक सौन्दर्य एवं पीताभ सुषमा फ़ैल जाती है । रात्रि का परिवेश भी अतीव मनोरम लगता हैं ।
भागवत गीता में वसंत
वसंत को ऋतुओं का राजा इसलिए कहा गया है क्योंकि इस ऋतु में धरती की उर्वरा शक्ति यानी उत्पादन क्षमता अन्य ऋतुओं की अपेक्षा बढ़ जाती है । यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है । वे सारे देवताओं और परम शक्तियों में सबसे ऊपर हैं वैसे ही बसंत ऋतु भी सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है।
वसंत की उत्पत्ति के संबंध में कथा अंधकासुर नाम के राक्षस का वध सिर्फ भगवान शंकर के पुत्र से ही संभव था । तो शिवपुत्र कैसे उत्पन्न हो तब इसके लिए कामदेवम के कहने पर ब्रह्माजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था । ब्रह्मा जी ने शक्ति की स्तुति की उसके बाद देवी सरस्वती प्रकट हुई । ब्रह्मा और देवी सरस्वती ने सृष्टि सृजन किया । इसलिए वसंत में नए पेड़-पौधे उगते हैं । उनमें लगने वाले फूलों में कामदेव को स्थान दिया गया।
कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला , आकर्षक नैन – नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला , मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे ऐसे गुणों से भरपूर बताया है । फूलों का मौसम है वसंत वसंत ऋतु को फूलों का मौसम कहा गया है । इस मौसम के न तो अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक ठण्ड लिहाजा फूल काफी दिनों तक बने रहते है । इन फूलों की अधिक देखभाल नहीं करनी पड़ती है रोपने के बाद समय – समय पर उसकी सिंचाई जरूरी है । गोबर की खाद इनके लिए काफी है।
उपसंहार
भारत में वैसे सभी ऋतुओं का महत्व है, सभी उपयोगी है और समय परिवर्तन के साथ प्राकृतिक परिवेश की शोभा बढ़ाती है । परन्तु सभी ऋतुओं में वसंत का सौन्दर्य सर्वोपरि रहता है । इसी से इसे ऋतुराज कहा जाता है । यह ऋतु कवियों , प्रकृति प्रेमियों एवं भावुकजनों को अतिशय प्रिय लगती है ।
वसंत ऋतु मानव को यह संदेश देती हैं कि दुःख के बाद एक दिन सुख का आगमन भी होता है । जिस तरह परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है । जिस तरह शिशिर ऋतु के बाद वसंत की मादकता का अपना एक अलग ही आनन्द होता है , उसी प्रकार जीवन में भी दुखों के बाद सुख का आनन्द दुगुना हो जाता हैं ।